असम में सैकड़ों वंचित लोग जिनके मामलों की सुनवाई अब भी लंबित है उन्हें 23 मई से गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया है और उससे भी बुरा यह है कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के उन्हें अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर बांग्लादेश भेज दिया गया है। इनमें से कई लोग वापस भी लौट आए हैं।

असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने राज्य सरकार की हालिया कार्रवाई पर गंभीर चिंता जाहिर की है, जिसमें “अवैध प्रवासियों को बांग्लादेश भेजने” के नाम पर वैध असमिया नागरिकों को बिना किसी उचित कानूनी प्रक्रिया के गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया जा रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर को लिखे पत्र में सैकिया ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार की ये कार्रवाइयां स्पष्ट रूप से मुसलमानों को असमान तरीके से निशाना बना रही हैं, जिससे भारत की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को ठेस पहुंच रही है।
शुक्रवार 30 मई की शाम देबब्रत सैकिया ने यह पत्र मेटा-फेसबुक पर एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए शेयर किया। उन्होंने लिखा:
"असम में विदेश भेजने के नाम पर भाजपा सरकार ने अल्पसंख्यक समाज के खिलाफ एक नई साजिश रच दी है। नई भाजपा सरकार और हिमंत बिस्व सरमा के नेतृत्व में, आरएसएस मुस्लिम समाज को डराने-धमकाने का काम कर रहा है। विदेशी अगर हैं, तो उन्हें देश से बाहर निकाला जाए- मैं भी यही चाहता हूं। असम सबसे पहले असम के लोगों के लिए है- मेरा यह पूरा विश्वास है। लेकिन 'मुसलमान मतलब बांग्लादेशी' की जो मानसिकता बनाई जा रही है, मैं उसका पूरी तरह विरोध करता हूं। भारत, और खासकर असम, शंकर-अजान की भूमि के रूप में जाना जाता है। आज भाजपा भाईचारे में फूट डालने की कोशिश कर रही है। इसलिए अब हाथों में बंदूकें आ गई हैं। हम चाहते हैं कि हमारे युवा सैम के हाथों में किताबें हों, ग्रैनेड नहीं। वे बिहार और उत्तर प्रदेश की स्थिति को असम में लागू करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री अब 'ससेमीरा' बन चुके हैं। कोई भी सवाल पूछो, उनका जवाब सिर्फ 'पाकिस्तान' होता है। मैंने ये सारी बातें कल विदेश मंत्रालय और गृह विभाग को दो ज्ञापन के जरिए व्यक्त की हैं। कृपया इन्हें पढ़ें।"
सैकिया द्वारा भेजा गया पत्र नीचे पढ़ा जा सकता है:


इस पत्र में सैकिया ने असम पुलिस पर इन कार्रवाइयों के दौरान संवैधानिक अधिकारों और उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) ने भी राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि "अवैध प्रवासियों की पहचान" के बहाने भारतीय मुसलमानों को लगातार परेशान किया जा रहा है।
सैकिया ने दावा किया कि 23 मई से अब तक सैकड़ों भारतीय नागरिकों को जिनमें से कुछ का नागरिकता से संबंधित किसी भी कानूनी कार्यवाही से कोई संबंध नहीं था उन्हें "मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है।" हालांकि कुछ लोगों को रिहा कर दिया गया है, लेकिन ये हिरासतें "गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों" को उजागर करती हैं।
मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए सैकिया ने आरोप लगाया कि महिलाएं समेत हिरासत में लिए गए लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित "नो मैन्स लैंड" में जबरन भेज दिया गया, जिससे वे बिना किसी देश की नागरिकता के रह गए क्योंकि बांग्लादेश ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया। ऐसा ही एक मामला खैरुल इस्लाम का है जो एक सरकारी स्कूल शिक्षक रह चुके हैं। उनकी नागरिकता से संबंधित मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है इसके बावजूद कथित रूप से उन्हें एक डिटेंशन सेंटर से उठाकर जबरन सीमा पार भेज दिया गया।
सैकिया ने जोर देकर कहा कि चूंकि कई नागरिकता से संबंधित मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, इसलिए इस तरह की हिरासतें और जबरन सीमा पार भेजना “न्यायिक प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन” है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं पहले अंतरिम निर्देश जारी किए थे, जिनमें कहा गया था कि जिन लोगों के मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं, उनके खिलाफ कोई भी जबरदस्ती की कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
हालांकि अधिकांश हिरासत में लिए गए लोगों को अंततः रिहा कर दिया गया, लेकिन उनकी गलत तरीके से गिरफ्तारी अपने आप में गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों की ओर इशारा करती है। परिजनों को हिरासत में लिए गए लोगों के ठिकाने की जानकारी नहीं दी गई, जिससे बुनियादी पारदर्शिता के मानकों का उल्लंघन हुआ है। मीडिया रिपोर्ट पुष्टि करती हैं कि कई हिरासत में ली गई महिलाओं सहित लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित नो-मैन्स-लैंड में जबरन धकेला गया, जिससे वे बिना किसी देश की नागरिकता के रह गए, क्योंकि बांग्लादेश ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
30 मई को लिखे गए इस पत्र में सैकिया ने असम की तथाकथित “पुश बैक ड्राइव” के तहत संविधानिक अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया के कई गंभीर उल्लंघनों को उजागर किया।
सैकिया ने विदेश मंत्री को याद दिलाया कि यह कार्रवाई भारत के निर्वासन (डिपोर्टेशन) पर घोषित रुख के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने डॉ. जयशंकर के संसद में दिए गए उस बयान का हवाला दिया, जिसमें किसी भी व्यक्ति को वापस भेजने से पहले उसकी "स्पष्ट रूप से नागरिकता की पुष्टि" को आवश्यक बताया गया था। पत्र में चिंता जताई गई है कि ये अभियान विशेष रूप से मुस्लिम समुदायों को निशाना बना रहे हैं, जिससे भारत की धर्मनिरपेक्ष संरचना को नुकसान पहुंच रहा है। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया है कि कई मामलों पर अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है, जिससे इन हिरासतों और जबरन सीमा पार भेजे जाने की कार्रवाइयों को न्यायिक प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया है।
सैकिया ने केंद्र सरकार से तुरंत दखल देने की अपील की है ताकि इन असंवैधानिक कार्रवाइयों को तुरंत रोका जा सके। उन्होंने मांग की है कि किसी भी निर्वासन से पहले नागरिकता की समुचित और स्पष्ट जांच सुनिश्चित की जाए, सभी गलत तरीके से हिरासत में लिए गए भारतीय नागरिकों को रिहा किया जाए और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाए।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के लोगों को नो-मैन्स-लैंड में भेजना न केवल अवैध है बल्कि मूल रूप से अमानवीय भी है। सैकिया ने कहा, “भारतीय नागरिकों को बिना सत्यापन के नो-मैन्स-लैंड में भेजना असंवैधानिक है और मूल रूप से अमानवीय कृत्य है। जब कोई मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हो, तब इस तरह की वापसी न्यायिक प्रक्रिया का गंभीर उल्लंघन है। यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का भी सीधा उल्लंघन करता है।”
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, जिन पर हाल ही में अल्पसंख्यकों के खिलाफ उग्र भाषण देने के आरोप लगे हैं, उन्होंने कथित रूप से कहा है कि राज्य "असम के हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है" और "सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार और किसी भी तरीके से राज्य से सभी अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए प्रतिबद्ध है।"
मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि जिन लोगों के नागरिकता मामले लंबित हैं, उन्हें हिरासत में नहीं लिया जा रहा है। राज्य सरकार ने “अवैध प्रवासियों” को निर्वासित करने की अपनी लंबी लड़ाई के समाधान के रूप में “पुश बैक” नीति अपनाई है।
मानवाधिकार संगठन और प्रभावित परिवार इन कार्रवाइयों के मानवीय परिणामों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त कर रहे हैं, जिनमें लंबी अवधि तक हिरासत, परिवारों का अलग होना और बिना किसी देश की नागरिकता के रहने का खतरा शामिल है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी पहले घोषित किए गए "विदेशियों" की अनिश्चितकालीन हिरासत की आलोचना की है और राज्य से कहा है कि वह निर्वासन की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करे।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को कहा कि केवल घोषित विदेशी व्यक्तियों को ही कानून के अनुसार पुश बैक किया जा रहा है।
लेकिन मीडिया की खबरें और सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस की खास रिपोर्ट कुछ और ही बताती हैं। इसे यहां पढ़ा जा सकता है।
सबसे पहले, असम के साउथ सलमारा मांकाचर जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर ‘नो मैन्स लैंड’ से एक वीडियो सामने आया है, जिसमें खैरुल इस्लाम ने कहा है कि वह भारतीय नागरिक हैं और उन्हें बांग्लादेश भेजा जा रहा है। इस्लाम उन नौ लोगों में शामिल थे जिन्हें मोरिगांव पुलिस ने 24 मई को विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा घोषित अवैध प्रवासियों के खिलाफ छापे में गिरफ्तार किया था लेकिन वे निर्वासन से बच रहे थे।
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 30 मई को कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने हमें निर्देश दिया है कि घोषित विदेशी नागरिकों को वापस भेजा जाना चाहिए। जिन घोषित विदेशी नागरिकों ने कोर्ट में अपील नहीं की, उन्हें हम पुश बैक कर चुके हैं। गुरुवार को हमने मेघालय और सिलचर सीमा के पास 35 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया। वे कुछ दिन पहले आए थे और हमने उन्हें तुरंत वापस भेज दिया।”
उन्होंने आगे कहा, “डेरगांव में एसपी से हुई बैठक में हमने फैसला किया है कि हम विदेशी पहचान की प्रक्रिया को तेज करेंगे। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) प्रक्रिया के चलते विदेशी पहचान अस्थायी रूप से रोक दी गई थी। लेकिन आने वाले दिनों में पहचान की कार्रवाई फिर से शुरू होगी, पुश बैक किया जाएगा और भारत सरकार बांग्लादेश सरकार से बातचीत के बाद कुछ विदेशी नागरिकों को वापस भेजेगी। इसलिए ये तीनों तरीके जारी रहेंगे।”
मुख्यमंत्री ने कहा, “जो भी घोषित विदेशी होते हुए भी उच्च न्यायालय तक नहीं गए हैं और ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ अपील नहीं की है, उन्हें वापस जाना होगा। हमारे पास 30,000 ऐसे लोग हैं जो विदेशी घोषित होने के बाद गायब हो गए हैं; अगर हमें कहीं मिलते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। जो कुछ भी किया जा रहा है, वह कानून के अनुसार है।”
लेकिन जमीनी स्तर पर किए गए दावे सरमा के बयान से मेल नहीं खाते। उदाहरण के लिए, खैरुल इस्लाम को 2016 में विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किया गया था, जिसे उन्होंने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखा, जिसके बाद उन्हें 2018 में हिरासत में लिया गया। दस्तावेज बताते हैं कि विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और आखिरी सुनवाई दिसंबर 2024 में हुई थी।

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शुक्रवार 30 मई की शाम देबब्रत सैकिया ने यह पत्र मेटा-फेसबुक पर एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए शेयर किया। उन्होंने लिखा:
"असम में विदेश भेजने के नाम पर भाजपा सरकार ने अल्पसंख्यक समाज के खिलाफ एक नई साजिश रच दी है। नई भाजपा सरकार और हिमंत बिस्व सरमा के नेतृत्व में, आरएसएस मुस्लिम समाज को डराने-धमकाने का काम कर रहा है। विदेशी अगर हैं, तो उन्हें देश से बाहर निकाला जाए- मैं भी यही चाहता हूं। असम सबसे पहले असम के लोगों के लिए है- मेरा यह पूरा विश्वास है। लेकिन 'मुसलमान मतलब बांग्लादेशी' की जो मानसिकता बनाई जा रही है, मैं उसका पूरी तरह विरोध करता हूं। भारत, और खासकर असम, शंकर-अजान की भूमि के रूप में जाना जाता है। आज भाजपा भाईचारे में फूट डालने की कोशिश कर रही है। इसलिए अब हाथों में बंदूकें आ गई हैं। हम चाहते हैं कि हमारे युवा सैम के हाथों में किताबें हों, ग्रैनेड नहीं। वे बिहार और उत्तर प्रदेश की स्थिति को असम में लागू करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री अब 'ससेमीरा' बन चुके हैं। कोई भी सवाल पूछो, उनका जवाब सिर्फ 'पाकिस्तान' होता है। मैंने ये सारी बातें कल विदेश मंत्रालय और गृह विभाग को दो ज्ञापन के जरिए व्यक्त की हैं। कृपया इन्हें पढ़ें।"
सैकिया द्वारा भेजा गया पत्र नीचे पढ़ा जा सकता है:


इस पत्र में सैकिया ने असम पुलिस पर इन कार्रवाइयों के दौरान संवैधानिक अधिकारों और उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) ने भी राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि "अवैध प्रवासियों की पहचान" के बहाने भारतीय मुसलमानों को लगातार परेशान किया जा रहा है।
सैकिया ने दावा किया कि 23 मई से अब तक सैकड़ों भारतीय नागरिकों को जिनमें से कुछ का नागरिकता से संबंधित किसी भी कानूनी कार्यवाही से कोई संबंध नहीं था उन्हें "मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है।" हालांकि कुछ लोगों को रिहा कर दिया गया है, लेकिन ये हिरासतें "गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों" को उजागर करती हैं।
मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए सैकिया ने आरोप लगाया कि महिलाएं समेत हिरासत में लिए गए लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित "नो मैन्स लैंड" में जबरन भेज दिया गया, जिससे वे बिना किसी देश की नागरिकता के रह गए क्योंकि बांग्लादेश ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया। ऐसा ही एक मामला खैरुल इस्लाम का है जो एक सरकारी स्कूल शिक्षक रह चुके हैं। उनकी नागरिकता से संबंधित मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है इसके बावजूद कथित रूप से उन्हें एक डिटेंशन सेंटर से उठाकर जबरन सीमा पार भेज दिया गया।
सैकिया ने जोर देकर कहा कि चूंकि कई नागरिकता से संबंधित मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, इसलिए इस तरह की हिरासतें और जबरन सीमा पार भेजना “न्यायिक प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन” है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं पहले अंतरिम निर्देश जारी किए थे, जिनमें कहा गया था कि जिन लोगों के मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं, उनके खिलाफ कोई भी जबरदस्ती की कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
हालांकि अधिकांश हिरासत में लिए गए लोगों को अंततः रिहा कर दिया गया, लेकिन उनकी गलत तरीके से गिरफ्तारी अपने आप में गंभीर प्रक्रियात्मक खामियों की ओर इशारा करती है। परिजनों को हिरासत में लिए गए लोगों के ठिकाने की जानकारी नहीं दी गई, जिससे बुनियादी पारदर्शिता के मानकों का उल्लंघन हुआ है। मीडिया रिपोर्ट पुष्टि करती हैं कि कई हिरासत में ली गई महिलाओं सहित लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा पर स्थित नो-मैन्स-लैंड में जबरन धकेला गया, जिससे वे बिना किसी देश की नागरिकता के रह गए, क्योंकि बांग्लादेश ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
30 मई को लिखे गए इस पत्र में सैकिया ने असम की तथाकथित “पुश बैक ड्राइव” के तहत संविधानिक अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया के कई गंभीर उल्लंघनों को उजागर किया।
सैकिया ने विदेश मंत्री को याद दिलाया कि यह कार्रवाई भारत के निर्वासन (डिपोर्टेशन) पर घोषित रुख के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने डॉ. जयशंकर के संसद में दिए गए उस बयान का हवाला दिया, जिसमें किसी भी व्यक्ति को वापस भेजने से पहले उसकी "स्पष्ट रूप से नागरिकता की पुष्टि" को आवश्यक बताया गया था। पत्र में चिंता जताई गई है कि ये अभियान विशेष रूप से मुस्लिम समुदायों को निशाना बना रहे हैं, जिससे भारत की धर्मनिरपेक्ष संरचना को नुकसान पहुंच रहा है। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया है कि कई मामलों पर अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है, जिससे इन हिरासतों और जबरन सीमा पार भेजे जाने की कार्रवाइयों को न्यायिक प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया है।
सैकिया ने केंद्र सरकार से तुरंत दखल देने की अपील की है ताकि इन असंवैधानिक कार्रवाइयों को तुरंत रोका जा सके। उन्होंने मांग की है कि किसी भी निर्वासन से पहले नागरिकता की समुचित और स्पष्ट जांच सुनिश्चित की जाए, सभी गलत तरीके से हिरासत में लिए गए भारतीय नागरिकों को रिहा किया जाए और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाए।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के लोगों को नो-मैन्स-लैंड में भेजना न केवल अवैध है बल्कि मूल रूप से अमानवीय भी है। सैकिया ने कहा, “भारतीय नागरिकों को बिना सत्यापन के नो-मैन्स-लैंड में भेजना असंवैधानिक है और मूल रूप से अमानवीय कृत्य है। जब कोई मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हो, तब इस तरह की वापसी न्यायिक प्रक्रिया का गंभीर उल्लंघन है। यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का भी सीधा उल्लंघन करता है।”
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, जिन पर हाल ही में अल्पसंख्यकों के खिलाफ उग्र भाषण देने के आरोप लगे हैं, उन्होंने कथित रूप से कहा है कि राज्य "असम के हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है" और "सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार और किसी भी तरीके से राज्य से सभी अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के लिए प्रतिबद्ध है।"
मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि जिन लोगों के नागरिकता मामले लंबित हैं, उन्हें हिरासत में नहीं लिया जा रहा है। राज्य सरकार ने “अवैध प्रवासियों” को निर्वासित करने की अपनी लंबी लड़ाई के समाधान के रूप में “पुश बैक” नीति अपनाई है।
मानवाधिकार संगठन और प्रभावित परिवार इन कार्रवाइयों के मानवीय परिणामों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त कर रहे हैं, जिनमें लंबी अवधि तक हिरासत, परिवारों का अलग होना और बिना किसी देश की नागरिकता के रहने का खतरा शामिल है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी पहले घोषित किए गए "विदेशियों" की अनिश्चितकालीन हिरासत की आलोचना की है और राज्य से कहा है कि वह निर्वासन की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करे।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को कहा कि केवल घोषित विदेशी व्यक्तियों को ही कानून के अनुसार पुश बैक किया जा रहा है।
लेकिन मीडिया की खबरें और सिटिजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस की खास रिपोर्ट कुछ और ही बताती हैं। इसे यहां पढ़ा जा सकता है।
सबसे पहले, असम के साउथ सलमारा मांकाचर जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर ‘नो मैन्स लैंड’ से एक वीडियो सामने आया है, जिसमें खैरुल इस्लाम ने कहा है कि वह भारतीय नागरिक हैं और उन्हें बांग्लादेश भेजा जा रहा है। इस्लाम उन नौ लोगों में शामिल थे जिन्हें मोरिगांव पुलिस ने 24 मई को विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा घोषित अवैध प्रवासियों के खिलाफ छापे में गिरफ्तार किया था लेकिन वे निर्वासन से बच रहे थे।
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 30 मई को कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने हमें निर्देश दिया है कि घोषित विदेशी नागरिकों को वापस भेजा जाना चाहिए। जिन घोषित विदेशी नागरिकों ने कोर्ट में अपील नहीं की, उन्हें हम पुश बैक कर चुके हैं। गुरुवार को हमने मेघालय और सिलचर सीमा के पास 35 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया। वे कुछ दिन पहले आए थे और हमने उन्हें तुरंत वापस भेज दिया।”
उन्होंने आगे कहा, “डेरगांव में एसपी से हुई बैठक में हमने फैसला किया है कि हम विदेशी पहचान की प्रक्रिया को तेज करेंगे। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) प्रक्रिया के चलते विदेशी पहचान अस्थायी रूप से रोक दी गई थी। लेकिन आने वाले दिनों में पहचान की कार्रवाई फिर से शुरू होगी, पुश बैक किया जाएगा और भारत सरकार बांग्लादेश सरकार से बातचीत के बाद कुछ विदेशी नागरिकों को वापस भेजेगी। इसलिए ये तीनों तरीके जारी रहेंगे।”
मुख्यमंत्री ने कहा, “जो भी घोषित विदेशी होते हुए भी उच्च न्यायालय तक नहीं गए हैं और ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ अपील नहीं की है, उन्हें वापस जाना होगा। हमारे पास 30,000 ऐसे लोग हैं जो विदेशी घोषित होने के बाद गायब हो गए हैं; अगर हमें कहीं मिलते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। जो कुछ भी किया जा रहा है, वह कानून के अनुसार है।”
लेकिन जमीनी स्तर पर किए गए दावे सरमा के बयान से मेल नहीं खाते। उदाहरण के लिए, खैरुल इस्लाम को 2016 में विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किया गया था, जिसे उन्होंने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रखा, जिसके बाद उन्हें 2018 में हिरासत में लिया गया। दस्तावेज बताते हैं कि विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और आखिरी सुनवाई दिसंबर 2024 में हुई थी।

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