जनजाति-विरोधी बयान को लेकर एएटीएस ने भाजपा असम अध्यक्ष सैकिया के बहिष्कार की अपील की

Written by sabrang india | Published on: August 13, 2025
जनजातीय अधिकारों से जुड़े विवादित बयान के विरोध में ऑल असम ट्राइबल संघ ने भाजपा के असम अध्यक्ष दिलीप सैकिया का बहिष्कार जारी रखने की घोषणा की।


फोटो साभार : इंडियन एक्सप्रेस

ऑल असम ट्राइबल संघ (AATS) ने राज्य के सभी जनजातीय समुदायों से अपील की है कि वे भाजपा की असम इकाई के अध्यक्ष दिलीप सैकिया का बहिष्कार करें। संगठन का कहना है कि सैकिया ने ऐसे बयान दिए हैं जो संरक्षित क्षेत्रों में जनजातीय लोगों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाते हैं।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, संगठन ने सोमवार को जारी एक बयान में कहा कि यह निर्णय 2 अगस्त को दिलीप सैकिया द्वारा भूमि स्वामित्व को लेकर दिए गए कथित बयान के बाद लिया गया है। यह बयान छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले स्वायत्त क्षेत्रों तथा राज्य के जनजातीय बेल्ट और ब्लॉक्स से जुड़ा था।

AATS के अनुसार, दिलीप सैकिया ने कथित रूप से कहा था कि यदि आवश्यकता पड़ी, तो कानून में संशोधन कर ऐसे प्रावधान किए जाएंगे जिससे असम के अन्य क्षेत्रों - जिनमें गुवाहाटी और डिब्रूगढ़ शामिल हैं - के लोग संरक्षित क्षेत्रों में भूमि खरीद सकें। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति में छठी अनुसूची और असम भूमि एवं राजस्व विनियमन अधिनियम के अध्याय 10 के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

AATS ने सैकिया की टिप्पणियों को 'जनजाति विरोधी' और 'पक्षपातपूर्ण' करार देते हुए चेतावनी दी है कि इस प्रकार के प्रस्ताव असम के जनजातीय समुदायों के भूमि और सांस्कृतिक अधिकारों को प्राप्त संवैधानिक संरक्षण के लिए प्रत्यक्ष रूप से खतरा पैदा करते हैं। यह संवैधानिक सुरक्षा करबी आंगलोंग, दीमा हसाओ, बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल क्षेत्र सहित राज्य के अन्य अधिसूचित जनजातीय क्षेत्रों में लागू होती है।

संगठन ने कहा कि सैकिया के बयानों से राज्य के जनजातीय समुदाय की भावनाएं 'काफी आहत' हुई हैं। AATS ने उनसे मांग की है कि वे अपना बयान तत्काल वापस लें और सार्वजनिक रूप से यह आश्वासन दें कि वे मौजूदा सुरक्षा प्रावधानों में किसी भी प्रकार का संशोधन या हस्तक्षेप नहीं करेंगे। संगठन ने स्पष्ट किया कि जब तक उनकी यह मांग पूरी नहीं होती, तब तक सैकिया के प्रति बहिष्कार जारी रहेगा।

छठी अनुसूची में संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत विशेष प्रावधान किए गए हैं, जिनका उद्देश्य असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासनिक संचालन सुनिश्चित करना है। यह अनुसूची बारदोलोई समिति की सिफारिशों के आधार पर संविधान में शामिल की गई थी। इसके तहत जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिलों की स्थापना की जा सकती है, जिन्हें विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता प्राप्त होती है। राज्यपाल को इन स्वायत्त जिलों की सीमाओं में परिवर्तन करने का अधिकार प्राप्त है। किसी जिले में यदि विभिन्न जनजातियां निवास करती हैं, तो उनके लिए अलग-अलग स्वायत्त जिले बनाए जा सकते हैं।

हर स्वायत्त जिले में एक ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (ADC) के गठन का प्रावधान है। इस परिषद का कार्यकाल अधिकतम पांच वर्ष होता है और इसमें 30 सदस्य हो सकते हैं। ADC को भूमि, जंगल, जल स्रोत, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्थानीय पुलिसिंग, सांस्कृतिक विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक परंपराएं तथा खनन जैसे विषयों पर कानून एवं नियम बनाने का अधिकार प्राप्त होता है। हालांकि, असम की बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (BTC) इस मामले में अपवाद है। BTC के 40 से अधिक सदस्य होते हैं और इसे 39 विषयों पर कानून बनाने का विशेषाधिकार प्राप्त है।

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