यूपी सरकार ने अखलाक हत्याकांड के आरोपियों के जिन मुख्य दावों का पहले विरोध किया था, अब उन्हीं दावों के आधार पर उनके खिलाफ केस वापस ले रही है

Written by sabrang india | Published on: December 23, 2025
हाई कोर्ट ने वर्ष 2017 में गवाहों के बयानों में विसंगतियां जरूर पाई थीं, लेकिन मामले के गुण-दोष (मेरिट) पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।



मोहम्मद अखलाक की लिंचिंग के आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेने की अपनी अर्जी में उत्तर प्रदेश सरकार ने मोटे तौर पर वही दलीलें दी हैं, जो दो आरोपियों ने आठ साल से भी पहले जमानत याचिका दायर करते समय दी थीं।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रिकॉर्ड से पता चलता है कि उस समय राज्य सरकार ने आरोपियों को जमानत दिए जाने का “जोरदार” विरोध किया था।

अप्रैल 2017 में आरोपी पुनीत और अरुण को जमानत देते समय इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बचाव पक्ष की मुख्य दलील को रिकॉर्ड पर लिया था कि अभियोजन पक्ष द्वारा जिन गवाहों के बयानों के आधार पर मामला बनाया गया, उनमें गंभीर विसंगतियां और विरोधाभास मौजूद थे।

बचाव पक्ष के वकील ने विशेष रूप से अखलाक की पत्नी इकरामन के बयानों पर भरोसा किया था, जो 29 सितंबर 2015 और 13 अक्टूबर 2015 को दर्ज किए गए थे। कोर्ट ने अपने आदेश में पुनीत और अरुण के वकील की दलील का उल्लेख करते हुए कहा, “…उन बयानों में भी उन्होंने आवेदकों का नाम हमलावर के रूप में नहीं लिया था।”

कोर्ट ने यह भी रिकॉर्ड किया कि अखलाक की बेटी शाइस्ता ने “13.10.2015 को दर्ज अपने पहले बयान में” पुनीत या अरुण का नाम नहीं लिया था। कोर्ट ने कहा,
“हालांकि, बाद में उसने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 164 के तहत दिए गए अपने बयान में आवेदकों का नाम लिया।”

इसलिए, “मामले के मेरिट पर कोई टिप्पणी किए बिना, यह जमानत का मामला प्रतीत होता है,” कोर्ट ने 6 अप्रैल 2017 को पारित दो अलग-अलग आदेशों में कहा था।

28 सितंबर 2015 को गौतम बुद्ध नगर जिले के दादरी क्षेत्र के बिसाड़ा गांव में अखलाक को उनके घर से घसीटकर बाहर निकाला गया और इस संदेह में पीट-पीटकर मार डाला गया कि उन्होंने एक बछड़े की चोरी कर उसकी हत्या की थी। इसके बाद के दिनों में गौतम बुद्ध नगर पुलिस ने कई गिरफ्तारियां की थीं।

ट्रायल कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में पुलिस ने 19 आरोपियों के नाम दर्ज किए थे, जिनमें एक स्थानीय BJP नेता का बेटा विशाल राणा और उसका चचेरा भाई शिवम भी शामिल थे। पुलिस के अनुसार, विशाल और शिवम भीड़ को अखलाक के घर तक ले गए थे और परिवार पर हमले में शामिल थे। सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के तहत हत्या, दंगा और आपराधिक धमकी सहित कई गंभीर धाराओं में आरोप लगाए गए थे।

हालांकि, इस वर्ष 15 अक्टूबर को अभियोजन पक्ष ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 321 के तहत ट्रायल कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ अभियोजन वापस लेने के लिए आवेदन किया। यह धारा लोक अभियोजक को अदालत की अनुमति से मुकदमे से पीछे हटने की अनुमति देती है।

जिन आधारों पर राज्य सरकार ने मुकदमा समाप्त करने की मांग की है, वे लगभग वही हैं, जिनका सहारा आरोपियों ने 2017 में लिया था—यानी यह कि मुख्य गवाहों के बयानों में विसंगतियां और विरोधाभास थे, जिनके आधार पर पुलिस ने मामला तैयार किया था।

अभियोजन पक्ष ने अपनी वापसी याचिका में कहा, “चश्मदीद गवाह—इकरामन और अस्करी (अखलाक की मृत मां)—के लिखित बयान धारा 161 CrPC के तहत दर्ज किए गए थे, जिनमें आरोपियों की संख्या दस बताई गई थी। जांच के दौरान 13.10.2015 को इकरामन और शाइस्ता के बयान दर्ज किए गए, जिनमें अभियोजन पक्ष के गवाहों ने किसी भी आरोपी का नाम नहीं लिया।”

शाइस्ता की गवाही के संबंध में याचिका में कहा गया है, “26.11.2015 को चश्मदीद गवाह शाइस्ता का बयान CrPC की धारा 164 के तहत दर्ज किया गया। अपने इस बयान में, पहले बताए गए दस आरोपियों के अलावा उसने छह अन्य व्यक्तियों के नाम भी लिए, जिससे अरुण, पुनीत, भीम, हरिओम, सोनू और रवीण के नाम सामने आए।”

गवाहों के बयानों में कथित विसंगतियों को रेखांकित करते हुए अभियोजन पक्ष की याचिका में कहा गया, “चश्मदीद गवाहों—अस्करी, इकरामन, शाइस्ता और दानिश—के बयानों में आरोपियों की संख्या में परिवर्तन किया गया है। इसके अलावा, अभियोजन पक्ष के गवाह और आरोपी सभी एक ही गांव बिसाड़ा के निवासी हैं। इसके बावजूद, शिकायतकर्ता और अन्य गवाहों ने अपने बयानों में आरोपियों की संख्या अलग-अलग बताई है।”

रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि पुनीत और अरुण को जमानत मिलने के बाद अन्य सभी आरोपियों ने भी समानता (parity) के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में जमानत याचिकाएं दायर कीं, जिन्हें स्वीकार कर लिया गया। जमानत पाने वालों में शिवम, गौरव, संदीप, भीम, सौरभ, हरिओम, विशाल, श्रीओम, विवेक और रूपेंद्र शामिल थे।

पुनीत और अरुण के मामले की तरह ही, राज्य सरकार ने इन आरोपियों की जमानत याचिकाओं का भी विरोध किया था, लेकिन कोर्ट रिकॉर्ड के अनुसार बाद में “समानता के आधार पर सहमति जताई गई।”

अखलाक के वकील ने इस पूरे मामले पर टिप्पणी करने से इनकार किया है। अधिवक्ता अंदलीब नकवी ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “चूंकि हम ट्रायल कोर्ट में सरकार की याचिका का विरोध करते हुए बहस करेंगे, इसलिए इस स्तर पर मामले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।”

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