जम्मू-कश्मीर में दशकों से रहने वाली वृद्ध पाकिस्तानी मूल की महिला को गलत तरीके से निर्वासित किए जाने के बाद वापसी की अनुमति भारत देगा

Written by sabrang india | Published on: August 5, 2025
हाईकोर्ट की आपात स्तर पर फैसला, सरकार का रुख बदलना और अधिकार व संप्रभुता को लेकर जारी कानूनी लड़ाई।



तीन महीने से भी ज्यादा समय के बाद 63 वर्षीय रक्षंदा राशिद को भारत लौटने की अनुमति मिल गई है। उन्हें प्रक्रिया के तहत पाकिस्तान निर्वासित कर दिया गया था, हालांकि वह करीब चार दशक से जम्मू में रह रही थीं। 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को जारी सभी अल्पकालिक वीजा रद्द कर दिए थे। लेकिन अब सरकार ने इस मामले में एक अपवाद का रास्ता निकाला है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार ने रक्षंदा राशिद को एक विजिटर वीजा जारी करने का फैसला किया है, जिससे अब वह अपने पति और चार बच्चों से फिर मिल सकेंगी। ये सभी भारतीय नागरिक हैं और जम्मू-कश्मीर में रहते हैं।

इस फैसले को एक "सैद्धांतिक सहमति" (in-principle nod) बताया गया है, जो उच्च स्तरीय विचार-विमर्श के बाद लिया गया। 30 जुलाई को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय को यह जानकारी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दी। उन्होंने कहा कि यह कदम "मामले के विशेष तथ्यों और असामान्य परिस्थितियों" को देखते हुए उठाया गया है। यह केंद्र सरकार की ओर से एक महत्वपूर्ण रुख में नरमी मानी जा रही है, क्योंकि पहले तकनीकी आधारों पर रक्षंदा राशिद के निष्कासन (deportation) का बचाव किया था। मेहता ने यह भी कहा कि रक्षंदा राशिद के भारत लौटने के बाद, वह अपनी दो लंबित अर्ज़ियों भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन, जो उन्होंने 1996 में दायर किया था, और दीर्घकालिक वीजा (LTV) के नवीनीकरण की याचिका पर आगे बढ़ सकती हैं।

निर्वासन से उम्मीद तक: मनमाने सरकारी फैसलों की टाइमलाइन

जन्म से पाकिस्तानी नागरिक और जम्मू के तालाब खतिकन इलाके की निवासी रक्षंदा राशिद वर्ष 1990 में 14 दिन के विजिटर वीजा पर वैध रूप से भारत आई थीं। उनकी यहां रहने को बाद में नियमित किया गया और उन्हें हर साल दीर्घकालिक वीजी (Long-Term Visa / LTV) दिया गया, जो कि उनके भारतीय नागरिक शेख जहूर अहमद (एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी) से विवाह के आधार पर जारी किया गया था। बीते दशकों में, रक्षंदा जम्मू में रहने लगीं और उनके चार बच्चे हैं जो सभी भारतीय नागरिक हैं।

हालांकि, 25 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए घातक आतंकी हमले के ठीक तीन दिन बाद गृह मंत्रालय (MHA) ने अचानक सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिया। इसके कुछ ही दिन बाद, 28 अप्रैल को रक्षंदा राशिद को अपराध जांच विभाग (CID) द्वारा एक “लीव इंडिया नोटिस” (Leave India Notice) जारी कर दिया गया, जबकि उनका दीर्घकालिक वीजा (LTV) 13 जनवरी 2025 तक वैध था और उसके नवीनीकरण की अर्जी पहले ही दाखिल की जा चुकी थी।

कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए, रक्षंदा राशिद को 29 अप्रैल की सुबह जबरन उनके घर से उठाया गया और अटारी-वाघा बॉर्डर तक ले जाकर पाकिस्तान भेज दिया गया। इस पूरी कार्रवाई में उन्हें कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार नहीं दिया गया, कोई औपचारिक निष्कासन आदेश (Deportation Order) नहीं सौंपा गया और उन्हें ऐसे समय पर हटाया गया जब उनका दीर्घकालिक वीजा विस्तार आवेदन अभी लंबित था। इस तथ्य की बाद में विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) द्वारा आधिकारिक ईमेल के जरिए पुष्टि की गई।

न्यायमूर्ति भारती की कड़ी फटकार: एक “संवैधानिक आपात”

रक्षंदा राशिद के परिवार ने उनकी जबरन निष्कासन की कार्रवाई के तुरंत बाद जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख उच्च न्यायालय का रुख किया और न्याय की मांग की। 6 जून को, न्यायमूर्ति राहुल भारती ने अपने सख्त आदेश में इस निष्कासन को असंवैधानिक और नैतिक रूप से अक्षम्य (morally indefensible) बताया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता रक्षंदा राशिद भारत में कानूनी रूप से दीर्घकालिक वीजा पर रह रही थीं, और उनकी नागरिकता हासिल करने की याचिका लंबित थी। न्यायमूर्ति भारती ने मामले को एक “असाधारण रूप से गंभीर प्रक्रिया संबंधी उल्लंघन” करार दिया जो कानून नहीं, बल्कि डर और नौकरशाही की उदासीनता से प्रेरित था।

“मानवाधिकार किसी भी मानव जीवन का सबसे पवित्र तत्व होते हैं और इसलिए ऐसे मौके आते हैं जब एक संवैधानिक न्यायालय को आपात जैसी विशेष हस्तक्षेप की जरूरत होती है, चाहे किसी मामले के गुण-दोष समय पर तय किए जाएं। इसी आधार पर यह न्यायालय भारत सरकार के गृह मंत्रालय को यह निर्देश दे रहा है कि याचिकाकर्ता को उसके निष्कासन (deportation) से वापस लाया जाए।” (पैरा 3–5, न्यायालय का निर्णय दिनांक 6 जून)

न्यायमूर्ति राहुल भारती ने यह माना कि रक्षंदा राशिद का निष्कासन कानून सम्मत प्रक्रिया के तहत नहीं किया गया। उन्होंने यह भी इशारा किया कि गृह मंत्रालय (MHA) के अपने सर्कुलर में उन पाकिस्तानी महिलाओं को छूट दी गई थी जो भारतीय नागरिकों से विवाहित हैं, और दीर्घकालिक वीजा धारक हैं।

विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है

गृह मंत्रालय की अपील: तकनीक के सहारे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश

आदेश का पालन करने के बजाय, गृह मंत्रालय (MHA) ने सुनवाई से एक दिन पहले 1 जुलाई को लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) दायर की। अपनी अपील में, MHA मामले के मुख्य मानवीय तथ्यों को चुनौती देने से बचा। इसके बजाय, उसने तकनीकी बचावों पर ज्यादा जोर दिया और तर्क दिया:

● LTV समाप्त हो चुका था: मंत्रालय ने दावा किया कि निष्कासन की तारीख तक राशिद का वीजा वैध नहीं था, जिससे वह एक गैरकानूनी निवासी बन गई थी।

● आवेदन में देरी: मंत्रालय ने आरोप लगाया कि उसका LTV नवीनीकरण आवेदन 8 मार्च को दायर किया गया था, जनवरी में नहीं और इसलिए वह अमान्य था।

● सर्वोच्च सत्ता का उल्लंघन: केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि न्यायमूर्ति भारती का निर्देश केंद्र सरकार की निर्वासन नियमावली संबंधी सर्वोच्च सत्ता का उल्लंघन है।

● न्यायिक अतिक्रमण: इसका कहना था कि न्यायालय कार्यपालिका को यह निर्देश नहीं दे सकता कि वह निर्वासित विदेशी नागरिक को वापस लाए।

हालांकि, ये दावे दस्तावेजी प्रमाणों द्वारा पूरी तरह खारिज कर दिए गए:

● 26 अप्रैल को FRRO की एक ईमेल में पुष्टि की गई कि उनका वीजा नवीनीकरण आवेदन प्रक्रिया में है।

● 9 मई की एक ईमेल में कहा गया कि आवेदन उच्च अधिकारियों को भेज दिया गया है।

● उनकी बेटी फातिमा शेख ने आरोप लगाया कि 8 मार्च की तारीख स्थानीय पुलिस द्वारा योजना बद्ध निष्कासन को सही ठहराने के लिए गढ़ी गई है। उसने यह भी कहा कि वास्तव में आवेदन जनवरी में ही दायर किया गया था।

3 जुलाई: डिवीजन बेंच ने प्रत्यर्पण आदेश पर स्थगन लगा दिया

3 जुलाई को, मुख्य न्यायाधीश अरुण पल्लि और न्यायमूर्ति वसीम सादिक नर्गल की डिवीजन बेंच ने अपील को स्वीकार किया और न्यायमूर्ति भारती के आदेश पर अंतरिम स्थगन जारी किया। ऐसा करते हुए, उन्होंने अस्थायी रूप से राशिद को वापस लाने के किसी भी प्रयास को रोक दिया, हालांकि तथ्य स्पष्ट रूप से उनके पक्ष में थे।

स्थगन आदेश में न तो उनके निर्वासन की प्रक्रियात्मक अवैधता पर कोई चर्चा की गई, न ही पाकिस्तान में उनकी अलग थलग की स्थिति के लिए कोई तत्काल राहत प्रदान की गई। न कोई समय सीमा निर्धारित की गई, न मामले की गहराई में सुनवाई हुई और न ही उस महिला को कोई सुरक्षा मिली जो एक ऐसे देश में फंसी हुई थी जहां उनके कोई पारिवारिक या सामाजिक संबंध नहीं हैं।

विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।

अब, सीमित अवसर

केंद्र सरकार का हालिया रुख, हालांकि सीमित ही सही लेकिन एक महत्वपूर्ण पहला कदम है। रक्षंदा राशिद को विजिटर वीजा देने का निर्णय लेते हुए, सरकार ने स्वीकार किया कि उनका निष्कासन गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण था। यह फैसला उनके भारतीय नागरिकता प्राप्ति के प्रयासों के लिए भी रास्ता खोलता है, जिसे उसने लगभग 30 साल पहले शुरू किया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि, आईई रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने साफ किया है कि यह एक बार की कार्रवाई है और इसे मिसाल नहीं माना जाना चाहिए।

हालांकि ये कदम अभी पूरा न्याय नहीं है, फिर भी ये वो मौका देता है जो अप्रैल से मना किया गया था यानी परिवार के साथ जुड़ने का, सम्मान पाने का और सही होने की उम्मीद रखने का। अगर मानवाधिकार की कोई बात होती है, तो रक्षंदा राशिद का मामला दिखाता है कि जब सरकार की मशीनरी संविधान को ताक पर रख देती है तो क्या-क्या गलत हो सकता है। लेकिन अब ये उम्मीद भी है कि जब न्याय फिर से अपना काम करेगा, तो सही रास्ता निकल सकता है।

Related

ईसाई-विरोधी हिंसा का बढ़ता ग्राफ

पुणे के यवत में सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर सांप्रदायिक हिंसा; 17 गिरफ्तार, कई FIR दर्ज

बाकी ख़बरें