बिलासपुर में 14 सितंबर की शाम एक ईसाई प्रार्थना सभा के दौरान धर्मांतरण के आरोप के बाद दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें करीब 13 लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद दोनों पक्षों के 19 से अधिक लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। छत्तीसगढ़ पुलिस ने मीडिया को यह जानकारी दी।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में रविवार, 14 सितंबर को ईसाई समुदाय की एक प्रार्थना सभा के दौरान धर्मांतरण के आरोपों के चलते दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प हो गई। पुलिस के अनुसार, इस घटना में कम से कम 13 लोग घायल हुए।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सिपत थाने के प्रभारी गोपाल सतपथी ने बताया कि यह घटना नवाडीह क्षेत्र के माता-चौरा चौक के नजदीक एक घर में घटी, जहां 150 से ज्यादा ईसाई श्रद्धालु प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुए थे।
पुलिस के मुताबिक, प्रार्थना सभा के दौरान बाइबल और अन्य धार्मिक सामग्री बांटी जा रही थी। इसी बीच कुछ स्थानीय लोगों ने बजरंग दल सहित अन्य हिंदू संगठनों को सूचना दी कि वहां धर्मांतरण किया जा रहा है।
पुलिस के अनुसार, जब हिंदू संगठनों के सदस्य वहां पहुंचे और पादरी व आयोजकों को बाहर बुलाने की मांग करते हुए नारेबाजी शुरू की, तो प्रार्थना स्थल के बाहर पत्थरबाज़ी शुरू हो गई। पुलिस का कहना है कि जवाब में प्रार्थना स्थल के भीतर से भी पत्थर फेंके गए। हालात बिगड़ने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रण में लिया। इस हिंसक झड़प में ईसाई समुदाय के 10 और हिंदू संगठनों से जुड़े 3 लोग घायल हुए।
इसके बाद हिंदू संगठनों के लोगों ने थाने के बाहर प्रदर्शन करते हुए कार्रवाई की मांग की।
द वायर ने थाना प्रभारी सतपथी के हवाले से लिखा कि दोनों पक्षों के 19 से अधिक लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। ईसाई समुदाय के सात लोगों पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिनमें 299 (गैर-इरादतन हत्या), 192 (झूठा सबूत), 296 (धार्मिक सभा में विघ्न डालना), 115(2) (उकसाना), 132 (लोक सेवक पर हमला), 121 (सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और छत्तीसगढ़ धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम की धाराएं शामिल हैं।
वहीं, हिंदू संगठनों के 12 से अधिक सदस्यों पर दंगा करने, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने, धमकी देने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे कई आरोप लगाए गए हैं।
ध्यान देने योग्य है कि धर्मांतरण का हवाला देकर ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंदू संगठनों का यह रवैया नया नहीं है। छत्तीसगढ़ से अक्सर इस तरह की खबरें आती रहती हैं, जहां धर्मांतरण का आरोप लगाकर ईसाइयों को निशाना बनाया जाता है।
इसी साल 26 जुलाई को बजरंग दल के सदस्यों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने दुर्ग रेलवे स्टेशन से असीसी सिस्टर्स ऑफ मैरी इमैक्युलेट (एएसएमआई) की दो कैथोलिक ननों को हिरासत में लिया था। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने ननों और उनके साथ मौजूद एक अन्य व्यक्ति पर मानव तस्करी और धर्मांतरण का आरोप लगाया था।
ननों और उनके साथ मौजूद एक युवक को उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वे नारायणपुर जिले की 18 से 19 वर्ष की तीन युवतियों के साथ आगरा की ओर जा रहे थे।
रायपुर आर्चडायोसिस के विकर जनरल फादर सेबेस्टियन पूमाट्टम के अनुसार, नन उन युवतियों को आगरा के एक कॉन्वेंट में घरेलू काम के लिए ले जा रही थीं, जहां उन्हें काम पर रखा जाना था।
बाद में उन युवतियों और उनके परिवारजनों ने मीडिया को बताया कि वे ननों के साथ अपनी इच्छा से, रोजगार की उम्मीद में जा रही थीं। ननों को फिलहाल ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है।
इसी जुलाई महीने में एक अन्य मामले में बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और अन्य हिंदुत्व संगठनों के सदस्यों ने धमतरी स्थित 115 साल पुराने एक ईसाई अस्पताल पर धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए तोड़फोड़ की। बठेना क्रिश्चियन हॉस्पिटल के नाम से प्रसिद्ध यह अस्पताल कम खर्च में इलाज उपलब्ध कराने के लिए जाना जाता रहा है।
लेकिन उपद्रवियों पर कार्रवाई करने के बजाय राज्य प्रशासन ने उल्टे अस्पताल पर इलाज में लापरवाही के आरोप में जांच शुरू कर दी।
गौरतलब है कि यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने बताया था कि उसे देश के विभिन्न हिस्सों से ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं के संबंध में 245 कॉल प्राप्त हुए। यह डेटा फोरम की हेल्पलाइन सेवा के जरिए तीन महीनों में इकट्ठा किया गया।
बयान में कहा गया है, "यूसीएफ हेल्पलाइन नंबर 1-800-208-4545 के जरिए जानकारी मिली कि भारत में ईसाइयों को रोजाना औसतन दो हिंसा की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। साल 2014 के बाद से इसमें तेजी आई है।"
यूसीएफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, ईसाई आदिवासी और महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक हिंसा का शिकार हुई हैं।
जहां 2014 में 127 घटनाएं दर्ज की गई थीं, वहीं उसके बाद इसमें लगातार वृद्धि देखी गई। यूसीएफ के अनुसार, 2015 में 142, 2016 में 226, 2017 में 248, 2018 में 292, 2019 में 328, 2020 में 279, 2021 में 505, 2022 में 601, 2023 में 734 और 2024 में 834 घटनाएं दर्ज की गईं।
यूसीएफ ने एक बयान में कहा, "2025 में जनवरी से अप्रैल के बीच भारत के 19 राज्यों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 245 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जनवरी में 55, फरवरी में 65, मार्च में 76 और अप्रैल में 49 घटनाएं शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा—50 घटनाओं—के साथ शीर्ष पर है, इसके बाद छत्तीसगढ़ में 46 घटनाएं हुई हैं।"
Related

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में रविवार, 14 सितंबर को ईसाई समुदाय की एक प्रार्थना सभा के दौरान धर्मांतरण के आरोपों के चलते दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प हो गई। पुलिस के अनुसार, इस घटना में कम से कम 13 लोग घायल हुए।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सिपत थाने के प्रभारी गोपाल सतपथी ने बताया कि यह घटना नवाडीह क्षेत्र के माता-चौरा चौक के नजदीक एक घर में घटी, जहां 150 से ज्यादा ईसाई श्रद्धालु प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुए थे।
पुलिस के मुताबिक, प्रार्थना सभा के दौरान बाइबल और अन्य धार्मिक सामग्री बांटी जा रही थी। इसी बीच कुछ स्थानीय लोगों ने बजरंग दल सहित अन्य हिंदू संगठनों को सूचना दी कि वहां धर्मांतरण किया जा रहा है।
पुलिस के अनुसार, जब हिंदू संगठनों के सदस्य वहां पहुंचे और पादरी व आयोजकों को बाहर बुलाने की मांग करते हुए नारेबाजी शुरू की, तो प्रार्थना स्थल के बाहर पत्थरबाज़ी शुरू हो गई। पुलिस का कहना है कि जवाब में प्रार्थना स्थल के भीतर से भी पत्थर फेंके गए। हालात बिगड़ने पर पुलिस ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रण में लिया। इस हिंसक झड़प में ईसाई समुदाय के 10 और हिंदू संगठनों से जुड़े 3 लोग घायल हुए।
इसके बाद हिंदू संगठनों के लोगों ने थाने के बाहर प्रदर्शन करते हुए कार्रवाई की मांग की।
द वायर ने थाना प्रभारी सतपथी के हवाले से लिखा कि दोनों पक्षों के 19 से अधिक लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। ईसाई समुदाय के सात लोगों पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिनमें 299 (गैर-इरादतन हत्या), 192 (झूठा सबूत), 296 (धार्मिक सभा में विघ्न डालना), 115(2) (उकसाना), 132 (लोक सेवक पर हमला), 121 (सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और छत्तीसगढ़ धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम की धाराएं शामिल हैं।
वहीं, हिंदू संगठनों के 12 से अधिक सदस्यों पर दंगा करने, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने, धमकी देने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे कई आरोप लगाए गए हैं।
ध्यान देने योग्य है कि धर्मांतरण का हवाला देकर ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंदू संगठनों का यह रवैया नया नहीं है। छत्तीसगढ़ से अक्सर इस तरह की खबरें आती रहती हैं, जहां धर्मांतरण का आरोप लगाकर ईसाइयों को निशाना बनाया जाता है।
इसी साल 26 जुलाई को बजरंग दल के सदस्यों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने दुर्ग रेलवे स्टेशन से असीसी सिस्टर्स ऑफ मैरी इमैक्युलेट (एएसएमआई) की दो कैथोलिक ननों को हिरासत में लिया था। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने ननों और उनके साथ मौजूद एक अन्य व्यक्ति पर मानव तस्करी और धर्मांतरण का आरोप लगाया था।
ननों और उनके साथ मौजूद एक युवक को उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वे नारायणपुर जिले की 18 से 19 वर्ष की तीन युवतियों के साथ आगरा की ओर जा रहे थे।
रायपुर आर्चडायोसिस के विकर जनरल फादर सेबेस्टियन पूमाट्टम के अनुसार, नन उन युवतियों को आगरा के एक कॉन्वेंट में घरेलू काम के लिए ले जा रही थीं, जहां उन्हें काम पर रखा जाना था।
बाद में उन युवतियों और उनके परिवारजनों ने मीडिया को बताया कि वे ननों के साथ अपनी इच्छा से, रोजगार की उम्मीद में जा रही थीं। ननों को फिलहाल ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है।
इसी जुलाई महीने में एक अन्य मामले में बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और अन्य हिंदुत्व संगठनों के सदस्यों ने धमतरी स्थित 115 साल पुराने एक ईसाई अस्पताल पर धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए तोड़फोड़ की। बठेना क्रिश्चियन हॉस्पिटल के नाम से प्रसिद्ध यह अस्पताल कम खर्च में इलाज उपलब्ध कराने के लिए जाना जाता रहा है।
लेकिन उपद्रवियों पर कार्रवाई करने के बजाय राज्य प्रशासन ने उल्टे अस्पताल पर इलाज में लापरवाही के आरोप में जांच शुरू कर दी।
गौरतलब है कि यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने बताया था कि उसे देश के विभिन्न हिस्सों से ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं के संबंध में 245 कॉल प्राप्त हुए। यह डेटा फोरम की हेल्पलाइन सेवा के जरिए तीन महीनों में इकट्ठा किया गया।
बयान में कहा गया है, "यूसीएफ हेल्पलाइन नंबर 1-800-208-4545 के जरिए जानकारी मिली कि भारत में ईसाइयों को रोजाना औसतन दो हिंसा की घटनाओं का सामना करना पड़ता है। साल 2014 के बाद से इसमें तेजी आई है।"
यूसीएफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, ईसाई आदिवासी और महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक हिंसा का शिकार हुई हैं।
जहां 2014 में 127 घटनाएं दर्ज की गई थीं, वहीं उसके बाद इसमें लगातार वृद्धि देखी गई। यूसीएफ के अनुसार, 2015 में 142, 2016 में 226, 2017 में 248, 2018 में 292, 2019 में 328, 2020 में 279, 2021 में 505, 2022 में 601, 2023 में 734 और 2024 में 834 घटनाएं दर्ज की गईं।
यूसीएफ ने एक बयान में कहा, "2025 में जनवरी से अप्रैल के बीच भारत के 19 राज्यों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 245 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें जनवरी में 55, फरवरी में 65, मार्च में 76 और अप्रैल में 49 घटनाएं शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा—50 घटनाओं—के साथ शीर्ष पर है, इसके बाद छत्तीसगढ़ में 46 घटनाएं हुई हैं।"
Related
गुजरात में 15 वर्षीय मुस्लिम लड़की ने आत्महत्या कर ली, सांप्रदायिक उत्पीड़न का आरोप
धर्मांतरण विरोधी कानून : सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से मांगा जवाब, अंतरिम रोक पर छह हफ्ते बाद सुनवाई