असम: गोलपाड़ा में अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान पुलिस फायरिंग, एक की मौत, चार गंभीर रूप से घायल

Written by sabrang india | Published on: July 18, 2025
12 जुलाई को प्रशासन ने पाइकन रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में 1,080 मुस्लिम परिवारों के घरों को यह कहकर ढहा दिया कि वे आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण कर रहे थे। हालांकि, स्थानीय लोग इस दावे को खारिज करते हैं और कहते हैं कि यह इलाका एक राजस्व गांव (रेवेन्यू विलेज) है।


फोटो साभार : द वायर

असम के गोलपाड़ा जिले के बेटबाड़ी गांव के एक 19 वर्षीय युवक की पुलिस फायरिंग में 17 जुलाई मौत हो गई, जबकि कम से कम चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। यह फायरिंग पाइकन रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में उस समय हुई जब स्थानीय ग्रामीण चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह अभियान मुख्य रूप से मुस्लिम परिवारों को निशाना बनाकर चलाया जा रहा है।

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, जिस युवक की जान गई है, उसका नाम सकुर अली था। एक 27 वर्षीय युवक कासिमुद्दीन का इलाज गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में चल रहा है और उसकी हालत गंभीर बनी हुई है।

12 जुलाई को प्रशासन ने पाइकन रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में 1,080 मुस्लिम परिवारों के घरों को यह कहकर ढहा दिया कि वे आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण कर रहे थे। हालांकि, स्थानीय लोग इस दावे को खारिज करते हैं और कहते हैं कि यह इलाका एक राजस्व गांव (रेवेन्यू विलेज) है।

इस क्षेत्र के निवासी मुख्य रूप से पूर्वी बंगाल मूल के मुसलमान हैं, जिन्होंने कभी उनके लिए अपमानजनक रूप से इस्तेमाल किए गए शब्द ‘मियां’ को पुनः आत्मसात कर लिया है और अब वे स्वयं को ‘मियां मुसलमान’ कहते हैं।

जहां कई विस्थापित निवासी अतिक्रमण हटाओ अभियान के बाद इलाका छोड़कर चले गए, वहीं कुछ लोग पीछे रह गए और अस्थायी तिरपाल के तंबुओं में शरण ली। जो लोग वहां रुके रहे, उन्होंने अगले कुछ दिनों के दौरान अपने ढहाए गए घरों के मलबे से लोहे की छड़ें, ईंटें और अन्य चीजें इकट्ठा करने की कोशिश की।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस ने उन पर लगातार इलाका खाली करने का दबाव बनाया, कई अस्थायी तंबुओं को तोड़ दिया और उनका सामान नष्ट कर दिया।

असुदबी राजस्व गांव के 27 वर्षीय अबुल कलाम ने अतिक्रमण हटाओ अभियान में अपना घर खो दिया और तब से वह गांव में एक अस्थायी तंबू में रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि “इलाके में हजारों की संख्या में पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे” और “अब भी हालात कर्फ्यू जैसे बने हुए हैं।”

17 जुलाई की सुबह तनाव तब और बढ़ गया जब अधिकारी कथित रूप से वहां की एक सड़क को खोदकर स्थल तक पहुंचने का रास्ता बंद करने के लिए एक खुदाई करने वाली मशीन (एक्स्कावेटर) लेकर बेटबाड़ी इलाके में पहुंचे। इसका विरोध करने के लिए स्थानीय निवासी बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए। इस विरोध में ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) और सत्र मुक्ति संग्राम समिति (SMSS) के सदस्य भी शामिल हुए।

इस घटना का चश्मदीद गवाह एक 35 वर्षीय स्थानीय निवासी ने कहा, “जब हमने खुदाई करने वाली मशीन को रोकने की कोशिश की, तो पुलिस ने हम पर लाठीचार्ज शुरू कर दिया।” AAMSU नेता आनिमुल इस्लाम ने भी पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किए जाने की पुष्टि की।

एक व्यक्ति ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, “जैसे ही हम सड़क के पास मैदान में पहुंचे, उन्होंने गोली चला दी। मैंने अपनी आंखों के सामने लोगों को गोली लगने के बाद गिरते देखा।”

स्थानीय निवासियों का यह भी दावा है कि प्रशासन राहत सामग्री लेकर आ रहे वाहनों को अतिक्रमण हटाओ स्थल में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश कर रहा था।

कुछ निवासियों के अनुसार, वन अधिकारी जगदीश बर्मन ने कथित रूप से कहा, “मैं तुम सबको गोली मार दूंगा, चाहे मुझे अपनी जेब से पैसे क्यों न खर्च करने पड़ें।” द वायर इस कथित बयान की पुष्टि बर्मन से स्वतंत्र रूप से नहीं कर सका।

कासिमुद्दीन के अलावा, अमीर हमजा (30 वर्ष), सैफुल अली और अक्कास अली भी घायल हुए, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें कथित रूप से पुलिस की कार्रवाई में चोटें आईं।

सत्र मुक्ति संग्राम समिति (SMSS) के नेता अल मुस्तफिजुर रहमान ने कहा, “यह मियां मुसलमानों पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर किया गया अमानवीय हमला है।”

हालांकि कुछ लोगों ने दावा किया है कि इस टकराव के दौरान एक पुलिसकर्मी भी घायल हुआ था, लेकिन द वायर इसकी पुष्टि नहीं कर सका।

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