इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जुलाई 2025 के बीच भारत में ईसाई समुदाय को निशाना बनाए जाने की कुल 334 घटनाएं दर्ज की गईं।

जनवरी से जुलाई 2025 के बीच भारत में ईसाइयों को निशाना बनाए जाने की 334 घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह खुलासा इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में किया है।
संगठन का कहना है कि ये मामले एक खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिसमें हर महीने घटनाएं होती हैं और 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ईसाई समुदायों को प्रभावित करती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रकार की घटनाओं में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं। उत्तर प्रदेश में 95 और छत्तीसगढ़ में 86 घटनाएं दर्ज की गईं, जो कुल घटनाओं का लगभग 54% हिस्सा हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस प्रकार की हिंसा का फैलना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। विशेष रूप से कुछ राज्य बार-बार ऐसे 'हॉटस्पॉट' के रूप में सामने आ रहे हैं, जहां ईसाई परिवारों को न केवल तात्कालिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, बल्कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत लंबे समय तक कानूनी उत्पीड़न झेलना पड़ता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कानूनों का दुरुपयोग अब डराने-धमकाने के एक प्रमुख हथियार के रूप में किया जा रहा है। जनवरी से जुलाई 2025 के बीच दर्ज की गई घटनाओं में से दो-तिहाई मामलों में धमकियां, उत्पीड़न और झूठे आरोप शामिल हैं।
भाजपा शासित उत्तर प्रदेश हाल के वर्षों में तथाकथित जबरन धर्मांतरण के मामलों को लेकर लगातार सुर्खियों में रहा है। हालांकि, हाल ही में भाजपा शासित छत्तीसगढ़ में दो ननों, वंदना फ्रांसिस और प्रीता मैरी पर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा कथित जबरन धर्मांतरण के आरोप में हमला करने और बाद में उन्हें जेल भेजने की घटना ने ईसाई समुदाय को झकझोर दिया है। इन दोनों ननों को बीते सप्ताह एनआईए कोर्ट से जमानत मिली।
रिपोर्ट में कहा गया है कि खास तौर से परेशान करने वाली बात यह है कि ‘दफनाने के अधिकार से वंचित करने के 13 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 92% अकेले छत्तीसगढ़ में हुए हैं।’
इस रिपोर्ट में ईसाई समुदाय को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगाया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, "ईसाई परिवारों को कभी-कभी अपनी निजी संपत्ति पर भी मृतकों को उनकी आस्था के अनुसार अंतिम श्रद्धांजलि देने से रोका जाता है। ईसाई समुदाय को इस प्रकार निशाना बनाए जाने की व्यवस्थित प्रकृति स्पष्ट रूप से सामने आई है। कई घटनाएं जानबूझकर रविवार की प्रार्थना सभाओं के दौरान घटी हैं, जो इस बात का संकेत देती हैं कि इन धार्मिक आयोजनों की निगरानी और व्यवस्थित बाधा पहुंचाने की रणनीति अपनाई जा रही है।"
रिपोर्ट में ‘उत्पीड़न की बढ़ती प्रवृत्ति’ पर गंभीर चिंता जताई गई है। इसमें बताया गया है कि जुलाई 2025 में छत्तीसगढ़ के भिलाई में छह पादरियों को न केवल गलत तरीके से हिरासत में लिया गया, बल्कि दुर्ग जेल में उन्हें केवल इसलिए बेरहमी से डंडों से पीटा गया क्योंकि उन्होंने नियमित पूछताछ के दौरान अपनी पहचान पादरी के रूप में दी थी। रिपोर्ट के अनुसार, यातना के दस्तावेज़ी साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद पादरियों के खिलाफ लगाए गए आरोप अब भी कायम हैं, जबकि हमलावरों या जेल में दुर्व्यवहार के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
ईसाई पादरियों और ननों पर धर्मांतरण के आरोपों में बढ़ोतरी के चलते, भाजपा शासित राज्य सरकारों की भूमिका ईसाई समुदाय और संगठनों की खास नजर में है। विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा बार-बार ‘धर्मांतरण’ के खतरे का जिक्र करते हुए अवैध धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए कठोर कानूनों की आवश्यकता पर जोर देते रहे हैं।
भाजपा विधायक अजय चंद्रशेखर ने सोमवार, 4 अगस्त को विधानसभा में आरोप लगाया कि 'चंगाई सभाओं' की आड़ में भोले-भाले, असहाय और गरीब लोगों को बहला-फुसलाकर धर्मांतरण कराया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ निस्संदेह देश में ईसाई-विरोधी घटनाओं के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरे हैं, जहां गिरफ्तारी, झूठे आरोप, शारीरिक हिंसा और सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाओं की निरंतर रिपोर्टिंग एक गंभीर और चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाती है। इन राज्यों के बाद मध्य प्रदेश (22 घटनाएं), बिहार (17), कर्नाटक (17), राजस्थान (15) और हरियाणा (15) का स्थान है।
रिपोर्ट में यह भी संकेत दिया गया है कि दर्ज की गई 334 घटनाएं संभवतः वास्तविक मामलों का केवल एक अंश मात्र हैं। कई घटनाएं प्रतिशोध के डर, स्थानीय अधिकारियों द्वारा दी जाने वाली धमकियों, या शिकायत दर्ज कराने के लिए आवश्यक दस्तावेजीकरण प्रक्रियाओं तक सीमित पहुंच के कारण रिपोर्ट ही नहीं की जातीं। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि यह हिंसा और उत्पीड़न का पैटर्न केवल व्यक्तिगत घटनाएं नहीं, बल्कि एक समन्वित प्रयास का हिस्सा है जिसका उद्देश्य कानूनी तंत्र और सामाजिक दबाव जरिए ईसाई धार्मिक अभिव्यक्ति को दबाना है। इस प्रक्रिया से भय का ऐसा वातावरण बनता है, जो केवल तत्काल पीड़ितों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे समुदाय को प्रभावित करता है।
ईएफआईआरएलसी ने स्पष्ट किया है कि वह देशभर में ईसाई समुदाय के खिलाफ होने वाली घटनाओं का दस्तावेजीकरण विभिन्न माध्यमों से करता है। इनमें सीधे पीड़ितों द्वारा दी गई रिपोर्टें, पूरे भारत में फैले उसके स्थानीय साझेदार नेटवर्क, मीडिया निगरानी और जहां उपलब्ध हों, आधिकारिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी शामिल हैं। संगठन का कहना है कि प्रत्येक मामले की पुष्टि, जहां तक संभव हो एक से ज्यादा स्रोतों से की जाती है जिनमें पुलिस रिपोर्ट, चिकित्सा अभिलेख, गवाहों के बयान और फोटोग्राफिक साक्ष्य शामिल होते हैं।
जनवरी में यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने रिपोर्ट किया कि वर्ष 2024 में भारत में ईसाई समुदाय पर कुल 834 हमले दर्ज किए गए, जो 2023 की तुलना में 100 ज्यादा हैं। इसके अलावा, मार्च 2025 में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (USCIRF) ने भारत को धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों पर हो रहे हमलों के चलते ‘विशेष चिंता वाला देश’ (Country of Particular Concern) के रूप में चिह्नित किया।
गौरतलब है कि केरल में विधानसभा चुनाव को अब एक वर्ष से भी कम समय बचे हैं और अब तक भाजपा राज्य की सत्ता के करीब नहीं पहुंच पाई है। ऐसे में पार्टी की रणनीति ईसाई समुदाय को अपने पक्ष में लाने पर केंद्रित दिख रही है। इसी संदर्भ में, जब भाजपा शासित राज्य छत्तीसगढ़ में कथित ‘जबरन धर्मांतरण’ के आरोप में दो ननों को जेल भेजा गया तो केरल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर उनके जमानत पर रिहा होने के तुरंत बाद उनसे मुलाकात के लिए पहुंचे। इस कदम को व्यापक रूप से संभावित राजनीतिक लाभ हासिल करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
यह देखना बाकी है कि भाजपा की मध्य और उत्तर भारतीय राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कैडर को सक्रिय बनाए रखने की रणनीति और इसके समानांतर केरल में ईसाई समुदाय को साधने का प्रयास पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से कितना लाभकारी साबित होता है।
मणिपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बड़ी संख्या में चर्चों का नष्ट किया जाना (जिसमें मई 2023 से अब तक 300 से अधिक चर्चों को जला दिया गया) भाजपा के लिए एक संवेदनशील और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण मुद्दा बन गया है।
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जनवरी से जुलाई 2025 के बीच भारत में ईसाइयों को निशाना बनाए जाने की 334 घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह खुलासा इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने अपनी हालिया रिपोर्ट में किया है।
संगठन का कहना है कि ये मामले एक खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिसमें हर महीने घटनाएं होती हैं और 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ईसाई समुदायों को प्रभावित करती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रकार की घटनाओं में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं। उत्तर प्रदेश में 95 और छत्तीसगढ़ में 86 घटनाएं दर्ज की गईं, जो कुल घटनाओं का लगभग 54% हिस्सा हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस प्रकार की हिंसा का फैलना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। विशेष रूप से कुछ राज्य बार-बार ऐसे 'हॉटस्पॉट' के रूप में सामने आ रहे हैं, जहां ईसाई परिवारों को न केवल तात्कालिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, बल्कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत लंबे समय तक कानूनी उत्पीड़न झेलना पड़ता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कानूनों का दुरुपयोग अब डराने-धमकाने के एक प्रमुख हथियार के रूप में किया जा रहा है। जनवरी से जुलाई 2025 के बीच दर्ज की गई घटनाओं में से दो-तिहाई मामलों में धमकियां, उत्पीड़न और झूठे आरोप शामिल हैं।
भाजपा शासित उत्तर प्रदेश हाल के वर्षों में तथाकथित जबरन धर्मांतरण के मामलों को लेकर लगातार सुर्खियों में रहा है। हालांकि, हाल ही में भाजपा शासित छत्तीसगढ़ में दो ननों, वंदना फ्रांसिस और प्रीता मैरी पर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा कथित जबरन धर्मांतरण के आरोप में हमला करने और बाद में उन्हें जेल भेजने की घटना ने ईसाई समुदाय को झकझोर दिया है। इन दोनों ननों को बीते सप्ताह एनआईए कोर्ट से जमानत मिली।
रिपोर्ट में कहा गया है कि खास तौर से परेशान करने वाली बात यह है कि ‘दफनाने के अधिकार से वंचित करने के 13 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 92% अकेले छत्तीसगढ़ में हुए हैं।’
इस रिपोर्ट में ईसाई समुदाय को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगाया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, "ईसाई परिवारों को कभी-कभी अपनी निजी संपत्ति पर भी मृतकों को उनकी आस्था के अनुसार अंतिम श्रद्धांजलि देने से रोका जाता है। ईसाई समुदाय को इस प्रकार निशाना बनाए जाने की व्यवस्थित प्रकृति स्पष्ट रूप से सामने आई है। कई घटनाएं जानबूझकर रविवार की प्रार्थना सभाओं के दौरान घटी हैं, जो इस बात का संकेत देती हैं कि इन धार्मिक आयोजनों की निगरानी और व्यवस्थित बाधा पहुंचाने की रणनीति अपनाई जा रही है।"
रिपोर्ट में ‘उत्पीड़न की बढ़ती प्रवृत्ति’ पर गंभीर चिंता जताई गई है। इसमें बताया गया है कि जुलाई 2025 में छत्तीसगढ़ के भिलाई में छह पादरियों को न केवल गलत तरीके से हिरासत में लिया गया, बल्कि दुर्ग जेल में उन्हें केवल इसलिए बेरहमी से डंडों से पीटा गया क्योंकि उन्होंने नियमित पूछताछ के दौरान अपनी पहचान पादरी के रूप में दी थी। रिपोर्ट के अनुसार, यातना के दस्तावेज़ी साक्ष्य उपलब्ध होने के बावजूद पादरियों के खिलाफ लगाए गए आरोप अब भी कायम हैं, जबकि हमलावरों या जेल में दुर्व्यवहार के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
ईसाई पादरियों और ननों पर धर्मांतरण के आरोपों में बढ़ोतरी के चलते, भाजपा शासित राज्य सरकारों की भूमिका ईसाई समुदाय और संगठनों की खास नजर में है। विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा बार-बार ‘धर्मांतरण’ के खतरे का जिक्र करते हुए अवैध धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए कठोर कानूनों की आवश्यकता पर जोर देते रहे हैं।
भाजपा विधायक अजय चंद्रशेखर ने सोमवार, 4 अगस्त को विधानसभा में आरोप लगाया कि 'चंगाई सभाओं' की आड़ में भोले-भाले, असहाय और गरीब लोगों को बहला-फुसलाकर धर्मांतरण कराया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ निस्संदेह देश में ईसाई-विरोधी घटनाओं के प्रमुख केंद्र के रूप में उभरे हैं, जहां गिरफ्तारी, झूठे आरोप, शारीरिक हिंसा और सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाओं की निरंतर रिपोर्टिंग एक गंभीर और चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाती है। इन राज्यों के बाद मध्य प्रदेश (22 घटनाएं), बिहार (17), कर्नाटक (17), राजस्थान (15) और हरियाणा (15) का स्थान है।
रिपोर्ट में यह भी संकेत दिया गया है कि दर्ज की गई 334 घटनाएं संभवतः वास्तविक मामलों का केवल एक अंश मात्र हैं। कई घटनाएं प्रतिशोध के डर, स्थानीय अधिकारियों द्वारा दी जाने वाली धमकियों, या शिकायत दर्ज कराने के लिए आवश्यक दस्तावेजीकरण प्रक्रियाओं तक सीमित पहुंच के कारण रिपोर्ट ही नहीं की जातीं। रिपोर्ट यह भी दर्शाती है कि यह हिंसा और उत्पीड़न का पैटर्न केवल व्यक्तिगत घटनाएं नहीं, बल्कि एक समन्वित प्रयास का हिस्सा है जिसका उद्देश्य कानूनी तंत्र और सामाजिक दबाव जरिए ईसाई धार्मिक अभिव्यक्ति को दबाना है। इस प्रक्रिया से भय का ऐसा वातावरण बनता है, जो केवल तत्काल पीड़ितों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे समुदाय को प्रभावित करता है।
ईएफआईआरएलसी ने स्पष्ट किया है कि वह देशभर में ईसाई समुदाय के खिलाफ होने वाली घटनाओं का दस्तावेजीकरण विभिन्न माध्यमों से करता है। इनमें सीधे पीड़ितों द्वारा दी गई रिपोर्टें, पूरे भारत में फैले उसके स्थानीय साझेदार नेटवर्क, मीडिया निगरानी और जहां उपलब्ध हों, आधिकारिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी शामिल हैं। संगठन का कहना है कि प्रत्येक मामले की पुष्टि, जहां तक संभव हो एक से ज्यादा स्रोतों से की जाती है जिनमें पुलिस रिपोर्ट, चिकित्सा अभिलेख, गवाहों के बयान और फोटोग्राफिक साक्ष्य शामिल होते हैं।
जनवरी में यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) ने रिपोर्ट किया कि वर्ष 2024 में भारत में ईसाई समुदाय पर कुल 834 हमले दर्ज किए गए, जो 2023 की तुलना में 100 ज्यादा हैं। इसके अलावा, मार्च 2025 में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (USCIRF) ने भारत को धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों पर हो रहे हमलों के चलते ‘विशेष चिंता वाला देश’ (Country of Particular Concern) के रूप में चिह्नित किया।
गौरतलब है कि केरल में विधानसभा चुनाव को अब एक वर्ष से भी कम समय बचे हैं और अब तक भाजपा राज्य की सत्ता के करीब नहीं पहुंच पाई है। ऐसे में पार्टी की रणनीति ईसाई समुदाय को अपने पक्ष में लाने पर केंद्रित दिख रही है। इसी संदर्भ में, जब भाजपा शासित राज्य छत्तीसगढ़ में कथित ‘जबरन धर्मांतरण’ के आरोप में दो ननों को जेल भेजा गया तो केरल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर उनके जमानत पर रिहा होने के तुरंत बाद उनसे मुलाकात के लिए पहुंचे। इस कदम को व्यापक रूप से संभावित राजनीतिक लाभ हासिल करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
यह देखना बाकी है कि भाजपा की मध्य और उत्तर भारतीय राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कैडर को सक्रिय बनाए रखने की रणनीति और इसके समानांतर केरल में ईसाई समुदाय को साधने का प्रयास पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से कितना लाभकारी साबित होता है।
मणिपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बड़ी संख्या में चर्चों का नष्ट किया जाना (जिसमें मई 2023 से अब तक 300 से अधिक चर्चों को जला दिया गया) भाजपा के लिए एक संवेदनशील और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण मुद्दा बन गया है।
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