मुंबई में शांतिपूर्ण प्रदर्शन: क्रिसमस के दौरान देश भर में ईसाइयों पर हुए हमलों की निंदा

Written by sabrang india | Published on: December 27, 2025
संविधान जागर समिति और बॉम्बे कैथोलिक सभा द्वारा आयोजित यह शांतिपूर्ण सभा गोरेगांव में हुई, जहां राहगीर रुककर संदेश पढ़ते, उस पर विचार करते और क्रिसमस के दौरान बढ़ती नफरत और धमकियों के खिलाफ अपना समर्थन जताते नजर आए। इस आयोजन को जनता की ओर से व्यापक एकजुटता मिली।



देश के कई राज्यों में क्रिसमस के दौरान ईसाई समुदायों को निशाना बनाकर किए जा रहे हमलों, डराने-धमकाने और धार्मिक आयोजनों में रुकावटों की बढ़ती खबरों के बीच शुक्रवार, 26 दिसंबर की शाम को मुंबई के गोरेगांव पश्चिम में एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया गया। आयोजकों ने इसे “संवैधानिक स्वतंत्रताओं पर एक व्यवस्थित हमला” करार दिया।

करीब 100 लोगों की यह शांतिपूर्ण सभा संविधान जागर यात्रा समिति (SJYS) ने शहर के सबसे पुराने कैथोलिक संगठनों में से एक, बॉम्बे कैथोलिक सभा (BCS), के सहयोग से आयोजित की। यह विरोध प्रदर्शन एस.वी. रोड पर होटल रत्ना के बाहर हुआ, जिसमें समुदाय के सदस्य, नागरिक समाज के प्रतिनिधि और चिंतित नागरिक शामिल हुए। सभी लोग नफरत और धार्मिक हिंसा की निंदा करते हुए प्लेकार्ड लेकर चुपचाप खड़े रहे।






“संविधान पर ही हमला”

आयोजकों ने कहा कि यह विरोध प्रदर्शन केवल अलग-अलग घटनाओं के खिलाफ नहीं था, बल्कि ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व के दौरान उनके खिलाफ उभर रहे दुश्मनी के व्यापक पैटर्न के विरोध में था।

बॉम्बे कैथोलिक सभा की ओर से लोगों को प्रदर्शन में शामिल होने का आह्वान करते हुए प्रवक्ता डॉल्फ़ी डिसूजा ने कहा, “ऐसे हमले अलग-थलग कानून-व्यवस्था की घटनाएं नहीं हैं। ये हमारे संविधान के मूल पर हमला हैं—विवेक की स्वतंत्रता पर, धर्म को मानने और उसका पालन करने के अधिकार पर, और बिना भय के पूजा करने के अधिकार पर।”

BCS के अध्यक्ष नॉर्बर्ट मेंडोंका ने कहा कि यह पहल इस मुद्दे पर एक संगठित और दीर्घकालिक अभियान की शुरुआत है।

प्रदर्शन स्थल पर लगे प्लेकार्ड में संवैधानिक मूल्यों, धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य की जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। नारेबाजी या भाषणों से जानबूझकर परहेज किया गया, जिससे विरोध प्रदर्शन का शांत और गरिमापूर्ण स्वरूप और अधिक स्पष्ट हुआ।

इस सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में SJYS के संयोजक प्रो. अरविंद निगले, श्रीधर शेलार, पूर्व पार्षद इकबाल शेख (शिवसेना–UBT), समीर देसाई और मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ शामिल थीं।





राहगीर रुके, पढ़ा और प्रतिक्रिया दी

इस विरोध प्रदर्शन की सबसे उल्लेखनीय बात आम जनता की सहज भागीदारी रही। स्कूटर पर सवार महिलाएं रुक गईं, पैदल चलने वाले लोग ठहर गए, यात्री प्लेकार्ड पढ़ने के लिए रुके और कई लोगों ने इस मुद्दे पर अपनी एकजुटता व्यक्त की।

आयोजकों के अनुसार, कई राहगीरों ने प्रदर्शनकारियों के प्रति सहमति जताई, कुछ ने प्रोत्साहन के शब्द कहे, जबकि अन्य ने हाथ जोड़कर या सिर हिलाकर समर्थन व्यक्त किया। यह शांतिपूर्ण विरोध टकराव के बजाय लोगों को सोचने पर मजबूर करता नजर आया। आयोजकों ने कहा कि यह रणनीति सोच-समझकर अपनाई गई थी, खासकर ऐसे समय में जब सार्वजनिक विमर्श ध्रुवीकरण से भरा हुआ है।

प्रदर्शन की तस्वीरों में यह दृश्य साफ दिखता है—मुंबई की एक व्यस्त सड़क पर करीब 100 नागरिक नफरत के खिलाफ संदेशों के साथ चुपचाप खड़े हैं, जबकि कई राहगीर इस मुद्दे की गंभीरता से प्रभावित नजर आते हैं।





डर के साये में क्रिसमस

पिछले एक सप्ताह में देश के विभिन्न हिस्सों से आई रिपोर्टों में क्रिसमस की प्रार्थनाओं में बाधा, चर्चों में तोड़फोड़, श्रद्धालुओं को डराने-धमकाने और “जबरन धर्मांतरण” रोकने के नाम पर दी गई धमकियों का उल्लेख किया गया है। ईसाई संगठनों ने चेतावनी दी है कि ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और अक्सर बिना किसी प्रभावी हस्तक्षेप के हो रही हैं।

इन हमलों की विस्तृत रिपोर्टें यहां और यहां पढ़ी जा सकती हैं।

शुक्रवार के इस विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य इसी व्यापक पैटर्न की ओर ध्यान आकर्षित करना था और यह स्पष्ट करना था कि धार्मिक स्वतंत्रता राज्य द्वारा दी गई कोई रियायत नहीं, बल्कि हर नागरिक को प्रदत्त एक मौलिक अधिकार है। आयोजकों ने जोर देकर कहा कि यह विरोध प्रदर्शन जितना प्रशासन के लिए था, उतना ही समाज और आम नागरिकों के लिए भी था।

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