कथित हिंदुत्ववादी भीड़ के दबाव में दो नन गिरफ्तार: सहमति पत्र और धर्मांतरण के कोई सबूत न होते हुए भी भेजा गया जेल

Written by | Published on: July 28, 2025
वैध पहचान पत्र और अभिभावकों की सहमति के बावजूद ननों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) और राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत आरोप लगाए गए। उन्हें परेशान करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।


फोटो साभार : द ऑब्जर्वर पोस्ट

छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन से अस्सीसी सिस्टर्स ऑफ मैरी इमैक्युलेट (ASMI) की दो कैथोलिक ननों सिस्टर प्रीति मैरी और सिस्टर वंदना फ्रांसिस को शनिवार, 26 जुलाई को नारायणपुर जिले के एक युवक सुखमन मांडवी के साथ गिरफ्तार किया गया। यह समूह तीन युवतियों (जिनकी उम्र 18 से 19 वर्ष के बीच है) को लेकर आगरा जा रहा था। बताया गया कि वे घरेलू काम के लिए जा रही थीं।

द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, ये तीनों युवतियां कानूनन बालिग थीं। उनके पास वैध पहचान पत्र थे और उनके माता-पिता की लिखित सहमति भी मौजूद थी। इसके बावजूद, ननों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 143 (मानव तस्करी) और छत्तीसगढ़ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत कथित जबरन धर्मांतरण के आरोप में मामला दर्ज किया गया।

बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा सार्वजनिक भीड़ की धमकी के बाद हुई इस गिरफ्तारी को व्यापक रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ लक्षित उत्पीड़न के एक स्पष्ट उदाहरण के रूप में निंदा की जा रही है, जिसे जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी विरोधी कानूनों की आड़ में अंजाम दिया गया।

कानून नहीं, भीड़ की सूचना बनी गिरफ्तारी की वजह

यह घटना किसी औपचारिक शिकायत या पुलिस जांच के कारण नहीं, बल्कि एक टीटीई द्वारा शुरू हुई, जिसने स्टेशन पर इस समूह से पूछताछ की और रेलवे अधिकारियों से संपर्क करने की बजाय स्थानीय बजरंग दल के सदस्यों को सूचना दी। रायपुर आर्चडायसिस के विकर जनरल फादर सेबास्टियन पूमट्टम ने द न्यूज मिनट से बातचीत में बताया कि महिलाओं ने टीटीई को बताया था कि वे ननों की निगरानी में आगरा जा रही थीं और टिकट ननों के पास थे। लेकिन जल्द ही बजरंग दल की एक भीड़ वहां इकट्ठा हो गई और इस समूह को परेशान करने लगी।

ये नन उन युवतियों को आगरा के कॉन्वेंट में रसोई सहायिका (किचन हेल्पर) के रूप में नौकरी दिलवाने के लिए साथ ले जा रही थीं, जहां उन्हें 8,000 रूपये से 10,000 रूपये तक वेतन मिलने वाला था। फादर पूमट्टम ने इसकी पुष्टि की। उन्होंने द न्यूज मिनट को बताया, “वे सभी 18 वर्ष से ज्यादा उम्र की थीं और उनके पास अपने माता-पिता की सहमति पत्र भी थे।”



इसके बावजूद रेलवे पुलिस ने इस समूह को हिरासत में ले लिया। बजरंग दल के कार्यकर्ता थाने के बाहर इकट्ठा हो गए और कथित रूप से अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज कराने का दबाव बनाया। बाद में युवतियों को एक सरकारी शेल्टर होम भेज दिया गया, जबकि ननों और युवक को 8 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

उत्पीड़न के बावजूद बजरंग दल पर पुलिस बनी मूक दर्शक

दिल्ली स्थित कांग्रिगेशन ऑफ द होली फैमिली की सिस्टर आशा पॉल ने आरोप लगाया कि गिरफ्तार की गई ननों से मिलने की अनुमति किसी भी चर्च प्रतिनिधि को नहीं दी गई। उन्होंने द न्यूज मिनट को बताया, "हमें यकीन है कि इन युवतियों को अपने बयान बदलने के लिए मजबूर किया गया। ननों के पास सभी आवश्यक दस्तावेज जैसे पहचान पत्र, अभिभावकों की सहमति पत्र मौजूद थे, इसके बावजूद उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया गया।"

कई चश्मदीद गवाहों और ईसाई संगठनों ने पुष्टि की है कि गिरफ्तार होने से पहले ही इन ननों को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया। इस भीड़ का नेतृत्व ज्योति शर्मा कर रही थीं। रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान पुलिस अधिकारी मौके पर मौजूद थे, लेकिन उन्होंने दखल नहीं दिया। एंटी क्रिश्चियन ट्रैकर वाच द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि प्लेटफ़ॉर्म पर ननों और उनके साथियों को परेशान किया जा रहा है।

इसके बावजूद, शर्मा या अन्य निगरानी समूह के सदस्यों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।

चर्च और नागरिक समाज का कहना है कि यह ईसाइयों के खिलाफ एक व्यवस्थित निशाना साधना है।

कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) ने गिरफ्तारी की निंदा की। CBCI ने कहा कि ये महिलाएं कानूनी रूप से वयस्क हैं, उनकी यात्रा स्वैच्छिक थी और धर्मांतरण का कोई प्रमाण नहीं है।

CBCI के हवाले से द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा, “यह उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। चर्च इस मुद्दे को सभी उचित मंचों पर उठाएगा।”

केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (KCBC) की सामाजिक सद्भाव और सतर्कता आयोग ने पुलिस कार्रवाई को बजरंग दल सदस्यों के “झूठे और निराधार आरोपों” पर आधारित बताया। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, KCBC ने चेतावनी दी कि यह घटना धार्मिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए जबरन धर्मांतरण विरोधी कानूनों के दुरुपयोग और धमकाने की व्यापक प्रवृत्ति के अनुरूप है।

उनके आधिकारिक बयान में कहा गया, “यह दुखद घटना भारत के विभिन्न राज्यों में ईसाइयों और मिशनरी कर्मचारियों के प्रति बढ़ती दुश्मनी की एक व्यापक और गहरी समस्या का हिस्सा है। कट्टरपंथी समूहों द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानूनों का हथियार बनाना न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा भी है। हम पुष्टि करते हैं कि कैथोलिक मिशनरी जबरन धर्मांतरण में संलग्न नहीं हैं।”

उल्लेखनीय है कि यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (UCF) ने कहा है कि ईसाइयों को निशाना बनाने वाली घटनाएं 2014 में 127 से बढ़कर 2024 में 834 हो गई हैं यानी कि लगभग सात गुना वृद्धि हुई है जिसे उन्होंने "अल्पसंख्यकों के खिलाफ एक डराने-धमकाने समन्वित अभियान" बताया है।

कार्रवाई की मांग

केरल के कांग्रेस नेताओं ने इस गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की। एआईसीसी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को पत्र लिखकर बताया कि यह घटना भीड़ द्वारा डराने-धमकाने और गलत गिरफ्तारी का स्पष्ट मामला है। उन्होंने कहा, “जब लिखित सहमति और दस्तावेजों को नजरअंदाज किया जाता है, और पुलिस बाहरी दबाव में आकर कार्रवाई करती है, तो यह कानून व्यवस्था का चौपट होना है।”



जॉन ब्रिट्टास ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि केरल की नन सिस्टर वंदना फ्रांसिस और सिस्टर प्रीति की दुर्ग में बिना किसी ठोस सबूत के मानव तस्करी और धर्मांतरण के झूठे आरोपों में गिरफ्तारी शर्मनाक है और यह कानून का खुला दुरुपयोग है ताकि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा सके।



केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (KCBC) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्रियों से दखल की मांग की है, जिसमें कहा गया है, “केंद्र को चुप नहीं बैठना चाहिए। भीड़ की ताकत संवैधानिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकती। यह भारत के लोकतंत्र और धार्मिक स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता का एक महत्वपूर्ण क्षण है।”

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