आरोप है कि चयन समिति ने योग्यता के नाम पर सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारियों को जानबूझकर दरकिनार कर सवर्ण उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी।

साभार : द मूकनायक
राजस्थान कैडर में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के चयन प्रक्रिया को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि मुख्य सचिव सुधांशु पंत की अध्यक्षता वाली समिति ने जानबूझकर अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों के 14 योग्य अधिकारियों को नजरअंदाज कर दिया और सभी चार रिक्त पदों पर केवल सवर्ण समुदाय के अधिकारियों का चयन किया गया। इस कदम की व्यापक रूप से निंदा की जा रही है और इसे संविधान तथा सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन बताया जा रहा है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला 'गैर-राज्य सिविल सेवा' (Non-State Civil Service) कोटे के तहत किए गए चयन से जुड़ा है, जिसमें राज्य सिविल सेवाओं के अधिकारियों को पदोन्नत कर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में शामिल किया जाता है। 'ट्राइबल आर्मी' के संस्थापक हंसराज मीणा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना और चयन प्रक्रिया से जुड़े आंकड़ों का हवाला देते हुए इन गंभीर आरोपों को सामने रखा है।
हंसराज मीणा के अनुसार, इस चयन प्रक्रिया के तहत कुल 18 अधिकारियों का इंटर्व्यू लिया गया था। इनमें से 14 अधिकारी अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों से थे, जबकि केवल 4 अधिकारी सवर्ण समुदाय से थे। हैरानी की बात यह है कि अंतिम चयन सूची में SC/ST/OBC श्रेणियों का एक भी अधिकारी शामिल नहीं किया गया और चयनित सभी चार अधिकारी सवर्ण समुदाय से हैं। चयनित अधिकारियों में डॉ. नीतीश शर्मा, अमिता शर्मा, नरेंद्र कुमार मंघानी और नरेश कुमार गोयल शामिल हैं।
केंद्र सरकार द्वारा 8 अगस्त को जारी एक अधिसूचना में इन चार अधिकारियों की राजस्थान कैडर में नियुक्ति की पुष्टि की गई है। यह चयन 2022 की सिलेक्ट लिस्ट के तहत किया गया था, जिसका उद्देश्य 1 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2022 के बीच हुई रिक्तियों को भरना था। हालांकि, अब इस चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।
हंसराज मीणा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि 14 योग्य SC/ST/OBC उम्मीदवारों को दरकिनार कर सभी पदों को एक ही जाति के लोगों को देना संविधान और सामाजिक न्याय की खुली अवहेलना है। उन्होंने ट्वीट किया, "यह स्पष्ट रूप से अन्याय है। संविधान कहता है कि सभी को समान अधिकार है। लेकिन जब सभी सीटें केवल एक जाति को दी जाती हैं, तो यह संविधान और सामाजिक न्याय दोनों के खिलाफ है।" उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से तत्काल स्पष्टीकरण की मांग की है और चुनौती दी है कि यदि जवाब नहीं दिया गया तो मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
ओबीसी महासभा ने भी इस चयन प्रक्रिया की निंदा की है और इसे जातीय पक्षपात से ग्रसित बताया है। संगठन ने इस चयन को संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन करार दिया है।
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है। सोशल मीडिया एक्स (पूर्व ट्विटर) पर किए गए पोस्ट में उन्होंने लिखा, "सरकार को SC, ST, OBC, MBC और अल्पसंख्यक वर्गों से एक भी योग्य अधिकारी नहीं मिला! यही कारण है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जाति जनगणना के पक्ष में हैं ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके और सभी को उनकी जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी मिल सके।"
चयन प्रक्रिया में अब तक सभी वर्गों के योग्य अधिकारियों को योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर समान अवसर दिया जाता रहा है। लेकिन यह पहली बार है जब राज्य के इतिहास में सभी चार सीटें केवल सामान्य (जनरल) वर्ग के अधिकारियों से भरी गई हैं। यह स्पष्ट रूप से जातिवादी मानसिकता को दर्शाने का मामला है।
बीजेपी सरकार, जो 36 समुदायों (जिसका तात्पर्य जातियों से है, जिन्हें छत्तीस कौम कहा जाता है) के वोट लेकर सत्ता में आई है, वह जातिवादी मानसिकता वाले अधिकारियों के प्रति नहीं, बल्कि जनता के प्रति जवाबदेह है।
यह मुद्दा एक बार फिर से सिविल सेवा चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा को SC/ST आरक्षणों पर लागू करने संबंधी एक याचिका लंबित है, जो आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने की बात करती है।
आरक्षण से 'क्रीमी लेयर' को बाहर करने के आलोचक इस बात पर जोर देते हैं कि 1930-32 के राउंड टेबल सम्मेलन और संविधान सभा की बहसों के दौरान बाबासाहेब अम्बेडकर ने आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी SC/ST व्यक्तियों के लिए सामाजिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की वकालत की थी। आलोचक यह भी बताते हैं कि आर्थिक रूप से संपन्न SC/ST व्यक्तियों को भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जैसे काम के दौरान झूठे आरोप, बर्खास्तगी या निचले स्तर पर पदों का मिलना। यदि उन्हें आरक्षण से बाहर किया गया, तो वे सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने को मजबूर होंगे, जहां पक्षपाती चयन बोर्ड उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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साभार : द मूकनायक
राजस्थान कैडर में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के चयन प्रक्रिया को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि मुख्य सचिव सुधांशु पंत की अध्यक्षता वाली समिति ने जानबूझकर अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों के 14 योग्य अधिकारियों को नजरअंदाज कर दिया और सभी चार रिक्त पदों पर केवल सवर्ण समुदाय के अधिकारियों का चयन किया गया। इस कदम की व्यापक रूप से निंदा की जा रही है और इसे संविधान तथा सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन बताया जा रहा है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला 'गैर-राज्य सिविल सेवा' (Non-State Civil Service) कोटे के तहत किए गए चयन से जुड़ा है, जिसमें राज्य सिविल सेवाओं के अधिकारियों को पदोन्नत कर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में शामिल किया जाता है। 'ट्राइबल आर्मी' के संस्थापक हंसराज मीणा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना और चयन प्रक्रिया से जुड़े आंकड़ों का हवाला देते हुए इन गंभीर आरोपों को सामने रखा है।
हंसराज मीणा के अनुसार, इस चयन प्रक्रिया के तहत कुल 18 अधिकारियों का इंटर्व्यू लिया गया था। इनमें से 14 अधिकारी अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों से थे, जबकि केवल 4 अधिकारी सवर्ण समुदाय से थे। हैरानी की बात यह है कि अंतिम चयन सूची में SC/ST/OBC श्रेणियों का एक भी अधिकारी शामिल नहीं किया गया और चयनित सभी चार अधिकारी सवर्ण समुदाय से हैं। चयनित अधिकारियों में डॉ. नीतीश शर्मा, अमिता शर्मा, नरेंद्र कुमार मंघानी और नरेश कुमार गोयल शामिल हैं।
केंद्र सरकार द्वारा 8 अगस्त को जारी एक अधिसूचना में इन चार अधिकारियों की राजस्थान कैडर में नियुक्ति की पुष्टि की गई है। यह चयन 2022 की सिलेक्ट लिस्ट के तहत किया गया था, जिसका उद्देश्य 1 जनवरी 2022 से 31 दिसंबर 2022 के बीच हुई रिक्तियों को भरना था। हालांकि, अब इस चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं।
हंसराज मीणा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि 14 योग्य SC/ST/OBC उम्मीदवारों को दरकिनार कर सभी पदों को एक ही जाति के लोगों को देना संविधान और सामाजिक न्याय की खुली अवहेलना है। उन्होंने ट्वीट किया, "यह स्पष्ट रूप से अन्याय है। संविधान कहता है कि सभी को समान अधिकार है। लेकिन जब सभी सीटें केवल एक जाति को दी जाती हैं, तो यह संविधान और सामाजिक न्याय दोनों के खिलाफ है।" उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से तत्काल स्पष्टीकरण की मांग की है और चुनौती दी है कि यदि जवाब नहीं दिया गया तो मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए।
ओबीसी महासभा ने भी इस चयन प्रक्रिया की निंदा की है और इसे जातीय पक्षपात से ग्रसित बताया है। संगठन ने इस चयन को संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन करार दिया है।
राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है। सोशल मीडिया एक्स (पूर्व ट्विटर) पर किए गए पोस्ट में उन्होंने लिखा, "सरकार को SC, ST, OBC, MBC और अल्पसंख्यक वर्गों से एक भी योग्य अधिकारी नहीं मिला! यही कारण है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जाति जनगणना के पक्ष में हैं ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके और सभी को उनकी जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी मिल सके।"
चयन प्रक्रिया में अब तक सभी वर्गों के योग्य अधिकारियों को योग्यता और वरिष्ठता के आधार पर समान अवसर दिया जाता रहा है। लेकिन यह पहली बार है जब राज्य के इतिहास में सभी चार सीटें केवल सामान्य (जनरल) वर्ग के अधिकारियों से भरी गई हैं। यह स्पष्ट रूप से जातिवादी मानसिकता को दर्शाने का मामला है।
बीजेपी सरकार, जो 36 समुदायों (जिसका तात्पर्य जातियों से है, जिन्हें छत्तीस कौम कहा जाता है) के वोट लेकर सत्ता में आई है, वह जातिवादी मानसिकता वाले अधिकारियों के प्रति नहीं, बल्कि जनता के प्रति जवाबदेह है।
यह मुद्दा एक बार फिर से सिविल सेवा चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा को SC/ST आरक्षणों पर लागू करने संबंधी एक याचिका लंबित है, जो आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने की बात करती है।
आरक्षण से 'क्रीमी लेयर' को बाहर करने के आलोचक इस बात पर जोर देते हैं कि 1930-32 के राउंड टेबल सम्मेलन और संविधान सभा की बहसों के दौरान बाबासाहेब अम्बेडकर ने आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी SC/ST व्यक्तियों के लिए सामाजिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की वकालत की थी। आलोचक यह भी बताते हैं कि आर्थिक रूप से संपन्न SC/ST व्यक्तियों को भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जैसे काम के दौरान झूठे आरोप, बर्खास्तगी या निचले स्तर पर पदों का मिलना। यदि उन्हें आरक्षण से बाहर किया गया, तो वे सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने को मजबूर होंगे, जहां पक्षपाती चयन बोर्ड उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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