एमपी : ‘पीटे गए, नाखून उखाड़े गए’: हिरासत में 3 दलित युवकों के साथ टॉर्चर के आरोपों की जांच में जुटी पुलिस

Written by sabrang india | Published on: August 14, 2025
तीनों युवकों को 6 अगस्त को शहर के औद्योगिक क्षेत्र में स्थित दो मूर्ति निर्माण केंद्रों में धार्मिक मूर्तियों की तोड़फोड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।



मध्य प्रदेश पुलिस अधिकारियों ने देवास में तीन दलित युवकों की कथित हिरासत में पिटाई के आरोपों की जांच के आदेश दिए हैं।

रवि अजमेरी (21), रितेश अजमेरी (23) और रितेश सीनम (23) को 6 अगस्त को शहर के औद्योगिक क्षेत्र में स्थित दो मूर्ति निर्माण केंद्रों में धार्मिक मूर्तियों को क्षतिग्रस्त करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

एक दिन पहले भगवान गणेश और एक देवी की मूर्तियां क्षतिग्रस्त पाई गई थीं। पुलिस ने मामला दर्ज कर आसपास के क्षेत्र में लगे 50 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालकर संदिग्धों की पहचान की।

गिरफ्तारी और कोर्ट में पेशी के बाद तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया। हालांकि, जमानत मिलने के बाद अब तीनों युवकों के परिवारों ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने कथित पीड़ितों के वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा, “देवास के बड़वाड़िया थाना क्षेत्र में 3 मासूम दलित बच्चों रितेश, रवि और रितेश को बेरहमी से पीटा गया, थर्ड डिग्री टॉर्चर किया गया, यहां तक कि उनके नाखून तक उखाड़ दिए गए। जब कोई सबूत नहीं है, तो फिर ऐसा अमानवीय अत्याचार क्यों? डीजीपी साहब, दोषी पुलिसकर्मियों को तुरंत निलंबित करें, उच्च स्तरीय जांच कराएं और दलित बच्चों को न्याय दिलाएं।”

परिवारों ने आरोप लगाया है कि तीनों युवकों को पुलिस हिरासत में गंभीर शारीरिक प्रताड़ना और अत्याचार का शिकार बनाया गया, जिसमें नाखून उखाड़े जाने के आरोप भी शामिल हैं।

एसपी पुनीत गहलोत ने अखबार को बताया कि इस मामले में स्वतंत्र जांच के आदेश दिए गए हैं।

उन्होंने कहा, “आरोपियों के परिवार ने शारीरिक हिंसा का दावा किया है। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर मेडिकल जांच के बाद कोर्ट में पेश किया। इसके बाद उन्हें जेल भेजा गया। अब जमानत मिलने के बाद वे कह रहे हैं कि उनके साथ मारपीट हुई थी।”

उन्होंने कहा कि गिरफ्तारियां ठोस सबूतों के आधार पर की गई थीं। “वे मूर्ति तोड़फोड़ मामलों में आरोपी हैं। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उनकी संलिप्तता पाई गई और उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेजा गया। अब परिवार की ओर से आरोप लगाए जा रहे हैं, जिनकी हम स्वतंत्र जांच कराएंगे।”

वहीं राज्य में हाल ही में मुरैना जिले में एक दलित युवक को बिना मजदूरी काम करने से इनकार करना भारी पड़ गया। युवक के काम करने से मना करने पर कुछ लोगों ने उसके साथ मारपीट की और उसकी मवेशियों की झोपड़ियों में आग लगा दी। यह घटना सोमवार शाम अंबाह थाना क्षेत्र के मलबसाई गांव में घटी।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित रिंकू साखबार ने आरोप लगाया कि आरोपी रवि गुर्जर, उसके पिता पंजाब गुर्जर और चाचा श्रीकृष्ण उर्फ बंटी पहलवान पिछले कई महीनों से उनके परिवार पर बिना मजदूरी के जबरन काम करवाने का दबाव बना रहे थे। रिंकू का कहना है कि जब उनके परिवार ने लगातार इसका विरोध किया, तो उन्हें लगातार धमकियां मिलनी शुरू हो गईं।

घटना वाली रात रिंकू की बहन और बुआ रक्षाबंधन के मौके पर मिलने आई थीं। रिंकू ने बताया कि आरोपी, कुछ अन्य लोगों के साथ देशी कट्टे जैसे अवैध हथियार लेकर आए, धमकियां दीं और विरोध करने पर उसकी पिटाई की।

कुछ ही देर बाद पास में बने मवेशियों के बाड़े में आग लग गई। रिंकू के परिवार का कहना था कि ये झोपड़ियां मुख्य रूप से मवेशियों को रखने के लिए बनाई गई थीं। आग लगने से वे पूरी तरह जलकर खाक हो गईं, जिससे परिवार को भारी नुकसान और काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

हिरासत में टॉर्चर की बात करें तो बीते महीने सुप्रीम कोर्ट ने कुपवाड़ा संयुक्त पूछताछ केंद्र को एक कॉन्स्टेबल को टॉर्चर करने के लिए फटकार लगाई। इसे अनुच्छेद 21 के तहत मानव गरिमा का सबसे गंभीर उल्लंघन बताया।

राज्य के दुरुपयोग और संस्थागत विफलता की कड़ी निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को आदेश दिया था कि वह जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित संयुक्त पूछताछ केंद्र (JIC) में पुलिस कांस्टेबल खुर्शीद अहमद चौहान की अवैध हिरासत और क्रूर पुलिस हिरासत में प्रताड़ना की जांच अपने हाथ में ले। इन उल्लंघनों की भयावहता को स्वीकार करते हुए एक अहम कदम के तौर पर मुआवजे का भी आदेश दिया गया। कोर्ट ने अपीलकर्ता को 50,00,000/- (पचास लाख रुपये) का मुआवजा देने का आदेश दिया था, यह मानते हुए कि अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के मद्देनजर यह एक आवश्यक संवैधानिक उपाय है।

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल पीड़ित के खिलाफ धारा 309 आईपीसी के तहत “आत्महत्या के प्रयास” का प्रतिवादी एफआईआर रद्द किया, बल्कि शामिल अधिकारियों की तत्काल गिरफ्तारी का भी निर्देश दिया। साथ ही, न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश को 50 लाख रूपये संवैधानिक मुआवजा देने का आदेश दिया, जो कि विभागीय कार्रवाई के बाद दोषी अधिकारियों से वसूल किया जाएगा। इसके अलावा, सीबीआई को जेआईसी में व्यवस्थागत खामियों और संस्थागत संरक्षण की जांच का भी काम सौंपा गया।

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