पिछले 13 दिनों में 65 लाख हटाए गए मतदाताओं में से 99.8% पर कोई आपत्ति नहीं आई

Written by AMAN KHAN | Published on: August 16, 2025
65 लाख नामों को एसआईआर (SIR) ड्राफ्ट रोल से हटाए जाने के बाद चुनाव आयोग (ECI) को केवल 74,525 नए मतदाता आवेदन प्राप्त हुए यानी 13 दिनों में प्रति विधानसभा क्षेत्र औसतन 306 मतदाता। हटाए गए नामों में से केवल 0.2% पर आपत्तियां दर्ज की गईं, जबकि 99.8% नाम बिना किसी चुनौती के हटा दिए गए और राजनीतिक दलों की ओर से कोई दावा या आपत्ति दर्ज नहीं की गई।



24 जून से बिहार में मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया राज्य के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी और कड़ी प्रक्रियाओं में बदल गई है। पहली बार शुरू की गई विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) प्रक्रिया के तहत, निर्वाचन आयोग ने 1 अगस्त को प्रकाशित किए गए ड्राफ्ट रोल में राज्य की मतदाता सूची से 65 लाख से अधिक नाम हटा दिए हैं।

अयोग्य, डुप्लिकेट या मृत मतदाताओं के नामों को हटाकर मतदाता सूची को साफ करने के उद्देश्य से की गई नाम हटाने की इस व्यापक प्रक्रिया ने नागरिकों और पर्यवेक्षकों को आगे की प्रगति पर कड़ी नजर रखने के लिए मजबूर कर दिया है। दावों और आपत्तियों की आधिकारिक प्रक्रिया 1 अगस्त से शुरू हुई, जिसमें मतदाताओं को अपनी स्थिति की पुष्टि करने या उसे चुनौती देने के लिए 30 दिनों की समय सीमा दी गई है।

अब जब इस 30 दिन की अवधि के 13 दिन गुजर चुके हैं, तो एक तस्वीर साफ़ दिखने लगी है कि नए नाम तेजी से जोड़े जा रहे हैं, सुधार बहुत कम हो रहे हैं, और राजनीतिक पार्टियां इस पर चुप हैं।

243 विधानसभा क्षेत्रों में 65 लाख नाम हटाए गए

ये सभी 65 लाख नाम बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों से हटाए गए हैं, यानी औसतन हर सीट पर करीब 26,748 नाम काटे गए हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने नाम काटने को स्पष्ट तौर पर नहीं बताया है, लेकिन रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ज्यादातर मामलों में न तो किसी को पहले से कोई नोटिस दिया गया और न ही कोई जांच की गई। इसकी बजाय, सबूत देने की जिम्मेदारी खुद मतदाताओं पर डाल दी गई जिनमें से कई को तो अब तक पता भी नहीं है कि उनका नाम लिस्ट से हट चुका है।

इस प्रक्रिया में बदलाव का मतलब है कि मतदाता सूची में फिर नाम जोड़ने के लिए प्रभावित मतदाताओं को आधिकारिक प्रक्रिया के तहत सक्रिय रूप से दावा या आपत्ति दर्ज करनी होगी। लेकिन अब तक, इस पर प्रतिक्रिया बहुत ही कम रही है।

दावे और आपत्तियां: अब तक 0.2% प्रतिक्रिया

1 अगस्त से 13 अगस्त के बीच, पूरे राज्य में केवल 17,665 दावे और आपत्तियां दर्ज की गईं जो कुल हटाए गए मतदाताओं का 0.2% है। दूसरे शब्दों में, 65 लाख से ज्यादा हटाए गए मतदाताओं में से 99.8% से अधिक ने अपनी हटाई गई सूची को चुनौती नहीं दी है।

दूसरे सप्ताह में वृद्धि के बावजूद रोजाना के दावे और आपत्तियां सबसे ज्यादा आने वाले दिन 13 अगस्त को भी 3,700 से ज्यादा नहीं हो पाए। इसके विपरीत, पिछले कुछ दिनों में नए मतदाताओं जोड़ने की रोजाना संख्या 8,000 से भी अधिक रही।



नए नाम जोड़ने में तेजी: 74,525 आवेदन दिए गए

कम सुधार दर के विपरीत, नए मतदाता आवेदन की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है। इसी 13 दिन में, चुनाव आयोग ने 74,525 फॉर्म 6 जमा किए जो नए मतदाताओं को पंजीकृत करने के लिए आवेदन होते हैं, आमतौर पर 18 वर्ष के हो रहे युवाओं या पहली बार पंजीकरण कराने वालों के लिए।

पहले दो दिनों के बाद आवेदन में लगातार तेजी आई:

3 अगस्त: 1,151 नए आवेदनकर्ता
6 अगस्त: एक दिन में 4,272
8 अगस्त: एक दिन में 8,543
13 अगस्त: 10,934- एक दिन में सबसे ज्यादा आवेदन



इसका मतलब है कि हर एक दावा या आपत्ति दर्ज होने के मुकाबले, सिस्टम ने चार से ज्यादा नए मतदाता आवेदन प्रक्रियाबद्ध किए।

प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 306 मतदाता जोड़े गए

74,525 नए आवेदनों की बात करें तो यह प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में औसतन 306 मतदाताओं के जुड़ने को दर्शाता है। यह संख्या भले ही सीधे-साधे तरीके से समझ में आए, लेकिन इससे पता चलता है कि पूरे राज्य में नए मतदाता बराबर-बराबर जोड़े गए हैं जो कि पहले हर निर्वाचन क्षेत्र से लगभग 26,748 मतदाताओं के हटाए जाने जैसा ही है।

प्रति सीट 306 मतदाताओं का आंकड़ा पूरे राज्य का औसत दिखाता है, जिसने चुनावी माहौल में लोगों का ध्यान खींचा है। यह संख्या स्वाभाविक भागीदारी, प्रशासनिक समानता या संगठित प्रचार-प्रसार में से क्या दर्शाती है, यह अभी देखना बाकी है। लेकिन सिर्फ आंकड़े ही बताते हैं कि नए मतदाताओं को जोड़ने की रफ्तार हर क्षेत्र में बराबर है।

दावे वाली प्रक्रिया में राजनीतिक पार्टियां चुप हैं

जहां विपक्षी पार्टियां SIR प्रक्रिया के खिलाफ जबरदस्त तरीके से सार्वजनिक विरोध - प्रदर्शन कर रही हैं और चुनाव आयोग पर “मत चोरी” का आरोप लगा रही हैं- ऐसे में उनके आधिकारिक कदम कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस प्रक्रिया को चुनौती देने के बावजूद, चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार 1 से 13 अगस्त के बीच कोई भी राजनीतिक पार्टी ने एक भी दावा या आपत्ति दर्ज नहीं की।

यह प्रक्रिया में निष्क्रियता शायद प्रक्रिया को रद्द करवाने की रणनीति हो सकती है, लेकिन इससे प्रमुख हितधारकों द्वारा मतदाता सूची संशोधन पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई है। इसके नतीजे में, औपचारिक सुधार लगभग पूरी तरह से नागरिकों द्वारा ही बहुत कम दर पर किए जा रहे हैं, जिससे प्रक्रिया का झुकाव हटाए गए नामों को फिर से जोड़ने के बजाय नए नाम जोड़ने की ओर ज्यादा हो गया है।

बदलते मतदाता का नया स्वरूप

65 लाख नाम हटाए गए, 74,525 नए जोड़े गए और 18,000 से कम सुधार दर्ज किए गए हैं, जिससे बिहार की प्रारूप मतदाता सूची में बुनियादी बदलाव हो रहा है। जैसे-जैसे 30 सितंबर को अंतिम सूची प्रकाशित करने की समयसीमा करीब आ रही है, मुद्दा अब उद्देश्य से ज्यादा प्रभाव का है; कौन बना हुआ है, कौन नया आया है, और कौन अभी भी नहीं है?

आपत्तियां दर्ज करने और दावे करने की प्रक्रिया अभी भी जारी है और आने वाले दिन तय करेंगे कि मौजूदा रुझान वैसे ही बने रहते हैं या फिर जनजागरूकता और प्रचार-प्रसार से इनमें कोई बदलाव आता है।

एक नजर में: संशोधन को परिभाषित करने वाले आंकड़े

● प्रारूप मतदाता सूची से हटाए गए नाम: 65,00,000
● प्राप्त दावे और आपत्तियां (1–13 अगस्त): 17,665
● हटाए गए नामों के प्रतिशत को चुनौती: 0.272%
● हटाए गए नामों का प्रतिशत जिसे चैलेंज नहीं किया गया: 99.728%
● 13 अगस्त तक प्राप्त नए मतदाता आवेदन (फॉर्म 6): 74,525
● प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में औसत नए मतदाता: 306
● राजनीतिक दलों द्वारा दावे/आपत्तियां दर्ज: 0

संशोधन की कहानी, सिर्फ आंकड़ों की ज़ुबानी।

शोर शराबे से परे आंकड़े

99.8% से ज्यादा नाम हटने के बाद भी बिना किसी आपत्ति के ये रह गए हैं और नए आवेदन तेजी से बढ़ रहे हैं ऐसे में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन खामोशी से लेकिन साफ तौर पर बिहार के मतदाता आधार को बदल रहा है। न कोई हंगामा, न कोई बड़ा विवाद - बस हर दिन के आंकड़े दिखा रहे हैं कि बदलाव हो रहा है, वो भी चुपचाप।

जैसे-जैसे यह प्रक्रिया अंतिम चरण की ओर बढ़ रही है, असली कसौटी सिर्फ कोर्टरूम या प्रेस कॉन्फ़्रेंस में नहीं होगी बल्कि इसमें होगी कि कितने लोग खुद आगे आकर यह जांचते हैं कि उनका नाम लिस्ट में है या नहीं, अपनी मौजूदगी दर्ज करते हैं और अपने वोट का अधिकार मांगते हैं।

Related

वोट फॉर डेमोक्रेसी (VFD): बिहार की विवादित SIR प्रक्रिया में सांख्यिकीय, कानूनी और प्रक्रिया संबंधी अनियमितताएं पाई गईं

बिहार के ड्राफ्ट रॉल में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं के नाम ज्यादा कटे: स्क्रोल के विश्लेषण में खुलासा

राहुल गांधी का आरोप: 2024 में ‘वोट चोरी’, चुनावी धोखाधड़ी में भाजपा-ECI की सांठगांठ 

बाकी ख़बरें