नई दिल्ली: केंद्र और राज्य सरकारों के साथ दशकों तक काम कर चुके अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं के पूर्व सिविल सेवकों ने आम जनता और राजनीतिक दलों को एक खुला पत्र लिखा है ताकि उन्हें आगामी आम चुनावों के लिए ईवीएम के वीवीपीएटी आधारित ऑडिट के उचित कार्यान्वयन के बारे में बताया जा सके। इन भूतपूर्व लोकसेवकों में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीए) और भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी शामिल हैं, ने रविवार को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) विवाद को लेकर एक खुला पत्र चुनाव आयोग लिखा है।
इन अधिकारियों ने इस पत्र में चुनाव आयोग का ध्यान ईवीएम के सत्यापन के लिए उपयोग में आने वाली वीवीपीएट के कार्यान्वयन में गंभीर कमियों की तरफ दिलाया। इस पत्र में भूतपूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व राष्ट्रीय विदेश सचिव निरूपमा मेनन राय, वित्त विभाग के पूर्व सचिव नरेंद्र सिसोदिया और पूर्व आईएएस ऑफिसर अरुणा राय प्रमुख हैं।
पूर्व लोकसवकों ने पत्र में लिखा है, 'स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए ईवीएम परिणामों के एक समानांतर वीवीपीएटी रैली होना आवश्यक है। क्योंकि ये बात हर कोई जानता है कि ईवीएम एक 'ब्लैक बॉक्स' हैं, जिसमें मतदाताओं के लिए यह साबित करना असंभव है कि उनके वोट सही तरीके से गिना गया है या दर्ज हुआ है। वीवीपीएट चुनाव में हर वोट का वास्तविक रिकॉर्ड होता है। गौरतलब है कि ईवीएम की क्षमता पर हर चुनाव में बहस होती है। इसमें चुनाव में हारने वाली पार्टी हार के लिए ईवीएम को दोष देते हुए गड़बड़ी की बात करती है। कांग्रेस पिछले साल चुनाव आयोग गई थी, जिसमें उसने ईवीएम की विश्वसनीयता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाते हुए पेपर बैलट की वापसी की मांग की।
लोकसवकों ने अपने पत्र में आगे लिखा कि इस समय वास्तविक मुद्दा ईवीएम बनाम पैपर बैलेट नहीं है। उनके मुताबिक ये ईवीएम के साथ सही तरीके से वीवीपीएटी ऑडिट बनाम ईवीएम के साथ वीवीपीएट है। चुनाव आयोग को ये सुनिश्चित करने के लिए कि मतदान ईवीएम की खराबी और हेराफेरी से मुक्त है, अपने वीवीपीएटी ऑडिट कार्यान्वयन में "गंभीर कमियों की सीरीज" को दूर करना होगा।
लोकसवकों के समूह ने कहा कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक पोलिंग स्टेशन पर एक ईवीएम की चुनाव आयोग की नीति है। ये सांख्यिकीय रूप से गलत सैंपल साइज है क्योंकि हर निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम की संख्या व्यापक रूप से हर राज्य में लगभग 20 से 300 के आसपास और राज्य के भीतर ही अलग-अलग होती है।
इस ग्रुप ने उदाहरण देते हुए बताया कि सिक्किम में 589 ईवीएम, छत्तीसगढ़ में 23,672 और उत्तर प्रदेश में लगभग 1,50,000 है। रिटायर्ड अफसरों को कहना है कि चुनाव आयोग ने ये सार्वजनिक नहीं किया है कि वह अपने सैंपल साइज तक कैसे पहुंचे और न ही जनसंख्या के बारे में बारे में बताया है, जो सैंपल साइज से संबंधित है। जनसंख्या में व्यापक अंतर के आधार पर सैंपल साइज त्रुटि के उच्च मार्जिन को दिखाता है, जो लोकतंत्र में अस्वीकार्य है। ईवीएम की वीवीपीएटी आधारित ऑडिट में पारदर्शिता की कमी ने ईवीएम में बड़े पैमाने पर धांधली को हवा दी है।
इन अधिकारियों ने इस पत्र में चुनाव आयोग का ध्यान ईवीएम के सत्यापन के लिए उपयोग में आने वाली वीवीपीएट के कार्यान्वयन में गंभीर कमियों की तरफ दिलाया। इस पत्र में भूतपूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व राष्ट्रीय विदेश सचिव निरूपमा मेनन राय, वित्त विभाग के पूर्व सचिव नरेंद्र सिसोदिया और पूर्व आईएएस ऑफिसर अरुणा राय प्रमुख हैं।
पूर्व लोकसवकों ने पत्र में लिखा है, 'स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए ईवीएम परिणामों के एक समानांतर वीवीपीएटी रैली होना आवश्यक है। क्योंकि ये बात हर कोई जानता है कि ईवीएम एक 'ब्लैक बॉक्स' हैं, जिसमें मतदाताओं के लिए यह साबित करना असंभव है कि उनके वोट सही तरीके से गिना गया है या दर्ज हुआ है। वीवीपीएट चुनाव में हर वोट का वास्तविक रिकॉर्ड होता है। गौरतलब है कि ईवीएम की क्षमता पर हर चुनाव में बहस होती है। इसमें चुनाव में हारने वाली पार्टी हार के लिए ईवीएम को दोष देते हुए गड़बड़ी की बात करती है। कांग्रेस पिछले साल चुनाव आयोग गई थी, जिसमें उसने ईवीएम की विश्वसनीयता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाते हुए पेपर बैलट की वापसी की मांग की।
लोकसवकों ने अपने पत्र में आगे लिखा कि इस समय वास्तविक मुद्दा ईवीएम बनाम पैपर बैलेट नहीं है। उनके मुताबिक ये ईवीएम के साथ सही तरीके से वीवीपीएटी ऑडिट बनाम ईवीएम के साथ वीवीपीएट है। चुनाव आयोग को ये सुनिश्चित करने के लिए कि मतदान ईवीएम की खराबी और हेराफेरी से मुक्त है, अपने वीवीपीएटी ऑडिट कार्यान्वयन में "गंभीर कमियों की सीरीज" को दूर करना होगा।
लोकसवकों के समूह ने कहा कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक पोलिंग स्टेशन पर एक ईवीएम की चुनाव आयोग की नीति है। ये सांख्यिकीय रूप से गलत सैंपल साइज है क्योंकि हर निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम की संख्या व्यापक रूप से हर राज्य में लगभग 20 से 300 के आसपास और राज्य के भीतर ही अलग-अलग होती है।
इस ग्रुप ने उदाहरण देते हुए बताया कि सिक्किम में 589 ईवीएम, छत्तीसगढ़ में 23,672 और उत्तर प्रदेश में लगभग 1,50,000 है। रिटायर्ड अफसरों को कहना है कि चुनाव आयोग ने ये सार्वजनिक नहीं किया है कि वह अपने सैंपल साइज तक कैसे पहुंचे और न ही जनसंख्या के बारे में बारे में बताया है, जो सैंपल साइज से संबंधित है। जनसंख्या में व्यापक अंतर के आधार पर सैंपल साइज त्रुटि के उच्च मार्जिन को दिखाता है, जो लोकतंत्र में अस्वीकार्य है। ईवीएम की वीवीपीएटी आधारित ऑडिट में पारदर्शिता की कमी ने ईवीएम में बड़े पैमाने पर धांधली को हवा दी है।