उत्तर प्रदेश में राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने कैसे बदल दिए मोदी-शाह के समीकरण, योगी की राह कठिन !

Written by विजय विनीत | Published on: June 6, 2024
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी के सारे अरमान धो डाले। अंतिम चरण के मतदान के बाद आए एक्जिट पोल के नतीजों से यह लग रहा था कि लड़ाई में इंडिया गठबंधन कहीं नहीं है। नतीजे आए तो बीजेपी की चूल्हें हिल गईं। अयोध्या सीट पर उसके प्रत्याशी लल्लू सिंह बुरी तरह चुनाव हारे तो बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लकीर काफी छोटी हो गई। बीजेपी की सियासी विफलता के चलते उसके वोट शेयर में करीब 8.50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। साथ ही उसका ट्राइक रेट भी धड़ाम से नीचे आ गया। बीजेपी ने साल 2014 से जिस तरह से यूपी का किला फतह शुरू किया था, वह इस चुनाव में ढह जाएगा, उसे कतई यकीन नहीं था। यूपी में उसकी करारी हार के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुर्सी बच पाएगी अथवा नहीं?



उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सात केंद्रीय मंत्रियों और 19 मौजूदा सांसद को इस बार पराजय का सामना करना पड़ा है। मोदी सरकार में सर्वाधिक मंत्री यूपी के थे, जिनमें स्मृति ईरानी, महेंद्र नाथ पांडेय, साध्वी निरंजन ज्योति, अजय मिश्र टेनी, कौशल किशोर, भानु प्रताप वर्मा और संजीव बालियान चुनाव हार गए। रामपुर, आजमगढ़, आवंला, सीतापुर, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, बस्ती, मछली शहर, संत कबीरनगर, बांदा, धौरहरा, कन्नौज, कौशांबी, एटा, इटावा, फैजाबाद, हमीरपुर और सलेमपुर से मौजूदा सांसद भी अपनी सीट नहीं बचा सके। ज्यादातर सांसदों के खिलाफ वोटर्स में नाराजगी थी। योगी की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं से उनका कोई सरोकार नहीं रहा। दूसरी बात, उन्हें यूपी में गुजरात मॉडल चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कई नौकरशाह ऊपर से भेजे गए थे, जो लगातार मनमानी कर रहे थे। इन नौकरशाहों पर न तो जनता को भरोसा है, और न ही बीजेपी कार्यकर्ताओं को।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अयोध्या और बनारस में सबसे तगड़ी शिकस्त मिली। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को बनारस में क़रीब चार लाख 80 हज़ार वोट के अंतर से जीत मिली थी। उन्हें कुल 63 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार उन्हें सिर्फ 54.24 फीसदी वोटों पर संतोष करना पड़ा। साल 2014 में मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे, जो कुल मतदान का 56 फ़ीसदी था। इस बार उनकी जीत का अंतर आधे से भी कम रहा। शुरुआती रुझान में तो पीएम मोदी भी कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय के पीछे चल रहे थे। हालांकि बाद में उन्होंने बढ़त बना ली। पिछले चुनाव में यूपी में सर्वाधिक वोट हासिल करने का रिकॉर्ड बनाने वाले मोदी के जीत का फासला सिर्फ डेढ़ लाख में सिमट गया।

चुनाव से पहले पीएम मोदी ने अयोध्या के राम मंदिर को लेकर बड़े पैमाने पर प्रचार किया। तीन बार के सांसद रहे बीजेपी प्रत्याशी के समर्थन में रोड शो भी किया, लेकिन इंडिया गठबंधन की आंधी में लल्लू का डेरा उखड़ गया। सपा के अवधेश प्रसाद ने उन्हें 55 हज़ार वोटों से पराजित कर दिया। मोदी ने इस बार नारा दिया था- अबकी बार, चार सौ के पार। उनके इस नारे का दिवाला पिट गया और हसरत पूरी नहीं हो सकी।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी इस बार अपने दम पर सिर्फ 33 सीटें ही जीत पाई। बाकी तीन सीटों पर उनके सहयोगी दल विजयी हुए। दो सीटों पर आरएलडी को जीत मिली और एक पर अपना दल की अनुप्रिया पटेल चुनाव जीतीं। दोनों दल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के हिस्से हैं। इंडिया गठबंधन ने 43 सीटों पर अपना पताका फहराया। बीजेपी अपने खिलाफ चल रहे अंडर करंट को नहीं समझ पाई, जिसके चलते अपने दम पर वह पूर्ण बहुमत से दूर हो गई।

लखीमपुर खीरी सीट से दो बार के सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी हैट्रिक लगाने से चूक गए। उन्हें समाजवादी पार्टी के उत्कर्ष वर्मा ने 33 हजार से अधिक वोटों से हराया। तीसरा झटका चंदौली सीट पर केंद्रीय मंत्री डा.महेंद्रनाथ पांडेय को लगा। वह अपनी सीट बचाने में सफल नहीं हो सके। उन्हें सपा के वीरेंद्र सिंह ने 21 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। डा. पांडेय तीसरी बार चंदौली में चुनाव मैदान में उतरे थे। फतेहपुर सीट से केंद्रीय मंत्री रहीं साध्वी निरंजन ज्योति को सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने 33 हजार से अधीक वोटों से हराया।

लखनऊ की मोहनलालगंज सीट से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। समाजवादी पार्टी के आरके वर्मा ने उन्हें 70 हजार से अधिक मतों से हराया। बीजेपी को तगड़ा झटका पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट पर लगा, जहां रालोद से गठबंधन के बावजूद केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान चुनाव हार गए। सपा के हरेंद्र मलिक ने उन्हें 24 हजार से अधिक वोटों के अंतर से पराजित किया। बीजेपी-रालोद गठबंधन के बाद बीजेपी प्रत्याशी डॉ संजीव बालियान की स्थिति को मजबूत माना जा रहा था, लेकिन नतीजे उलट आए। बीजेपी का कोर वोट, जिसने 2019 में संजीव बालियान की जीत में बड़ी भूमिका निभाई, इस बार वह बिखर गया। जालौन लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप सिंह भी हार गए। समाजवादी पार्टी के नारायण दास अहिरवार ने उन्हें 53 हजार से अधिक मतों पर हराया।
 
बीजेपी का वोट 8.50 फीसदी गिरा
 
साल 2019 के मुकाबले बीजेपी का वोट करीब 8.50 फीसदी कम हो गया है। साल 2009 में इस पार्टी के पास राज्य में सिर्फ 10 सीटें और 17.50 प्रतिशत वोटर थे। साल 2014 में बीजेपी ने पुराने रिकार्डों को तोड़ते हुए 71 सीटें जीत लीं और अपना वोटबैंक 42.30 पर पहुंचा दिया। उस समय बीजेपी का यह सर्वाधिक बेहतर प्रदर्शन था। साल 2019 में भले बीजेपी की नौ सीटें कम हुईं, लेकिन उसका वोट बढ़कर 49.60 प्रतिशत पहुंच गया। इस चुनाव में बीजेपी को 62 सीटें मिलीं।

साल 2024 के चुनाव में चुनाव में बीजेपी की सीटें घटकर 33 पर और वोट 41.37 फीसदी पर पहुंच गया। बीजेपी ने सोशल इंजिनियरिंग पर काम करते हुए हर सीट के हिसाब से अति पिछड़ों के साथ अगड़ों, दलितों को जोड़कर ऐसा समीकरण बनाया था कि पार्टी बढ़ती चली गई। इस बार बसपा से छिटके दलितों को जोड़ने में बीजेपी सफल नहीं हो सकी।

इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी अब देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। राजनीति के इतिहास में उसका अब तक सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा। धार्मिक मुद्दों के बजाय अपने कुछ चुनिंदा मुद्दों के अलावा जातीय गोलबंदी के सहारे शानदार सफलता हासिल की। सपा को कांग्रेस की ताकत मिली तो बीजेपी सरकार से उकताई जनता खुद चुनाव लड़ने लगी। एक जून की शाम एक्जिट पोल आए तो लगा कि यूपी में लड़ाई एकतरफा है और इंडिया गठबंधन हवा में उड़ जाएगा, लेकिन हुआ उल्टा। एग्ज़िट पोल में एनडीए को क़रीब 70 सीटें दी गई थीं, लेकिन वह सिर्फ 36 सीटों पर ही सिमट गई, जबकि इंडिया गठबंधन ने 43 सीटों पर कब्जा जमा लिया।

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से  62 पर सपा और 17 पर कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी उतारे थे। भदोही की एक सीट त्रृणमूल कांग्रेस को दी गई थी, जो हार गई। सपा 62 में से 37 सीटों पर और कांग्रेस 17 में से छह सीटों पर विजयी हुई। साल 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को 62, बीएसपी को 10, सपा को पांच, अपना दल (एस) को दो और कांग्रेस एक सीट जीती थी। यूपी में पुराने नतीजों को बीजेपी नहीं दोहरा पाई।
 
किसने कहां, किसको घेरा?
 
यूपी ऐसा राज्य रहा, जहां देश भर के दिग्गज चुनाव मैदान में थे। बनारस से पीएम मोदी चुनावी मैदान में थे तो रायबरेली से राहुल गांधी। लखनऊ से राजनाथ सिंह और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के अलावा उनकी पत्नी डिंपल यादव भी चुनावी मैदान में थीं। राहुल गांधी को रायबरेली में क़रीब चार लाख मतों से जीत मिली है। यूपी के चुनाव में हैरान करने वाली बात यह रही कि अमेठी सीट पर बीजेपी की कद्दावर नेत्री स्मृति ईरानी क़रीब एक लाख 67 हज़ार वोटों के अंतर से चुनाव हार गईं। गांधी परिवार से जुड़े किशोरी लाल शर्मा ने चुनावी पिच पर उन्हें बुरी तरह से परास्त कर दिया। स्मृति के लिए यह चुनाव बेहद डरावना साबित हुआ।

यूपी में बीजेपी का ख़राब प्रदर्शन पीएम मोदी के तीसरे टर्म की कई योजनाओं पर पानी फेर सकता है। मोदी-शाह के न चाहते हुए भी ऐसी नौबत आई है कि बगैर चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के वह सत्ता में टिके नहीं रह सकते। कानपुर-बुंदेलखंड में आने वाली 10 सीटों में से बीजेपी 5 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी, जबकि साल 2019 में बीजेपी सभी 10 सीटें जीत ली थी। अबकी बीजेपी का प्रदर्शन बेहद निराश करने वाला रहा। महोबा-हमीरपुर, बांदा-चित्रकूट व जालौन की सीटों पर सपा ने विजय पताका फहराई। बीजेपी को हराने में विपक्ष को पूरा एक दशक गुजर गया।

जालौन में केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा चुनाव हारे तो फतेहपुर में साध्वी निरंजन ज्योति हैट्रिक नहीं लगा सकीं। राहत की बात यह रही कि बीजेपी के छह में से तीन सांसद अपनी साख बचाने में सफल रहे। अकबरपुर, फर्रुखाबाद और उन्नाव में बीजेपी प्रत्याशियों ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की। बीजेपी की झोली से इटावा, बांदा, फतेहपुर, हमीरपुर और जालौन सीटें खिसक गईं। इटावा में सपा के जितेंद्र दोहरे ने बीजेपी के प्रो. रामशंकर कठेरिया को पराजित किया तो बांदा में बीजेपी के आरके पटेल को सपा की कृष्णा पटेल को पटखनी दी। हमीरपुर में हुए तगड़े मुकाबले में बीजेपी के पुष्पेंद्र सिंह चंदेल, सपा के अजेंद्र सिंह से हार गए।

फतेहपुर सीट से लगातार दो बार से चुनाव जीत रहीं केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति को सपा के कद्दावर नेता नरेश उत्तम पटेल ने 33,199 वोटों के अंतर से पराजित किया। इसी क्रम में जालौन सीट पर केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप वर्मा हैट्रिक नहीं लगा सके। कानपुर नगर में बीजेपी के रमेश अवस्थी जीते तो अकबरपुर में देवेंद्र सिंह भोले।

महोबा-हमीरपुर सीट पर सपा प्रत्याशी अजेंद्र सिंह लोधी ने बीजेपी के पुष्पेंद्र सिंह चंदेल को तीन हजार से भी कम वोटों से हराकर जीत दर्ज की। कन्नौज सीट पर अखिलेश यादव करीब पौने दो लाख वोटों से चुनाव जीते। उन्नाव में साक्षी महाराज और फर्रुखाबाद में मुकेश राजपूत लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करने में कामयाब रहे।

यूपी के कई सांसदों के खिलाफ जनता का गुस्सा जमीन पर भी दिखा। संजीव बालियान को वोटरों ने अपने इलाके में नहीं घुसने दिया। कौशांबी के सांसद विनोद सोनकर का जमीन कब्जाने का वीडियो वायरल हुआ। गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे पर लगे किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के आरोपों ने तूल पकड़ा। टेनी उसे बचाने के आरोपों से घिरे रहे पर उन्हें हटाया नहीं गया। इसका असर खीरी के अलावा आसपास की सीटों पर पड़ा। खीरी के साथ धौरहरा, आंवला सीट भी बीजेपी हार गई। यूपी सरकार के भी चार मंत्री चुनाव मैदान में थे। इनमें से जयवीर सिंह मैनपुरी से और दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली से चुनाव हार गए।
 
पूर्वांचल में बिखर गई बीजेपी
 
पूर्वांचल के नतीजों को देखें तो राहुल-अखिलेश ने सियासी गलियारों में एक बड़ा बदलाव किया है। साल 2019 में पूर्वांचल की 27 सीटों में से बीजेपी ने 18 और उसकी सहयोगी अपना दल (एस) ने दो सीटें जीती थीं। अबकी बीजेपी को सिर्फ दस सीटों पर संतोष करना पड़ा। एनडीए में शामिल अपना दल (एस) को अपने खाते की राबर्ट्सगंज सीट गंवानी पड़ी। यहां अपना दल (एस) की प्रत्याशी रिंकी कोल की बुरी हार ने पहाड़ी इलाके में एक बड़ा सन्नाटा खींचा है। सपा ने इस सीट पर बीजेपी के पूर्व सांसद छोटेलाल खरवार को उतारा था।

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पूर्वांचल में भगवा रंग का वर्चस्व था, लेकिन अब यह बदलकर सुर्ख लाल हो गया है। आजमगढ़ से समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव और लालगंज से दरोगा प्रसाद सरोज ने जीत हासिल की है। गाजीपुर में सपा के अफजाल अंसारी ने जीत दर्ज की है। घोसी में राजीव राय ने सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को हराया है। बलिया में पहली बार कोई ब्राह्मण सांसद बना है। सपा के सनातन पांडेय ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे और राज्यसभा सदस्य नीरज शेखर को हराया है। राबर्ट्सगंज से सपा के छोटेलाल खरवार ने जीत हासिल की तो जौनपुर में सपा के टिकट पर बाबू सिंह कुशवाहा बंपर वोटों से विजयी हुए।

मछलीशहर (सुरक्षित) सीट से सपा की युवा प्रत्याशी अधिवक्ता प्रिया सरोज ने जीत दर्ज की है। 25 वर्षीय प्रिया पहली बार चुनाव लड़कर जीती हैं। सलेमपुर से सपा के रमाशंकर राजभर जीते हैं। पूर्वांचल में केंद्रीय मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय हैट्रिक नहीं बना सके, वह चंदौली से चुनाव हार गए। उन्हें सपा के वीरेंद्र सिंह ने मात दी है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे, बीजेपी से राज्यसभा सांसद नीरज शेखर भी चुनाव हार गए। यहां नारद राय भी ऐन वक्त पर बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन पार्टी को इसका कोई फायदा नहीं मिला।

भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ ने 2022 के उपचुनाव में सपा के धर्मेंद्र सिंह को हराया था, लेकिन इस चुनाव में वे सीट गंवा बैठे। गाजीपुर सीट पर बीजेपी ने पारसनाथ राय को मैदान में उतारा था। उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का करीबी माना जाता है, लेकिन वे भी सीट हार गए। पिछले चुनाव में सपा पूर्वांचल की सिर्फ आजमगढ़ सीट ही जीत पाई थी। उस समय अखिलेश यादव मैदान में उतरे थे। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ी तो बीजेपी ने लोकगायक निरहुआ को मैदान में उतारकर अपना कब्जा जमा लिया था। इस बार बाजी फिर पलट गई।

समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से आजमगढ़ के अलावा सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, मछलीशहर, बलिया, बस्ती, संतकबीर नगर और चंदौली सीट भी छीन ली। बीजेपी के कब्जे वाली इलाहाबाद सीट कांग्रेस की झोली में चली गई। बीजेपी को मछलीशहर सीट भी गंवानी पड़ी। बीएसपी ने पूर्वांचल की जिन आधा दर्जन सीटों पर अपना कब्जा जमाया था, वहां उसे मुंह की खानी पड़ी। लालगंज, जौनपुर, गाजीपुर, श्रावस्ती, घोसी और अंबेडकरनगर सीटें उसके हाथ से निकल गईं। बीएसपी ने सिर्फ सीटें ही लूज नहीं की, बल्कि उसके वोटर भी इंडिया गठबंधन के खेमे में जाकर खड़े हो गए।
 
कार्यकर्ताओं की नहीं सुनी
 
‘अमर उजाला’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ''बीजेपी की सीटें कम होने के पीछे सही टिकट वितरण न होने को भी एक बड़ी वजह माना जा रहा है। साल 2019 में बीजेपी ने 62 सीटें जीती थीं। बाद में उपचुनाव में रामपुर और आजमगढ़ सीट भी बीजेपी के खाते में आ गई थी। बीजेपी ने टिकट बांटने से पहले इन सभी सांसदों का सर्वे करवाया था। बाकायदा सभी लोकसभा क्षेत्रों में एक साल पहले ही विस्तारक भेजकर उनकी रिपोर्ट मंगवाई गई थी। टिकट वितरण का सुझाव देने के लिए बनी बीजेपी की जिला इकाइयों ने भी अधिकतर सांसदों को टिकट देने का समर्थन नहीं किया था, लेकिन जबरन इन सांसदों को दोबारा प्रत्याशी बनाकर कार्यकर्ताओं और वोटर्स पर थोप दिया गया। कुछ सांसदों और आलाकमान के करीबी परिवार के लोगों को भी टिकट दे दिया गया। स्थानीय कार्यकर्ताओं ने मन मसोस कर इन्हें चुनाव लड़ाया और नतीजा ठीक नहीं आ सका।''

''बीजेपी जिन प्रतीकों के दम पर चुनाव लड़ रही थी, वहां भी कामयाबी नहीं दिखाई पड़ी। बीजेपी संगठन इन जिलों तक संदेश पहुंचाने में सफल नहीं रहा। बीजेपी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर यूपी में चुनाव लड़ा, पर बीजेपी अयोध्या के करीब फैजाबाद, अम्बेडकर नगर, श्रावस्ती, बस्ती, संत कबीरनगर में चुनाव नहीं जीत सकी। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को छोड़कर उसका असर आसपास की सीटों पर नहीं दिखाई पड़ा। पार्टी बनारस के करीब की जौनपुर, घोसी, मछलीशहर, गाजीपुर, बलिया सीटें हार गई। कई जगह विधायकों और सांसदों के बीच सामंजस्य की कमी थी, पर संगठन ने इस पर ध्यान नहीं दिया।''

इंडिया गठबंधन की कामयाबी के पीछे वो मुद्दे थे, जिस ओर से बीजेपी ने आंख बंद कर लिया था। सपा-कांग्रेस ने बेरोजगारी, पेपर लीक, आर्थिक तंगी, खेती-किसानी, आरक्षण और संविधान को कमज़ोर करने का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाया था। दोनों पार्टियों ने लोगों के बीच आरक्षण का मुद्दा भी उठाया था। राहुल गांधी ने भारतीय सेना में भर्ती के लिए अग्निवीर स्कीम पर भी सवाल उठाए थे। युवाओं में अग्निवीर को लेकर नाराज़गी कई बार सड़कों पर भी देखने को मिली थी।
 
योगी के सिर पर फूटेगा ठीकरा?
 
वरिष्ठ पत्रकार एवं चुनाव विश्लेषक राजीव मौर्य कहते हैं कि यूपी में बीजेपी का 33 सीटों पर सिमट जाना सिर्फ पीएम मोदी के लिए ही नहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सर्वाधिक परेशान करने वाली ख़बर है। वह कहते हैं, ''यूपी के वोटरों ने मोदी और शाह के घमंड तो चनाचूर कर दिया। इंडिया गठबंधन वोटरों को यह समझाने में कामयाब रहा कि मोदी मजबूती के साथ सत्ता में आए तो बाबा साहेब के संविधान को बचा पाना आसान नहीं होगा। दलितों के बीच एक और बड़ा संदेश यह भी गया कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती, परोक्ष रूप से बीजेपी की हितैषी हैं। बीजेपी के पक्ष में प्रत्याशियों की अदला-बदली ने बसपा को तगड़ी चोट दी। दलितों के मन में यह बात गहराई तक बैठ गई है कि बीजेपी रही तो आरक्षण को कमज़ोर किया जा सकता है।''

''यूपी में बीजेपी के सिर्फ 33 सीटों पर सिमट जाने की वजह से मोदी-शाह मुख्यमंत्री योगी पर ठीकरा फोड़ सकते हैं। टिकट का बंटवारा भले ही शाह और मोदी ने मिलकर किया, लेकिन पराजय के बाद बीजेपी की करारी हार आदित्यानाथ के माथे पर चस्पा की जा सकती है। इस चुनाव के नतीजों ने यह भी साफ कर दिया कि हिन्दुत्व अब कोई मुद्दा नहीं है। अपने मुल्क के लोगों को न तानाशाही पसंद है और न ही जुमलेबाजी।''

राजीव कहते हैं, ''लगता है कि इस बार के चुनाव में आरएसएस ने भी हाथ खींचा था। शायद उसे लगने लगा था कि मोदी कुछ ज़्यादा ही मज़बूत हो रहे हैं और यह संघ के लिए ठीक नहीं है। दलित वोटरों ने मायावती को भी यह संदेश दिया है कि वो उनके जरखरीद गुलाम नहीं हैं। माया ने जब अपने भतीजे आकाश आनंद को मैदान से हटाया तो दलित समुदाय खासा नाराज हो गया। इस चुनाव में मायावती बिल्कुल हाशिए पर चली गई हैं और उनकी वापसी अब मुश्किल लगती है। अब बीजेपी को नए सिरे से विचार करना होगा कि इस बार के चुनाव में यूपी में उसे इंडिया गठबंधन से तगड़ी मात क्यों खानी पड़ी? ''  

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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