छत्तीसगढ़ में दो ननों की गिरफ्तारी से जुड़े कथित मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के एक मामले में एक पीड़िता ने आरोप लगाया है कि बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने उन्हें झूठा बयान देने के लिए मजबूर किया और उनके साथ मारपीट की। हालांकि, दक्षिणपंथी संगठन ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है।

Image : ICC/ANI Photo
21 वर्षीय कमलेश्वरी प्रधान ने दावा किया कि पुलिस ने उनका बयान ठीक से दर्ज नहीं किया। उन्होंने यह भी बताया कि उनका परिवार पिछले चार-पाँच वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है।
किसान माता-पिता की इस आदिवासी महिला ने यह भी कहा कि इस मामले में गिरफ्तार की गईं दो नन और एक अन्य व्यक्ति निर्दोष हैं और उन्हें जेल से रिहा किया जाना चाहिए।
हालांकि, बजरंग दल की दुर्ग इकाई के संयोजक रवि निगम ने सभी आरोपों से इनकार किया।
उन्होंने पीटीआई से कहा, “हमने न तो किसी को धमकाया है और न ही किसी को पीटा है। रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, सच्चाई उनके ज़रिए सामने आ जाएगी।”
रीडिफ की रिपोर्ट के अनुसार, केरल की रहने वाली नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस, साथ ही सुखमन मंडावी को 25 जुलाई को राज्य के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर गवर्नमेंट रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी बजरंग दल के एक स्थानीय पदाधिकारी की शिकायत पर हुई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि इन लोगों ने नारायणपुर जिले की तीन आदिवासी महिलाओं का जबरन धर्मांतरण कर उन्हें तस्करी के ज़रिए कहीं ले जाने की कोशिश की।
नारायणपुर जिले के अबुझमाड़ क्षेत्र स्थित अपने गांव कुकराजहोर में पीटीआई से बातचीत करते हुए प्रधान ने कहा कि उन्हें तस्करी नहीं की जा रही थी, क्योंकि वह अपनी मर्जी और अपने माता-पिता की अनुमति से उनके साथ जा रही थीं।
उन्होंने बताया, “मैं ननों के साथ अपने माता-पिता की अनुमति से आगरा जा रही थी। वहां से हमें भोपाल जाना था, जहां एक ईसाई अस्पताल में हमें काम मिलने वाला था। हमें प्रति माह 10,000 रुपये वेतन के साथ-साथ खाना, कपड़े और रहने की सुविधा दी जानी थी।”
प्रधान ने बताया कि वह, सुखमन मंडावी और जिले के ओरछा क्षेत्र की दो अन्य महिलाएं 25 जुलाई की सुबह दुर्ग स्टेशन पहुँची थीं।
उन्होंने कहा, “वे नन, जिनसे मैं पहले कभी नहीं मिली थी, कुछ घंटों बाद वहाँ पहुँचीं। इस बीच एक व्यक्ति हमारे पास आया और हमें टोकने लगा। बाद में बजरंग दल के अन्य लोग भी उसके साथ आ गए। उन्होंने हमें धमकाना, गाली देना और मारपीट शुरू कर दी।”
प्रधान ने आरोप लगाया, “इसके बाद रेलवे पुलिस पहुँची और हमें जीआरपी थाने ले जाया गया। वहाँ एक महिला, जिसने खुद को दक्षिणपंथी कार्यकर्ता बताया — ज्योति शर्मा — ने मुझे थप्पड़ मारा और बयान बदलने की धमकी दी। उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे यह कहना होगा कि मुझे जबरन ले जाया जा रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैंने ऐसा नहीं कहा, तो मेरे भाई को जेल में डाल दिया जाएगा और पीटा जाएगा।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि पुलिस ने उनका ‘वास्तविक बयान’ नहीं लिया और वे “ऐसी बातें लिख रहे थे, जो मैंने कभी नहीं कही थीं।”
उन्होंने कहा, “जब मैंने कुछ कहने की कोशिश की, तो उन्होंने मुझे चुप रहने को कहा और पूछा कि क्या मैं घर जाना चाहती हूँ।”
कक्षा 10 तक पढ़ाई कर चुकीं प्रधान ने बताया कि वह दिहाड़ी मज़दूरी किया करती थीं और रोज़ लगभग 10 किलोमीटर साइकिल चलाकर नारायणपुर जिला मुख्यालय जाती थीं, जहाँ उन्हें रोज़ 250 रुपये मज़दूरी मिलती थी।
उन्होंने कहा, “सुखमन मंडावी, जिसने मुझे इस काम के बारे में बताया, मेरे लिए भाई जैसा है। हमारी मुलाकात चर्च के ज़रिए हुई थी। इससे पहले भी क्षेत्र की कई महिलाएं अस्पतालों में काम करने बाहर जा चुकी हैं। यहाँ तक कि सुखमन की एक बहन भी एक ईसाई अस्पताल में काम करने गई थी और बाद में वापस लौटी थी।”
धर्मांतरण के आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा, “मेरा परिवार पिछले चार–पाँच वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है। मेरी माँ अक्सर बीमार रहा करती थीं। हम उन्हें ‘चंगाई सभा’ (आरोग्य प्रार्थना सभा) में ले गए, जिसके बाद उनकी तबीयत में सुधार हुआ, और तभी से हमने यह धर्म अपनाया।”
प्रधान ने दो कैथोलिक ननों और मंडावी को निर्दोष बताते हुए राज्य सरकार से उनकी रिहाई की अपील की।
भारतीय जनता पार्टी शासित छत्तीसगढ़ में केरल की इन दो ननों की गिरफ्तारी से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है, जिसकी कांग्रेस और सीपीआई(एम) ने कड़ी आलोचना की है।
हालांकि, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने विपक्ष पर इस मामले को "राजनीतिक रंग देने" का आरोप लगाया है।
दुर्ग जिले की एक सेशंस कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उसे तीनों आरोपियों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई का अधिकार नहीं है।
अपनी याचिका में आरोपियों ने कहा कि वे तीन आदिवासी महिलाएं, जो उनके साथ आगरा जाने वाली थीं, पहले से ही ईसाई धर्म का पालन कर रही थीं, इसलिए धर्मांतरण का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
अतिरिक्त सेशंस जज अनिश दुबे ने जमानत याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें राहत के लिए विशेष एनआईए कोर्ट का रुख करना होगा।
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21 वर्षीय कमलेश्वरी प्रधान ने दावा किया कि पुलिस ने उनका बयान ठीक से दर्ज नहीं किया। उन्होंने यह भी बताया कि उनका परिवार पिछले चार-पाँच वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है।
किसान माता-पिता की इस आदिवासी महिला ने यह भी कहा कि इस मामले में गिरफ्तार की गईं दो नन और एक अन्य व्यक्ति निर्दोष हैं और उन्हें जेल से रिहा किया जाना चाहिए।
हालांकि, बजरंग दल की दुर्ग इकाई के संयोजक रवि निगम ने सभी आरोपों से इनकार किया।
उन्होंने पीटीआई से कहा, “हमने न तो किसी को धमकाया है और न ही किसी को पीटा है। रेलवे स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, सच्चाई उनके ज़रिए सामने आ जाएगी।”
रीडिफ की रिपोर्ट के अनुसार, केरल की रहने वाली नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस, साथ ही सुखमन मंडावी को 25 जुलाई को राज्य के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर गवर्नमेंट रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने गिरफ्तार किया था। यह गिरफ्तारी बजरंग दल के एक स्थानीय पदाधिकारी की शिकायत पर हुई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि इन लोगों ने नारायणपुर जिले की तीन आदिवासी महिलाओं का जबरन धर्मांतरण कर उन्हें तस्करी के ज़रिए कहीं ले जाने की कोशिश की।
नारायणपुर जिले के अबुझमाड़ क्षेत्र स्थित अपने गांव कुकराजहोर में पीटीआई से बातचीत करते हुए प्रधान ने कहा कि उन्हें तस्करी नहीं की जा रही थी, क्योंकि वह अपनी मर्जी और अपने माता-पिता की अनुमति से उनके साथ जा रही थीं।
उन्होंने बताया, “मैं ननों के साथ अपने माता-पिता की अनुमति से आगरा जा रही थी। वहां से हमें भोपाल जाना था, जहां एक ईसाई अस्पताल में हमें काम मिलने वाला था। हमें प्रति माह 10,000 रुपये वेतन के साथ-साथ खाना, कपड़े और रहने की सुविधा दी जानी थी।”
प्रधान ने बताया कि वह, सुखमन मंडावी और जिले के ओरछा क्षेत्र की दो अन्य महिलाएं 25 जुलाई की सुबह दुर्ग स्टेशन पहुँची थीं।
उन्होंने कहा, “वे नन, जिनसे मैं पहले कभी नहीं मिली थी, कुछ घंटों बाद वहाँ पहुँचीं। इस बीच एक व्यक्ति हमारे पास आया और हमें टोकने लगा। बाद में बजरंग दल के अन्य लोग भी उसके साथ आ गए। उन्होंने हमें धमकाना, गाली देना और मारपीट शुरू कर दी।”
प्रधान ने आरोप लगाया, “इसके बाद रेलवे पुलिस पहुँची और हमें जीआरपी थाने ले जाया गया। वहाँ एक महिला, जिसने खुद को दक्षिणपंथी कार्यकर्ता बताया — ज्योति शर्मा — ने मुझे थप्पड़ मारा और बयान बदलने की धमकी दी। उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे यह कहना होगा कि मुझे जबरन ले जाया जा रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैंने ऐसा नहीं कहा, तो मेरे भाई को जेल में डाल दिया जाएगा और पीटा जाएगा।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि पुलिस ने उनका ‘वास्तविक बयान’ नहीं लिया और वे “ऐसी बातें लिख रहे थे, जो मैंने कभी नहीं कही थीं।”
उन्होंने कहा, “जब मैंने कुछ कहने की कोशिश की, तो उन्होंने मुझे चुप रहने को कहा और पूछा कि क्या मैं घर जाना चाहती हूँ।”
कक्षा 10 तक पढ़ाई कर चुकीं प्रधान ने बताया कि वह दिहाड़ी मज़दूरी किया करती थीं और रोज़ लगभग 10 किलोमीटर साइकिल चलाकर नारायणपुर जिला मुख्यालय जाती थीं, जहाँ उन्हें रोज़ 250 रुपये मज़दूरी मिलती थी।
उन्होंने कहा, “सुखमन मंडावी, जिसने मुझे इस काम के बारे में बताया, मेरे लिए भाई जैसा है। हमारी मुलाकात चर्च के ज़रिए हुई थी। इससे पहले भी क्षेत्र की कई महिलाएं अस्पतालों में काम करने बाहर जा चुकी हैं। यहाँ तक कि सुखमन की एक बहन भी एक ईसाई अस्पताल में काम करने गई थी और बाद में वापस लौटी थी।”
धर्मांतरण के आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा, “मेरा परिवार पिछले चार–पाँच वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है। मेरी माँ अक्सर बीमार रहा करती थीं। हम उन्हें ‘चंगाई सभा’ (आरोग्य प्रार्थना सभा) में ले गए, जिसके बाद उनकी तबीयत में सुधार हुआ, और तभी से हमने यह धर्म अपनाया।”
प्रधान ने दो कैथोलिक ननों और मंडावी को निर्दोष बताते हुए राज्य सरकार से उनकी रिहाई की अपील की।
भारतीय जनता पार्टी शासित छत्तीसगढ़ में केरल की इन दो ननों की गिरफ्तारी से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है, जिसकी कांग्रेस और सीपीआई(एम) ने कड़ी आलोचना की है।
हालांकि, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने विपक्ष पर इस मामले को "राजनीतिक रंग देने" का आरोप लगाया है।
दुर्ग जिले की एक सेशंस कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उसे तीनों आरोपियों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई का अधिकार नहीं है।
अपनी याचिका में आरोपियों ने कहा कि वे तीन आदिवासी महिलाएं, जो उनके साथ आगरा जाने वाली थीं, पहले से ही ईसाई धर्म का पालन कर रही थीं, इसलिए धर्मांतरण का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
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