गुजरात-हिमाचल के साथ यूपी सहित 5 राज्यों के उपचुनावों पर भी सभी की नजर, नतीजे 8 को

Written by Navnish Kumar | Published on: December 7, 2022
गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव की वोटों की कल 8 को गिनती है। अनुमानों का दौर जारी है। बीजेपी, कांग्रेस की टक्कर के बीच आम आदमी पार्टी की परफॉर्मेंस पर लोगों की निगाहें टिकी हैं। इन दोनों राज्यों के अलावा दिल्ली में बहुप्रतीक्षित एमसीडी चुनाव हुए हैं, जहां बीजेपी के 15 साल के शासन पर केजरीवाल की झाड़ू चल गई है, ऐसा माना जा रहा है। चुनावों के इस माहौल में यूपी, राजस्थान, ओडिशा, बिहार छत्तीसगढ़ की कई छोटी बड़ी राजनीतिक पार्टियों का भी लिटमस टेस्ट है। इन राज्यों की 6 विधानसभा सीटों और यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव है जिनके नतीजों पर भी सभी की नजर है। दरअसल UP में मुलायम, आजम की विरासत दांव पर है और नतीजे चौंका सकते हैं। 



उत्तर प्रदेश में दो विधानसभा सीटों और लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव हुआ है। हालांकि इन तीनों सीटों के नतीजों से राज्य सरकार या केंद्र सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना है। इसके बावजूद भाजपा ने पूरी ताकत लगा कर विधानसभा का चुनाव लड़ा। इसका कारण यह है कि लोकसभा सीट दिवंगत मुलायम सिंह की है और एक विधानसभा सीट आजम खान की है। यूपी के उपचुनाव इसलिए भी ज्यादा दिलचस्प हैं कि मुलायम और आजम दोनों समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे हैं और दोनों की बड़ी राजनीतिक विरासत दांव पर है। खास यह भी कि यूपी में बसपा व कांग्रेस ये उपचुनाव नहीं लड़ रही है। ऐसे में दलित वोट में चंद्रशेखर आजाद (रावण) के असर को भी परखा जाना है। खतौली में सपा-रालोद व आजाद समाज पार्टी का गठबंधन हैं।

अगर मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट भाजपा जीते तो यह समाजवादी पार्टी के लिए बड़े खतरे का संकेत होगा। रामपुर सीट पर आजम खान के उम्मीदवार को हराने से बड़ी मैसेजिंग होगी तो मैनपुरी जीतने से भाजपा यादव वोट हासिल करने का दावा करेगी, जिससे आगे के चुनाव की तस्वीर बदलेगी। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और रामपुर के नेता आजम खान इन दोनों चुनावों के नतीजों का असर जानते हैं। इसलिए दोनों ने पूरी ताकत लगाई। अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारा ताकि मुलायम सिंह की विरासत पर परिवार का दावा बना रहे और यादव मतदाताओं में किसी तरह का कंफ्यूजन न रहे। 

दूसरी ओर देखा जाए तो विधानसभा की छह और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव पांच राज्यों की सरकारों के लिए बड़ी चुनौती हैं। इनमें तीन राज्य ऐसे हैं, जहां अगले एक से डेढ़ साल में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले यह संभवतः आखिरी उपचुनाव है। इन उपचुनावों में जो पार्टी जीतेगी वह अपनी हवा बनाएगी और उससे चुनाव का मूड जाहिर होगा। ये राज्य हैं राजस्थान, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा। इनमें से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं और ओड़िशा में डेढ़ साल बाद लोकसभा के साथ चुनाव हैं। अलग अलग नजर डाले तो हर कहीं नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं।

मैनपुरी लोकसभा सीट, उत्तर प्रदेश 

अक्टूबर में मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी लोकसभा सीट खाली हो गई थी। यहां सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की विरासत के साथ समाजवादी पार्टी का सब कुछ दांव पर लगा है। इस चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है। मैनपुरी सीट का रिजल्ट देश की राजनीति में अखिलेश का राजनीतिक कद तय करेगा। इस चुनाव के नतीजे पर ना सिर्फ यूपी बल्कि पूरे देश की निगाहें टिकी हैं कि क्या सपा उस सीट को बरकरार रख पाएगी जिसे मुलायम ने 1996 से 5 बार जीता है, जिसमें 2019 का लोकसभा चुनाव भी शामिल है। इस सीट पर अगर बीजेपी की जीत होती है तो यह विपक्षी दल के लिए एक बड़ा झटका होगा क्योंकि हाल में सपा ने अपना गढ़ आजमगढ़ खो दिया था। यहां सपा ने पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को मैदान में उतारा है। वहीं बीजेपी की तरफ से प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य हैं, जो अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव के पूर्व सहयोगी थे। 

रामपुर विधानसभा सीट, उत्तर प्रदेश 

रामपुर में सपा ने आजम खान के करीबी को टिकट दिया और आजम खान ने अपनी ताकत और प्रतिष्ठा दोनों दांव पर लगा कर चुनाव लड़ाया है। 2022 विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 14 फरवरी को मतदान हुआ था। इसमें सपा के आजम खान निर्वाचित हुए थे लेकिन 2019 में नफरती भाषण मामले में अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद आजम खान को विधायक के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था। उनकी विधायकी खारिज करने के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए। जून में रामपुर लोकसभा क्षेत्र जीतने के बाद बीजेपी रामपुर में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की उम्मीद कर रही है। वहीं सपा का इस सीट पर जीत दर्ज करना इसलिए अहम है क्योंकि रामपुर लोकसभा क्षेत्र को आजम खान का गढ़ माना जाता है। फिलहाल बीजेपी और सपा के बीच इस सीट पर कब्जा करने की लड़ाई है। यहां बीजेपी उम्मीदवार आकाश सक्सेना, पार्टी के पूर्व विधायक शिव बहादुर सक्सेना के बेटे, खान के सहयोगी असीम राजा के खिलाफ हैं।

खतौली विधानसभा सीट, उत्तर प्रदेश 

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खतौली सीट भाजपा के विक्रम सिंह सैनी के अयोग्य होने से खाली हुई थी। सपा ने यह सीट सहयोगी पार्टी रालोद के लिए छोड़ी है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट और किसान वोट पर संपूर्ण दावेदारी करने वाले रालोद नेता जयंत सिंह के लिए यह चुनाव बेहद अहम था। इस सीट पर बीजेपी विधायक विक्रम सिंह सैनी की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने के बाद उपचुनाव की घोषणा हुई थी। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में 11 अक्टूबर 2022 को मुजफ्फरनगर की विशेष अदालत ने विक्रम सैनी को दंगों का दोषी पाया और उन्हें 2 साल कैद की सजा सुनाई थी। इसी से 4 नवंबर को उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। वर्तमान में खतौली सीट पर हुए उपचुनाव में रालोद-सपा गठबंधन से मदन भैया मैदान में हैं। वहीं बीजेपी ने विक्रम सिंह सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को मैदान में उतारा गया है. बसपा और कांग्रेस मुकाबले से दूर रहे हैं।

इस सीट पर बीजेपी का जीतना इसलिए जरूरी है क्योंकि बीजेपी विधायक रहे विक्रम सिंह सैनी लगातार दो बार विधायक चुने जा चुके हैं। पहली बार उन्होंने साल 2017 में सपा के चंदन सिंह चौहान को 31,374 वोट से हराया था। वहीं दूसरे चुनाव यानी 2022 में हुए चुनाव में एक बार फिर विक्रम सैनी की ही जीत हुई थी। उन्होंने रालोद के राजपाल सैनी को 16,345 वोट से हराया था।

पदमपुर विधानसभा सीट, ओडिशा

ओड़िशा का मामला और दिलचस्प है क्योंकि पिछले महीने नवंबर में हुए उपचुनाव में भाजपा ने सत्तारूढ़ बीजू जनता दल को हरा कर जीत हासिल की थी। भद्रक इलाके में आने वाली धामनगर विधानसभा सीट पिछले चुनाव में भाजपा ने जीती थी और उपचुनाव में भी उसने यह सीट जीत ली। इस लिहाज से यह बड़ी बात नहीं होनी चाहिए थी लेकिन बीजू जनता दल का रिकॉर्ड है कि वह 2009 के बाद हर उपचुनाव में जीती है। सो, धामनगर हारने के बाद वह सावधान हो गई और पद्मपुर सीट पर बेहतर रणनीति के साथ लड़ी है। पद्मपुर सीट पर बीजद विधायक बिजय रंजन सिंह बरिहा जीते थे, जिनके निधन से यह सीट खाली हुई है। इसलिए बीजद के लिए यह और प्रतिष्ठा वाला मुकाबला है।

बीजू जनता दल (बीजद) के विधायक बिजय रंजन सिंह बरिहा का अक्टूबर में निधन हो गया था जिसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव के नतीजे पर सबकी नजर इसलिए है क्योंकि भाजपा एक बार फिर अपनी सफलता को दोहराने की उम्मीद कर रही है। वहीं बीजद के लिए ये सीट कितना महत्वपूर्ण यह इससे भी पता चलता है कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने पिछले हफ्ते तीन साल में पहली बार प्रचार अभियान शुरू किया था। यहां 10 उम्मीदवार मैदान में हैं। बीजद ने 29 वर्षीय वकील बिजय की बेटी वर्षा सिंह बरिहा को मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी पूर्व विधायक प्रदीप पुरोहित हैं। पुरोहित 2019 में बिजया से 5,734 वोटों से हार गए थे।

वैसे पदमपुर सीट 2009 तक अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी लेकिन अब यह सामान्य सीट है। सीट पर बरिहा परिवार का कब्ज़ा रहा है जो बिंझाल समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बिजय रंजन सिंह बरिहा इस सीट से पांच बार विधायक रहे। अक्टूबर में उनके निधन की वजह से इस सीट पर उपचुनाव कराया जा रहा है। इससे पहले उनके पिता बिक्रमादित्य सिंह बरिहा तीन बार विधायक रहे थे।

सरदार शहर विधानसभा सीट, राजस्थान

राजस्थान की सरदार शहर विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव हुआ है। यह सीट पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी और कांग्रेस के भंवरलाल शर्मा के निधन से सीट खाली हुई है। पार्टी में चल रही गुटबाजी और प्रभारी महासचिव अजय माकन के इस्तीफे के बीच चुनाव हुआ है। अशोक गहलोत सरकार के लिए यह सीट बहुत प्रतिष्ठा वाली है। सरदारशहर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस की निगाहें  हैं, जो उन्हें उम्मीद है कि 2024 के चुनावों में उन्हें कुछ गति प्रदान करेगी। मैदान में तीसरी पार्टी हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) है। इस सीट पर कांग्रेस ने शर्मा के बेटे अनिल को मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी के उम्मीदवार पूर्व विधायक अशोक कुमार पिंचा हैं, जो पूर्व में छह बार इस सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। आरएलपी के उम्मीदवार लालचंद मूंड हैं।

भानुप्रतापपुर विधानसभा, छत्तीसगढ़

ऐसे ही छत्तीसगढ़ की भानुप्रतापपुर सीट कांग्रेस के मनोज सिंह मंडावी के निधन से खाली हुई थी। सो, भूपेश बघेल सरकार के लिए भी यह सीट बचाने की बड़ी चुनौती है। सिटिंग कांग्रेस विधायक मनोज सिंह मंडावी का 16 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनके अचानक निधन के कारण छत्तीसगढ़ के नक्सली प्रभावित भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट खाली हो गई थी और उपचुनाव के लिए 5 दिसंबर को मतदान किया गया। इस उपचुनाव के नतीजे भी 8 दिसंबर को आएंगे। हालांकि नतीजों का सरकार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इस जीत के कारण पार्टी जीती हुई पार्टी को मजबूती मिलेगी। इस सीट पर 7 उम्मीदवार हैं, लेकिन मुकाबले को कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस ने मंडावी की पत्नी सावित्री को मैदान में उतारा है जबकि बीजेपी से पूर्व विधायक ब्रह्मानंद नेताम मैदान में हैं।

कुढ़नी विधानसभा सीट, बिहार

बिहार में भी एक सीट पर उपचुनाव हुआ है लेकिन राज्य सरकार के लिए यह मामला वैसा नहीं है, जैसा बाकी तीन राज्यों में था। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के अंत में होना है। इसी से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद भी अपनी सहयोगी पार्टी राजद के नेता व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ जाकर कुढ़नी में चुनाव प्रचार किया। यह सीट उनके लिए प्रतिष्ठा वाली इसलिए है क्योंकि राजद ने अपनी जीती हुई सीट उनकी पार्टी जदयू के लिए छोड़ी थी। अक्टूबर में सीबीआई अदालत द्वारा धोखाधड़ी के एक मामले में दोषी ठहराए गए राष्ट्रीय जनता दल के विधायक अनिल कुमार साहनी को अयोग्य घोषित कर दिए जाने के बाद यहां उपचुनाव हुआ है। लिहाजा इस सीट के नतीजे का बिहार की राजनीति पर बड़ा असर होगा।

इस सीट के नतीजे पर इसलिए भी सबकी नजर है क्योंकि जदयू और भाजपा के बीच अगस्त में गठबंधन टूटने के बाद से यह पहली चुनावी लड़ाई है। राजद ने जदयू को अपना पूरा समर्थन दिया है। इस उपचुनाव के परिणाम से पता चलेगा कि क्या राजद अपने सहयोगी दल को अपने वोट स्थानांतरित कर सकता है। इस सीट पर 13 उम्मीदवार मैदान में हैं लेकिन मुकाबला मुख्य रूप से जदयू के मनोज सिंह कुशवाहा और बीजेपी के केदार गुप्ता के बीच है, दोनों ही पहले इस सीट पर अपनी जीत दर्ज कर चुके हैं।

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