इस क्षेत्र में बसे ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। बेदखली का उद्देश्य वेटलैंड (जलभूमि) में कथित ‘अवैध कब्जे’ से 1566 बीघा भूमि को खाली कराना है।

फोटो साभार : इंडियन एक्सप्रेस
असम के गोलपारा जिले के प्रशासन ने रविवार को पश्चिमी असम के गोलपारा शहर से सटे हसिला बील क्षेत्र में बसे लगभग 660 से अधिक घरों को गिराने का अभियान शुरू किया। इन घरों में रहने वाले अधिकतर परिवार मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। सोमवार तक लगभग 45% बेदखली प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी और प्रशासन का लक्ष्य है कि मंगलवार तक यह अभियान पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए।
इस क्षेत्र में बसे ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। बेदखली का उद्देश्य वेटलैंड (जलभूमि) में कथित ‘अवैध कब्जे’ से 1566 बीघा भूमि को खाली कराना है।
13 मई 2025 को जिला प्रशासन ने कुछ बैनर लगाकर ग्रामीणों को दो दिनों के भीतर स्थान खाली करने की सूचना दी थी। ग्रामीणों का कहना है कि जीवन भर की मेहनत से बनाए गए घरों को दो दिन में खाली करना संभव नहीं था।
हालांकि, जिला प्रशासन का दावा है कि लोगों को 2023 और सितंबर 2024 में पहले ही नोटिस भेजे जा चुके थे। मकतूब मीडिया से बात करने वाले अधिकांश लोगों ने बताया कि उनके पास और कोई जगह नहीं है जहाँ वे जा सकें।
50 वर्षीय सुलेमान अली, जो पूरे दिन अपने ढहाए गए घर के सामने खड़े रहे, कहते हैं, “हम पूरी जिंदगी यहीं रहे हैं। मेरे पिता अब 80 साल के हैं और उनका जन्म भी यहीं हुआ था। हम सिर्फ इस जगह को जानते हैं। इसके बिना हमारे पास कहीं और जाने की कोई जगह नहीं है, क्योंकि हमारे पास दूसरी जमीन नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “करीब 25 साल पहले सरकार ने एक सर्वे किया था और हमने कानूनी प्रक्रिया के तहत 2018 तक अतिक्रमण का जुर्माना भरा।” उन्होंने राज्य के कानून के अनुसार इस जगह को वैध रूप से बसाए जाने की उम्मीद भी जताई।
2016 में भाजपा के पहली बार सत्ता में आने के बाद, सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2018 में सरकारी ज़मीन पर रहने वालों से अतिक्रमण जुर्माना वसूलना बंद कर दिया था।
जैसे ही रात हुई, गांव के लोग नहीं जानते थे कि अब वे कहाँ जाएंगे। नूरीजा खातून ने कहा, “मेरे चार बच्चे हैं, जिनकी मुझे देखभाल करनी होती है। इस मौसम में हम कहां सोएं? अगर बारिश हो गई तो क्या हमारे ऊपर छत होगी?”
50 वर्षीय खातून ने बताया कि उन्होंने पूरे दिन कुछ नहीं खाया क्योंकि “सामान हटाने का समय दिए बिना सब कुछ ध्वस्त कर दिया गया।”
उन्होंने कहा, “सुबह लगभग 5:30 बजे पुलिस जेसीबी के साथ आई, जब बच्चे सो रहे थे और घर तोड़ना शुरू कर दिया। जब घर गिरने लगे, तो हम बच्चों को लेकर बाहर भागे। मैं बस रसोई से कुछ बर्तन ही निकाल पाई, लेकिन अब हमारे पास खाना बनाने की कोई जगह नहीं है।” उन्होंने कहा कि उनका परिवार रात का चावल और बिस्किट खाएगा।
लोगों को निर्देश दिया गया कि वे बेदखली स्थल पर अस्थायी शिविर न बनाएं। सीमांकित क्षेत्र के बाहर कोई खुली जगह न होने के कारण, महिलाएं और बेटियां असुरक्षित महसूस करने लगीं।
एक महिला ने कहा, “हमारे पास टॉयलेट नहीं है, ट्यूबवेल भी तोड़ दिए गए हैं। अगर शौच जाना पड़े, तो कहां जाएं? लड़कियाँ अंधेरे में कैसे जाएंगी?” उन्होंने घर के मलबे से दूर जाने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा, “हमने कोई विरोध या प्रदर्शन नहीं किया। हमने प्रशासन के साथ सहयोग किया। हम सरकार से बस यह मांग करते हैं कि हमें पुनर्वास के लिए कोई स्थान दिया जाए।”
उमस भरी गर्मी और बाद में हुई बारिश के बीच, बेदखल किए गए परिवारों ने कहा कि जब तक सरकार उन्हें कोई विकल्प नहीं देती, वे अपने ढहाए गए घरों के सामने डटे रहेंगे।
जहाँ बुज़ुर्ग यहीं रहना चाहते हैं, वहीं 15 वर्षीय फैज़ुल इस्लाम जैसे छात्र चिंतित हैं कि उनकी पढ़ाई बाधित हो जाएगी।
आठवीं कक्षा के छात्र फैज़ुल ने कहा, “हमारी परीक्षाएं चल रही हैं। गर्मी में बिजली पहले ही काट दी गई थी। अब उन्होंने हमारे घर भी तोड़ दिए हैं। हम कैसे पढ़ें? मैं देखता हूँ कि लोग बेहोश हो रहे हैं। बताइए, क्या मैं अपने रोते हुए परिवार को संभालूं, टूटे घर का सामान निकालूं, या अगली परीक्षा की तैयारी करूं?”
उसने आगे कहा, “अगर हमें हसिला बील से कहीं और जाना पड़ा, तो मुझे अपने स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट लेना होगा। बिना परीक्षा दिए क्या मैं किसी और स्कूल में दाखिला ले पाऊंगा? शायद हमें स्कूल छोड़ना ही पड़ेगा।”
उसने पूछा, “ये सब भारतीय नागरिक हैं, क्या इन्हें भारत में ही कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए?”
मकतूब मीडिया ने उस ज़मीन के बारे में जानकारी के लिए जिला प्रशासन से संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला था।
कांग्रेस के स्थानीय विधायक ए.के. राशिद ने हसिला बील क्षेत्र के लोगों के तत्काल पुनर्वास की मांग की। उन्होंने कहा, “गोलपारा में भूमि प्रणाली अन्य जिलों से भिन्न रही है। यह क्षेत्र पहले जमींदारी व्यवस्था के अंतर्गत था, जिसे 1959 में समाप्त कर दिया गया था। जमींदारों द्वारा बसाए गए कई लोगों के पास ज़मीन के दस्तावेज नहीं थे। बाद में ये ज़मीनें विभिन्न विभागों के अधीन चली गईं और लोग बेघर हो गए। इसलिए, जिले के इतिहास को देखते हुए इन लोगों का तत्काल पुनर्वास ज़रूरी है।”
असम सरकार को दिए गए आवेदनों में हसिला बील के निवासियों ने दावा किया है कि उनके परिवार 60–70 वर्षों से इस ज़मीन पर रह रहे हैं और बेदखली से पहले पुनर्वास की मांग की थी।
सितंबर 2024 में असम सरकार ने बंदरमाथा रिजर्व फ़ॉरेस्ट क्षेत्र से लगभग 450 परिवारों (करीब 2000 लोग) को वनभूमि पर अतिक्रमण के कारण बेदखल किया था। बीजेपी के शासन में आने के बाद, अगस्त 2024 तक राज्य के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, 2016 से 2024 के बीच 10,620 से अधिक परिवारों को सरकारी ज़मीन से बेदखल किया गया है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2024 तक बेदखली के दौरान चार लोगों की मौत हुई थी, जबकि सितंबर 2024 में गुवाहाटी के बाहरी इलाके कचुतोली गांव में एक हिंसक बेदखली के दौरान दो मुस्लिम किशोरों की मौत हुई थी।
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फोटो साभार : इंडियन एक्सप्रेस
असम के गोलपारा जिले के प्रशासन ने रविवार को पश्चिमी असम के गोलपारा शहर से सटे हसिला बील क्षेत्र में बसे लगभग 660 से अधिक घरों को गिराने का अभियान शुरू किया। इन घरों में रहने वाले अधिकतर परिवार मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। सोमवार तक लगभग 45% बेदखली प्रक्रिया पूरी कर ली गई थी और प्रशासन का लक्ष्य है कि मंगलवार तक यह अभियान पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए।
इस क्षेत्र में बसे ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। बेदखली का उद्देश्य वेटलैंड (जलभूमि) में कथित ‘अवैध कब्जे’ से 1566 बीघा भूमि को खाली कराना है।
13 मई 2025 को जिला प्रशासन ने कुछ बैनर लगाकर ग्रामीणों को दो दिनों के भीतर स्थान खाली करने की सूचना दी थी। ग्रामीणों का कहना है कि जीवन भर की मेहनत से बनाए गए घरों को दो दिन में खाली करना संभव नहीं था।
हालांकि, जिला प्रशासन का दावा है कि लोगों को 2023 और सितंबर 2024 में पहले ही नोटिस भेजे जा चुके थे। मकतूब मीडिया से बात करने वाले अधिकांश लोगों ने बताया कि उनके पास और कोई जगह नहीं है जहाँ वे जा सकें।
50 वर्षीय सुलेमान अली, जो पूरे दिन अपने ढहाए गए घर के सामने खड़े रहे, कहते हैं, “हम पूरी जिंदगी यहीं रहे हैं। मेरे पिता अब 80 साल के हैं और उनका जन्म भी यहीं हुआ था। हम सिर्फ इस जगह को जानते हैं। इसके बिना हमारे पास कहीं और जाने की कोई जगह नहीं है, क्योंकि हमारे पास दूसरी जमीन नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “करीब 25 साल पहले सरकार ने एक सर्वे किया था और हमने कानूनी प्रक्रिया के तहत 2018 तक अतिक्रमण का जुर्माना भरा।” उन्होंने राज्य के कानून के अनुसार इस जगह को वैध रूप से बसाए जाने की उम्मीद भी जताई।
2016 में भाजपा के पहली बार सत्ता में आने के बाद, सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2018 में सरकारी ज़मीन पर रहने वालों से अतिक्रमण जुर्माना वसूलना बंद कर दिया था।
जैसे ही रात हुई, गांव के लोग नहीं जानते थे कि अब वे कहाँ जाएंगे। नूरीजा खातून ने कहा, “मेरे चार बच्चे हैं, जिनकी मुझे देखभाल करनी होती है। इस मौसम में हम कहां सोएं? अगर बारिश हो गई तो क्या हमारे ऊपर छत होगी?”
50 वर्षीय खातून ने बताया कि उन्होंने पूरे दिन कुछ नहीं खाया क्योंकि “सामान हटाने का समय दिए बिना सब कुछ ध्वस्त कर दिया गया।”
उन्होंने कहा, “सुबह लगभग 5:30 बजे पुलिस जेसीबी के साथ आई, जब बच्चे सो रहे थे और घर तोड़ना शुरू कर दिया। जब घर गिरने लगे, तो हम बच्चों को लेकर बाहर भागे। मैं बस रसोई से कुछ बर्तन ही निकाल पाई, लेकिन अब हमारे पास खाना बनाने की कोई जगह नहीं है।” उन्होंने कहा कि उनका परिवार रात का चावल और बिस्किट खाएगा।
लोगों को निर्देश दिया गया कि वे बेदखली स्थल पर अस्थायी शिविर न बनाएं। सीमांकित क्षेत्र के बाहर कोई खुली जगह न होने के कारण, महिलाएं और बेटियां असुरक्षित महसूस करने लगीं।
एक महिला ने कहा, “हमारे पास टॉयलेट नहीं है, ट्यूबवेल भी तोड़ दिए गए हैं। अगर शौच जाना पड़े, तो कहां जाएं? लड़कियाँ अंधेरे में कैसे जाएंगी?” उन्होंने घर के मलबे से दूर जाने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा, “हमने कोई विरोध या प्रदर्शन नहीं किया। हमने प्रशासन के साथ सहयोग किया। हम सरकार से बस यह मांग करते हैं कि हमें पुनर्वास के लिए कोई स्थान दिया जाए।”
उमस भरी गर्मी और बाद में हुई बारिश के बीच, बेदखल किए गए परिवारों ने कहा कि जब तक सरकार उन्हें कोई विकल्प नहीं देती, वे अपने ढहाए गए घरों के सामने डटे रहेंगे।
जहाँ बुज़ुर्ग यहीं रहना चाहते हैं, वहीं 15 वर्षीय फैज़ुल इस्लाम जैसे छात्र चिंतित हैं कि उनकी पढ़ाई बाधित हो जाएगी।
आठवीं कक्षा के छात्र फैज़ुल ने कहा, “हमारी परीक्षाएं चल रही हैं। गर्मी में बिजली पहले ही काट दी गई थी। अब उन्होंने हमारे घर भी तोड़ दिए हैं। हम कैसे पढ़ें? मैं देखता हूँ कि लोग बेहोश हो रहे हैं। बताइए, क्या मैं अपने रोते हुए परिवार को संभालूं, टूटे घर का सामान निकालूं, या अगली परीक्षा की तैयारी करूं?”
उसने आगे कहा, “अगर हमें हसिला बील से कहीं और जाना पड़ा, तो मुझे अपने स्कूल से ट्रांसफर सर्टिफिकेट लेना होगा। बिना परीक्षा दिए क्या मैं किसी और स्कूल में दाखिला ले पाऊंगा? शायद हमें स्कूल छोड़ना ही पड़ेगा।”
उसने पूछा, “ये सब भारतीय नागरिक हैं, क्या इन्हें भारत में ही कोई जगह नहीं मिलनी चाहिए?”
मकतूब मीडिया ने उस ज़मीन के बारे में जानकारी के लिए जिला प्रशासन से संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला था।
कांग्रेस के स्थानीय विधायक ए.के. राशिद ने हसिला बील क्षेत्र के लोगों के तत्काल पुनर्वास की मांग की। उन्होंने कहा, “गोलपारा में भूमि प्रणाली अन्य जिलों से भिन्न रही है। यह क्षेत्र पहले जमींदारी व्यवस्था के अंतर्गत था, जिसे 1959 में समाप्त कर दिया गया था। जमींदारों द्वारा बसाए गए कई लोगों के पास ज़मीन के दस्तावेज नहीं थे। बाद में ये ज़मीनें विभिन्न विभागों के अधीन चली गईं और लोग बेघर हो गए। इसलिए, जिले के इतिहास को देखते हुए इन लोगों का तत्काल पुनर्वास ज़रूरी है।”
असम सरकार को दिए गए आवेदनों में हसिला बील के निवासियों ने दावा किया है कि उनके परिवार 60–70 वर्षों से इस ज़मीन पर रह रहे हैं और बेदखली से पहले पुनर्वास की मांग की थी।
सितंबर 2024 में असम सरकार ने बंदरमाथा रिजर्व फ़ॉरेस्ट क्षेत्र से लगभग 450 परिवारों (करीब 2000 लोग) को वनभूमि पर अतिक्रमण के कारण बेदखल किया था। बीजेपी के शासन में आने के बाद, अगस्त 2024 तक राज्य के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, 2016 से 2024 के बीच 10,620 से अधिक परिवारों को सरकारी ज़मीन से बेदखल किया गया है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2024 तक बेदखली के दौरान चार लोगों की मौत हुई थी, जबकि सितंबर 2024 में गुवाहाटी के बाहरी इलाके कचुतोली गांव में एक हिंसक बेदखली के दौरान दो मुस्लिम किशोरों की मौत हुई थी।
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