एक विस्तृत खुलासे में विपक्ष के नेता ने कर्नाटक के एक ही संसदीय क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा फर्जी वोट होने का दावा किया और देशभर में मतदाता सूची में हेरफेर की चेतावनी दी। उन्होंने इसे एक संवैधानिक संकट करार दिया, जो भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद को ही खतरे में डालता है।

विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 7 अगस्त 2025 को निर्वाचन आयोग (ECI) और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों मिलकर मतदाता सूचियों में हेरफेर और हाल ही में हुए चुनावों को प्रभावित करने की साजिश रच रहे हैं। इसमें 2024 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव शामिल हैं।
गांधी ने नई दिल्ली स्थित एआईसीसी मुख्यालय में आयोजित एक विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन कथित गड़बड़ियों को भारतीय लोकतंत्र की सुनियोजित अवहेलना बताया। उन्होंने दावा किया कि “बड़े पैमाने पर चुनावी धोखाधड़ी” या वोट चोरी हुई है। उन्होंने इसे “संविधान के खिलाफ एक संस्थागत अपराध” करार दिया।
मुख्य आरोप और दावे
'एटम बम' सबूत
● राहुल गांधी ने घोषणा की कि कांग्रेस ने छह महीने की आंतरिक जांच के बाद मतदाता सूची में हेरफेर के ठोस सबूत हासिल किए हैं।
● उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल कर्नाटक की बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में ही 1 लाख फर्जी वोट डाले गए।
महाराष्ट्र चुनाव: चिंताजनक वृद्धि
● कांग्रेस को पहली बार वोटिंग में गड़बड़ी की आशंका 2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के बाद हुई थी, लेकिन 2024 के महाराष्ट्र चुनाव में पूरी तरह से पुष्टि हो गईं।
● पार्टी का दावा है कि केवल पांच महीनों में महाराष्ट्र की मतदाता सूची में एक करोड़ से ज्यादा नए मतदाताओं को जोड़ा गया, जो कि पिछले पांच वर्षों में जोड़े गए कुल मतदाताओं से भी अधिक है।
● गांधी ने शाम 5:30 बजे के बाद मतदान में संदिग्ध वृद्धि और मतदान केंद्रों तक पहुंच को रोकने के लिए अप्रत्याशित रूप से नियमों में बदलाव करके चुनाव आयोग द्वारा सीसीटीवी फुटेज जारी करने से इनकार करने पर प्रकाश डाला। (दिसंबर 2024)
● गांधी ने पूछा, "अगर कुछ भी गलत नहीं हुआ तो सबूत क्यों नष्ट करें?" उनका इशारा जांच को रोकने के लिए पारदर्शिता से प्रेरित सदियों पुराने कानूनों/नियमों में जानबूझकर बदलाव करने की ओर था।
बैंगलोर सेंट्रल: 'वोट चोरी' का एक केस स्टडी
बैंगलोर सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र पर ध्यान दिलाते हुए गांधी ने कहा कि कांग्रेस ने आंतरिक सर्वेक्षणों के आधार पर जीत का अनुमान लगाया था, लेकिन मामूली अंतर से हार गई:

अंतर: 32,707 वोट
महादेवपुरा को छोड़कर, कांग्रेस 7 में से 6 विधानसभा सीटों में आगे रही, जहां उसे 1,15,586 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।
महादेवपुरा से प्राप्त निष्कर्ष:
कांग्रेस के विस्तृत ऑडिट से पता चला:

गांधी ने आरोप लगाया कि मतदाताओं का पंजीकरण कई बार किया गया है यानी एक ही निर्वाचन क्षेत्र में, अलग-अलग राज्यों में और यहां तक कि ऐसे पते भी इस्तेमाल किए गए हैं जो मौजूद ही नहीं हैं या शून्य पते हैं।
उदाहरण:
● 68 मतदाता एक शराब बनाने वाली जगह ("बियर क्लब") में पंजीकृत थे।
● एक मतदाता, शकुन रानी, दो महीनों में दो बार थोड़ी बदली हुई जानकारी के साथ पंजीकृत हुईं और दोनों बार मतदान किया। विडंबना यह है कि यह महिला मतदाता (जो लगभग 70 वर्ष की हैं) को फॉर्म 6 के तहत 'नए मतदाता' श्रेणी में 18-25 वर्ष आयु वर्ग में पंजीकृत किया गया था!
एग्ज़िट पोल बनाम अंतिम नतीजे: बढ़ता हुआ असंगत अंतर
राहुल गांधी ने आगे सवाल किया:
● ऐसा क्यों है कि एंटी-इंकंबेंसी (वर्तमान सरकार के खिलाफ मत) हर पार्टी को प्रभावित करती है, लेकिन भाजपा को नहीं?
● एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल लगातार भाजपा के पक्ष में गलत क्यों साबित होते हैं?
● उन्होंने हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी इसी तरह के संदिग्ध वृद्धि (स्विंग्स) की बात की।
हरियाणा में:
● कांग्रेस 8 सीटें मात्र 22,779 वोटों के कंबाइन मार्जिन से हार गई यानी कुल 2 करोड़ से अधिक वोट पड़े थे।
राष्ट्रीय स्तर पर:
● भाजपा ने 25 लोकसभा सीटें ऐसी जीतीं जिनका मत अंतर 33,000 वोटों से कम था।
● गांधी ने कहा, "मोदी को सत्ता में बने रहने के लिए बस इतनी ही सीटें चाहिए थीं यानी सिर्फ 25 सीटें।"
डिजिटल मतदाता सूची से इनकार: जानबूझकर लगाई गई बाधा
गांधी ने बताया कि चुनाव आयोग (ECI) ने मशीन-रीडेबल मतदाता सूची साझा करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय भौतिक दस्तावेज उपलब्ध कराए जो:
● ढेर लगाने पर ये सात फुट से भी ज्यादा ऊंचे थे।
● इन्हें OCR (ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन) के जरिए स्कैन नहीं किया जा सकता था।
● इससे मैनुअल सत्यापन लगभग असंभव हो गया।
गांधी ने आरोप लगाया, “यह सब योजनाबद्ध है। अगर चुनाव आयोग हमें इलेक्ट्रॉनिक रूप में पढ़ने योग्य (सर्चेबल) डिजिटल डेटा देता, तो हम इसे 30 सेकंड में विश्लेषण कर लेते। लेकिन उन्होंने जानबूझकर ऐसे फॉर्मेट दिए जिन्हें स्कैन करना मुश्किल हो, ताकि जांच रुक जाए।”
न्यायिक निगरानी और संवैधानिक जवाबदेही की मांग
● गांधी ने चुनाव आयोग की कार्रवाइयों को चुनावों की सुरक्षा करने के उसके संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन बताया।
● उन्होंने न्यायपालिका से हस्तक्षेप करने की अपील करते हुए कहा, “यह अब सिर्फ किसी एक पार्टी के नुकसान का मामला नहीं है। यह भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद के लिए खतरा है जहां हर नागरिक को एक ही वोट मिलता है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि पूरा चुनावी प्रक्रिया नियोजित हो रही है, जिसमें मीडिया का प्रचार-प्रसार, बहु-चरणीय मतदान और चुनाव आयोग की पारदर्शी न होने वाली भूमिका सहायक हैं।
निष्कर्ष: भारतीय लोकतंत्र के मूल में एक संकट
राहुल गांधी के आरोप केवल दलगत राजनीति से परे हैं-वे भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के मूल को चुनौती देते हैं। यदि उनका दावा का कुछ भी अंश सही है, तो इसका मतलब है कि चुनावी प्रक्रिया जो राजनीतिक सत्ता को वैधता प्रदान करती है, वह नौकरशाही की अस्पष्टता, मतदाता सूची में हेरफेर और डिजिटल पारदर्शिता के इनकार के कारण बाधित हो चुकी है।
कांग्रेस के सबूतों से भरे खुलासे ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:
● बिना किसी जांच-पड़ताल के मतदाता सूची में इतनी बड़ी मात्रा में बदलाव क्यों किया जा रहा है?
● चुनाव आयोग पारदर्शिता के लिए आवश्यक मशीन-रीडेबल डेटा देने से क्यों इनकार कर रहा है?
● संवेदनशील मतदान अवधि के सीसीटीवी रिकॉर्ड क्यों नष्ट या रोके गए?
यह केवल तकनीकी चूक नहीं है बल्कि यह संवैधानिक चेतावनियां हैं। “एक व्यक्ति, एक वोट” का सिद्धांत केवल एक प्रशासनिक दिशा-निर्देश नहीं है बल्कि यह गणराज्य की बुनियाद है। यदि लोकतंत्र की रक्षा करने वाले संस्थान इसके कमजोर होने में सहायक बन जाएं, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे-न केवल एक चुनावी चक्र के लिए, बल्कि भारत में चुनावी वैधता के भविष्य के लिए भी।
राहुल गांधी द्वारा दिए गए प्रेजेंटेशन यहां देखे जा सकते हैं।

विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 7 अगस्त 2025 को निर्वाचन आयोग (ECI) और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों मिलकर मतदाता सूचियों में हेरफेर और हाल ही में हुए चुनावों को प्रभावित करने की साजिश रच रहे हैं। इसमें 2024 के लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव शामिल हैं।
गांधी ने नई दिल्ली स्थित एआईसीसी मुख्यालय में आयोजित एक विस्तृत प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन कथित गड़बड़ियों को भारतीय लोकतंत्र की सुनियोजित अवहेलना बताया। उन्होंने दावा किया कि “बड़े पैमाने पर चुनावी धोखाधड़ी” या वोट चोरी हुई है। उन्होंने इसे “संविधान के खिलाफ एक संस्थागत अपराध” करार दिया।
मुख्य आरोप और दावे
'एटम बम' सबूत
● राहुल गांधी ने घोषणा की कि कांग्रेस ने छह महीने की आंतरिक जांच के बाद मतदाता सूची में हेरफेर के ठोस सबूत हासिल किए हैं।
● उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल कर्नाटक की बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में ही 1 लाख फर्जी वोट डाले गए।
महाराष्ट्र चुनाव: चिंताजनक वृद्धि
● कांग्रेस को पहली बार वोटिंग में गड़बड़ी की आशंका 2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के बाद हुई थी, लेकिन 2024 के महाराष्ट्र चुनाव में पूरी तरह से पुष्टि हो गईं।
● पार्टी का दावा है कि केवल पांच महीनों में महाराष्ट्र की मतदाता सूची में एक करोड़ से ज्यादा नए मतदाताओं को जोड़ा गया, जो कि पिछले पांच वर्षों में जोड़े गए कुल मतदाताओं से भी अधिक है।
● गांधी ने शाम 5:30 बजे के बाद मतदान में संदिग्ध वृद्धि और मतदान केंद्रों तक पहुंच को रोकने के लिए अप्रत्याशित रूप से नियमों में बदलाव करके चुनाव आयोग द्वारा सीसीटीवी फुटेज जारी करने से इनकार करने पर प्रकाश डाला। (दिसंबर 2024)
● गांधी ने पूछा, "अगर कुछ भी गलत नहीं हुआ तो सबूत क्यों नष्ट करें?" उनका इशारा जांच को रोकने के लिए पारदर्शिता से प्रेरित सदियों पुराने कानूनों/नियमों में जानबूझकर बदलाव करने की ओर था।
बैंगलोर सेंट्रल: 'वोट चोरी' का एक केस स्टडी
बैंगलोर सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र पर ध्यान दिलाते हुए गांधी ने कहा कि कांग्रेस ने आंतरिक सर्वेक्षणों के आधार पर जीत का अनुमान लगाया था, लेकिन मामूली अंतर से हार गई:

अंतर: 32,707 वोट
महादेवपुरा को छोड़कर, कांग्रेस 7 में से 6 विधानसभा सीटों में आगे रही, जहां उसे 1,15,586 वोटों से हार का सामना करना पड़ा।
महादेवपुरा से प्राप्त निष्कर्ष:
कांग्रेस के विस्तृत ऑडिट से पता चला:

गांधी ने आरोप लगाया कि मतदाताओं का पंजीकरण कई बार किया गया है यानी एक ही निर्वाचन क्षेत्र में, अलग-अलग राज्यों में और यहां तक कि ऐसे पते भी इस्तेमाल किए गए हैं जो मौजूद ही नहीं हैं या शून्य पते हैं।
उदाहरण:
● 68 मतदाता एक शराब बनाने वाली जगह ("बियर क्लब") में पंजीकृत थे।
● एक मतदाता, शकुन रानी, दो महीनों में दो बार थोड़ी बदली हुई जानकारी के साथ पंजीकृत हुईं और दोनों बार मतदान किया। विडंबना यह है कि यह महिला मतदाता (जो लगभग 70 वर्ष की हैं) को फॉर्म 6 के तहत 'नए मतदाता' श्रेणी में 18-25 वर्ष आयु वर्ग में पंजीकृत किया गया था!
एग्ज़िट पोल बनाम अंतिम नतीजे: बढ़ता हुआ असंगत अंतर
राहुल गांधी ने आगे सवाल किया:
● ऐसा क्यों है कि एंटी-इंकंबेंसी (वर्तमान सरकार के खिलाफ मत) हर पार्टी को प्रभावित करती है, लेकिन भाजपा को नहीं?
● एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल लगातार भाजपा के पक्ष में गलत क्यों साबित होते हैं?
● उन्होंने हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी इसी तरह के संदिग्ध वृद्धि (स्विंग्स) की बात की।
हरियाणा में:
● कांग्रेस 8 सीटें मात्र 22,779 वोटों के कंबाइन मार्जिन से हार गई यानी कुल 2 करोड़ से अधिक वोट पड़े थे।
राष्ट्रीय स्तर पर:
● भाजपा ने 25 लोकसभा सीटें ऐसी जीतीं जिनका मत अंतर 33,000 वोटों से कम था।
● गांधी ने कहा, "मोदी को सत्ता में बने रहने के लिए बस इतनी ही सीटें चाहिए थीं यानी सिर्फ 25 सीटें।"
डिजिटल मतदाता सूची से इनकार: जानबूझकर लगाई गई बाधा
गांधी ने बताया कि चुनाव आयोग (ECI) ने मशीन-रीडेबल मतदाता सूची साझा करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय भौतिक दस्तावेज उपलब्ध कराए जो:
● ढेर लगाने पर ये सात फुट से भी ज्यादा ऊंचे थे।
● इन्हें OCR (ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन) के जरिए स्कैन नहीं किया जा सकता था।
● इससे मैनुअल सत्यापन लगभग असंभव हो गया।
गांधी ने आरोप लगाया, “यह सब योजनाबद्ध है। अगर चुनाव आयोग हमें इलेक्ट्रॉनिक रूप में पढ़ने योग्य (सर्चेबल) डिजिटल डेटा देता, तो हम इसे 30 सेकंड में विश्लेषण कर लेते। लेकिन उन्होंने जानबूझकर ऐसे फॉर्मेट दिए जिन्हें स्कैन करना मुश्किल हो, ताकि जांच रुक जाए।”
न्यायिक निगरानी और संवैधानिक जवाबदेही की मांग
● गांधी ने चुनाव आयोग की कार्रवाइयों को चुनावों की सुरक्षा करने के उसके संवैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन बताया।
● उन्होंने न्यायपालिका से हस्तक्षेप करने की अपील करते हुए कहा, “यह अब सिर्फ किसी एक पार्टी के नुकसान का मामला नहीं है। यह भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद के लिए खतरा है जहां हर नागरिक को एक ही वोट मिलता है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि पूरा चुनावी प्रक्रिया नियोजित हो रही है, जिसमें मीडिया का प्रचार-प्रसार, बहु-चरणीय मतदान और चुनाव आयोग की पारदर्शी न होने वाली भूमिका सहायक हैं।
निष्कर्ष: भारतीय लोकतंत्र के मूल में एक संकट
राहुल गांधी के आरोप केवल दलगत राजनीति से परे हैं-वे भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के मूल को चुनौती देते हैं। यदि उनका दावा का कुछ भी अंश सही है, तो इसका मतलब है कि चुनावी प्रक्रिया जो राजनीतिक सत्ता को वैधता प्रदान करती है, वह नौकरशाही की अस्पष्टता, मतदाता सूची में हेरफेर और डिजिटल पारदर्शिता के इनकार के कारण बाधित हो चुकी है।
कांग्रेस के सबूतों से भरे खुलासे ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:
● बिना किसी जांच-पड़ताल के मतदाता सूची में इतनी बड़ी मात्रा में बदलाव क्यों किया जा रहा है?
● चुनाव आयोग पारदर्शिता के लिए आवश्यक मशीन-रीडेबल डेटा देने से क्यों इनकार कर रहा है?
● संवेदनशील मतदान अवधि के सीसीटीवी रिकॉर्ड क्यों नष्ट या रोके गए?
यह केवल तकनीकी चूक नहीं है बल्कि यह संवैधानिक चेतावनियां हैं। “एक व्यक्ति, एक वोट” का सिद्धांत केवल एक प्रशासनिक दिशा-निर्देश नहीं है बल्कि यह गणराज्य की बुनियाद है। यदि लोकतंत्र की रक्षा करने वाले संस्थान इसके कमजोर होने में सहायक बन जाएं, तो इसके गंभीर परिणाम होंगे-न केवल एक चुनावी चक्र के लिए, बल्कि भारत में चुनावी वैधता के भविष्य के लिए भी।
राहुल गांधी द्वारा दिए गए प्रेजेंटेशन यहां देखे जा सकते हैं।
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