केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संसद को बताया कि वर्ष 2018 से 2022 के बीच यूएपीए के तहत कुल 6,503 लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किए गए, जिनमें से केवल 252 को दोषी ठहराया गया। इस अवधि में अदालतों ने दो मामलों को रद्द किया।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार, 30 जुलाई को संसद में बताया कि 2018 से 2022 के बीच अदालतों ने यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के तहत दर्ज मामलों में से केवल दो मामलों को ही रद्द किया।
राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि इस अवधि में यूएपीए के तहत 6,503 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए, जिनमें से 252 को दोषी ठहराया गया।
मंत्री द्वारा दिए गए आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ‘भारत में अपराध’ संबंधी ताजा रिपोर्ट से लिए गए हैं। जिन दो मामलों को अदालतों ने खारिज किया, वे 2022 में केरल की अदालतों द्वारा रद्द किए गए थे।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच यूएपीए के तहत कुल 8,947 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से 2,633 गिरफ्तारियां जम्मू-कश्मीर में और 2,162 उत्तर प्रदेश में हुईं।
वर्षवार आंकड़ों के अनुसार, आतंकवाद-रोधी कानून यूएपीए के तहत 2018 में 1,421 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद 2019 में यह संख्या बढ़कर 1,948 हो गई। 2020 में 1,321, 2021 में 1,621 और 2022 में सबसे ज्यादा 2,636 गिरफ्तारियां दर्ज की गईं।
गौरतलब है कि यूएपीए कानून 1967 में लागू हुआ था, लेकिन 2008 और 2012 में कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए संशोधनों और इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए हालिया बदलावों ने इस कानून को पहले की तुलना में कहीं ज्यादा सख्त बना दिया है।
यूएपीए के प्रावधान इतने कठोर हैं कि इसके तहत आरोपों का सामना कर रहे लोगों के लिए जमानत पाना लगभग असंभव हो जाता है। कानून के अनुसार, यदि अदालत को यह लगता है कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं, तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।
नतीजतन, यूएपीए के तहत आरोपों का सामना कर रहे अधिकांश व्यक्ति लंबे समय तक बिना सजा के जेलों में विचाराधीन कैदियों के तरह बंद रहते हैं।
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राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि इस अवधि में यूएपीए के तहत 6,503 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए, जिनमें से 252 को दोषी ठहराया गया।
मंत्री द्वारा दिए गए आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ‘भारत में अपराध’ संबंधी ताजा रिपोर्ट से लिए गए हैं। जिन दो मामलों को अदालतों ने खारिज किया, वे 2022 में केरल की अदालतों द्वारा रद्द किए गए थे।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच यूएपीए के तहत कुल 8,947 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें से 2,633 गिरफ्तारियां जम्मू-कश्मीर में और 2,162 उत्तर प्रदेश में हुईं।
वर्षवार आंकड़ों के अनुसार, आतंकवाद-रोधी कानून यूएपीए के तहत 2018 में 1,421 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद 2019 में यह संख्या बढ़कर 1,948 हो गई। 2020 में 1,321, 2021 में 1,621 और 2022 में सबसे ज्यादा 2,636 गिरफ्तारियां दर्ज की गईं।
गौरतलब है कि यूएपीए कानून 1967 में लागू हुआ था, लेकिन 2008 और 2012 में कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए संशोधनों और इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए हालिया बदलावों ने इस कानून को पहले की तुलना में कहीं ज्यादा सख्त बना दिया है।
यूएपीए के प्रावधान इतने कठोर हैं कि इसके तहत आरोपों का सामना कर रहे लोगों के लिए जमानत पाना लगभग असंभव हो जाता है। कानून के अनुसार, यदि अदालत को यह लगता है कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं, तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।
नतीजतन, यूएपीए के तहत आरोपों का सामना कर रहे अधिकांश व्यक्ति लंबे समय तक बिना सजा के जेलों में विचाराधीन कैदियों के तरह बंद रहते हैं।
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