उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पांचवें दौर में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सरीखे दिग्गजों की किस्मत का फ़ैसला ईवीएम में बंद हो गया। यूपी में लखनऊ, मोहनलालगंज, रायबरेली, अमेठी, जालौन, झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, बाराबंकी, फैज़ाबाद, कैसरगंज और गोंडा में बीजेपी और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के बीच सीधा मुकाबला है। पांचवें चरण में बीजेपी का स्ट्राइक रेट बहुत ज्यादा रहा है। इसके बावजूद इस बार इंडिया गठबंधन करीब छह सीटों पर कब्जा कर सकता है। पहले विपक्ष के पास रायबरेली की सिर्फ एक सीट हुआ करती थी।
Image Courtesy: Kisan Tak
पांचवें चरण में कुल 14 सीटों पर चुनाव हुआ है। पिछली बार 14 में से 13 सीटें बीजेपी के कब्जे में थीं। कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट ही जीत पाई थी। इस बार रायबरेली सीट से कांग्रेस के राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं और वह केरल की वायनाड सीट से भी मैदान में हैं। यह दौर कई मामले में महत्वपूर्ण है। लखनऊ, कैसरगंज, अमेठी और रायबरेली वीआईपी सीटें हैं। चौदह में तेरह सीटें बीजेपी ने जीती थीं। रायबरेली को छोड़कर सभी सीटों पर बीजेपी ने अपना कब्जा जमा लिया था। अवध में इलाके में छह सीटें हैं। इस इलाके में अबकी बीजेपी के लिए चुनौतियां कड़ी हैं। बुंदेलखंड की जालौन, झांसी, हमीरपुर और बांदा में बीजेपी की स्थिति मजबूत कही जा सकती है। कांग्रेस का जनाधार नहीं बचा है। बांदा में सपा कुछ उम्मीद लगा सकती है।
तीन सीटों पर सीधा मुकाबला
पूर्वांचल की तीन सीटें, कौशांबी, कैसरगंज और गोंडा हैं, जहां एनडीए और इंडिया गठबंधन में सीधा मुकाबला हो सकता है। कौशांबी में सपा के पक्ष में स्थिति थोड़ी ठीक है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार बदलाव यह हुआ है कि राहुल गांधी के साथ अखिलेश के आने से दोनों दलों को काफी लाभ मिला है। मुस्लिम वोटर अब पूरी तरह से इंडिया गठबंधन के पक्ष में खड़े रहे। वोटरों का रुझान यह रहा कि इस बार विपक्ष नहीं, जनता चुनाव लड़ रही है। लखनऊ बीजेपी की मजबूत सीट रही है। इस सीट पर बीजेपी आसानी से चुनाव जीत सकती है।
फैजाबाद, अयोध्या का हिस्सा है। राम मंदिर निर्माण के बाद से अयोध्या की चर्चा देश दुनिया में है। यही वजह है कि यहां की फैजाबाद लोकसभा सीट पर सबकी नजरें हैं। भाजपा की टिकट पर लल्लू सिंह मैदान में हैं। वे 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। समाजवादी पार्टी ने अवेधश प्रसाद और बसपा ने सच्चिदानंद पांडेय को टिकट दिया है। राममंदिर के निर्माण के चलते यहां बीजेपी को कुछ फायदा मिल सकता है। इसके बावजूद विपक्ष के लिए यह असंभव सीट नहीं हैं। फिर भी यहां बीजेपी की राह बहुत आसान नहीं है। बाराबंकी और मोहनलालगंज दोनों सीटों पर सपा काफी मजबूत दिख रही है। कुल मिलाकर विपक्ष लगभग आधी सीटों पर अपनी विजय पताका फहरा सकती है।
रायबरेली में कांग्रेस बहुत मजबूत
रायबरेली सीट नेहरू-गांधी परिवार की पारंपरिक सीट मानी जाती रही है। यहां से सोनिया गांधी साल 2004 से लगातार सांसद रही हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता ले ली। कांग्रेस ने रायबरेली से राहुल गांधी को प्रत्याशी बनाया है। यहां राहुल का मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी दिनेश सिंह से हो रहा है। साल 2019 के चुनाव में भी दिनेश सिंह ही सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में थे।
पांचवें चरण में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भाग्य भी ईवीएम में बंद हुआ। वह साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट (लखनऊ) से संसद में पहुंचे थे। वो तीसरी बार फिर मैदान में हैं। अबकी उनका मुक़ाबला, लखनऊ सेंट्रल से विधायक और समाजवादी पार्टी के नेता रविदास मेहरोत्रा से है। बीएसपी ने सरवर मलिक को यहां से चुनाव मैदान में उतारा है। रायबरेली में बीजेपी की राह आसान नहीं है। यहां विधानसभा में भले ही लोग अपने पसंद के प्रत्याशियों को चुनते हैं, लेकिन लोकसभा में वो कांग्रेस के साथ खड़े होते हैं। इस बार इस सीट पर राहुल गांधी बंपर वोटों से चुनाव जीत सकते हैं।
स्मृति के लिए अमेठी की राह आसान नहीं
यूपी में पांचवें चरण की तीसरी सबसे हॉट सीट थी अमेठी। इस सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी मैदान में हैं। साल 1980 के बाद से यहां गांधी परिवार का कब्जा था। अमेठी लोकसभा सीट से राहुल गांधी तीन चुनाव जीते, लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति इरानी ने उन्हें 5,120 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। अब वे तीसरी बार मैदान में हैं। कांग्रेस ने स्मृति ईरानी के सामने गांधी परिवार के वफादार केएल शर्मा को टिकट दिया है। बसपा से नन्हे सिंह चौहान चुनाव लड़ रहे हैं। पांच निर्दलीय समेत कुल 13 प्रत्याशी यहां से मैदान में उतरे हैं। इस बार स्मृति इरानी का मुक़ाबला कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा से है। किशोरी लंबे समय से गांधी परिवार का चुनाव प्रबंधन का काम देखते रहे हैं। वह अमेठी और रायबरेली सीट पर चुनाव की कमान संभाल चुके हैं। अबकी किशोरी लाल ख़ुद चुनावी मैदान में हैं।
अमेठी में स्मृति ईरानी संकट में हैं। उनके व्यवहार से गैर तो गैर, बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता तक नाराज हैं। इस सीट पर स्मृति ईरानी अगर चुनाव हार जाती हैं तो किसी को चकित होने की जरूरत नहीं है। अगर वो हारती हैं तो एक ऐसे गुमनाम नेता से हारेंगी, जो खबरिया चैनलों की सुर्खियों से दूर रहे हैं। अमेठी में गांधी परिवार से बड़ी संख्या में लोग वोटर जुड़े हैं। इस सीट पर स्मृति हारती हैं तो बीजेपी की भद्द पिट सकती है।
लखनऊ में बीजेपी मजबूत
लखनऊ सीट लंबे समय से बीजेपी का गढ़ मानी जाती रही है। साल 1991 से 2004 तक यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीत रहे थे। इसके बाद साल 2009 में लालजी टंडन ने लखनऊ से जीत दर्ज़ की। साल 2014 और 2019 के चुनाव में राजनाथ सिंह यहां से संसद सदस्य चुने गए। पिछली बार राजनाथ सिंह ने सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा को क़रीब साढ़े तीन लाख वोटों के अंतर से करारी शिकस्त दी थी।
कैसरगंज से करण भूषण सिंह पहली बार चुनाव मैदान में हैं। पहले उनके पिता और कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण के कारण करण का नाम भी मीडिया में उछलता रहा है। यौन उत्पीड़न मामले में अभियुक्त बृजभूषण की जगह अब उनके बेटे करण भूषण शरण सिंह को बीजेपी ने टिकट दिया है। इस वजह से समूचे देश की निगाहें कैसरगंज लोकसभा सीट पर हैं। बृजभूषण की जगह बीजेपी ने उनके बेटे करण भूषण सिंह को यहां से टिकट दिया है। समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मण बहुल सीट पर भगत राम मिश्र को मैदान में उतारा है। वह श्रावस्ती के बीजेपी के पूर्व सांसद दद्दन मिश्र के बड़े भाई हैं। भगत राम मिश्र बहराइच के रहने वाले हैं। सपा से पहले वह कांग्रेस में थे।
कैसरगंज में बंटे दिखे वोटर
बीजेपी के करण सिंह का सीधा मुक़ाबला समाजवादी पार्टी उम्मीदवार भगतराम मिश्र से है। पिछले तीन बार से लगातार बृजभूषण शरण सिंह यहां से सांसद चुने गए थे। साल 2009 में वो समाजवादी पार्टी से चुनाव जीते और उसके बाद 2014 व 2019 में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने जीत दर्ज की। इस सीट पर पहले से ही समाजवादी पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ती रही है। सपा के बेनी प्रसाद वर्मा साल 1996,1998, 1999 और 2004 लगातार चार बार कैसरगंज सीट जीत चुके हैं। मौजूदा समय में कैसरगंज लोकसभा की पांच विधानसभाओं में से चार विधानसभा तरबगंज, करनैलगंज, कटरा और पयागपुर पर बीजेपी का क़ब्ज़ा है जबकि कैसरगंज विधानसभा सपा के पास है यहां से आनंद यादव विधायक हैं।
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय संयुक्त सचिव मधु गर्ग कहती हैं, ''करण भूषण की राह यहां इतनी आसान भी नहीं है। कैसरगंज के वोटर दो खेमों में बंटे हुए हैं। कोई मोदी के समर्थन में है तो कोई उनके विरोध में है। सबको पता है कि बृजभूषण पर महिला खिलाड़ियों के गंभीर आरोप हैं और इसका असर चुनाव के नतीजों पर भी पड़ सकता है।
कौशांबीः अनुप्रिया की प्रतिष्ठ दांव पर
कौशांबी सीट पर बीजेपी प्रत्याशी विनोद सोनकर के लिए यह सीट आसान नहीं हैं। मतदान से पहले एक खबरिया चैनल पर उन्होंने ‘ब्राह्मण समुदाय को लालची’ बता दिया था। इसके कुछ ही दिन बाद उन्होंने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में ब्राह्मणों को ‘मनुवादी’ भी कहा था। इससे ब्राह्मण समुदाय ने उनके खिलाफ मतदान किया। ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी आखिरी दिन तक हर संभव कोशिश करती रही, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सकी। सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं, वैश्य और राजपूत वोटरों में इन्हें लेकर काफी नाराजगी थी।
इंडिया गठबंधन ने कौशांबी सीट पर पुष्पेंद्र सरोज को मैदान में उतारा है। साल 1997 से पहले कौशांबी इलाहाबाद ज़िले का हिस्सा हुआ करता था। साल 2009 से पहले इस लोकसभा सीट का नाम चायल था और तब यह सुरक्षित सीट हुआ करती थी। इस क्षेत्र में राजा भैया का भी मजबूत आधार रहा है। अबकी उन्होंने किसी प्रत्याशी का फेवर नहीं किया। इस सीट पर बीजेपी के लिए चुनौतियां आसान नहीं हैं। इस सीट पर अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल की प्रतिष्ठा दांव पर है।
यूपी की फतेहपुर लोकसभा सीट पर भी सबकी नजरें हैं। यहां से केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। उनके खिलाफ सपा ने पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को उतारा है। बसपा ने मनीष कुमार सचान को टिकट दिया है। यहां चार निर्दलीय समेत कुल 14 प्रत्याशी मैदान में हैं। यहां इंडिया और एनडीए में कड़ा मुकाबला है। इस बार बीजेपी की निरंजन ज्योति की राह बहुत आसान नहीं मानी जा रही है। फिलहाल इंडिया गठबंधन पांचवें चरण की 14 में से 6 सीटों पर अपनी मजबूत दावेदारी कर रहा है।
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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पांचवें चरण में कुल 14 सीटों पर चुनाव हुआ है। पिछली बार 14 में से 13 सीटें बीजेपी के कब्जे में थीं। कांग्रेस सिर्फ रायबरेली सीट ही जीत पाई थी। इस बार रायबरेली सीट से कांग्रेस के राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं और वह केरल की वायनाड सीट से भी मैदान में हैं। यह दौर कई मामले में महत्वपूर्ण है। लखनऊ, कैसरगंज, अमेठी और रायबरेली वीआईपी सीटें हैं। चौदह में तेरह सीटें बीजेपी ने जीती थीं। रायबरेली को छोड़कर सभी सीटों पर बीजेपी ने अपना कब्जा जमा लिया था। अवध में इलाके में छह सीटें हैं। इस इलाके में अबकी बीजेपी के लिए चुनौतियां कड़ी हैं। बुंदेलखंड की जालौन, झांसी, हमीरपुर और बांदा में बीजेपी की स्थिति मजबूत कही जा सकती है। कांग्रेस का जनाधार नहीं बचा है। बांदा में सपा कुछ उम्मीद लगा सकती है।
तीन सीटों पर सीधा मुकाबला
पूर्वांचल की तीन सीटें, कौशांबी, कैसरगंज और गोंडा हैं, जहां एनडीए और इंडिया गठबंधन में सीधा मुकाबला हो सकता है। कौशांबी में सपा के पक्ष में स्थिति थोड़ी ठीक है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार बदलाव यह हुआ है कि राहुल गांधी के साथ अखिलेश के आने से दोनों दलों को काफी लाभ मिला है। मुस्लिम वोटर अब पूरी तरह से इंडिया गठबंधन के पक्ष में खड़े रहे। वोटरों का रुझान यह रहा कि इस बार विपक्ष नहीं, जनता चुनाव लड़ रही है। लखनऊ बीजेपी की मजबूत सीट रही है। इस सीट पर बीजेपी आसानी से चुनाव जीत सकती है।
फैजाबाद, अयोध्या का हिस्सा है। राम मंदिर निर्माण के बाद से अयोध्या की चर्चा देश दुनिया में है। यही वजह है कि यहां की फैजाबाद लोकसभा सीट पर सबकी नजरें हैं। भाजपा की टिकट पर लल्लू सिंह मैदान में हैं। वे 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। समाजवादी पार्टी ने अवेधश प्रसाद और बसपा ने सच्चिदानंद पांडेय को टिकट दिया है। राममंदिर के निर्माण के चलते यहां बीजेपी को कुछ फायदा मिल सकता है। इसके बावजूद विपक्ष के लिए यह असंभव सीट नहीं हैं। फिर भी यहां बीजेपी की राह बहुत आसान नहीं है। बाराबंकी और मोहनलालगंज दोनों सीटों पर सपा काफी मजबूत दिख रही है। कुल मिलाकर विपक्ष लगभग आधी सीटों पर अपनी विजय पताका फहरा सकती है।
रायबरेली में कांग्रेस बहुत मजबूत
रायबरेली सीट नेहरू-गांधी परिवार की पारंपरिक सीट मानी जाती रही है। यहां से सोनिया गांधी साल 2004 से लगातार सांसद रही हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता ले ली। कांग्रेस ने रायबरेली से राहुल गांधी को प्रत्याशी बनाया है। यहां राहुल का मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी दिनेश सिंह से हो रहा है। साल 2019 के चुनाव में भी दिनेश सिंह ही सोनिया गांधी के खिलाफ मैदान में थे।
पांचवें चरण में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भाग्य भी ईवीएम में बंद हुआ। वह साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट (लखनऊ) से संसद में पहुंचे थे। वो तीसरी बार फिर मैदान में हैं। अबकी उनका मुक़ाबला, लखनऊ सेंट्रल से विधायक और समाजवादी पार्टी के नेता रविदास मेहरोत्रा से है। बीएसपी ने सरवर मलिक को यहां से चुनाव मैदान में उतारा है। रायबरेली में बीजेपी की राह आसान नहीं है। यहां विधानसभा में भले ही लोग अपने पसंद के प्रत्याशियों को चुनते हैं, लेकिन लोकसभा में वो कांग्रेस के साथ खड़े होते हैं। इस बार इस सीट पर राहुल गांधी बंपर वोटों से चुनाव जीत सकते हैं।
स्मृति के लिए अमेठी की राह आसान नहीं
यूपी में पांचवें चरण की तीसरी सबसे हॉट सीट थी अमेठी। इस सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी मैदान में हैं। साल 1980 के बाद से यहां गांधी परिवार का कब्जा था। अमेठी लोकसभा सीट से राहुल गांधी तीन चुनाव जीते, लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति इरानी ने उन्हें 5,120 मतों के अंतर से पराजित कर दिया। अब वे तीसरी बार मैदान में हैं। कांग्रेस ने स्मृति ईरानी के सामने गांधी परिवार के वफादार केएल शर्मा को टिकट दिया है। बसपा से नन्हे सिंह चौहान चुनाव लड़ रहे हैं। पांच निर्दलीय समेत कुल 13 प्रत्याशी यहां से मैदान में उतरे हैं। इस बार स्मृति इरानी का मुक़ाबला कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा से है। किशोरी लंबे समय से गांधी परिवार का चुनाव प्रबंधन का काम देखते रहे हैं। वह अमेठी और रायबरेली सीट पर चुनाव की कमान संभाल चुके हैं। अबकी किशोरी लाल ख़ुद चुनावी मैदान में हैं।
अमेठी में स्मृति ईरानी संकट में हैं। उनके व्यवहार से गैर तो गैर, बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता तक नाराज हैं। इस सीट पर स्मृति ईरानी अगर चुनाव हार जाती हैं तो किसी को चकित होने की जरूरत नहीं है। अगर वो हारती हैं तो एक ऐसे गुमनाम नेता से हारेंगी, जो खबरिया चैनलों की सुर्खियों से दूर रहे हैं। अमेठी में गांधी परिवार से बड़ी संख्या में लोग वोटर जुड़े हैं। इस सीट पर स्मृति हारती हैं तो बीजेपी की भद्द पिट सकती है।
लखनऊ में बीजेपी मजबूत
लखनऊ सीट लंबे समय से बीजेपी का गढ़ मानी जाती रही है। साल 1991 से 2004 तक यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीत रहे थे। इसके बाद साल 2009 में लालजी टंडन ने लखनऊ से जीत दर्ज़ की। साल 2014 और 2019 के चुनाव में राजनाथ सिंह यहां से संसद सदस्य चुने गए। पिछली बार राजनाथ सिंह ने सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा को क़रीब साढ़े तीन लाख वोटों के अंतर से करारी शिकस्त दी थी।
कैसरगंज से करण भूषण सिंह पहली बार चुनाव मैदान में हैं। पहले उनके पिता और कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण के कारण करण का नाम भी मीडिया में उछलता रहा है। यौन उत्पीड़न मामले में अभियुक्त बृजभूषण की जगह अब उनके बेटे करण भूषण शरण सिंह को बीजेपी ने टिकट दिया है। इस वजह से समूचे देश की निगाहें कैसरगंज लोकसभा सीट पर हैं। बृजभूषण की जगह बीजेपी ने उनके बेटे करण भूषण सिंह को यहां से टिकट दिया है। समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मण बहुल सीट पर भगत राम मिश्र को मैदान में उतारा है। वह श्रावस्ती के बीजेपी के पूर्व सांसद दद्दन मिश्र के बड़े भाई हैं। भगत राम मिश्र बहराइच के रहने वाले हैं। सपा से पहले वह कांग्रेस में थे।
कैसरगंज में बंटे दिखे वोटर
बीजेपी के करण सिंह का सीधा मुक़ाबला समाजवादी पार्टी उम्मीदवार भगतराम मिश्र से है। पिछले तीन बार से लगातार बृजभूषण शरण सिंह यहां से सांसद चुने गए थे। साल 2009 में वो समाजवादी पार्टी से चुनाव जीते और उसके बाद 2014 व 2019 में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने जीत दर्ज की। इस सीट पर पहले से ही समाजवादी पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ती रही है। सपा के बेनी प्रसाद वर्मा साल 1996,1998, 1999 और 2004 लगातार चार बार कैसरगंज सीट जीत चुके हैं। मौजूदा समय में कैसरगंज लोकसभा की पांच विधानसभाओं में से चार विधानसभा तरबगंज, करनैलगंज, कटरा और पयागपुर पर बीजेपी का क़ब्ज़ा है जबकि कैसरगंज विधानसभा सपा के पास है यहां से आनंद यादव विधायक हैं।
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय संयुक्त सचिव मधु गर्ग कहती हैं, ''करण भूषण की राह यहां इतनी आसान भी नहीं है। कैसरगंज के वोटर दो खेमों में बंटे हुए हैं। कोई मोदी के समर्थन में है तो कोई उनके विरोध में है। सबको पता है कि बृजभूषण पर महिला खिलाड़ियों के गंभीर आरोप हैं और इसका असर चुनाव के नतीजों पर भी पड़ सकता है।
कौशांबीः अनुप्रिया की प्रतिष्ठ दांव पर
कौशांबी सीट पर बीजेपी प्रत्याशी विनोद सोनकर के लिए यह सीट आसान नहीं हैं। मतदान से पहले एक खबरिया चैनल पर उन्होंने ‘ब्राह्मण समुदाय को लालची’ बता दिया था। इसके कुछ ही दिन बाद उन्होंने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में ब्राह्मणों को ‘मनुवादी’ भी कहा था। इससे ब्राह्मण समुदाय ने उनके खिलाफ मतदान किया। ब्राह्मण समुदाय की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी आखिरी दिन तक हर संभव कोशिश करती रही, लेकिन वो कामयाब नहीं हो सकी। सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं, वैश्य और राजपूत वोटरों में इन्हें लेकर काफी नाराजगी थी।
इंडिया गठबंधन ने कौशांबी सीट पर पुष्पेंद्र सरोज को मैदान में उतारा है। साल 1997 से पहले कौशांबी इलाहाबाद ज़िले का हिस्सा हुआ करता था। साल 2009 से पहले इस लोकसभा सीट का नाम चायल था और तब यह सुरक्षित सीट हुआ करती थी। इस क्षेत्र में राजा भैया का भी मजबूत आधार रहा है। अबकी उन्होंने किसी प्रत्याशी का फेवर नहीं किया। इस सीट पर बीजेपी के लिए चुनौतियां आसान नहीं हैं। इस सीट पर अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल की प्रतिष्ठा दांव पर है।
यूपी की फतेहपुर लोकसभा सीट पर भी सबकी नजरें हैं। यहां से केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। उनके खिलाफ सपा ने पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल को उतारा है। बसपा ने मनीष कुमार सचान को टिकट दिया है। यहां चार निर्दलीय समेत कुल 14 प्रत्याशी मैदान में हैं। यहां इंडिया और एनडीए में कड़ा मुकाबला है। इस बार बीजेपी की निरंजन ज्योति की राह बहुत आसान नहीं मानी जा रही है। फिलहाल इंडिया गठबंधन पांचवें चरण की 14 में से 6 सीटों पर अपनी मजबूत दावेदारी कर रहा है।
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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