चुनाव आयोग, ईवीएम और वीवीपैट को लेकर एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। दरअसल चुनाव आयोग महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव से पहले ईवीएम की पहले फर्स्ट लेवल की जांच कर रहा है। लेकिन इसके लिए जांच की टीम में उन शॉर्ट टर्म कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों को रखा गया है जिन्हें कम से कम एक साल का अनुभव है।
HuffPost की एक रिपोर्ट के दावा किया है कि इन इंजीनियरों ने बताया कि उन्हें मतदान प्रक्रिया की महत्वपूर्ण पहलुओं की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसमें 2019 के लोकसभा चुनावों में वीवीपैट मशीनों में प्रतीकों (Political Parties Symbol) को लोड करना भी शामिल था।
रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र और हरियाणा के विपक्षी नेताओं ने बताया कि वे इस बात से अनजान हैं कि ईवीएम की फर्स्ट लेवल की जांच शुरु हो गई है और ये जांच उन इंजीनियरों द्वारा की जा रही है जो बीईएल (भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड) और ईसीआईएल (इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) के पूर्णकालिक कर्मचारी भी नहीं हैं। ये दोनो कंपनियां चुनाव आयोग के लिए ईवीएम का निर्माण और रखरखाव का काम करती हैं।
बता दें कि भारत के चुनाव आयोग ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया है कि संविदा कर्मियों को इस काम के उपयोग के लिए भर्ती किया जा रहा है। चुनाव आयोग के स्वयं के गाइड लाइंस के मुताबिक यह जरूरी है कि जब ईवीएम पर फर्स्ट लेवल की जांच शुरु की जाए, सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि वहां मौजूद हों ।
एक इंटरव्यू में हरियाणा कांग्रेस के नेता अशोक तंवर ने कहा कि उन्हें जिला निर्वाचन अधिकारियों या मुख्य चुनाव अधिकारी की ओर से इस बारे में कोई संदेश नहीं मिला है। कांग्रेस के नेता संजय निरूपम ने भी कहा कि महाराष्ट्र में भी पार्टी को कोई जानकारी नहीं मिली। यही हाल एनसीपी, एमएनएस और सीपीएम का था। कांग्रेस नेता संजय निरूपम और सीपीएम के नेता निलोत्पाल बसु ने बताया कि वे इस संबंध में चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करा रहे हैं।
इस महीने की शुरूआत में 'द क्विंट' ने एक रिपोर्ट में बताया गया था कि ईसीआईएल ने मुंबई में एक लेबर कांट्रैक्टर कंपनी के कर्मचारियों का इसके लिए इस्तेमाल किया था। हालांकि चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण ने द क्विंट से कहा कि बीईएल और ईसीआईएल द्वारा किसी भी प्राइवेट कंपनी के इंजीनियरों को इंगेज नहीं किया गया था।
Huff Post पर रवि नायर द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में बीईएल और ईसीआईएल द्वारा कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स के इस्तेमाल की नई जानकारी, उनकी भर्ती के तरीके और तैनाती के तरीकों का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव से पहले विपक्ष को बताए बिना ही इन कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों ने काम करना शुरू कर दिया है।
इन कॉन्ट्रैक्टर्स की मौजूदगी देश की चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता के लिए बड़ा सिक्योरिटी रिस्क है। फिर भी इन संभावित कमजोरियों का सामना करने के बजाय चुनाव आयोग ने चुप्पी साधी है। बीईएल, ईसीआईएल और चुनाव आयोग की ओर से इस पर अभी किसी तरह की प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
Huff Post की रिपोर्ट के मुताबिक रिक्रूइटमेंट नोटिस की समीक्षा की गई तो पता चला कि 2018 की गर्मियों के दिनों में बीईएल ने 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के ईवीएम और वीवीपीएटी प्रोजेक्ट्स के लिए देशभर में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर 480 पदों पर रिक्तियों की घोषणा की थी। इन कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों को एक साल की अवधी के लिए भर्ती की घोषणा की गई थी।
ये कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियर देश के आम चुनाव के संचालन में बीईएल के नियमित कर्मचारियों की सहायता करने के लिए थे। चुनाव में शामिल दो कंपनियों में से एक बीईएल है। जबकि दूसरी ईसीआईएल है।
बीईएल में नौकरी के रिक्रूटमेंट नोटिस में कहा गया था कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के फील्ड परीक्षण (Field Testing)/ मरम्मत (Repair)/ रखरखाव (Maintenance) आदि के पदों पर भर्ती की जाएगी। इसके लिए प्रतिमाह 23,000 रूपये का भुगतान किया जाएगा। इसके लिए आवेदक की उम्र 1 जून 2018 तक 26 वर्ष से कम हो, बी.टेक या बीई की डिग्री और कम से कम एक साल का इंडस्ट्रीयल एक्सप्रीयंस हो।
शॉर्ट लिस्ट किए गए उम्मीदवारों के बैकग्राउंड की जांच के बदले उन्हें अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन से एक नियमित पुलिस सत्यापन प्रमाणपत्र जमा करने के लिए कहा गया था। चुनाव आयोग के एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि इन कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स के बैकग्राउंड की जांच नहीं की गई थी।
एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन मेरी समझ यह है कि वे केवल बीईएल और ईसीआईएल के नियमित कर्मचारियों की सहायता करते हैं, जो संवेदनशील काम करते हैं।
इंटरव्यू में बीईएल के लिए काम करने वाले कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों ने बताया कि चुनाव प्रक्रिया में सभी पहलू शामिल थे जिसमें ईवीएम में उम्मीदवार के नाम लोड करना और वीवीपैट में पार्टी के प्रतीकों लोड करना शामिल था।
उत्तराखंड का एक असामान्य मामला बताता है कि कैसे मतदान की प्रक्रिया में शामिल संविदा कर्मचारियों (Contract Employees) नियमित पूर्णकालिक कर्मचारियों को पछाड़ कर रख दिया है। संविदा कर्मचारी (Contract Employees) नियमित पूर्णकालिक कर्मचारियों की तुलना में संख्या में अधिक हैं।
साल 2017 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव परिणाम के दौरान एक विवाद सामने आया था। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार मुन्ना सिंह चौहान के करीबी राजू बिंजोला नाम के एक व्यक्ति ने चुनाव परिणाम से एक हफ्ते पहले फेसबुक पर चुनाव परिणामों की विस्तार से बूथवार भविष्यवाणी की। बिंजोला ने कांग्रेस उम्मीदवार नव प्रभात को 32,572 वोट मिलने की भविष्यवाणी की थी। जब नतीजे सामने आए तो नव प्रभात को 32,477 वोट मिले।
27 अप्रैल 2017 को टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इसको लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जिसमें कहा गया कि बिंजोला ने धालीपुर, भीमवाला और काला पत्थर बूथ को लेकर जिस संख्या की भविष्यवाणी की, भाजपा और दोनों के लिए सही थी। उदाहरण के लिए बिंजोला ने ने धालीपुर में कांग्रेस के लिए 750 वोट मिलने की भविष्यवाणी की थी और नतीजे सामने आने के बाद कांग्रेस को ठीक उतने ही वोट मिले।
रिपोर्ट के मुताबिक इसी तरह बडवा में उन्होंने भाजपा के लिए 260 वोट मिलने की भविष्यवाणी की थी और भाजपा को 287 वोट मिले। नवाबगढ़ में भाजपा के लिए 1200 वोटों की भविष्यवाणी की थी और नतीजे आने के बाद भाजपा को 1235 वोट मिले।
इस चौंकाने वाले संयोग ने हारने वाले उम्मीदवारों को कानूनी प्रक्रिया के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया। तब हारे हुए उम्मीदवारो ने कहा कि मतदान में धांधली हुई थी।
इसके बाद आरटीआई से कानूनी प्रक्रिया का खुलासा हुआ कि ईसीआईएल ने मुंबई स्थित टीएंडएम सर्विसेज कंसल्टिंग लिमिटेड के 52 कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को तैनात किया था और चुनाव में खुद के केवल 8 नियमित कर्मचारी थे। टी एंड सर्विसेज ने हफपोस्ट इंडिया के सवालों का जवाब यह समझाते हुए देने से इनकार कर दिया कि ग्राहकों के साथ एक नॉन डिसक्लोजर एग्रीमेंट था।
यह केस उत्तराखंड हाईकोर्ट में अभी भी चल रहा है लेकिन चुनाव परिणाम से पहले ईवीएम को संभालने वाले कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों का यह एक ठोस उदाहरण है।
चुनाव आयोग लंबे समय से यह कहकर सुनिश्चित कर रहा है कि वह मतदान प्रक्रिया की पवित्रता पर शुरू से अंत तक पूर्ण नियंत्रण बनाए रखती है। 29 मार्च 2019 को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा पेश किया जिसमें कहा गया था कि इसका कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं है कि कोई भी प्राइवेट व्यक्ति बिना अनुमति (Security Clearance) के चुनाव आयोग की ईवीएम को दूर से हैंडल या एक्सेस कर सकता है।
इसी हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा था कि चुनाव आयोग की सुरक्षा में चूक का कोई मौका (Chance) नहीं है। चाहे वह ईवीएम की मैन्युफैक्चरिंग, स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन हो या चुनाव के दौरान उपयोग हो। इससे सुनिश्चित होता है कि ईवीएम के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है।
चुनाव आयोग बड़ी सफाई से हमेशा यह बात कहता है कि कोई भी राजनीतिक दल ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं कर सकता है। फिर भी ऐसा लगता है कि प्रोसेस के दौरान की इस संभावना पर विचार नहीं किया गया।
उदाहरण के लिए सुप्रीम कोर्ट के समझ एक हलफनामे में चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 की धारा 61 ए के मुताबिक देश के चुनावों में इस्तेमाल की जाने वाले ईवीएम चुनाव आयोग के निर्देश पर (तकनीकी विशेषज्ञ की सहायता के आधार पर) अनुमोदित (Approved) हैं। चुनाव आयोग ने बीईएल और ईसीआईएल को निर्देश दिया है कि ईवीएम और वीवीपीएटी के डिजाइन को किसी के साथ साझा (Share) न किया जाएगा।
फिर भी इन तकनीकी विवरणों (Technical Details) को निर्माताओं ने खुद समय-समय पर प्रकाशित किया है। साल 2002 बीईएल ने अपने ईवीएम डिजाइन के पेटेंट के लिए आवेदन किया जिसके लिए उन्होंने इन विवरणों और रेखाचित्रों (Details And Drawing) को जमा किया जो अभी तक ऑनलाइन प्रकाशित हैं। उदाहरण के लिए ईसीआईएल ने इन मशीनों के कंपोनेंट्स को ग्लोबल टेंटर के रूप में अपनी वेबसाइट पर 'वीवीपैट मशीनों के कंपोनेंट के डायग्राम' पब्लिश किए हैं।
जनवरी 2018 में वीवीपीएटी में इस्तेमाल की गई एक इंटनल केबल हार्नेस का टेंडर जारी किया गया था। जबकि एक अन्य टेंडर में थर्मल प्रिटंर को लेकर निविदा जारी की गई थी जो वीवीपीएटी का पेपर ट्रेल बनाता है। इसमें ईवीएम कनेक्टर पर डिटेल्स भी शामिल है जो यह भी बताता है कि वीवीपैट के साथ प्रिंटर कैसे इंटरैक्ट करेगा। यह डिटेल्स सहज दिखाई दे सकती हैं लेकिन हैकर्स को इन मशीनों की स्टडी करने और सिस्टम में घुसपैठ करने के बारे में सोचने का मौका दे सकते हैं।
इंटरव्यू में कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों ने हफपोस्ट इंडिया को बताया कि उनके कामों की लिस्ट में रनिंग चेक, बैलट यूनिटों मे बटन जैसे टूटे हुए हिस्सों को बदलना, पार्टी के प्रतीकों को वीवीपैट मशीनों में लोड करना, बीईएल और ईसीआईएल द्वारा दिए गए अनुकूलित लैपटॉप उपयोग करना शामिल है।
यह खुलासा इस बात के साथ जुड़ा हुआ है कि भारतीय लोकतंत्र के भाग्य का फैसला करने वाली मशीनें शॉर्ट टर्म कॉन्ट्रैक्ट के उन कर्मचारियों द्वारा नियंत्रित की जाती है जिन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेजों में बमुश्कित चार साल बिताए हैं।
HuffPost की एक रिपोर्ट के दावा किया है कि इन इंजीनियरों ने बताया कि उन्हें मतदान प्रक्रिया की महत्वपूर्ण पहलुओं की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसमें 2019 के लोकसभा चुनावों में वीवीपैट मशीनों में प्रतीकों (Political Parties Symbol) को लोड करना भी शामिल था।
रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र और हरियाणा के विपक्षी नेताओं ने बताया कि वे इस बात से अनजान हैं कि ईवीएम की फर्स्ट लेवल की जांच शुरु हो गई है और ये जांच उन इंजीनियरों द्वारा की जा रही है जो बीईएल (भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड) और ईसीआईएल (इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) के पूर्णकालिक कर्मचारी भी नहीं हैं। ये दोनो कंपनियां चुनाव आयोग के लिए ईवीएम का निर्माण और रखरखाव का काम करती हैं।
बता दें कि भारत के चुनाव आयोग ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया है कि संविदा कर्मियों को इस काम के उपयोग के लिए भर्ती किया जा रहा है। चुनाव आयोग के स्वयं के गाइड लाइंस के मुताबिक यह जरूरी है कि जब ईवीएम पर फर्स्ट लेवल की जांच शुरु की जाए, सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि वहां मौजूद हों ।
एक इंटरव्यू में हरियाणा कांग्रेस के नेता अशोक तंवर ने कहा कि उन्हें जिला निर्वाचन अधिकारियों या मुख्य चुनाव अधिकारी की ओर से इस बारे में कोई संदेश नहीं मिला है। कांग्रेस के नेता संजय निरूपम ने भी कहा कि महाराष्ट्र में भी पार्टी को कोई जानकारी नहीं मिली। यही हाल एनसीपी, एमएनएस और सीपीएम का था। कांग्रेस नेता संजय निरूपम और सीपीएम के नेता निलोत्पाल बसु ने बताया कि वे इस संबंध में चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करा रहे हैं।
इस महीने की शुरूआत में 'द क्विंट' ने एक रिपोर्ट में बताया गया था कि ईसीआईएल ने मुंबई में एक लेबर कांट्रैक्टर कंपनी के कर्मचारियों का इसके लिए इस्तेमाल किया था। हालांकि चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण ने द क्विंट से कहा कि बीईएल और ईसीआईएल द्वारा किसी भी प्राइवेट कंपनी के इंजीनियरों को इंगेज नहीं किया गया था।
Huff Post पर रवि नायर द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में बीईएल और ईसीआईएल द्वारा कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स के इस्तेमाल की नई जानकारी, उनकी भर्ती के तरीके और तैनाती के तरीकों का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव से पहले विपक्ष को बताए बिना ही इन कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों ने काम करना शुरू कर दिया है।
इन कॉन्ट्रैक्टर्स की मौजूदगी देश की चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता के लिए बड़ा सिक्योरिटी रिस्क है। फिर भी इन संभावित कमजोरियों का सामना करने के बजाय चुनाव आयोग ने चुप्पी साधी है। बीईएल, ईसीआईएल और चुनाव आयोग की ओर से इस पर अभी किसी तरह की प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
Huff Post की रिपोर्ट के मुताबिक रिक्रूइटमेंट नोटिस की समीक्षा की गई तो पता चला कि 2018 की गर्मियों के दिनों में बीईएल ने 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के ईवीएम और वीवीपीएटी प्रोजेक्ट्स के लिए देशभर में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर 480 पदों पर रिक्तियों की घोषणा की थी। इन कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों को एक साल की अवधी के लिए भर्ती की घोषणा की गई थी।
ये कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियर देश के आम चुनाव के संचालन में बीईएल के नियमित कर्मचारियों की सहायता करने के लिए थे। चुनाव में शामिल दो कंपनियों में से एक बीईएल है। जबकि दूसरी ईसीआईएल है।
बीईएल में नौकरी के रिक्रूटमेंट नोटिस में कहा गया था कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के फील्ड परीक्षण (Field Testing)/ मरम्मत (Repair)/ रखरखाव (Maintenance) आदि के पदों पर भर्ती की जाएगी। इसके लिए प्रतिमाह 23,000 रूपये का भुगतान किया जाएगा। इसके लिए आवेदक की उम्र 1 जून 2018 तक 26 वर्ष से कम हो, बी.टेक या बीई की डिग्री और कम से कम एक साल का इंडस्ट्रीयल एक्सप्रीयंस हो।
शॉर्ट लिस्ट किए गए उम्मीदवारों के बैकग्राउंड की जांच के बदले उन्हें अपने स्थानीय पुलिस स्टेशन से एक नियमित पुलिस सत्यापन प्रमाणपत्र जमा करने के लिए कहा गया था। चुनाव आयोग के एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि इन कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स के बैकग्राउंड की जांच नहीं की गई थी।
एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन मेरी समझ यह है कि वे केवल बीईएल और ईसीआईएल के नियमित कर्मचारियों की सहायता करते हैं, जो संवेदनशील काम करते हैं।
इंटरव्यू में बीईएल के लिए काम करने वाले कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों ने बताया कि चुनाव प्रक्रिया में सभी पहलू शामिल थे जिसमें ईवीएम में उम्मीदवार के नाम लोड करना और वीवीपैट में पार्टी के प्रतीकों लोड करना शामिल था।
उत्तराखंड का एक असामान्य मामला बताता है कि कैसे मतदान की प्रक्रिया में शामिल संविदा कर्मचारियों (Contract Employees) नियमित पूर्णकालिक कर्मचारियों को पछाड़ कर रख दिया है। संविदा कर्मचारी (Contract Employees) नियमित पूर्णकालिक कर्मचारियों की तुलना में संख्या में अधिक हैं।
साल 2017 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव परिणाम के दौरान एक विवाद सामने आया था। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार मुन्ना सिंह चौहान के करीबी राजू बिंजोला नाम के एक व्यक्ति ने चुनाव परिणाम से एक हफ्ते पहले फेसबुक पर चुनाव परिणामों की विस्तार से बूथवार भविष्यवाणी की। बिंजोला ने कांग्रेस उम्मीदवार नव प्रभात को 32,572 वोट मिलने की भविष्यवाणी की थी। जब नतीजे सामने आए तो नव प्रभात को 32,477 वोट मिले।
27 अप्रैल 2017 को टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी इसको लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जिसमें कहा गया कि बिंजोला ने धालीपुर, भीमवाला और काला पत्थर बूथ को लेकर जिस संख्या की भविष्यवाणी की, भाजपा और दोनों के लिए सही थी। उदाहरण के लिए बिंजोला ने ने धालीपुर में कांग्रेस के लिए 750 वोट मिलने की भविष्यवाणी की थी और नतीजे सामने आने के बाद कांग्रेस को ठीक उतने ही वोट मिले।
रिपोर्ट के मुताबिक इसी तरह बडवा में उन्होंने भाजपा के लिए 260 वोट मिलने की भविष्यवाणी की थी और भाजपा को 287 वोट मिले। नवाबगढ़ में भाजपा के लिए 1200 वोटों की भविष्यवाणी की थी और नतीजे आने के बाद भाजपा को 1235 वोट मिले।
इस चौंकाने वाले संयोग ने हारने वाले उम्मीदवारों को कानूनी प्रक्रिया के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया। तब हारे हुए उम्मीदवारो ने कहा कि मतदान में धांधली हुई थी।
इसके बाद आरटीआई से कानूनी प्रक्रिया का खुलासा हुआ कि ईसीआईएल ने मुंबई स्थित टीएंडएम सर्विसेज कंसल्टिंग लिमिटेड के 52 कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स को तैनात किया था और चुनाव में खुद के केवल 8 नियमित कर्मचारी थे। टी एंड सर्विसेज ने हफपोस्ट इंडिया के सवालों का जवाब यह समझाते हुए देने से इनकार कर दिया कि ग्राहकों के साथ एक नॉन डिसक्लोजर एग्रीमेंट था।
यह केस उत्तराखंड हाईकोर्ट में अभी भी चल रहा है लेकिन चुनाव परिणाम से पहले ईवीएम को संभालने वाले कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों का यह एक ठोस उदाहरण है।
चुनाव आयोग लंबे समय से यह कहकर सुनिश्चित कर रहा है कि वह मतदान प्रक्रिया की पवित्रता पर शुरू से अंत तक पूर्ण नियंत्रण बनाए रखती है। 29 मार्च 2019 को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा पेश किया जिसमें कहा गया था कि इसका कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं है कि कोई भी प्राइवेट व्यक्ति बिना अनुमति (Security Clearance) के चुनाव आयोग की ईवीएम को दूर से हैंडल या एक्सेस कर सकता है।
इसी हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा था कि चुनाव आयोग की सुरक्षा में चूक का कोई मौका (Chance) नहीं है। चाहे वह ईवीएम की मैन्युफैक्चरिंग, स्टोरेज, ट्रांसपोर्टेशन हो या चुनाव के दौरान उपयोग हो। इससे सुनिश्चित होता है कि ईवीएम के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है।
चुनाव आयोग बड़ी सफाई से हमेशा यह बात कहता है कि कोई भी राजनीतिक दल ईवीएम से छेड़छाड़ नहीं कर सकता है। फिर भी ऐसा लगता है कि प्रोसेस के दौरान की इस संभावना पर विचार नहीं किया गया।
उदाहरण के लिए सुप्रीम कोर्ट के समझ एक हलफनामे में चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 की धारा 61 ए के मुताबिक देश के चुनावों में इस्तेमाल की जाने वाले ईवीएम चुनाव आयोग के निर्देश पर (तकनीकी विशेषज्ञ की सहायता के आधार पर) अनुमोदित (Approved) हैं। चुनाव आयोग ने बीईएल और ईसीआईएल को निर्देश दिया है कि ईवीएम और वीवीपीएटी के डिजाइन को किसी के साथ साझा (Share) न किया जाएगा।
फिर भी इन तकनीकी विवरणों (Technical Details) को निर्माताओं ने खुद समय-समय पर प्रकाशित किया है। साल 2002 बीईएल ने अपने ईवीएम डिजाइन के पेटेंट के लिए आवेदन किया जिसके लिए उन्होंने इन विवरणों और रेखाचित्रों (Details And Drawing) को जमा किया जो अभी तक ऑनलाइन प्रकाशित हैं। उदाहरण के लिए ईसीआईएल ने इन मशीनों के कंपोनेंट्स को ग्लोबल टेंटर के रूप में अपनी वेबसाइट पर 'वीवीपैट मशीनों के कंपोनेंट के डायग्राम' पब्लिश किए हैं।
जनवरी 2018 में वीवीपीएटी में इस्तेमाल की गई एक इंटनल केबल हार्नेस का टेंडर जारी किया गया था। जबकि एक अन्य टेंडर में थर्मल प्रिटंर को लेकर निविदा जारी की गई थी जो वीवीपीएटी का पेपर ट्रेल बनाता है। इसमें ईवीएम कनेक्टर पर डिटेल्स भी शामिल है जो यह भी बताता है कि वीवीपैट के साथ प्रिंटर कैसे इंटरैक्ट करेगा। यह डिटेल्स सहज दिखाई दे सकती हैं लेकिन हैकर्स को इन मशीनों की स्टडी करने और सिस्टम में घुसपैठ करने के बारे में सोचने का मौका दे सकते हैं।
इंटरव्यू में कॉन्ट्रैक्ट इंजीनियरों ने हफपोस्ट इंडिया को बताया कि उनके कामों की लिस्ट में रनिंग चेक, बैलट यूनिटों मे बटन जैसे टूटे हुए हिस्सों को बदलना, पार्टी के प्रतीकों को वीवीपैट मशीनों में लोड करना, बीईएल और ईसीआईएल द्वारा दिए गए अनुकूलित लैपटॉप उपयोग करना शामिल है।
यह खुलासा इस बात के साथ जुड़ा हुआ है कि भारतीय लोकतंत्र के भाग्य का फैसला करने वाली मशीनें शॉर्ट टर्म कॉन्ट्रैक्ट के उन कर्मचारियों द्वारा नियंत्रित की जाती है जिन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेजों में बमुश्कित चार साल बिताए हैं।