जन्मदिन विशेषः ''सुधा सोना"

Written by Vimalbhai | Published on: October 31, 2018
संभवत देश का बहुत बड़ा वर्ग अमिताभ साहब के साथ-साथ करोड़पति बनने के सपने देखता है या मंच पर गाने और नाचने की प्रतियोगिताओं को देखने में मशगूल होता है। दिन भर की काम थकान और शाम को बहुत सारे चैनल पर देश भक्ति  की फसल  का हिस्सा बनने पर  मजबूर सा  रहता है। फिर अपनी कुंठा को चमकती दमकती टीवी सीरियलों में डूबा देता है।



ऐसे ही समय पुणे की किसी जेल में पुलिस हिरासत में  बैठी एक मां अपनी युवती बेटी के बारे में  चिंता कर रही होगी या फिर  पुलिस की  उल्टे सीधे सवालों के जवाब  देने के लिए किसी बेंच पर बैठी होगी। या सोच में डूबी होगी कि अमेरिका की नागरिकता छोड़कर, भारत में पढ़ कर, भारत के मजदूर किसानों की  विस्थापन की समस्याओं से  जूझते,  उनके मुकदमे लड़ते जीवन बिताने के बाद  क्या यह नियति है? किसी उदास पल में यह शायद यह किसी की सिर्फ कल्पना हो सकती है।

मगर 28 अगस्त से 27 अक्टूबर तक अपने ही घर के कमरे में कैद रहने वाली सुधा जी और कभी उनके साथ रहने वाली वकील या बाहर खड़े साथी, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से जुड़े  तमाम लोग, छत्तीसगढ़ में रायगढ़-रायपुर- भिलाई- बिलासपुर के मजदूर, किसान, आदिवासी साथी और ढेर सारे गरीब मुवक्किल इन कल्पनाओं से आजाद है। संघर्ष के रास्ते पर हैं।

पुणे पुलिस ने 28 अगस्त की सुबह सुधा जी के घर धावा बोलकर घंटों तलाशी ली।  बिना कॉपी दिए उनकी सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस अपने कब्जे में ली। जिनमें बाद में कुछ भी डाल सकते हैं, यह खतरा भी बहुत बड़ा है। जिस तरह फरीदाबाद कोर्ट ने चंडीगढ़ उच्च न्यायालय की आदेश के बाद भी रात के 1:30 बजे आदेश दिया कि सुधा जी को भी नजरबंद घर में नजरबंद रखा। शाम 7:08 बजे से 1:30 बजे तक एक अंधेरे कोने में वह कार्य में बंद रखी गई।  मन में बहुत सारे प्रश्न खड़े करता है।



पिछले 2 महीनों में छत्तीसगढ़ में तो शायद ही कोई दिन गया हो जब लगातार मजदूरों ने सुधा जी के लिए प्रदर्शन ना किया हो, चिंता ना व्यक्त की हो। यह सब लगातार चला। बहुत मजबूत और सरल महिला है सुधा जी। उनके साथ रहने वाले पुलिसकर्मियों को भी इस बात का पिछले 2 महीने में एहसास हो गया होगा। 

अमरीका में जन्मी सुधा जी 11 साल तक कैंब्रिज फिर भारत में केंद्रीय विद्यालय और कानपुर आई आई टी से शिक्षित हुई। सुधा जी ने 18 वर्ष की आयु में अमरीका की नागरिकता छोड़ दी थी।  छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संघर्ष और निर्माण के कार्य में अपने को समर्पित किया। सन 2000  में मजदूरों के मुकदमे लड़ने के लिए वे वकील बनी।  2007 तक बिलासपुर उच्च न्यायालय में वकालत की इसके बाद दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर रही अपनी मां प्रोफेसर कृष्णा भारद्वाज के छोड़े हुए एक छोटे से फ्लैट ने अपनी बेटी की साथ रहकर समाज कार्य में लगी थी।

 27 अक्टूबर को  पुणे ले जाने के लिए अपने फ्लैट से पुणे पुलिस के साथ मीडिया कर्मियों की भीड़ के बीच से कार में  बिठाई गई । जिसके बाद सूरजकुंड थाने के पास वाले चिकित्सालय में उनका 2.30 मिनट का मेडिकल चेकअप हुआ और उनको पुणे ले गई। जहां शाम को अदालत ने  सरकारी वकील की अजीबो गरीब दलीलों को सुनने के साथ उन्हें  6 नवंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया। 28 अगस्त के दिन हम पूरे समय उनके साथ थे। मगर उस दिन महिला के चेहरे पर कहीं कोई उदासी या चिंता नहीं थी। अगर चिंता थी तो जरूर अपनी बच्ची के लिए जो स्वभाविक चिंता थी। उनकी बेटी अन्नू ने उनकी नजरबंदी के बीच में प्यारा सा पत्र लिखा जो मीडिया में बहुत छपा।

अनु ने वही शब्द लिखे थे जो सुधा जी ने फरीदाबाद जज के घर के बाहर पुणे पुलिस को कहा था कि मेरा यही सामाजिक परिवार है यही लोग मेरे अपने हैं। सुधा जी के इस वाक्य में इतने सालों जिनके साथ काम किया उनके प्रति समर्पण का भाव निकला। हम सब जो समाज में काम करते हैं उनका जन्म वाला परिवार तो कहीं पीछे छूट जाता है। सामाजिक परिवार ही बड़ा परिवार होता है।

सर्वोच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीश चंद्रचूड़ जी ने कहा था कि प्रेशर कुकर को फटने तक मत दबाइए। बाद में भी उनकी बहुत सारी टिप्पणियां आई क्योंकि वह मराठी समझते हैं। उन्होंने एक मीडिया हाउस के तथाकथित स्वयं प्रचारित देशभक्त पत्रकार जी द्वारा जो पत्र पढ़ा गया उस पत्र की खामियों पर भी सत्यता पर भी सवाल उठाए थे। 19 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय में पहली बार वह पत्र दिया गया जबकि उससे पहले वह पत्र टेलीविजन पर आ गया था। 

पुणे पुलिस द्वारा प्रेस वार्ता में आ गया था। हर सुनवाई के दौरान नए-नए पत्र आ जाते हैं। मैं अपनी अल्प बुद्धि से इतना तो समझ रखता ही हूं कि जिन अतिवादियो को इतने वर्षों से सरकार और सुरक्षाकर्मियों नहीं पकड़ पाये, क्या वह अपनी अंदर की सारी  बातें इस तरह किसी डिवाइस में सुरक्षित रखेंगे? मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ने वाले शहीद नियोगी जी जिनकी हत्या मिल मालिकों के इशारे पर हुई। उनके साथ काम करने वाली, खुला जीवन जीने वाली सुधा जी पर इस तरह के आरोप हास्यास्पद ही लगे हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के साथ महाराष्ट्र उच्च न्यायालय और फिर निचली अदालतों की कार्यवाही को यदि कभी सार्वजनिक किया जाए तो जो जो सरकारी वकीलों ने बोला,  जिस तरह पुलिस अधिकारी ने अदालत में जिरह की, पुणे की विशेष अदालत के न्यायाधीश ने भी यह कहा कि पुलिस अधिकारी वकील को सहयोग कर सकते हैं मगर पैरवी नहीं कर सकते, ऐसे अनेकानेक कानूनी उल्लंघनो, की प्रक्रियाओं के उल्लंघनो की और सबूतों के नाम पर जो कहा गया है वह सब बहुत ही मजेदार गुस्सा दिलाने वाला और हास्यास्पद भी रहेगा।

सुधा जी सहित कुल 5 गिरफ्तारीओं को पुणे के विश्रामभाग पुलिस स्टेशन में दर्ज जिस एफ आई आर संख्या 004/2018 से जोड़ा गया उसमे इनके नाम तक नहीं है!

मुझे इसमें कोई परेशानी नहीं लगती कि यदि कोई गंभीर सबूत किसी भी नागरिक के खिलाफ मिलता है तो उसकी जांच करने का सरकार को अधिकार है । और जब सरकार के सरदार पर हमला होने की बात हो तो मामला और गंभीर हो जाता है। मगर मामला कुछ और ही है। 1 जनवरी को कोरेगांव में हुई हिंसक कार्यवाही मिलिंद एकबोटे (कार्यकारी अध्यक्ष, समस्त हिंदू आगाडी और गौ रक्षा अभियान) और संभाजी भिड़े ( संस्थापक, शिवप्रतिष्ठान संगठन, पूर्व सदस्य आर एस एस और प्रधानमंत्री द्वारा माने गए गुरु) और अन्य उच्च जाति संगठनों के नेतृत्व में हुई थी जिनके खिलाफ पुलिस में नामजद प्रथम दृष्टया रिपोर्ट भी है। 



दरअसल इनको बचाने के लिए, देश का ध्यान छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में हो रही लूट को जारी रखने और एक बड़ी राजनैतिक प्रपंच के लिए यह सब किया गया। न्यायाधीश चंद्रचूड़ जी ने भी इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया था कि प्रधानमंत्री की हत्या के षडयंत्र जैसी बात का जिक्र एफ आई आर तक दर्ज नहीं की गई है।

एक पत्र उछाला, उस पर खूब चर्चा हुई। अदालती कार्यवाहियों, पुलिस प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि में नए-नए पत्र उछाले गए। फिर कुछ खास मीडिया पर चर्चा की गई। सरकार ऐसा ही कर रही है। कुछ खास मीडिया,  जिन्होंने जीवन भर समाज के लिए काम किया उनको बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। 

मगर हमें विश्वास है यह सुधा सोना फिर तपकर खरा उतरेगा। सुधा जी की टेढ़े दांत वाली मृदुल मुस्कान हमको भी एक साहस देती है। 

1 नवंबर को सुधा जी आपने जन्मदिन पर जेल ने होंगी। पर देश भर से बहुत सारी मुबारके उनके साथ होंगी।

बाकी ख़बरें