"मनरेगा ग्रामीण भारत के लिए केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है। कोविड-19 महामारी जैसे संकट के समय इस योजना ने लाखों परिवारों को भुखमरी से बचाने में अहम भूमिका निभाई। नए विधेयक के लागू होने से रोजगार की सार्वभौमिक गारंटी समाप्त हो जाएगी, बजट पर सीमा लगा दी जाएगी और क्षेत्रों को केंद्र सरकार की अधिसूचना पर निर्भर होना पड़ेगा। इससे पंचायतों की स्वायत्तता कमजोर होगी और सत्ता का केंद्रीकरण बढ़ेगा।"

वाराणसी के शास्त्री घाट (वरुणापुल कचहरी) पर शुक्रवार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में प्रस्तावित बदलावों के विरोध में रैली निकाली गई और बड़ी जनसभा का आयोजन किया गया। इसका आयोजन साझा संस्कृति मंच, मनरेगा मजदूर यूनियन और बुनकर समिति ने किया। सभा में ग्रामीण क्षेत्रों से आए बड़ी संख्या में आए मजदूरों, किसानों, महिलाओं व सामाजिक संगठनों ने हिस्सा लिया।
केंद्र सरकार के VB-G RAM G विधेयक को मजदूरों के हितों के खिलाफ बताते हुए प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारे लगाए। सभा के दौरान विधेयक की प्रतियां जलाकर कड़ा विरोध जताया गया। इसके बाद मौजूद प्रदर्शनकारियों ने रैली निकाली और जिला मुख्यालय तक मार्च करते हुए राष्ट्रपति के नाम संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा।
सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि मनरेगा ग्रामीण भारत के लिए केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है। कोविड-19 महामारी जैसे संकट के समय इस योजना ने लाखों परिवारों को भुखमरी से बचाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने आरोप लगाया कि नए विधेयक के लागू होने से रोजगार की सार्वभौमिक गारंटी समाप्त हो जाएगी, बजट पर सीमा लगा दी जाएगी और क्षेत्रों को केंद्र सरकार की अधिसूचना पर निर्भर होना पड़ेगा। इससे पंचायतों की स्वायत्तता कमजोर होगी और सत्ता का केंद्रीकरण बढ़ेगा।
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि यह विधेयक वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। सभा के दौरान विरोध में शामिल लोग “मनरेगा में गांधी का नाम नहीं हटेगा”, “रोजगार गारंटी लागू करो” और “कॉर्पोरेट राज वापस जाओ” जैसे नारे लिखे बैनर हाथों में लिए हुए थे।
साझा संस्कृति मंच ने कहा कि दो दशक पहले की 3-4 किलो अनाज के बदले मजदूरों को कड़ी धूप, जाड़ा, बरसात में काम करना पड़ता था। जब खेतों में काम बंद होता तो आसपास के शहरों में जाकर काम की तलाश करनी होती थी। दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज से आने वाले भूमिहीन मजदूर औने-पौने दाम में काम करने को मजबूर थे। कोई घर निर्माण में ईंट ढोता, कोई सड़क पर गिट्टियां और कोलतार छिड़कता, कोई शहरों में नाले की सफाई करता, लेकिन मजदूरों के पास न ही कोई 'उचित मजदूरी' का पैमाना था और न ही उसकी मांग करने का सामर्थ्य। फिर 2005 महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) शुरू हुआ। यह ग्रामीण, खेतिहर और भूमिहीन मजदूरों के लिए क्रांतिकारी बदलाव था। पहली बार 100 दिन काम की गारंटी मिली, ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम मजदूरी तय हुई और काम न मिलने की स्थिति में भी भत्ता का अधिकार मिला। इस कानून ने गांवों से होने वाले पलायन को थोड़ा कम किया। इसकी बदौलत अब मजदूर गांव और शहरों में भी अपनी 'उचित मजदूरी' की मांग करने की स्थिति में आ रहे थे। सभी को पता है कि जब कोरोना महामारी में मोदी सरकार ने गरीब मजदूरों को बेसहारा छोड़ दिया, तब इसी मनरेगा ने उनका हाथ थामा।
इस कानून से पूंजीपति नाराज हुए। शहरों में मजदूरी ज्यादा करने की मांग बढ़ी लिहाजा सस्ते श्रमिकों का अभाव होने लगा। पूंजीपतियों के आंख का कांटा बने इस कानून को अब उनके मित्र मोदी द्वारा कमजोर किया जा रहा है। मनरेगा की जगह मोदी सरकार द्वारा VB G RAM G कानून लाया गया है जो ग्रामीण मजदूरों के अधिकार पर बड़ा हमला है। इसके पीछे का मकसद कारखानों और पूंजीपतियों को सस्ते मजदूर उपलब्ध कराना है। पिछले महीने ही मोदी सरकार ने कंपनियों में मजदूरों के शोषण बढ़ाने वाले 4 श्रम कानूनों को लागू किया और इसी कड़ी में अब यह नया कानून लाया गया है।

मनरेगा के पीछे महात्मा गांधी के स्वराज का विचार था जहां मजबूत पंचायतें हों, स्थानीय स्तर पर ग्राम विकास की योजना बने तथा गरीबों को आर्थिक सामाजिक शक्ति मिले। मोदी सरकार ने अपने नए कानून से गांधी का नाम हटा दिया। यह नया कानून गांव, गरीब, गांधी के खिलाफ तथा अमीर, अडानी-अंबानी के हित में बनाया गया है। मोदी सरकार द्वारा लाया गया कानून, मनरेगा को कमजोर कर मजदूरों के अधिकार पर हमला है। साझा संस्कृति मंच ने मनरेगा और G RAM G को लेकर अंतर स्पष्ट किया है जो नीचे दिया गया है:
MGNREGA
● मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र के हर व्यक्ति को रोजगार की गारंटी देता है।
● यह मांग आधारित है। 15 दिन के भीतर काम की गारंटी या तो बेरोजगारी भत्ते का अधिकार देता है।
● पूरे वर्ष रोजगार की गारंटी। महिलाओं, दलित, पिछड़े आदिवासियों को सौदा-शक्ति मिली।
● 90% खर्च केंद्र सरकार वहन करती थी।
● लोगों के प्रति जवाबदेही और काम की सरल प्रक्रिया। विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन पर जोर था।
G RAM G
● उन्ही क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। यह कानून पूरे ग्रामीण भारत पर लागू नहीं होगा।
● इसमें सरकार एक निश्चित बजट तय करेगी। उससे अधिक का खर्च राज्य सरकारों की उठाना होगा।
● भले रोजगार की माँग हो लेकिन सरकार खेती के सीजन में 60 दिन कोई रोजगार नहीं दे सकती।
● 60% खर्च ही केंद्र देगा, 40% खर्च का बोझ राज्यों पर।
● बायोमेट्रिक सिस्टम के जरिये केंद्रीकृत निगरानी और नियंत्रण। काम की वजह से मजदूरों के अंगूठे घिस जाते हैं जिससे एक वर्ग का इस प्रक्रिया से बाहर होने का खतरा। डिजिटल हाजिरी और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली की वजह से पिछले 3 वर्षों में लाखों मजदूरों के नाम काटे जा चुके हैं।

प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें
● मनरेगा में महात्मा गांधी का नाम यथावत रखा जाए।
● विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजा जाए।
● अधिसूचना से क्षेत्र सीमित करने की व्यवस्था वापस ली जाए।
● खेती के मौसम में 60 दिन का ब्लैकआउट पीरियड खत्म किया जाए।
● बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण अनिवार्य न हो।
● मजदूरी का बोझ राज्यों पर न डाला जाए।
● पंचायतों की स्वायत्तता बहाल की जाए।
सभा में मुनिजा खान, माला, अनिता, रंजू, रामधीरज, सोनी, मनीषा, डॉ. आनंद प्रकाश तिवारी, रेनू सरोज, वंदना, पूजा, झुला रामजनम, अफलातून, गौरव, नंदलाल मास्टर, आशा राय, जितेंद्र, एकता, रवि, संध्या सिंह, धनंजय, रौशन, शाश्वत, राजेश, ईश्वर चंद्र, अर्पित, दिवाकर, सुमन, मुस्तफा, नीति पंचमुखी आदि शामिल हुए।
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केंद्र सरकार के VB-G RAM G विधेयक को मजदूरों के हितों के खिलाफ बताते हुए प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारे लगाए। सभा के दौरान विधेयक की प्रतियां जलाकर कड़ा विरोध जताया गया। इसके बाद मौजूद प्रदर्शनकारियों ने रैली निकाली और जिला मुख्यालय तक मार्च करते हुए राष्ट्रपति के नाम संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा।
सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि मनरेगा ग्रामीण भारत के लिए केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है। कोविड-19 महामारी जैसे संकट के समय इस योजना ने लाखों परिवारों को भुखमरी से बचाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने आरोप लगाया कि नए विधेयक के लागू होने से रोजगार की सार्वभौमिक गारंटी समाप्त हो जाएगी, बजट पर सीमा लगा दी जाएगी और क्षेत्रों को केंद्र सरकार की अधिसूचना पर निर्भर होना पड़ेगा। इससे पंचायतों की स्वायत्तता कमजोर होगी और सत्ता का केंद्रीकरण बढ़ेगा।
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि यह विधेयक वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। सभा के दौरान विरोध में शामिल लोग “मनरेगा में गांधी का नाम नहीं हटेगा”, “रोजगार गारंटी लागू करो” और “कॉर्पोरेट राज वापस जाओ” जैसे नारे लिखे बैनर हाथों में लिए हुए थे।
साझा संस्कृति मंच ने कहा कि दो दशक पहले की 3-4 किलो अनाज के बदले मजदूरों को कड़ी धूप, जाड़ा, बरसात में काम करना पड़ता था। जब खेतों में काम बंद होता तो आसपास के शहरों में जाकर काम की तलाश करनी होती थी। दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज से आने वाले भूमिहीन मजदूर औने-पौने दाम में काम करने को मजबूर थे। कोई घर निर्माण में ईंट ढोता, कोई सड़क पर गिट्टियां और कोलतार छिड़कता, कोई शहरों में नाले की सफाई करता, लेकिन मजदूरों के पास न ही कोई 'उचित मजदूरी' का पैमाना था और न ही उसकी मांग करने का सामर्थ्य। फिर 2005 महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) शुरू हुआ। यह ग्रामीण, खेतिहर और भूमिहीन मजदूरों के लिए क्रांतिकारी बदलाव था। पहली बार 100 दिन काम की गारंटी मिली, ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम मजदूरी तय हुई और काम न मिलने की स्थिति में भी भत्ता का अधिकार मिला। इस कानून ने गांवों से होने वाले पलायन को थोड़ा कम किया। इसकी बदौलत अब मजदूर गांव और शहरों में भी अपनी 'उचित मजदूरी' की मांग करने की स्थिति में आ रहे थे। सभी को पता है कि जब कोरोना महामारी में मोदी सरकार ने गरीब मजदूरों को बेसहारा छोड़ दिया, तब इसी मनरेगा ने उनका हाथ थामा।
इस कानून से पूंजीपति नाराज हुए। शहरों में मजदूरी ज्यादा करने की मांग बढ़ी लिहाजा सस्ते श्रमिकों का अभाव होने लगा। पूंजीपतियों के आंख का कांटा बने इस कानून को अब उनके मित्र मोदी द्वारा कमजोर किया जा रहा है। मनरेगा की जगह मोदी सरकार द्वारा VB G RAM G कानून लाया गया है जो ग्रामीण मजदूरों के अधिकार पर बड़ा हमला है। इसके पीछे का मकसद कारखानों और पूंजीपतियों को सस्ते मजदूर उपलब्ध कराना है। पिछले महीने ही मोदी सरकार ने कंपनियों में मजदूरों के शोषण बढ़ाने वाले 4 श्रम कानूनों को लागू किया और इसी कड़ी में अब यह नया कानून लाया गया है।

मनरेगा के पीछे महात्मा गांधी के स्वराज का विचार था जहां मजबूत पंचायतें हों, स्थानीय स्तर पर ग्राम विकास की योजना बने तथा गरीबों को आर्थिक सामाजिक शक्ति मिले। मोदी सरकार ने अपने नए कानून से गांधी का नाम हटा दिया। यह नया कानून गांव, गरीब, गांधी के खिलाफ तथा अमीर, अडानी-अंबानी के हित में बनाया गया है। मोदी सरकार द्वारा लाया गया कानून, मनरेगा को कमजोर कर मजदूरों के अधिकार पर हमला है। साझा संस्कृति मंच ने मनरेगा और G RAM G को लेकर अंतर स्पष्ट किया है जो नीचे दिया गया है:
MGNREGA
● मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र के हर व्यक्ति को रोजगार की गारंटी देता है।
● यह मांग आधारित है। 15 दिन के भीतर काम की गारंटी या तो बेरोजगारी भत्ते का अधिकार देता है।
● पूरे वर्ष रोजगार की गारंटी। महिलाओं, दलित, पिछड़े आदिवासियों को सौदा-शक्ति मिली।
● 90% खर्च केंद्र सरकार वहन करती थी।
● लोगों के प्रति जवाबदेही और काम की सरल प्रक्रिया। विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन पर जोर था।
G RAM G
● उन्ही क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। यह कानून पूरे ग्रामीण भारत पर लागू नहीं होगा।
● इसमें सरकार एक निश्चित बजट तय करेगी। उससे अधिक का खर्च राज्य सरकारों की उठाना होगा।
● भले रोजगार की माँग हो लेकिन सरकार खेती के सीजन में 60 दिन कोई रोजगार नहीं दे सकती।
● 60% खर्च ही केंद्र देगा, 40% खर्च का बोझ राज्यों पर।
● बायोमेट्रिक सिस्टम के जरिये केंद्रीकृत निगरानी और नियंत्रण। काम की वजह से मजदूरों के अंगूठे घिस जाते हैं जिससे एक वर्ग का इस प्रक्रिया से बाहर होने का खतरा। डिजिटल हाजिरी और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली की वजह से पिछले 3 वर्षों में लाखों मजदूरों के नाम काटे जा चुके हैं।

प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांगें
● मनरेगा में महात्मा गांधी का नाम यथावत रखा जाए।
● विधेयक को संसद की स्थायी समिति को भेजा जाए।
● अधिसूचना से क्षेत्र सीमित करने की व्यवस्था वापस ली जाए।
● खेती के मौसम में 60 दिन का ब्लैकआउट पीरियड खत्म किया जाए।
● बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण अनिवार्य न हो।
● मजदूरी का बोझ राज्यों पर न डाला जाए।
● पंचायतों की स्वायत्तता बहाल की जाए।
सभा में मुनिजा खान, माला, अनिता, रंजू, रामधीरज, सोनी, मनीषा, डॉ. आनंद प्रकाश तिवारी, रेनू सरोज, वंदना, पूजा, झुला रामजनम, अफलातून, गौरव, नंदलाल मास्टर, आशा राय, जितेंद्र, एकता, रवि, संध्या सिंह, धनंजय, रौशन, शाश्वत, राजेश, ईश्वर चंद्र, अर्पित, दिवाकर, सुमन, मुस्तफा, नीति पंचमुखी आदि शामिल हुए।
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