ननों के वकील अमृतो दास ने कहा, “जज ने यह देखते हुए जमानत दी कि उन्हें हिरासत में रखने की कोई जरूरत नहीं है।”

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले की एक राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अदालत ने शनिवार को तीन लोगों को जमानत दे दी, जिनमें केरल की दो नन शामिल हैं। इन्हें 25 जुलाई को मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। ननों के वकील अमृतो दास ने कहा, “जज ने जमानत देते हुए कहा कि इन्हें हिरासत में रखने की कोई जरूरत नहीं है।”
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस और एक अन्य व्यक्ति सुखमन मंडावी को 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर सरकारी रेलवे पुलिस (GRP) ने गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी एक दक्षिणपंथी संगठन के कार्यकर्ताओं की शिकायत के आधार पर की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि उन्होंने नारायणपुर की तीन महिलाओं का जबरन धर्मांतरण किया और उनकी तस्करी करने की कोशिश कर रहे थे।
जिन तीन महिलाओं की कथित तौर पर तस्करी की जा रही थी, उन्हें पहले तीन दिन के लिए एक शेल्टर होम भेजा गया और बाद में उन्हें उनके घर वापस भेज दिया गया।
गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों के वकीलों ने इस हफ्ते की शुरुआत में सेशंस कोर्ट में जमानत की अर्जी दी थी, लेकिन जज ने मानव तस्करी के आरोपों का हवाला देते हुए जमानत खारिज कर दी और कहा कि यह मामला NIA कोर्ट में चलाया जा सकता है।
शुक्रवार को यह मामला प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश (NIA कोर्ट) सिराजुद्दीन कुरैशी के सामने सुना गया, जिन्होंने शनिवार तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ननों के वकील अमृतो दास ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमारी मुख्य दलील यही थी कि तीनों महिलाओं के माता-पिता ने साफ कहा है कि वे कई सालों पहले ईसाई धर्म अपना चुकी हैं और जबरन धर्मांतरण जैसी कोई बात नहीं है। तीनों महिलाएं बालिग हैं। पुलिस डायरी में कहीं नहीं लिखा है कि उनके साथ कोई मारपीट हुई। FIR या डायरी में न तो मानव तस्करी और न ही जबरन धर्मांतरण के कोई ठोस आधार हैं। FIR सिर्फ इस शक पर दर्ज की गई थी कि ननें उन महिलाओं के साथ देखी गईं। हमने यह भी बताया कि नन उम्रदराज़ हैं, उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और उनके खिलाफ किसी अपराध को दर्ज करने लायक कोई तथ्य नहीं है।”
दास ने बताया कि उन्होंने अदालत में तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष तो हिरासत में पूछताछ की मांग भी नहीं कर रहा है और गिरफ्तारी के सात दिन बाद तक जांच में क्या प्रगति हुई है, यह भी साफ नहीं है। कोर्ट में मौजूद GRP अधिकारी से जज ने यह भी पूछा कि क्या उन्हें हिरासत में पूछताछ की जरूरत है, लेकिन इसका कोई स्पष्ट या सकारात्मक जवाब नहीं मिला। जब जज ने पूछा कि जमानत का विरोध किस आधार पर किया जा रहा है, तो अभियोजन पक्ष सिर्फ इतना कह पाया कि जांच शुरुआती चरण में है।
30 जुलाई को अखबार ने उन तीन महिलाओं में से एक से बात की, जिनके बारे में कहा गया था कि उनकी तस्करी की जा रही थी। उस महिला ने कहा कि गिरफ्तार किए गए लोग, जिनमें दोनों नन भी शामिल हैं, बेगुनाह हैं। उसने आरोप लगाया कि दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने उसे बयान बदलने की धमकी दी थी और GRP ने उसकी बात सुने बिना FIR उन कार्यकर्ताओं की बातों के आधार पर दर्ज कर दी। हालांकि, छत्तीसगढ़ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, वहीं दक्षिणपंथी कार्यकर्ता अपनी शुरुआती शिकायत में लगाए गए आरोपों पर अब भी कायम हैं।
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस और एक अन्य व्यक्ति सुखमन मंडावी को 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर सरकारी रेलवे पुलिस (GRP) ने गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी एक दक्षिणपंथी संगठन के कार्यकर्ताओं की शिकायत के आधार पर की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि उन्होंने नारायणपुर की तीन महिलाओं का जबरन धर्मांतरण किया और उनकी तस्करी करने की कोशिश कर रहे थे।
जिन तीन महिलाओं की कथित तौर पर तस्करी की जा रही थी, उन्हें पहले तीन दिन के लिए एक शेल्टर होम भेजा गया और बाद में उन्हें उनके घर वापस भेज दिया गया।
गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों के वकीलों ने इस हफ्ते की शुरुआत में सेशंस कोर्ट में जमानत की अर्जी दी थी, लेकिन जज ने मानव तस्करी के आरोपों का हवाला देते हुए जमानत खारिज कर दी और कहा कि यह मामला NIA कोर्ट में चलाया जा सकता है।
शुक्रवार को यह मामला प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश (NIA कोर्ट) सिराजुद्दीन कुरैशी के सामने सुना गया, जिन्होंने शनिवार तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ननों के वकील अमृतो दास ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमारी मुख्य दलील यही थी कि तीनों महिलाओं के माता-पिता ने साफ कहा है कि वे कई सालों पहले ईसाई धर्म अपना चुकी हैं और जबरन धर्मांतरण जैसी कोई बात नहीं है। तीनों महिलाएं बालिग हैं। पुलिस डायरी में कहीं नहीं लिखा है कि उनके साथ कोई मारपीट हुई। FIR या डायरी में न तो मानव तस्करी और न ही जबरन धर्मांतरण के कोई ठोस आधार हैं। FIR सिर्फ इस शक पर दर्ज की गई थी कि ननें उन महिलाओं के साथ देखी गईं। हमने यह भी बताया कि नन उम्रदराज़ हैं, उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और उनके खिलाफ किसी अपराध को दर्ज करने लायक कोई तथ्य नहीं है।”
दास ने बताया कि उन्होंने अदालत में तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष तो हिरासत में पूछताछ की मांग भी नहीं कर रहा है और गिरफ्तारी के सात दिन बाद तक जांच में क्या प्रगति हुई है, यह भी साफ नहीं है। कोर्ट में मौजूद GRP अधिकारी से जज ने यह भी पूछा कि क्या उन्हें हिरासत में पूछताछ की जरूरत है, लेकिन इसका कोई स्पष्ट या सकारात्मक जवाब नहीं मिला। जब जज ने पूछा कि जमानत का विरोध किस आधार पर किया जा रहा है, तो अभियोजन पक्ष सिर्फ इतना कह पाया कि जांच शुरुआती चरण में है।
30 जुलाई को अखबार ने उन तीन महिलाओं में से एक से बात की, जिनके बारे में कहा गया था कि उनकी तस्करी की जा रही थी। उस महिला ने कहा कि गिरफ्तार किए गए लोग, जिनमें दोनों नन भी शामिल हैं, बेगुनाह हैं। उसने आरोप लगाया कि दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने उसे बयान बदलने की धमकी दी थी और GRP ने उसकी बात सुने बिना FIR उन कार्यकर्ताओं की बातों के आधार पर दर्ज कर दी। हालांकि, छत्तीसगढ़ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, वहीं दक्षिणपंथी कार्यकर्ता अपनी शुरुआती शिकायत में लगाए गए आरोपों पर अब भी कायम हैं।
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