राहुल गांधी ने फर्जी लॉगिन, ऑटोमेटेड डिलिशन और पहचान छिपाकर केंद्रीकृत मतदाता धोखाधड़ी और सीईसी पर दोषियों को बचाने का आरोप लगाया। उन्होंने ईसीआई से 7 दिनों के भीतर कर्नाटक सीआईडी को डेटा जारी करने या संस्थागत जवाबदेही का सामना करने की मांग की

नई दिल्ली स्थित इंदिरा भवन में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 18 सितंबर को एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस की। 44 मिनट 25 सेकंड की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने "वोट चोरी फैक्ट्री" को मतदाता सूची में हेराफेरी करने का एक परिष्कृत और केंद्रीकृत तरीका बताया।
उन्होंने कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र में कथित वोट चोरी की घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र में 6,018 वोट डिलीट किए गए पाए गए। गांधी ने कहा कि वह व्यक्ति संयोगवश पकड़ा गया। एक बूथ लेवल अफसर ने देखा कि उसके अपने चाचा का वोट डिलीट कर दिया गया था।
उन्होंने आगे बताया कि जब बीएलओ ने जांच की कि मतदाता को किसने डिलीट किया, तो पता चला कि वह पड़ोसी था। हालांकि, वह पड़ोसी नहीं था। जिस व्यक्ति का नाम डिलीट किया गया और जिस व्यक्ति के नाम का इस्तेमाल वोटर डिलीट करने के लिए किया गया, दोनों को इस घटना की जानकारी नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि असली अपराधी एक अलग ताकत थी जिसने "पूरी प्रक्रिया को हाईजैक" किया और "वोटरों को डिलीट करने वाले सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया।" यह कोई मानवीय अपराध नहीं था, बल्कि एक व्यवस्था का अपराध था, "चुनावों को चुराने का एक केंद्रीकृत आपराधिक अभियान"।

मोडस ओपेरेंडी: फर्जी लॉगिन और हाईजैक आइडेंटिटीज
अपराधियों की मोडस ओपेरेंडी बेहद शातिर तरीके वाली थी। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सबूत पेश किए कि गोदाबाई नाम की एक 63 वर्षीय महिला के नाम से एक फर्जी लॉगिन बनाया गया था और उसका इस्तेमाल कर्नाटक के अलंद में 12 मतदाताओं के नाम हटाने के लिए किया गया था। जब गांधी की टीम ने जांच की तो उन्होंने दावा किया कि उन्होंने किसी भी मतदाता को हटाने के लिए कोई आवेदन नहीं किया था।

कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र में कथित मतदाता धोखाधड़ी के सबूत
आलंद निर्वाचन क्षेत्र पर अपने आरोपों के समर्थन में, राहुल गांधी ने कथित धोखाधड़ी कैसे हुई, यह दिखाने के लिए पांच प्रमुख साक्ष्य प्रस्तुत किए:
1. फर्जी लॉगिन और इंप्रेशन (गलत पहचान): गोदाबाई नाम की एक 63 वर्षीय महिला के नाम पर कथित तौर पर फर्जी लॉगिन बनाए गए ताकि 12 मतदाताओं के नाम हटाए जा सकें। राहुल गांधी की टीम ने पाया कि गोदाबाई ने ऐसा कोई आवेदन ही नहीं किया था। 12 पड़ोसियों के नाम हटाने के लिए अलग-अलग राज्यों के मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल करके धोखाधड़ी का और सबूत मिला।
2. बड़े पैमाने पर नाम हटाने के लिए पहचान का दुरुपयोग: 67 वर्षीय सेवानिवृत्त कॉलेज प्रिंसिपल सूर्यकांत गोविंद की पहचान कथित तौर पर हाइजैक कर ली गई। उनके पहचान पत्रों का इस्तेमाल मतदाताओं के नाम हटाने के लिए नौ आवेदन दाखिल करने में किया गया, जबकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। इन आवेदनों का इस्तेमाल सिर्फ 14 मिनट में 12 मतदाताओं के नाम हटाने के लिए किया गया।
3. मानव क्षमता से परे तेज आवेदन की प्रक्रिया: प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो आवेदनों को केवल 36 सेकंड के भीतर दाखिल और प्रस्तुत किए जाने के प्रमाण दिखाए गए, जिसे "मानवीय रूप से असंभव" बताया गया। यह व्यक्तिगत मानवीय कार्रवाई के बजाय एक स्वचालित कार्यक्रम के इस्तेमाल की ओर इशारा करता है।
4. ऑटोमेटेड प्रोग्राम टार्गेट्स: यह आरोप लगाया गया कि अपराधियों ने एक ऑटोमेटेड प्रोग्राम का इस्तेमाल किया जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि किसी भी मतदान केंद्र का पहला मतदाता हमेशा आवेदक ही होगा। स्थानीय सूची में पहले या दूसरे मतदाता के क्रेडेंशियल्स का इस्तेमाल करके दूसरों के लिए नाम हटाने का अनुरोध करने के इस पैटर्न को एक परिष्कृत, स्वचालित ऑपरेशन के स्पष्ट संकेत के रूप में प्रस्तुत किया गया।
5. मजबूत क्षेत्रों में जानबूझकर हटाने की प्रक्रिया: ये डिलिशन रैंडम नहीं थे। प्रस्तुत साक्ष्यों से पता चला कि यह एक "सुनियोजित अभियान" था जिसमें "कांग्रेस के मजबूत बूथों से निशाना बनाकर हटाया गया" था। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सबसे ज्यादा हटाने वाले शीर्ष 10 बूथ कांग्रेस के गढ़ थे, जहां पार्टी ने 2018 के चुनावों में 10 में से 8 बूथ जीते थे।
इस सबूत के आधार पर, राहुल गांधी ने जोर देकर कहा, "इस बात के निर्विवाद प्रमाण हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार वोट चोरी को संरक्षण दे रहे हैं।"
राहुल गांधी द्वारा प्रस्तुत द आलंद फाइल्स पर ल पीपीटी यहां पढ़ी जा सकती है।
सीआईडी की रुकी हुई जांच और पत्र का अब तक जवाब नहीं
राहुल गांधी ने खुलासा किया कि कथित धोखाधड़ी की कर्नाटक आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) द्वारा की जा रही जांच रुकी हुई है। प्रस्तुत समय-सीमा से पता चलता है कि सीआईडी द्वारा भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को लगातार भेजे गए अनुरोधों का एक पैटर्न है, जिनका कथित तौर पर कोई जवाब नहीं दिया गया है।
● फरवरी 2023: धोखाधड़ी वाले आवेदनों का पता चलने के बाद एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
● मार्च 2023: कर्नाटक सीआईडी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अपनी जांच को आगे बढ़ाने के लिए आवेदनों से संबंधित सभी विवरण मांगे।
● अगस्त 2023: चुनाव आयोग ने पोर्टल की केवल आंशिक जानकारी दी, जिसमें 200 से ज्यादा उपयोगकर्ताओं से जुड़े डायनेमिक आईपी एड्रेस शामिल थे, जिससे सीआईडी के लिए यह एक असंभव काम रह गया।
● जनवरी 2024 से अब तक: कर्नाटक चुनाव आयोग बार-बार चुनाव आयोग से पूरी जानकारी मांग रहा है, जिसमें दोषियों की पहचान के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन आईपी और डेस्टिनेशन पोर्ट डिटेल्स शामिल हैं। राहुल गांधी ने कहा कि कर्नाटक सीआईडी ने चुनाव आयोग को कुल 18 पत्र भेजे हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने कोई जवाब नहीं दिया है, जिससे जांच प्रभावी रूप से बाधित हो गई है।
वोट चोरी फैक्टरी: बहु-राज्यीय घोटाला
आलंद मामले के अलावा, राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के राजुरा विधानसभा में हुए एक ऐसे ही घोटाले का जिक्र करते हुए इसे "राजुरा विधानसभा का वही घोटाला" बताया। उन्होंने कहा कि जहां आलंद मामले में "हटाने" पर जोर दिया गया था, वहीं राजुरा घोटाले में "जोड़ने" की बात थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजुरा में "फ्रजी नाम, फर्जी पते" का इस्तेमाल करके "6850 फर्जी ऑनलाइन जोड़" का जिक्र किया गया। इसे इस बात के सबूत के तौर पर पेश किया गया कि "एक ही वोट चोरी फैक्टरी" अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हथकंडों से काम कर रही थी।

चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के आरोप
मीडिया को संबोधित करते हुए, राहुल गांधी ने आलंद से इस घटना की जानकारी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि "जो मतदाता को हटा रहा है और जिसका नाम काटा जा रहा है, दोनों को ही इसकी जानकारी नहीं है।"
उन्होंने जोर देकर कहा कि बाहरी राज्यों के मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल और चुनाव आयोग की ओर से कोई प्रतिक्रिया न मिलना एक समन्वित प्रयास साबित होता है।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि "मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार वोटचोरों (चोरी करने वालों) को संरक्षण दे रहे हैं" और "भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त उन लोगों को संरक्षण दे रहे हैं जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को नष्ट किया है।"
उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस को एक आखिरी तर्क के साथ समाप्त किया, जिसमें उन्होंने कहा कि "चुनाव आयोग के भीतर के लोग (अधिकारी) अब अंदरूनी जानकारी लेकर सामने आ रहे हैं।" यह केवल जानकारी की मांग नहीं थी; यह उस संस्था की अखंडता को चुनौती थी जो भारत के लोकतंत्र की नींव है।
सीआईडी जांच और जांच में चुनौतियां
मामला कर्नाटक के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को सौंप दिया गया, जिसने जल्द ही एक सुनियोजित ऑपरेशन का पर्दाफाश कर दिया। हजारों जाली फॉर्म-7 चुनाव आयोग के आधिकारिक प्लेटफॉर्म: राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल (एनवीएसपी), मतदाता हेल्पलाइन ऐप (वीएचए) और गरुड़ ऐप के जरिए ऑनलाइन जमा किए गए थे।
चुनाव आयोग ने शुरुआत में सितंबर 2023 में सीआईडी के साथ एक डेटा डंप साझा किया था। इसमें ऐप्स पर लॉगिन आईडी बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबर और सबमिशन से जुड़े इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) लॉग शामिल थे। लेकिन इस डेटा ने रहस्य को और गहरा कर दिया। जांचकर्ताओं ने नौ मोबाइल नंबरों का पता लगाया। ये महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के लोगों के थे, जिनमें से कई डिजिटल रूप से निरक्षर थे और उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी भी चुनाव आयोग के किसी ऐप पर अकाउंट नहीं बनाया।
आईपी लॉग्स ने और भी बड़ी चुनौती पेश की। अपराधियों ने डायनेमिक आईपी एड्रेस का इस्तेमाल किया था, जो अस्थायी होते हैं और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं द्वारा कई उपयोगकर्ताओं को दिए जाते हैं। दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा से पता चला कि आईपीवी4 एड्रेस थे, जिनमें से प्रत्येक एड्रेस 200 से ज्यादा उपयोगकर्ताओं से जुड़ा था। इससे सीआईडी के सामने 8 लाख से ज्यादा संभावित उपकरणों की जांच करना एक असंभव काम बन गया।
महत्वपूर्ण डेटा छिपाने के कारण जांच रुकी हुई
इस डिजिटल धुंध को दूर करने के लिए, सीआईडी ने दो विशिष्ट डेटा बिंदुओं की आवश्यकता पहचानी: डेस्टिनेशन आईपी और डेस्टिनेशन पोर्ट। डायनामिक सोर्स IP के विपरीत, ये विवरण उस सर्वर का एक विशिष्ट डिजिटल पता प्रदान करते हैं जिसने आवेदन प्राप्त किया था, साथ ही उस संचार (communication) के सटीक एंडपॉइंट (endpoint) की जानकारी भी देते हैं। यह जानकारी जांचकर्ताओं को अपनी खोज को व्यापक रूप से सीमित करने और धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किए गए वास्तविक उपकरणों की पहचान करने में सक्षम बनाएगी। यहीं पर जांच रुक गई।
सीआईडी के बार-बार अनुरोधों को चुनाव आयोग ने नजरअंदाज किया
कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को सीआईडी द्वारा लिखे गए छह आधिकारिक पत्रों के एक संग्रह ने जांचकर्ताओं की बढ़ती हताशा को उजागर कर दिया। राहुल गांधी ने कहा कि "कर्नाटक सीआईडी ने चुनाव आयोग को 18 पत्र भेजे" और "चुनाव आयोग ने सीआईडी के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया।"
इन दस्तावेजों से कई जरूरी और बिना जवाब वाले अनुरोधों का एक विस्तृत विवरण सामने आया। 1 फरवरी, 2025 के एक पत्र में, सीआईडी जांच अधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा, "जांच के दौरान, आईपी लॉग उपलब्ध कराए गए। जांच करने पर डेस्टिनेशन आईपी और डेस्टिनेशन पोर्ट गायब पाए गए। इसलिए, अनुरोध है कि संबंधित अधिकारियों को ये उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जाए।" यह कोई एक बार दिया गया अनुरोध नहीं था। पत्र में 15 जनवरी, 2025 के एक पूर्व पत्र का संदर्भ दिया गया था।
सीआईडी का दिनांक 01.02.205 का पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
15 फरवरी और 25 फरवरी को भी पत्र भेजे गए, जिनमें से प्रत्येक में गुमशुदा डेटा के लिए एक ही दलील दोहराई गई।
सीआईडी द्वारा कर्नाटक के सीईओ को 15.02.2025 को लिखा गया पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
सीआईडी द्वारा कर्नाटक के सीईओ को 25.02.2025 को लिखा गया पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
इन पत्रों में चुनाव आयोग के अपने एप्लीकेशन की सुरक्षा को लेकर भी गहरी चिंताएं उजागर हुई हैं। सीआईडी ने अपने प्लेटफॉर्म पर ओटीपी/मल्टीफैक्टर प्रमाणीकरण के अस्तित्व और कार्यान्वयन पर तीखे सवाल उठाए हैं जिन सवालों का कथित तौर पर कोई जवाब नहीं दिया गया है।
गोपनीय रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी का कार्यालय इन जरूरी अनुरोधों को नई दिल्ली स्थित चुनाव आयोग मुख्यालय को तत्परता से भेज रहा है। इस मामले में 4 फरवरी, 2025 को पत्र भेजा गया था।
कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी का दिनांक 04.02.2025 का पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
फिर से, 14 मार्च, 2025 को, चुनाव आयोग के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी विभाग से सीआईडी द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराने का स्पष्ट अनुरोध किया गया। फिर भी, आंकड़े अभी भी अस्पष्ट हैं, और जांच अभी भी ठप है।
कर्नाटक के सीईओ का चुनाव आयोग को दिनांक 14.03.2025 का पत्र
CEO, Karnataka’s letter to ECI dated 14.03.2025
पृष्ठभूमि: साजिश का खुलासा
कथित साजिश पहली बार फरवरी 2023 के राजनीतिक रूप से हलचल भरे दिनों में सामने आई। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बी.आर. पाटिल को एक चौंकाने वाली सूचना मिली। एक स्थानीय बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) को पता चला कि एक मतदाता का नाम हटाने के लिए एक चौंकाने वाला ऑनलाइन आवेदन, फॉर्म-7, उसके अपने भाई का नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए भरा गया था।
वह पाटिल के एक जाने-माने समर्थक थे और उन्होंने ऐसा कोई आवेदन नहीं किया था। पाटिल, जो 2018 का चुनाव सिर्फ 697 वोटों से हार गए थे, ने कहा, "आवेदन उसी गांव के एक अन्य मतदाता के नाम पर किया गया था, जिसे इसकी जानकारी नहीं थी। इसी से हमें पता चला।"
एक फर्जी फॉर्म से शुरू हुआ मामला जल्द ही कई मामलों में बदल गया। आलंद की निर्वाचन अधिकारी ममता देवी के आदेश पर जमीनी स्तर पर सत्यापन में 6,018 फॉर्म 7 आवेदनों की जाच की गई। चौंकाने वाले नतीजे यह थे कि केवल 24 ही असली थे।
बाकी 5,994 आवेदन फर्जी थे, जो वैध मतदाताओं को सूची से हटाने का एक व्यवस्थित प्रयास था। इस डिजिटल साजिश के पीछे के मास्टरमाइंड का पता लगाने के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई और जांच शुरू की गई। सबूतों से पता चला कि "चुनाव आयोग के ऑनलाइन फॉर्म भरने, कर्नाटक के बाहर के मोबाइल नंबरों और कांग्रेस के वोटों को निशाना बनाने" के लिए एक जटिल ऑपरेशन किया जा रहा था।
गौरतलब है कि बाराबाई और अली, दोनों के नाम हटाने के लिए जाली आवेदन 67 वर्षीय सेवानिवृत्त कॉलेज प्रिंसिपल सूर्यकांत गोविंद के नाम से दायर किए गए थे। गोविंद यह जानकर हैरान रह गए कि उनकी पहचान चुरा ली गई है। उन्होंने बताया, "मतदाताओं को हटाने के लिए मेरे नाम से नौ आवेदन किए गए थे... मुझे नहीं पता कि बदमाशों ने यह कैसे किया।" 7 सितंबर, 2025 को द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, "हालांकि मेरे अन्य प्रमाण, जिनमें ईपीआईसी नंबर और फोटो शामिल हैं, सही हैं, लेकिन हर आवेदन में फोन नंबर अलग-अलग हैं। उनमें से कोई भी मेरा नहीं है।"
यह पैटर्न पूरे निर्वाचन क्षेत्र में दोहराया गया। स्थानीय सूची में पहले या दूसरे मतदाता के पहचान-पत्रों का अक्सर दूसरों के नाम हटाने के अनुरोध दायर करने के लिए दुरुपयोग किया जाता था। पूरे परिवार को निशाना बनाया गया, जैसा कि सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी वीरन्ना होनाशेट्टी के मामले में हुआ, जिन्होंने अपने घर में आठ वोटों को हटाने के आवेदन पाए, जिनमें उनकी पत्नी रेवम्मा का भी नाम शामिल था। पाटिल का आरोप है कि इस निशाने पर ज्यादातर उनके समर्थक थे।
इन आरोपों और रुकी हुई जांच के मद्देनजर, राहुल गांधी ने स्पष्ट मांग की कि "ज्ञानेश कुमार को वोट चोरों को संरक्षण देना बंद करना चाहिए।" उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग एक हफ्ते के भीतर आलंद, राजुरा और महादेवपुरा मामलों से जुड़े सभी सबूत कर्नाटक सीआईडी को सौंप दे।
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उन्होंने कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र में कथित वोट चोरी की घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र में 6,018 वोट डिलीट किए गए पाए गए। गांधी ने कहा कि वह व्यक्ति संयोगवश पकड़ा गया। एक बूथ लेवल अफसर ने देखा कि उसके अपने चाचा का वोट डिलीट कर दिया गया था।
उन्होंने आगे बताया कि जब बीएलओ ने जांच की कि मतदाता को किसने डिलीट किया, तो पता चला कि वह पड़ोसी था। हालांकि, वह पड़ोसी नहीं था। जिस व्यक्ति का नाम डिलीट किया गया और जिस व्यक्ति के नाम का इस्तेमाल वोटर डिलीट करने के लिए किया गया, दोनों को इस घटना की जानकारी नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि असली अपराधी एक अलग ताकत थी जिसने "पूरी प्रक्रिया को हाईजैक" किया और "वोटरों को डिलीट करने वाले सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया।" यह कोई मानवीय अपराध नहीं था, बल्कि एक व्यवस्था का अपराध था, "चुनावों को चुराने का एक केंद्रीकृत आपराधिक अभियान"।

मोडस ओपेरेंडी: फर्जी लॉगिन और हाईजैक आइडेंटिटीज
अपराधियों की मोडस ओपेरेंडी बेहद शातिर तरीके वाली थी। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सबूत पेश किए कि गोदाबाई नाम की एक 63 वर्षीय महिला के नाम से एक फर्जी लॉगिन बनाया गया था और उसका इस्तेमाल कर्नाटक के अलंद में 12 मतदाताओं के नाम हटाने के लिए किया गया था। जब गांधी की टीम ने जांच की तो उन्होंने दावा किया कि उन्होंने किसी भी मतदाता को हटाने के लिए कोई आवेदन नहीं किया था।

कर्नाटक के आलंद निर्वाचन क्षेत्र में कथित मतदाता धोखाधड़ी के सबूत
आलंद निर्वाचन क्षेत्र पर अपने आरोपों के समर्थन में, राहुल गांधी ने कथित धोखाधड़ी कैसे हुई, यह दिखाने के लिए पांच प्रमुख साक्ष्य प्रस्तुत किए:
1. फर्जी लॉगिन और इंप्रेशन (गलत पहचान): गोदाबाई नाम की एक 63 वर्षीय महिला के नाम पर कथित तौर पर फर्जी लॉगिन बनाए गए ताकि 12 मतदाताओं के नाम हटाए जा सकें। राहुल गांधी की टीम ने पाया कि गोदाबाई ने ऐसा कोई आवेदन ही नहीं किया था। 12 पड़ोसियों के नाम हटाने के लिए अलग-अलग राज्यों के मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल करके धोखाधड़ी का और सबूत मिला।
2. बड़े पैमाने पर नाम हटाने के लिए पहचान का दुरुपयोग: 67 वर्षीय सेवानिवृत्त कॉलेज प्रिंसिपल सूर्यकांत गोविंद की पहचान कथित तौर पर हाइजैक कर ली गई। उनके पहचान पत्रों का इस्तेमाल मतदाताओं के नाम हटाने के लिए नौ आवेदन दाखिल करने में किया गया, जबकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। इन आवेदनों का इस्तेमाल सिर्फ 14 मिनट में 12 मतदाताओं के नाम हटाने के लिए किया गया।
3. मानव क्षमता से परे तेज आवेदन की प्रक्रिया: प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो आवेदनों को केवल 36 सेकंड के भीतर दाखिल और प्रस्तुत किए जाने के प्रमाण दिखाए गए, जिसे "मानवीय रूप से असंभव" बताया गया। यह व्यक्तिगत मानवीय कार्रवाई के बजाय एक स्वचालित कार्यक्रम के इस्तेमाल की ओर इशारा करता है।
4. ऑटोमेटेड प्रोग्राम टार्गेट्स: यह आरोप लगाया गया कि अपराधियों ने एक ऑटोमेटेड प्रोग्राम का इस्तेमाल किया जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि किसी भी मतदान केंद्र का पहला मतदाता हमेशा आवेदक ही होगा। स्थानीय सूची में पहले या दूसरे मतदाता के क्रेडेंशियल्स का इस्तेमाल करके दूसरों के लिए नाम हटाने का अनुरोध करने के इस पैटर्न को एक परिष्कृत, स्वचालित ऑपरेशन के स्पष्ट संकेत के रूप में प्रस्तुत किया गया।
5. मजबूत क्षेत्रों में जानबूझकर हटाने की प्रक्रिया: ये डिलिशन रैंडम नहीं थे। प्रस्तुत साक्ष्यों से पता चला कि यह एक "सुनियोजित अभियान" था जिसमें "कांग्रेस के मजबूत बूथों से निशाना बनाकर हटाया गया" था। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सबसे ज्यादा हटाने वाले शीर्ष 10 बूथ कांग्रेस के गढ़ थे, जहां पार्टी ने 2018 के चुनावों में 10 में से 8 बूथ जीते थे।
इस सबूत के आधार पर, राहुल गांधी ने जोर देकर कहा, "इस बात के निर्विवाद प्रमाण हैं कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार वोट चोरी को संरक्षण दे रहे हैं।"
राहुल गांधी द्वारा प्रस्तुत द आलंद फाइल्स पर ल पीपीटी यहां पढ़ी जा सकती है।
सीआईडी की रुकी हुई जांच और पत्र का अब तक जवाब नहीं
राहुल गांधी ने खुलासा किया कि कथित धोखाधड़ी की कर्नाटक आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) द्वारा की जा रही जांच रुकी हुई है। प्रस्तुत समय-सीमा से पता चलता है कि सीआईडी द्वारा भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को लगातार भेजे गए अनुरोधों का एक पैटर्न है, जिनका कथित तौर पर कोई जवाब नहीं दिया गया है।
● फरवरी 2023: धोखाधड़ी वाले आवेदनों का पता चलने के बाद एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
● मार्च 2023: कर्नाटक सीआईडी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अपनी जांच को आगे बढ़ाने के लिए आवेदनों से संबंधित सभी विवरण मांगे।
● अगस्त 2023: चुनाव आयोग ने पोर्टल की केवल आंशिक जानकारी दी, जिसमें 200 से ज्यादा उपयोगकर्ताओं से जुड़े डायनेमिक आईपी एड्रेस शामिल थे, जिससे सीआईडी के लिए यह एक असंभव काम रह गया।
● जनवरी 2024 से अब तक: कर्नाटक चुनाव आयोग बार-बार चुनाव आयोग से पूरी जानकारी मांग रहा है, जिसमें दोषियों की पहचान के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन आईपी और डेस्टिनेशन पोर्ट डिटेल्स शामिल हैं। राहुल गांधी ने कहा कि कर्नाटक सीआईडी ने चुनाव आयोग को कुल 18 पत्र भेजे हैं, लेकिन चुनाव आयोग ने कोई जवाब नहीं दिया है, जिससे जांच प्रभावी रूप से बाधित हो गई है।
वोट चोरी फैक्टरी: बहु-राज्यीय घोटाला
आलंद मामले के अलावा, राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के राजुरा विधानसभा में हुए एक ऐसे ही घोटाले का जिक्र करते हुए इसे "राजुरा विधानसभा का वही घोटाला" बताया। उन्होंने कहा कि जहां आलंद मामले में "हटाने" पर जोर दिया गया था, वहीं राजुरा घोटाले में "जोड़ने" की बात थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजुरा में "फ्रजी नाम, फर्जी पते" का इस्तेमाल करके "6850 फर्जी ऑनलाइन जोड़" का जिक्र किया गया। इसे इस बात के सबूत के तौर पर पेश किया गया कि "एक ही वोट चोरी फैक्टरी" अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हथकंडों से काम कर रही थी।

चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के आरोप
मीडिया को संबोधित करते हुए, राहुल गांधी ने आलंद से इस घटना की जानकारी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि "जो मतदाता को हटा रहा है और जिसका नाम काटा जा रहा है, दोनों को ही इसकी जानकारी नहीं है।"
उन्होंने जोर देकर कहा कि बाहरी राज्यों के मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल और चुनाव आयोग की ओर से कोई प्रतिक्रिया न मिलना एक समन्वित प्रयास साबित होता है।
उन्होंने आगे आरोप लगाया कि "मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार वोटचोरों (चोरी करने वालों) को संरक्षण दे रहे हैं" और "भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त उन लोगों को संरक्षण दे रहे हैं जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को नष्ट किया है।"
उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस को एक आखिरी तर्क के साथ समाप्त किया, जिसमें उन्होंने कहा कि "चुनाव आयोग के भीतर के लोग (अधिकारी) अब अंदरूनी जानकारी लेकर सामने आ रहे हैं।" यह केवल जानकारी की मांग नहीं थी; यह उस संस्था की अखंडता को चुनौती थी जो भारत के लोकतंत्र की नींव है।
सीआईडी जांच और जांच में चुनौतियां
मामला कर्नाटक के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) को सौंप दिया गया, जिसने जल्द ही एक सुनियोजित ऑपरेशन का पर्दाफाश कर दिया। हजारों जाली फॉर्म-7 चुनाव आयोग के आधिकारिक प्लेटफॉर्म: राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल (एनवीएसपी), मतदाता हेल्पलाइन ऐप (वीएचए) और गरुड़ ऐप के जरिए ऑनलाइन जमा किए गए थे।
चुनाव आयोग ने शुरुआत में सितंबर 2023 में सीआईडी के साथ एक डेटा डंप साझा किया था। इसमें ऐप्स पर लॉगिन आईडी बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबर और सबमिशन से जुड़े इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) लॉग शामिल थे। लेकिन इस डेटा ने रहस्य को और गहरा कर दिया। जांचकर्ताओं ने नौ मोबाइल नंबरों का पता लगाया। ये महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के लोगों के थे, जिनमें से कई डिजिटल रूप से निरक्षर थे और उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी भी चुनाव आयोग के किसी ऐप पर अकाउंट नहीं बनाया।
आईपी लॉग्स ने और भी बड़ी चुनौती पेश की। अपराधियों ने डायनेमिक आईपी एड्रेस का इस्तेमाल किया था, जो अस्थायी होते हैं और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं द्वारा कई उपयोगकर्ताओं को दिए जाते हैं। दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा से पता चला कि आईपीवी4 एड्रेस थे, जिनमें से प्रत्येक एड्रेस 200 से ज्यादा उपयोगकर्ताओं से जुड़ा था। इससे सीआईडी के सामने 8 लाख से ज्यादा संभावित उपकरणों की जांच करना एक असंभव काम बन गया।
महत्वपूर्ण डेटा छिपाने के कारण जांच रुकी हुई
इस डिजिटल धुंध को दूर करने के लिए, सीआईडी ने दो विशिष्ट डेटा बिंदुओं की आवश्यकता पहचानी: डेस्टिनेशन आईपी और डेस्टिनेशन पोर्ट। डायनामिक सोर्स IP के विपरीत, ये विवरण उस सर्वर का एक विशिष्ट डिजिटल पता प्रदान करते हैं जिसने आवेदन प्राप्त किया था, साथ ही उस संचार (communication) के सटीक एंडपॉइंट (endpoint) की जानकारी भी देते हैं। यह जानकारी जांचकर्ताओं को अपनी खोज को व्यापक रूप से सीमित करने और धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किए गए वास्तविक उपकरणों की पहचान करने में सक्षम बनाएगी। यहीं पर जांच रुक गई।
सीआईडी के बार-बार अनुरोधों को चुनाव आयोग ने नजरअंदाज किया
कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को सीआईडी द्वारा लिखे गए छह आधिकारिक पत्रों के एक संग्रह ने जांचकर्ताओं की बढ़ती हताशा को उजागर कर दिया। राहुल गांधी ने कहा कि "कर्नाटक सीआईडी ने चुनाव आयोग को 18 पत्र भेजे" और "चुनाव आयोग ने सीआईडी के पत्र का कोई जवाब नहीं दिया।"
इन दस्तावेजों से कई जरूरी और बिना जवाब वाले अनुरोधों का एक विस्तृत विवरण सामने आया। 1 फरवरी, 2025 के एक पत्र में, सीआईडी जांच अधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा, "जांच के दौरान, आईपी लॉग उपलब्ध कराए गए। जांच करने पर डेस्टिनेशन आईपी और डेस्टिनेशन पोर्ट गायब पाए गए। इसलिए, अनुरोध है कि संबंधित अधिकारियों को ये उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जाए।" यह कोई एक बार दिया गया अनुरोध नहीं था। पत्र में 15 जनवरी, 2025 के एक पूर्व पत्र का संदर्भ दिया गया था।
सीआईडी का दिनांक 01.02.205 का पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
15 फरवरी और 25 फरवरी को भी पत्र भेजे गए, जिनमें से प्रत्येक में गुमशुदा डेटा के लिए एक ही दलील दोहराई गई।
सीआईडी द्वारा कर्नाटक के सीईओ को 15.02.2025 को लिखा गया पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
सीआईडी द्वारा कर्नाटक के सीईओ को 25.02.2025 को लिखा गया पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
इन पत्रों में चुनाव आयोग के अपने एप्लीकेशन की सुरक्षा को लेकर भी गहरी चिंताएं उजागर हुई हैं। सीआईडी ने अपने प्लेटफॉर्म पर ओटीपी/मल्टीफैक्टर प्रमाणीकरण के अस्तित्व और कार्यान्वयन पर तीखे सवाल उठाए हैं जिन सवालों का कथित तौर पर कोई जवाब नहीं दिया गया है।
गोपनीय रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी का कार्यालय इन जरूरी अनुरोधों को नई दिल्ली स्थित चुनाव आयोग मुख्यालय को तत्परता से भेज रहा है। इस मामले में 4 फरवरी, 2025 को पत्र भेजा गया था।
कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी का दिनांक 04.02.2025 का पत्र यहां पढ़ा जा सकता है।
फिर से, 14 मार्च, 2025 को, चुनाव आयोग के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी विभाग से सीआईडी द्वारा मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराने का स्पष्ट अनुरोध किया गया। फिर भी, आंकड़े अभी भी अस्पष्ट हैं, और जांच अभी भी ठप है।
कर्नाटक के सीईओ का चुनाव आयोग को दिनांक 14.03.2025 का पत्र
CEO, Karnataka’s letter to ECI dated 14.03.2025
पृष्ठभूमि: साजिश का खुलासा
कथित साजिश पहली बार फरवरी 2023 के राजनीतिक रूप से हलचल भरे दिनों में सामने आई। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बी.आर. पाटिल को एक चौंकाने वाली सूचना मिली। एक स्थानीय बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) को पता चला कि एक मतदाता का नाम हटाने के लिए एक चौंकाने वाला ऑनलाइन आवेदन, फॉर्म-7, उसके अपने भाई का नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए भरा गया था।
वह पाटिल के एक जाने-माने समर्थक थे और उन्होंने ऐसा कोई आवेदन नहीं किया था। पाटिल, जो 2018 का चुनाव सिर्फ 697 वोटों से हार गए थे, ने कहा, "आवेदन उसी गांव के एक अन्य मतदाता के नाम पर किया गया था, जिसे इसकी जानकारी नहीं थी। इसी से हमें पता चला।"
एक फर्जी फॉर्म से शुरू हुआ मामला जल्द ही कई मामलों में बदल गया। आलंद की निर्वाचन अधिकारी ममता देवी के आदेश पर जमीनी स्तर पर सत्यापन में 6,018 फॉर्म 7 आवेदनों की जाच की गई। चौंकाने वाले नतीजे यह थे कि केवल 24 ही असली थे।
बाकी 5,994 आवेदन फर्जी थे, जो वैध मतदाताओं को सूची से हटाने का एक व्यवस्थित प्रयास था। इस डिजिटल साजिश के पीछे के मास्टरमाइंड का पता लगाने के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई और जांच शुरू की गई। सबूतों से पता चला कि "चुनाव आयोग के ऑनलाइन फॉर्म भरने, कर्नाटक के बाहर के मोबाइल नंबरों और कांग्रेस के वोटों को निशाना बनाने" के लिए एक जटिल ऑपरेशन किया जा रहा था।
गौरतलब है कि बाराबाई और अली, दोनों के नाम हटाने के लिए जाली आवेदन 67 वर्षीय सेवानिवृत्त कॉलेज प्रिंसिपल सूर्यकांत गोविंद के नाम से दायर किए गए थे। गोविंद यह जानकर हैरान रह गए कि उनकी पहचान चुरा ली गई है। उन्होंने बताया, "मतदाताओं को हटाने के लिए मेरे नाम से नौ आवेदन किए गए थे... मुझे नहीं पता कि बदमाशों ने यह कैसे किया।" 7 सितंबर, 2025 को द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, "हालांकि मेरे अन्य प्रमाण, जिनमें ईपीआईसी नंबर और फोटो शामिल हैं, सही हैं, लेकिन हर आवेदन में फोन नंबर अलग-अलग हैं। उनमें से कोई भी मेरा नहीं है।"
यह पैटर्न पूरे निर्वाचन क्षेत्र में दोहराया गया। स्थानीय सूची में पहले या दूसरे मतदाता के पहचान-पत्रों का अक्सर दूसरों के नाम हटाने के अनुरोध दायर करने के लिए दुरुपयोग किया जाता था। पूरे परिवार को निशाना बनाया गया, जैसा कि सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी वीरन्ना होनाशेट्टी के मामले में हुआ, जिन्होंने अपने घर में आठ वोटों को हटाने के आवेदन पाए, जिनमें उनकी पत्नी रेवम्मा का भी नाम शामिल था। पाटिल का आरोप है कि इस निशाने पर ज्यादातर उनके समर्थक थे।
इन आरोपों और रुकी हुई जांच के मद्देनजर, राहुल गांधी ने स्पष्ट मांग की कि "ज्ञानेश कुमार को वोट चोरों को संरक्षण देना बंद करना चाहिए।" उन्होंने मांग की कि चुनाव आयोग एक हफ्ते के भीतर आलंद, राजुरा और महादेवपुरा मामलों से जुड़े सभी सबूत कर्नाटक सीआईडी को सौंप दे।
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