आज 13 मई 2024 को 18वीं लोकसभा के चौथे चरण का मतदान जारी है जिसमें कुल 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 96 सीटों पर वोटिंग हो रही है। इस बीच वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत उत्तर प्रदेश की 13 सीटों का विश्लेषण कर रहे हैं।
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लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में उत्तर प्रदेश में 13 सीटों पर इंडिया गठबंधन और बीजेपी के बीच जबर्दस्त मुकाबला है। कुछ स्थानों पर बीएसपी ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। कन्नौज और इटावा में समाजवादी पार्टी मजबूत है। कन्नौज में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक का सीधा मुकाबला है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी यहां चुनाव प्रचार कर चुके हैं। सपा के लिए कन्नौज सबसे आसान सीट दिख रही है। सात सीटों पर बीजेपी और सपा के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि चार सीटों पर बीजेपी का पलड़ा भारी दिख रहा है। साल 2019 के चुनाव में बीजेपी ने चौथे चरण की सभी सीटों पर कब्जा जमा लिया था, लेकिन इस बार उसे कई सीटों पर कड़ी चुनौती मिल रही है।
चौथे चरण की 13 सीटों पर 13 मई 2014 को वोट डाले जा रहे हैं। यूं तो इन सीटों पर बीजेपी और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों से सीधा मुकाबला है, लेकिन कुछ जगहों पर बीएसपी के प्रत्याशियों ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। इस चुनाव में एक तरफ कन्नौज में अखिलेश यादव और दूसरी तरफ लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी व उन्नाव में साक्षी महाराज की प्रतिष्ठा दांव पर है। बीजेपी ने इस उम्मीद के साथ अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था कि वो आसानी से चुनाव जीत जाएंगे। ज्यादातर सीटों पर बीजेपी ने निवर्तमान सांसदों को टिकट दिया है क्योंकि उसे लगता था कि वोटर उनसे नाराज नहीं हैं। सिर्फ कानपुर और बहराइच में ही प्रत्याशी बदले गए। साल 2019 के चुनाव में बीजेपी ने दस सीटों पर 12 से 32 फीसदी के अधिक अंतर से प्रतिद्वंद्वियों को हराया था।
सपा परिवार अब एकजुट है, इसका फायदा इटावा, कन्नौज सीटों पर मिलना तय है। रालोद भले ही साथ नहीं है, मगर कांग्रेस गठबंधन से इटावा सीट पर 20% मुस्लिम वोट एकमुश्त मिलता दिख रहा है। कन्नौज में 2019 का चुनाव डिंपल सिर्फ 12 हजार वोट से हारी थीं, जीतने वाले सुब्रत एंटी इनकबेंसी का शिकार नजर आ रहे हैं। लखीमपुर खीरी में अजय मिश्रा 'टेनी' की चुनौतियां कम नहीं हैं। बीजेपी प्रत्य़ाशी की उम्मीदवारी भी यहां मुद्दा है। उन्नाव सीट पर पिछले चुनाव में साक्षी महाराज को 57.39 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन अबकी उनकी साख पर बट्टा लगा है। उनके लिए चुनावी पर्चा हल कर पाना कठिन प्रतीत हो रहा है।
चौथे चरण में पांच सीटें सुरक्षित हैं। पिछले चुनाव में सपा के साथ बीएसपी को लाभ पहुंचा था। इस बार बीएसपी प्रत्याशियों के मैदान में उतरने से शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख और बहराइच सीटों पर सपा के लिए चुनौतियां कड़ी हैं। फर्रुखाबाद सीट पर बीजेपी मजबूत नजर आ रही है। यहां उसके साथ अति पिछड़े भी खड़े हैं। कानपुर, हरदोई, शाहजहांपुर, बहराइच, धौरहरा सीटों पर बीजेपी-सपा के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है।
शाहजहांपुर से बीजेपी ने अपने सांसद अरुण कुमार सागर पर फिर विश्वास जताया है। यहां सपा की ज्योत्सना गोंड उन्हें टक्कर दे रही हैं। सुरक्षित सीट बहराइच पर एंटी इनकंबेंसी को देखते हुए बीजेपी ने सांसद अक्षयबर लाल का टिकट काटकर आनंद कुमार को टिकट दिया है। यहां मुस्लिम वोटर्स ज्यादा हैं। उनका इंडिया ब्लॉक की तरफ झुकाव ज्यादा है। सपा ने यहां से रमेश चंद्र को चुनाव मैदान में उतारा है।
कन्नौज में अखिलेश मजबूत
चौथे चरण की सबसे हॉट सीट है कन्नौज, जहां पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव खुद मैदान में हैं। इनका मुकाबला मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक से है। यहां बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। मुफ्त राशन योजना का ज्यादा असर नहीं है। वोटरों को लगता है कि बीजेपी से ज्यादा सपा के कार्यकाल में विकास के काम हुए थे। बीजेपी के लोग योगी सरकार की कानून व्यवस्था के आधार पर वोट मांग रहे हैं। साथ ही यह भी कह रहे हैं कि सपा सत्ता में आई तो खास जाति के लोगों का आतंक बढ़ जाएगा।
चुनाव की नब्ज टटोलने वाले प्रेक्षकों का मानना है कि इस बार कन्नौज सीट पर बीजेपी का चुनाव जीत पाना आसान नहीं है। सीधे तौर पर माना जा सकता है कि यहां हवा का रुख सपा की तरफ ही है। पिछले चुनाव में इस सीट पर सपा आंतरिक गुटबंदी और मतभेद के चलते चुनाव हार गई थी। यूपी में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व अखिलेश यादव कर रहे हैं और उनकी हनक बरकरार है। वर्तमान सांसद सुब्रत पाठक से गैर तो गैर, इस बार उनके अपने लोग ही खफा हैं।
इटावा में सपा का वर्चस्व
इटावा सीट पर समाजवादी पार्टी का सीधा मुकाबला बीजेपी से है। इटावा के लोग अपनी उपेक्षा के चलते बीजेपी से नाराज हैं। इस सीट पर सपा प्रत्याशी जितेंद्र दोहरे को यादव और मुस्लिम समुदाय के वोटरों का साथ मिल रहा है। इनका मुकाबला सांसद रामशंकर कठेरिया से हो रहा है। सपा के जितेंद्र दोहरे की दलितों में जबर्दस्त पकड़ है, इसलिए इनकी स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही है। पिछली बार इस सीट पर बीजेपी इसलिए चुनाव हार गई थी कि सपा उम्मीदवार कमलेश कठेरिया लोकप्रिय नहीं थे। बीएसपी के वोटरों ने सपा प्रत्याशी के खिलाफ मतदान किया, जिससे बीजेपी चुनाव जीत गई।
इटावा में बीजेपी कमजोर दिख रही है। उसके कार्यकर्ताओं में खास उत्साह नहीं है। रामशंकर कठेरिया आगरा के निवासी है और वहीं उनका ज्यादा वक्त भी गुजरता है। रामशंकर कठेरिया की उनके विधायकों से पटरी नहीं बैठ रही है। माना जा रहा है कि बीजेपी की आंतरिक कलह उसे ले डूबेगी। इस सीट पर हर कोई सपा प्रत्याशी के मजबूत होने की बात कह रहा है। बीजेपी प्रत्याशी के कामकाज से लोग खुश नहीं हैं। उन्होंने इटावा में कोई बड़ा विकास कार्य नहीं कराया है, जिसके आधार पर लोग उन्हें वोट दें। हालांकि सांसद रामशंकर को राम और मोदी पर भरोसा है। इनका दावा है कि तमाम ऊंच-नीच के बावजूद लोग मोदी के नाम पर उन्हें वोट देंगे और वह दोबारा सांसद बन जाएंगे।
कानपुर में कांटे की टक्कर
कानपुर में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। यहां महंगाई और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। चुनाव से पहले यहां बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई तब सतह पर आ गई थी, जब पार्टी ने रमेश अवस्थी को मैदान में उतारा। विपक्षी दल इन्हें बाहरी प्रत्याशी बता रहे हैं। मोदी के रोड शो से इनकी स्थिति थोड़ी सुधरी है। कानपुर सीट सवर्ण बहुल है और मुकाबला ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण के बीच है। दोनों के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है। बीएसपी ने कुलदीप भदौरिया को मैदान में उतारा है, लेकिन वो लड़ाई से बाहर नजर आ रहे हैं।
कानपुर की पांच विधानसभा सीटों में तीन पर समाजवादी पार्टी के विधायक हैं तो दो पर बीजेपी के। यहां बीजेपी के रमेश अवस्थी की राह आसान नहीं है। राम मंदिर यहां कोई मुद्दा नहीं है। युवाओं में बेरोजगारी का मुद्दा थोड़ा असर दिखा रहा है। यहां मुस्लिम वोटर निर्णायक होंगे। दोनों दलों के प्रत्याशी एक ही जाति के हैं, इसलिए कानपुर सीट पर कांटे की टक्कर मानी जा रही है।
अकबरपुर में बीजेपी को राम का सहारा
अकबरपुर सीट पर बीजेपी को लगता है कि यहां राम और मोदी के अलावा दूसरे मुद्दे नहीं चलेंगे। पिछले दो चुनाव से इस पार्टी के देवेंद्र सिंह 'भोले' चुनावी जंग जीतते आ रहे हैं। इस बार वोटरों में उनके कामकाज को लेकर खासी नाराजगी है। मोदी और मंदिर के नाम पर बीजेपी को वोट देने के लिए तैयार हैं, लेकिन भोले से लोग खासे नाराज हैं। यहां मोदी फैक्टर का थोड़ा असर है। अकबरपुर सीट पर बीजेपी का मुकाबला सपा के राजा रामपाल से हो रहा है। यहां अकबरपुर रनिया, कल्याणपुर, बिठूर और महाराजपुर विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि घाटमपुर सीट अपना दल-एस के पास है।
साल 2014 के चुनाव में अकबरपुर में बीजेपी को 56.69 फीसदी वोट मिले थे और 2019 में पार्टी का थोड़ा जनाधार कम हुआ। 49.57 फीसदी वोट लेकर भी देवेंद्र सिंह भोले चुनाव जीत गए थे। अकबरपुर में पिछड़ों के करीब सात लाख वोट हैं, जिनमें 1.10 लाख वोट सपा प्रत्याशी राम रामपाल की बिरादरी के हैं। बीएसपी के दलित वोटरों का झुकाव सपा की ओर दिख रहा है। वोटर भले ही बीजेपी प्रत्याशी को नहीं भा रहे हैं, लेकिन उसके गढ़ में सपा की राह बहुत आसान नहीं है।
सांसद देवेंद्र सिंह भोले और बिठूर के विधायक अभिजीत सिंह सांगा के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों के बीच का तनाव किसी से नहीं छिपा है। सांगा लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। वह कई बार अकबरपुर रनिया और महाराजपुर, बिठूर के साथ ही घाटमपुर में भी शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों में सुलह कराई थी। फिलहाल सांगा चुनाव में जुटे हैं, लेकिन कितने दिल से जुटे हैं वह इस चुनाव के नतीजे से साफ हो पाएगा।
उन्नाव में साक्षी महाराज की राह कठिन
लोकसभा की उन्नाव सीट पर मुद्दे बेअसर हैं। मौजूदा सांसद साक्षी महाराज से वोटर खुश नहीं हैं। सिर्फ कमिटेड वोटर ही बीजेपी के पक्ष में खुलकर बोल रहे हैं। जहां तक वोटरों की बात है तो हर कोई साक्षी महाराज को लेकर ढेरों शिकायत करता नजर आता है। साक्षी महाराज को सपा की अन्नू टंडन से कड़ी टक्कर मिल भी रही है। इस सीट पर अन्नू टंडन कांग्रेस की सांसद रह चुकी हैं। इनके पास खुद का थोक वोट बैंक है।
उन्नाव में इस बार सपा की अन्नू टंडन को मुसलमानों के अलावा यादवों के वोट भी मिलेंगे। ऐसे में बीजेपी और सपा के सीधा मुकाबला होने जा रहा है। बीजेपी के पक्ष में मोदी और राम हैं तो सपा प्रत्याशी अन्नू टंडन के लिए उनकी साफ-सुथरी छवि काम आ रही है। गरीबों के बीच वो काफी लोकप्रिय हैं। इस सीट पर वोट कम पड़े तो बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सपा का पीडीए फार्मूला यहां असर दिखाता नजर आ रहा है।
हरदोई में सांसद का विरोध मुद्दा
लोकसभा की हरदोई सुरक्षित सीट पर संविधान बचाने का मुद्दा सबसे बड़ा है। बीजेपी के सांसद जयप्रकाश रावत से वोटर नाराज हैं। विपक्ष के लिए सांसद खुद ही मुद्दा हैं, क्योंकि पांच साल तक वो इस इलाके में यदा-कदा ही दिखे। इनका मुकाबला सपा की ऊषा वर्मा से हो रहा है। वह चार मर्तबा सांसद रह चुकी हैं। साल 2019 में जयप्रकाश रावत 54 फीसदी वोट लेकर 1.30 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे।
हरदोई में पासी समुदाय के वोटर सर्वाधिक हैं। साल 2019 के चुनाव में बीएसपी के वोटर बीजेपी के साथ चले गए थे। इस बार ऐसी स्थिति नहीं है। संविधान बचाने के मुद्दे पर दलित वोटर बीजेपी से नाराज दिख रहे हैं। इससे सपा को फायदा हो सकता है और दलित उसके पाले में जा सकते हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट अबकी बहुत आसान नहीं है।
फर्रुखाबाद में बीजेपी मजबूत
आलू की खेती के लिए मशहूर फर्रुखाबाद सीट पर मुकेश राजपूत बीजेपी प्रत्याशी हैं। सपा के डॉ. नवल किशोर जातिगत समीकरण के हिसाब से मजबूत हैं, क्योंकि शाक्य समुदाय के लोग उनके साथ हैं। यहां 2.5 लाख लोधी और इतने ही शाक्य वोटर हैं। मुस्लिम-यादव वोटर सपा की तरफ जा रहा है, जो बीजेपी की राह में कठिनाई पैदा कर रहे हैं। अबकी यहां पोलराइजेशन जैसी स्थिति नहीं है। बीजेपी यहां मजबूती से चुनाव लड़ रही है। वोटरों में सपा प्रत्याशी नवल किशोर की अच्छी छवि है, इसलिए जनता का उन्हें सपोर्ट मिल रहा है।
वोटरों का कहना है कि बीजेपी पार्टी अच्छी है, मगर कैंडिडेट लोगों को पसंद नहीं है। सपा का कैंडिडेट अच्छा है, मगर सपा के शासन में लोग परेशान रहे। फर्रूखाबाद सीट पहले कांग्रेस की गढ़ मानी जाती थी। इस सीट पर आठ बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इस बार कांग्रेस सपा के साथ है, जिसका उसे फायदा मिल सकता है। जातीय समीकरण बीजेपी के पक्ष में हैं, जिससे दोनों दलों में कांटे की टक्कर दिख रही है। संभव है कि हार-जीत का ज्यादा अंतर न हो।
सीतापुर में सपा-बीजेपी में सीधी जंग
लोकसभा की सीतापुर सीट पर बीजेपी पिछले दो बार से चुनाव जीत रही है, लेकिन अबकी चुनौतियां आसान नहीं हैं। यहां भाजपा से राजेश वर्मा, बसपा से महेंद्र सिंह यादव और कांग्रेस से राकेश राठौर उम्मीदवार हैं। तीनों ही प्रत्याशी पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा में थे और इस बार आमने-सामने। राजेश वर्मा चार बार सांसद चुने जा चुके हैं। वह 1999 व 2004 में बसपा और 2014 व 2019 में भाजपा से सांसद चुने गए। उनके सामने इस बार हैट्रिक लगाने की चुनौती है। उन्हें मोदी की गारंटी, भाजपा के परंपरागत वोटरों का भरोसा है।
कांग्रेस प्रत्याशी राकेश राठौर को अपने सजातीय वोटरों के साथ ही सपा के यादव-मुस्लिम वोट मिलने की उम्मीद है। बसपा प्रत्याशी महेंद्र सिंह यादव पार्टी के वोट बैंक के साथ यादव वोटों के ध्रुवीकरण, मुस्लिम, पासी मतदाताओं के भरोसे जीत की उम्मीद जता रहे हैं। बीजेपी प्रत्याशी से वोटर नाराज हैं। बीजेपी को राम और मोदी का सहारा है। सीतापुर सीट इसलिए अहम है कि यह राजधानी लखनऊ के बॉर्डर पर है। यहां बीजेपी-इंडिया गठबंधन की सीधी टक्कर है। इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी राकेश राठौर 2017 में सीतापुर सदर सीट से विधायक रहे थे और इस बार वो कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं।
मिश्रिख सीट पर मुकाबला रोचक
मिश्रिख सीट पर बीजेपी ने मौजूदा सांसद डॉक्टर अशोक कुमार रावत को मैदान में उतारा है तो सपा की संगीता राजवंशी इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी हैं। संगीता रिश्ते में डॉक्टर रावत की सलहज हैं। बसपा ने डॉक्टर बीआर अहिरवार को टिकट दिया है। डॉक्टर रावत इस सीट पर 2004 और 2009 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीत चुके हैं। सपा ने इस बार के चुनाव में कई सीटों पर तीन-तीन बार उम्मीदवारों को बदला।
पहले पूर्व मंत्री रामपाल राजवंशी की उम्मीदवारी की घोषणा की गई थी जो रिश्ते में डॉक्टर अशोक रावत के ससुर लगते हैं। रामपाल राजवंशी ने दामाद के खिलाफ चुनाव लड़ने में दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सपा ने उनके बेटे मनोज कुमार राजवंशी के नाम की घोषणा की। बाद में पूर्व सांसद रामशंकर भार्गव को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी। इसके अगले ही दिन सपा ने एक बार फिर यहां से अपना उम्मीदवार बदल दिया। सपा ने भार्गव की जगह रामपाल राजवंशी की बहू संगीता राजवंशी को मैदान में उतारा है। इस सीट पर सपा-भाजपा के बीच मुकाबला काफी रोचक है।
तीन मंत्रियों की साख दांव पर
लोकसभा की शाहजहांपुर सीट पर सपा-बीजेपी में आमने-सामने का मुकाबला है। शाहजहांपुर से बीजेपी ने अपने सांसद अरुण कुमार सागर पर फिर विश्वास जताया है। सपा ने पहले राजेश कश्यप को मैदान में उतारा और नामांकन के दिन उनका टिकट काटकर ज्योत्सना को दे दिया। उसके बाद सपा में नया जोश आया है। बीजेपी से लगातार दो बार के सांसद अरुण सागर तीसरी बार चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर सूबे के तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है, इनमें वित्त मंत्री सुरेश खन्ना, लोनिवि मंत्री जतिन प्रसाद और सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर हैं। बीजेपी यहां और मजबूत इसलिए हो जाती है, क्योंकि सभी सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं।
शाहजहांपुर में ऊपरी तौर पर बीजेपी जरूर मजबूत नजर आ रही है, लेकिन सपा की ओर भी वोटरों का झुकाव बढ़ा है। यहां अभी तक 17 चुनाव हुए हैं, जिनमें 10 चुनाव कांग्रेस जीती है। कांग्रेस का समर्थन जिस प्रकार से सपा को मिला है और दूसरे दल भी इसमें शामिल हुए है, इससे सपा प्रत्याशी को कम नहीं आंका जा सकता। माना जा रहा है कि यहां चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण है। कश्यप समाज के वोट बंटेंगे। शाहजहापुर में यादव वोटर्स की तादात एक लाख से अधिक है, जो सपा के खेमे में दिख रहे हैं। बीजेपी को मोदी और राम मंदिर पर भरोसा है। बसपा सुप्रीमो मायावती के रुख ने दलित वोटरों की उलझन बढ़ा दी है। जब तक इनका रूख साफ नहीं होगा, नतीजों के बारे में कुछ भी कह पाना कठिन है।
लखीमपुर - खीरी में घिरी बीजेपी
लखीमपुर खीरी में इस बार बीजेपी घिर गई है। यहां उसका सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन से है। बीजेपी एक दशक से सत्ता में रही है। वोटरों के सामने रोजगार और महंगाई मुद्दा हैं। केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी और किसानों में हुए विवाद के बाद भी बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया है। इस चुनाव में भी उसका असर दिख रहा है। मतदाता टेनी की घेराबंदी कर सपा के उत्कर्ष वर्मा की ‘साइकिल’ को आगे निकालने की कोशिश में हैं, वहीं बसपा की स्थिति डंवाडोल है। ऐसे में अबकी मुख्य लड़ाई भाजपा के टेनी और सपा के उत्कर्ष के बीच ही दिख रही है।
खीरी सीट पर बीजेपी के विधायक योगेश वर्मा और मंजू त्यागी टेनी का प्रचार कर रही हैं, लेकिन पलिया के विधायक रोमी साहनी, गोला गोकर्णनाथ के अमन गिरी और निघासन के शशांक वर्मा टेनी के खराब व्यवहार के चलते उनका प्रचार नहीं कर रहे हैं। इस सीट पर बीजेपी की नैया पार होने की उम्मीद कम नजर आ रही है।
लोकसभा की लखीमपुर खीरी सीट पर काफी रोचक मुकाबला हो रहा है। इस सीट पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी मैदान में है और वह लगातार दो बार से यहां से सांसद हैं। किसानों के कड़ी विरोध के बावजूद बीजेपी ने इन्हें तीसरी बार मैदान में उतारा है। यहां बीजेपी को एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ रह है। इनका सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी आनंद भदौरिया से हो रहा है।
बहराइच में सीधी लड़ाई
बहराइच सीट आरक्षित, लेकिन मुस्लिम बाहुल्य है। कुर्मी और सवर्ण पहले से बीजेपी के साथ हैं। यहां 30 से 35 फीसदी मुस्लिम हैं, जो सपा के साथ खड़े दिख रहे हैं। चुनाव साइलेंट मोड में है। यहां न राम की लहर है, न मोदी की। पिछली बार सपा को यहां 43 फीसदी वोट मिले थे। तब सपा के साथ बीएसपी थी, लेकिन ऐन वक्त पर उसने अपना वोट बीजेपी में शिफ्ट करा दिया था। अबकी मुकाबला कठिन है। बीएसपी अलग लड़ रही है। सपा प्रत्याशी के समुदाय के करीब एक लाख वोटर हैं। यहां दलित समुदाय के दोहरे समुदाय के लोगों के वोट सर्वाधिक हैं। सपा अपने परंपरागत वोटों के साथ ही दलितों का रुख अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब होती दिख रही है। बीजेपी की गढ़ मानी जाने वाली बहराइच सीट पर मुकाबला रोमांचक है।
(लेखक विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में उत्तर प्रदेश में 13 सीटों पर इंडिया गठबंधन और बीजेपी के बीच जबर्दस्त मुकाबला है। कुछ स्थानों पर बीएसपी ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। कन्नौज और इटावा में समाजवादी पार्टी मजबूत है। कन्नौज में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक का सीधा मुकाबला है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी यहां चुनाव प्रचार कर चुके हैं। सपा के लिए कन्नौज सबसे आसान सीट दिख रही है। सात सीटों पर बीजेपी और सपा के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि चार सीटों पर बीजेपी का पलड़ा भारी दिख रहा है। साल 2019 के चुनाव में बीजेपी ने चौथे चरण की सभी सीटों पर कब्जा जमा लिया था, लेकिन इस बार उसे कई सीटों पर कड़ी चुनौती मिल रही है।
चौथे चरण की 13 सीटों पर 13 मई 2014 को वोट डाले जा रहे हैं। यूं तो इन सीटों पर बीजेपी और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों से सीधा मुकाबला है, लेकिन कुछ जगहों पर बीएसपी के प्रत्याशियों ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। इस चुनाव में एक तरफ कन्नौज में अखिलेश यादव और दूसरी तरफ लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी व उन्नाव में साक्षी महाराज की प्रतिष्ठा दांव पर है। बीजेपी ने इस उम्मीद के साथ अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था कि वो आसानी से चुनाव जीत जाएंगे। ज्यादातर सीटों पर बीजेपी ने निवर्तमान सांसदों को टिकट दिया है क्योंकि उसे लगता था कि वोटर उनसे नाराज नहीं हैं। सिर्फ कानपुर और बहराइच में ही प्रत्याशी बदले गए। साल 2019 के चुनाव में बीजेपी ने दस सीटों पर 12 से 32 फीसदी के अधिक अंतर से प्रतिद्वंद्वियों को हराया था।
सपा परिवार अब एकजुट है, इसका फायदा इटावा, कन्नौज सीटों पर मिलना तय है। रालोद भले ही साथ नहीं है, मगर कांग्रेस गठबंधन से इटावा सीट पर 20% मुस्लिम वोट एकमुश्त मिलता दिख रहा है। कन्नौज में 2019 का चुनाव डिंपल सिर्फ 12 हजार वोट से हारी थीं, जीतने वाले सुब्रत एंटी इनकबेंसी का शिकार नजर आ रहे हैं। लखीमपुर खीरी में अजय मिश्रा 'टेनी' की चुनौतियां कम नहीं हैं। बीजेपी प्रत्य़ाशी की उम्मीदवारी भी यहां मुद्दा है। उन्नाव सीट पर पिछले चुनाव में साक्षी महाराज को 57.39 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन अबकी उनकी साख पर बट्टा लगा है। उनके लिए चुनावी पर्चा हल कर पाना कठिन प्रतीत हो रहा है।
चौथे चरण में पांच सीटें सुरक्षित हैं। पिछले चुनाव में सपा के साथ बीएसपी को लाभ पहुंचा था। इस बार बीएसपी प्रत्याशियों के मैदान में उतरने से शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख और बहराइच सीटों पर सपा के लिए चुनौतियां कड़ी हैं। फर्रुखाबाद सीट पर बीजेपी मजबूत नजर आ रही है। यहां उसके साथ अति पिछड़े भी खड़े हैं। कानपुर, हरदोई, शाहजहांपुर, बहराइच, धौरहरा सीटों पर बीजेपी-सपा के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है।
शाहजहांपुर से बीजेपी ने अपने सांसद अरुण कुमार सागर पर फिर विश्वास जताया है। यहां सपा की ज्योत्सना गोंड उन्हें टक्कर दे रही हैं। सुरक्षित सीट बहराइच पर एंटी इनकंबेंसी को देखते हुए बीजेपी ने सांसद अक्षयबर लाल का टिकट काटकर आनंद कुमार को टिकट दिया है। यहां मुस्लिम वोटर्स ज्यादा हैं। उनका इंडिया ब्लॉक की तरफ झुकाव ज्यादा है। सपा ने यहां से रमेश चंद्र को चुनाव मैदान में उतारा है।
कन्नौज में अखिलेश मजबूत
चौथे चरण की सबसे हॉट सीट है कन्नौज, जहां पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव खुद मैदान में हैं। इनका मुकाबला मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक से है। यहां बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। मुफ्त राशन योजना का ज्यादा असर नहीं है। वोटरों को लगता है कि बीजेपी से ज्यादा सपा के कार्यकाल में विकास के काम हुए थे। बीजेपी के लोग योगी सरकार की कानून व्यवस्था के आधार पर वोट मांग रहे हैं। साथ ही यह भी कह रहे हैं कि सपा सत्ता में आई तो खास जाति के लोगों का आतंक बढ़ जाएगा।
चुनाव की नब्ज टटोलने वाले प्रेक्षकों का मानना है कि इस बार कन्नौज सीट पर बीजेपी का चुनाव जीत पाना आसान नहीं है। सीधे तौर पर माना जा सकता है कि यहां हवा का रुख सपा की तरफ ही है। पिछले चुनाव में इस सीट पर सपा आंतरिक गुटबंदी और मतभेद के चलते चुनाव हार गई थी। यूपी में इंडिया गठबंधन का नेतृत्व अखिलेश यादव कर रहे हैं और उनकी हनक बरकरार है। वर्तमान सांसद सुब्रत पाठक से गैर तो गैर, इस बार उनके अपने लोग ही खफा हैं।
इटावा में सपा का वर्चस्व
इटावा सीट पर समाजवादी पार्टी का सीधा मुकाबला बीजेपी से है। इटावा के लोग अपनी उपेक्षा के चलते बीजेपी से नाराज हैं। इस सीट पर सपा प्रत्याशी जितेंद्र दोहरे को यादव और मुस्लिम समुदाय के वोटरों का साथ मिल रहा है। इनका मुकाबला सांसद रामशंकर कठेरिया से हो रहा है। सपा के जितेंद्र दोहरे की दलितों में जबर्दस्त पकड़ है, इसलिए इनकी स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही है। पिछली बार इस सीट पर बीजेपी इसलिए चुनाव हार गई थी कि सपा उम्मीदवार कमलेश कठेरिया लोकप्रिय नहीं थे। बीएसपी के वोटरों ने सपा प्रत्याशी के खिलाफ मतदान किया, जिससे बीजेपी चुनाव जीत गई।
इटावा में बीजेपी कमजोर दिख रही है। उसके कार्यकर्ताओं में खास उत्साह नहीं है। रामशंकर कठेरिया आगरा के निवासी है और वहीं उनका ज्यादा वक्त भी गुजरता है। रामशंकर कठेरिया की उनके विधायकों से पटरी नहीं बैठ रही है। माना जा रहा है कि बीजेपी की आंतरिक कलह उसे ले डूबेगी। इस सीट पर हर कोई सपा प्रत्याशी के मजबूत होने की बात कह रहा है। बीजेपी प्रत्याशी के कामकाज से लोग खुश नहीं हैं। उन्होंने इटावा में कोई बड़ा विकास कार्य नहीं कराया है, जिसके आधार पर लोग उन्हें वोट दें। हालांकि सांसद रामशंकर को राम और मोदी पर भरोसा है। इनका दावा है कि तमाम ऊंच-नीच के बावजूद लोग मोदी के नाम पर उन्हें वोट देंगे और वह दोबारा सांसद बन जाएंगे।
कानपुर में कांटे की टक्कर
कानपुर में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। यहां महंगाई और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। चुनाव से पहले यहां बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई तब सतह पर आ गई थी, जब पार्टी ने रमेश अवस्थी को मैदान में उतारा। विपक्षी दल इन्हें बाहरी प्रत्याशी बता रहे हैं। मोदी के रोड शो से इनकी स्थिति थोड़ी सुधरी है। कानपुर सीट सवर्ण बहुल है और मुकाबला ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण के बीच है। दोनों के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है। बीएसपी ने कुलदीप भदौरिया को मैदान में उतारा है, लेकिन वो लड़ाई से बाहर नजर आ रहे हैं।
कानपुर की पांच विधानसभा सीटों में तीन पर समाजवादी पार्टी के विधायक हैं तो दो पर बीजेपी के। यहां बीजेपी के रमेश अवस्थी की राह आसान नहीं है। राम मंदिर यहां कोई मुद्दा नहीं है। युवाओं में बेरोजगारी का मुद्दा थोड़ा असर दिखा रहा है। यहां मुस्लिम वोटर निर्णायक होंगे। दोनों दलों के प्रत्याशी एक ही जाति के हैं, इसलिए कानपुर सीट पर कांटे की टक्कर मानी जा रही है।
अकबरपुर में बीजेपी को राम का सहारा
अकबरपुर सीट पर बीजेपी को लगता है कि यहां राम और मोदी के अलावा दूसरे मुद्दे नहीं चलेंगे। पिछले दो चुनाव से इस पार्टी के देवेंद्र सिंह 'भोले' चुनावी जंग जीतते आ रहे हैं। इस बार वोटरों में उनके कामकाज को लेकर खासी नाराजगी है। मोदी और मंदिर के नाम पर बीजेपी को वोट देने के लिए तैयार हैं, लेकिन भोले से लोग खासे नाराज हैं। यहां मोदी फैक्टर का थोड़ा असर है। अकबरपुर सीट पर बीजेपी का मुकाबला सपा के राजा रामपाल से हो रहा है। यहां अकबरपुर रनिया, कल्याणपुर, बिठूर और महाराजपुर विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि घाटमपुर सीट अपना दल-एस के पास है।
साल 2014 के चुनाव में अकबरपुर में बीजेपी को 56.69 फीसदी वोट मिले थे और 2019 में पार्टी का थोड़ा जनाधार कम हुआ। 49.57 फीसदी वोट लेकर भी देवेंद्र सिंह भोले चुनाव जीत गए थे। अकबरपुर में पिछड़ों के करीब सात लाख वोट हैं, जिनमें 1.10 लाख वोट सपा प्रत्याशी राम रामपाल की बिरादरी के हैं। बीएसपी के दलित वोटरों का झुकाव सपा की ओर दिख रहा है। वोटर भले ही बीजेपी प्रत्याशी को नहीं भा रहे हैं, लेकिन उसके गढ़ में सपा की राह बहुत आसान नहीं है।
सांसद देवेंद्र सिंह भोले और बिठूर के विधायक अभिजीत सिंह सांगा के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों के बीच का तनाव किसी से नहीं छिपा है। सांगा लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। वह कई बार अकबरपुर रनिया और महाराजपुर, बिठूर के साथ ही घाटमपुर में भी शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों में सुलह कराई थी। फिलहाल सांगा चुनाव में जुटे हैं, लेकिन कितने दिल से जुटे हैं वह इस चुनाव के नतीजे से साफ हो पाएगा।
उन्नाव में साक्षी महाराज की राह कठिन
लोकसभा की उन्नाव सीट पर मुद्दे बेअसर हैं। मौजूदा सांसद साक्षी महाराज से वोटर खुश नहीं हैं। सिर्फ कमिटेड वोटर ही बीजेपी के पक्ष में खुलकर बोल रहे हैं। जहां तक वोटरों की बात है तो हर कोई साक्षी महाराज को लेकर ढेरों शिकायत करता नजर आता है। साक्षी महाराज को सपा की अन्नू टंडन से कड़ी टक्कर मिल भी रही है। इस सीट पर अन्नू टंडन कांग्रेस की सांसद रह चुकी हैं। इनके पास खुद का थोक वोट बैंक है।
उन्नाव में इस बार सपा की अन्नू टंडन को मुसलमानों के अलावा यादवों के वोट भी मिलेंगे। ऐसे में बीजेपी और सपा के सीधा मुकाबला होने जा रहा है। बीजेपी के पक्ष में मोदी और राम हैं तो सपा प्रत्याशी अन्नू टंडन के लिए उनकी साफ-सुथरी छवि काम आ रही है। गरीबों के बीच वो काफी लोकप्रिय हैं। इस सीट पर वोट कम पड़े तो बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सपा का पीडीए फार्मूला यहां असर दिखाता नजर आ रहा है।
हरदोई में सांसद का विरोध मुद्दा
लोकसभा की हरदोई सुरक्षित सीट पर संविधान बचाने का मुद्दा सबसे बड़ा है। बीजेपी के सांसद जयप्रकाश रावत से वोटर नाराज हैं। विपक्ष के लिए सांसद खुद ही मुद्दा हैं, क्योंकि पांच साल तक वो इस इलाके में यदा-कदा ही दिखे। इनका मुकाबला सपा की ऊषा वर्मा से हो रहा है। वह चार मर्तबा सांसद रह चुकी हैं। साल 2019 में जयप्रकाश रावत 54 फीसदी वोट लेकर 1.30 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे।
हरदोई में पासी समुदाय के वोटर सर्वाधिक हैं। साल 2019 के चुनाव में बीएसपी के वोटर बीजेपी के साथ चले गए थे। इस बार ऐसी स्थिति नहीं है। संविधान बचाने के मुद्दे पर दलित वोटर बीजेपी से नाराज दिख रहे हैं। इससे सपा को फायदा हो सकता है और दलित उसके पाले में जा सकते हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट अबकी बहुत आसान नहीं है।
फर्रुखाबाद में बीजेपी मजबूत
आलू की खेती के लिए मशहूर फर्रुखाबाद सीट पर मुकेश राजपूत बीजेपी प्रत्याशी हैं। सपा के डॉ. नवल किशोर जातिगत समीकरण के हिसाब से मजबूत हैं, क्योंकि शाक्य समुदाय के लोग उनके साथ हैं। यहां 2.5 लाख लोधी और इतने ही शाक्य वोटर हैं। मुस्लिम-यादव वोटर सपा की तरफ जा रहा है, जो बीजेपी की राह में कठिनाई पैदा कर रहे हैं। अबकी यहां पोलराइजेशन जैसी स्थिति नहीं है। बीजेपी यहां मजबूती से चुनाव लड़ रही है। वोटरों में सपा प्रत्याशी नवल किशोर की अच्छी छवि है, इसलिए जनता का उन्हें सपोर्ट मिल रहा है।
वोटरों का कहना है कि बीजेपी पार्टी अच्छी है, मगर कैंडिडेट लोगों को पसंद नहीं है। सपा का कैंडिडेट अच्छा है, मगर सपा के शासन में लोग परेशान रहे। फर्रूखाबाद सीट पहले कांग्रेस की गढ़ मानी जाती थी। इस सीट पर आठ बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इस बार कांग्रेस सपा के साथ है, जिसका उसे फायदा मिल सकता है। जातीय समीकरण बीजेपी के पक्ष में हैं, जिससे दोनों दलों में कांटे की टक्कर दिख रही है। संभव है कि हार-जीत का ज्यादा अंतर न हो।
सीतापुर में सपा-बीजेपी में सीधी जंग
लोकसभा की सीतापुर सीट पर बीजेपी पिछले दो बार से चुनाव जीत रही है, लेकिन अबकी चुनौतियां आसान नहीं हैं। यहां भाजपा से राजेश वर्मा, बसपा से महेंद्र सिंह यादव और कांग्रेस से राकेश राठौर उम्मीदवार हैं। तीनों ही प्रत्याशी पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा में थे और इस बार आमने-सामने। राजेश वर्मा चार बार सांसद चुने जा चुके हैं। वह 1999 व 2004 में बसपा और 2014 व 2019 में भाजपा से सांसद चुने गए। उनके सामने इस बार हैट्रिक लगाने की चुनौती है। उन्हें मोदी की गारंटी, भाजपा के परंपरागत वोटरों का भरोसा है।
कांग्रेस प्रत्याशी राकेश राठौर को अपने सजातीय वोटरों के साथ ही सपा के यादव-मुस्लिम वोट मिलने की उम्मीद है। बसपा प्रत्याशी महेंद्र सिंह यादव पार्टी के वोट बैंक के साथ यादव वोटों के ध्रुवीकरण, मुस्लिम, पासी मतदाताओं के भरोसे जीत की उम्मीद जता रहे हैं। बीजेपी प्रत्याशी से वोटर नाराज हैं। बीजेपी को राम और मोदी का सहारा है। सीतापुर सीट इसलिए अहम है कि यह राजधानी लखनऊ के बॉर्डर पर है। यहां बीजेपी-इंडिया गठबंधन की सीधी टक्कर है। इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी राकेश राठौर 2017 में सीतापुर सदर सीट से विधायक रहे थे और इस बार वो कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं।
मिश्रिख सीट पर मुकाबला रोचक
मिश्रिख सीट पर बीजेपी ने मौजूदा सांसद डॉक्टर अशोक कुमार रावत को मैदान में उतारा है तो सपा की संगीता राजवंशी इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी हैं। संगीता रिश्ते में डॉक्टर रावत की सलहज हैं। बसपा ने डॉक्टर बीआर अहिरवार को टिकट दिया है। डॉक्टर रावत इस सीट पर 2004 और 2009 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीत चुके हैं। सपा ने इस बार के चुनाव में कई सीटों पर तीन-तीन बार उम्मीदवारों को बदला।
पहले पूर्व मंत्री रामपाल राजवंशी की उम्मीदवारी की घोषणा की गई थी जो रिश्ते में डॉक्टर अशोक रावत के ससुर लगते हैं। रामपाल राजवंशी ने दामाद के खिलाफ चुनाव लड़ने में दिलचस्पी नहीं दिखाई तो सपा ने उनके बेटे मनोज कुमार राजवंशी के नाम की घोषणा की। बाद में पूर्व सांसद रामशंकर भार्गव को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी। इसके अगले ही दिन सपा ने एक बार फिर यहां से अपना उम्मीदवार बदल दिया। सपा ने भार्गव की जगह रामपाल राजवंशी की बहू संगीता राजवंशी को मैदान में उतारा है। इस सीट पर सपा-भाजपा के बीच मुकाबला काफी रोचक है।
तीन मंत्रियों की साख दांव पर
लोकसभा की शाहजहांपुर सीट पर सपा-बीजेपी में आमने-सामने का मुकाबला है। शाहजहांपुर से बीजेपी ने अपने सांसद अरुण कुमार सागर पर फिर विश्वास जताया है। सपा ने पहले राजेश कश्यप को मैदान में उतारा और नामांकन के दिन उनका टिकट काटकर ज्योत्सना को दे दिया। उसके बाद सपा में नया जोश आया है। बीजेपी से लगातार दो बार के सांसद अरुण सागर तीसरी बार चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर सूबे के तीन मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है, इनमें वित्त मंत्री सुरेश खन्ना, लोनिवि मंत्री जतिन प्रसाद और सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर हैं। बीजेपी यहां और मजबूत इसलिए हो जाती है, क्योंकि सभी सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं।
शाहजहांपुर में ऊपरी तौर पर बीजेपी जरूर मजबूत नजर आ रही है, लेकिन सपा की ओर भी वोटरों का झुकाव बढ़ा है। यहां अभी तक 17 चुनाव हुए हैं, जिनमें 10 चुनाव कांग्रेस जीती है। कांग्रेस का समर्थन जिस प्रकार से सपा को मिला है और दूसरे दल भी इसमें शामिल हुए है, इससे सपा प्रत्याशी को कम नहीं आंका जा सकता। माना जा रहा है कि यहां चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण है। कश्यप समाज के वोट बंटेंगे। शाहजहापुर में यादव वोटर्स की तादात एक लाख से अधिक है, जो सपा के खेमे में दिख रहे हैं। बीजेपी को मोदी और राम मंदिर पर भरोसा है। बसपा सुप्रीमो मायावती के रुख ने दलित वोटरों की उलझन बढ़ा दी है। जब तक इनका रूख साफ नहीं होगा, नतीजों के बारे में कुछ भी कह पाना कठिन है।
लखीमपुर - खीरी में घिरी बीजेपी
लखीमपुर खीरी में इस बार बीजेपी घिर गई है। यहां उसका सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन से है। बीजेपी एक दशक से सत्ता में रही है। वोटरों के सामने रोजगार और महंगाई मुद्दा हैं। केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी और किसानों में हुए विवाद के बाद भी बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया है। इस चुनाव में भी उसका असर दिख रहा है। मतदाता टेनी की घेराबंदी कर सपा के उत्कर्ष वर्मा की ‘साइकिल’ को आगे निकालने की कोशिश में हैं, वहीं बसपा की स्थिति डंवाडोल है। ऐसे में अबकी मुख्य लड़ाई भाजपा के टेनी और सपा के उत्कर्ष के बीच ही दिख रही है।
खीरी सीट पर बीजेपी के विधायक योगेश वर्मा और मंजू त्यागी टेनी का प्रचार कर रही हैं, लेकिन पलिया के विधायक रोमी साहनी, गोला गोकर्णनाथ के अमन गिरी और निघासन के शशांक वर्मा टेनी के खराब व्यवहार के चलते उनका प्रचार नहीं कर रहे हैं। इस सीट पर बीजेपी की नैया पार होने की उम्मीद कम नजर आ रही है।
लोकसभा की लखीमपुर खीरी सीट पर काफी रोचक मुकाबला हो रहा है। इस सीट पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी मैदान में है और वह लगातार दो बार से यहां से सांसद हैं। किसानों के कड़ी विरोध के बावजूद बीजेपी ने इन्हें तीसरी बार मैदान में उतारा है। यहां बीजेपी को एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ रह है। इनका सीधा मुकाबला इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी आनंद भदौरिया से हो रहा है।
बहराइच में सीधी लड़ाई
बहराइच सीट आरक्षित, लेकिन मुस्लिम बाहुल्य है। कुर्मी और सवर्ण पहले से बीजेपी के साथ हैं। यहां 30 से 35 फीसदी मुस्लिम हैं, जो सपा के साथ खड़े दिख रहे हैं। चुनाव साइलेंट मोड में है। यहां न राम की लहर है, न मोदी की। पिछली बार सपा को यहां 43 फीसदी वोट मिले थे। तब सपा के साथ बीएसपी थी, लेकिन ऐन वक्त पर उसने अपना वोट बीजेपी में शिफ्ट करा दिया था। अबकी मुकाबला कठिन है। बीएसपी अलग लड़ रही है। सपा प्रत्याशी के समुदाय के करीब एक लाख वोटर हैं। यहां दलित समुदाय के दोहरे समुदाय के लोगों के वोट सर्वाधिक हैं। सपा अपने परंपरागत वोटों के साथ ही दलितों का रुख अपनी तरफ मोड़ने में कामयाब होती दिख रही है। बीजेपी की गढ़ मानी जाने वाली बहराइच सीट पर मुकाबला रोमांचक है।
(लेखक विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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