पूर्वांचल में आसान नहीं बीजेपी की राह, उसकी दुखती रग में मौका तलाश रहा INDIA गठबंधन

Written by विजय विनीत | Published on: May 28, 2024
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल पर देश भर की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यही वो इलाका है जो आमतौर पर भारतीय राजनीति की दशा और दिशा तय करता रहा है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनारस है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद गोरखपुर। बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली बनारस की सीट इस बार मोदी के लिए बहुत आसान नहीं है। पिछले दो चुनावों में बनारस में बीजेपी ने जिस तरह का प्रदर्शन किया था, उसमें इस बार छीजन नजर आ रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने अगर इस सीट पर कोई बड़ा रिकार्ड बनाने का सपना देखा है, तो उसके धराशायी होने की आशंका ज्यादा है।

  

पूर्वांचल, यूपी का वह इलाका है जो साल 2014 से पहले भारतीय जनता पार्टी के लिए कभी मुफीद नहीं रहा। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी पूर्वांचल की पांच सीटों पर बुरी तरह से चुनाव हार गई थी। साथ ही लोकसभा की मछलीशहर, चंदौली समेत करीब तीन सीटें ऐसी थीं, जहां बीजेपी के प्रत्याशी बस किसी तरह से चुनाव जीत पाए थे। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कई जिले ऐसे थे, जहां बीजेपी का डब्बा गोल हो गया था। यह स्थिति तब रही जब बीजेपी के सभी बड़े सूरमा पूर्वांचल की सियासत में अपनी दम-खम दिखाते रहे।

यूपी की 80 सीटों में से 27 पूर्वांचल में आती हैं, जिनमें से 14 पर 25 मई 2024 को मतदान हो चुका है। बाकी 13 सीटों पर पहली जून को मतदान होना है। यह यह वो इलाका है जिसे बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है। साल 2019 में बीजेपी को 16 और बसपा को चार सीटें मिली थीं। एक सीट पर सपा काबिज हुई थी। पूर्वांचल की आठ सीटों पर चुनाव हो चुका है और अन्य तेरह वाराणसी, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर, राबर्ट्सगंज, घोसी, सलेमपुर, बलिया, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव पर आखिरी चरण में एक जून को चुनाव होना है।

पूर्वांचल में महाराजगंज,गोरखपुर, कुशीनगर, बांसगांव, वाराणसी, बलिया 11 ऐसी सीटें हैं, जहां पहले कभी न समाजवादी पार्टी चुनाव जीत पाई और न ही बहुजन समाज पार्टी। बस्ती, संतकबीर नगर, कुशीनगर, वाराणसी और भदोही में तो सपा का आज तक खाता ही नहीं खुल पाया है। पूर्वांचल की लगभग सभी सीटों पर हार-जीत का फैसला पिछड़ी जातियां करती रही हैं। यही वजह है कि अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल, सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी इस इलाके में काफी मजबूत दखल रखती है। तीनों दल इस बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इंडिया गठबंधन ने पूर्वांचल की बस्ती, गोंडा, श्रावस्ती और अंबेडकरनगर में कुर्मी समाज का प्रत्याशी देकर बीजेपी के कोर वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है।
 
पूर्वांचल में सपा और कांग्रेस इंडिया गठबंधन में शामिल हैं और दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। सपा ने वाराणसी, बांसगांव, महराजगंज और देवरिया सीट कांग्रेस को दिया है तो भदोही सीट तृणमूल कांग्रेस को। भदोही में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल के टिकट पर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी मैदान में उतरे थे। बाकी सीटों पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी के लिए इस बार भी पूर्वांचल की राह बहुत आसान नहीं है। महाराजगंज और देवरिया में कांग्रेस मजबूती के साथ चुनाव लड़ रही है। देवरिया में कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश सिंह सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। महाराजगंज में कांग्रेस ने मौजूदा विधायक वीरेंद्र चौधरी को टिकट दिया है। बांसगांव सीट पर साल 2019 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे बसपा के सदल प्रसाद इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं।
 
बनारस में रोड शो में बीजेपी पिछड़ी
 
पूर्वांचल की जिन दो सीटों पर जीत के लिए बीजेपी हमेशा मुतमईन रही है वो है बनारस और गोरखपुर। बनारस में पीएम नरेंद्र मोदी साल 2014 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं और अबकी तीसरी बार उनका मुकाबला कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय से हो रहा है। बीजेपी यह मानकर चल रही है कि बनारस में मोदी की जीत पक्की है और वो बंपर वोटों से चुनाव जीतेंगे। अगर बीजेपी और सपा-कांग्रेस के रोड शो के आधार पर हार-जीत का आंकलन किया जाए तो भारतीय जनता पार्टी की स्थिति अबकी पहले जैसी नहीं है।

बनारस में पहले पीएम नरेंद्र मोदी का रोड शो हुआ और बाद में प्रियंका गांधी और डिंपल यादव की। मोदी के रोड शो में बटोरे गए लोग नजर आए, जबकि प्रियंका-डिंपल के रोड शो में भीड़ स्वतः आई। इंडिया गठबंधन के रोड शो मोद का रोड शो उन्नीस था। कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय कहते हैं, "मोदी के रोड शो के लिए आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्त्रियों पर दबाव बनाकर बनारस मंडल के सभी जिलों से बुलाया गया था। हमारा रोड शो स्वतःस्फूर्त था। दूसरी बात, इस बार बीजेपी का नारा है-एक बार फिर मोदी सरकार। ऐसा नारा भला कौन देता है, जिसमें पार्टी का वजूद ही लापता हो जाए। खुद को भगवान बनाने की कवायद में मोदी ने बीजेपी और उसके अनुसांगिक संगठन आरएसएस को भी खत्म कर दिया है।"

बनारस में यह पहला मौका है जब किसी चुनाव में वोटरों की खास दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है। जिस बनारस के लोग पहले मोदी के सिर आंखों पर बैठाए रहते थे, अबकी वह स्थिति नहीं दिख रही है। बनारस  में हर घर पर ‘मोदी हमारा परिवार’ के स्टीकर भले ही चस्पा कर दिए गए हैं, लेकिन बहुत से लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि कोरोना के समय जब लोगों की जानें जा रही थीं, तब ‘वो’ कहां थे? बनारस के रोहनिया, सेवापुरी और कैंट क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में पीएम नरेंद्र मोदी की पहले जैसी साख नहीं बची है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि मोदी बनारस में जनसभा करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे हैं। बनारस की अड़ियों पर इस बार जीत के अंतर को लेकर बहसें चल रही हैं। अगर इन बहसों को आधार बनाया जाए तो बनारस में इस बार मोदी की चुनौतियां आसान नहीं हैं।
 
बनारस की तरह गोरखपुर भी बीजेपी की पारंपरिक सीट मानी जाती रही है। साल 1989 से यहां बीजेपी हर चुनाव जीत रही है। साल  2018 के उपचुनाव ही उसे यहां कारारी हार का सामना करना पड़ा था। बाद में बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बदल दिया और साल 2019 में भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रवि किशन विजयी हुए। इस बार भी वही बीजेपी के प्रत्याशी हैं। सपा ने गोरखुपर सीट पर रवि किशन के खिलाफ काजल निषाद को मैदान में उतारा है। काजल भी अभिनेत्री हैं और सपा के टिकट पर वह मेयर और विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं। यहां बीजेपी और सपा के बीच सीधा मुकाबला है। इस बार भी रवि किशन के सामने कड़ी चुनौती नहीं दिख रही है।
 
घोसी में फंसे राजभर
 

मऊ जिले की घोसी सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला हो रहा है। कैबिनेट मिनिस्टर ओमप्रकाश राजभर के पुत्र अरविंद राजभर घोसी सीट पर एनडीए के प्रत्याशी हैं और वह सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी के राजीव राय से इन्हें तगड़ी चुनौती मिल रही है। बसपा ने बालकृष्ण चौहान को उतारकर मुकाबले को तिकोना बनाने की कोशिश की है। सुभासपा के अरविंद राजभर की मुश्किलें कम नहीं हैं। बीजेपी के कोर सवर्ण वोटर राजीव राय के पक्ष में नजर आ रहे हैं। घोसी सीट पर सुभासपा की स्थिति ऐसी नहीं है कि वो अपने दम पर चुनाव जीत सके। भूमिहार, मुस्लिम, यादव के अलावा संविधान के मुद्दे के चलते दलित भी सपा के साथ हैं। राजपूत और ब्राह्मणों का एक बड़ा खेमा राजीव राय के साथ मजबूती से खड़ा है।

संतकबीर नगर सीट पर निषाद पार्टी ने बीजेपी के सिंबल पर पार्टी प्रमुख के पुत्र प्रवीण कुमार निषाद को मैदान में उतारा है। सपा ने पप्पू निषाद को टिकट  दिया है। इस सीट पर निषाद वोटरों की तादाद ज्यादा है। इस वजह से निषादों के वोटों के बंटने की आशंका है। यही वजह है कि संतकबीर नगर में समाजवादी पार्टी कड़े मुकाबले में फंसी हुई नजर आ रही है।
 
अनुप्रिया की चुनौती कम नहीं
 
बीजेपी ने अपना दल (एस) को मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज सीट दिया है। अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल लगातार दस साल से दोनों सीटें जीतती आ रही हैं। तीसरी मर्तबा वो मैदान में हैं, लेकिन राजा भैया फैक्टर के चलते इनकी मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। माना जा रहा है कि राजपूत वोटर इनके साथ इस बार खड़ा नहीं है। समाजवादी पार्टी ने अनुप्रिया के खिलाफ भदोही से बीजेपी के सांसद रमेश बिंद को मैदान में उतारा है। बीजेपी ने भदोही में इनका टिकट काट दिया था। मिर्जापुर में वह अनुप्रिया पटेल को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। बसपा ने मनीष तिवारी को टिकट देकर मुकाबले को तिकोना बनाने की कोशिश की है। मनीष बीजेपी के वोट बैंक को कमजोर करते नजर आ रहे हैं, जबकि सपा प्रत्याशी रमेश बिंद के साथ उनकी बिरादरी के अलावा यादव और मुस्लिम भी मजबूती के साथ खड़े हैं। अनुप्रिया की उपेक्षा से आहत मौर्य और अन्य पिछड़ी जातियों के वोटर भी खफा नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि इस सीट पर अबकी अनुप्रिया पटेल की राह बहुत आसान नहीं है।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रॉबर्ट्सगंज सीट पर अपना दल (एस) ने अपने सांसद का टिकट काट दिया है। साल 2019 में इस सीट पर पकौड़ी लाल कोल विजयी हुए थे। इस बार उनकी बहू रिंकी कोल को बीजेपी ने टिकट दिया है। रिंकी मिर्जापुर की छानबे सीट से अपना दल (एस) की विधायक हैं। समाजवादी पार्टी ने उनके खिलाफ पूर्व सांसद छोटे लाल खरवार को मैदान में  उतारा है। इस सीट पर अपना दल (एस) को एंटी इंनकंबेंसी का मुकाबला करना पड़ रहा है। इस सीट पर अपना दल (एस) की मुश्किलें आसान नहीं हैं।

मुख्तार अंसारी फैक्टर के चते गाजीपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी की राह कठिन है। साल 2019 के चुनाव में मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी बसपा के टिकट पर 1,19,392 मतों के अंतर से चुनाव जीते थे। बीजेपी इस बार कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा के करीबी पारसनाथ राय को मैदान में उतारा है। सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी को इस सीट पर सहानुभूति वोट मिलने की उम्मीद है। अफजाल एक पुराने मामले में  उलझे हुए हैं और हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। अफजाल के लिए चुनाव से बड़ी चुनौती हाईकोर्ट में मुकदमा जीतने की है।
 
चंदौली में मुश्किल में बीजेपी
 
बनारस के साथ चंदौली सीट पर एक जून को मतदान होना है। साल 2019 में बीजेपी ने पूर्वांचल की चंदौली लोकसभा सीट पर बस किसी तरह से जीत पाई थी। जीत का अंतर बहुत थोड़ा था। चंदौली सीट पर फिर बीजेपी ने डॉ महेंद्र नाथ पांडेय पर दांव खेला है। पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह सपा के कैंडिडेट हैं। बहुजन समाज पार्टी ने अपना सतेंद्र कुमार मौर्य को अपना प्रत्याशी बनाया है। चंदौली में मौर्य के वोटर निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं। इस समुदाय के लोग बीजेपी के कोर वोटर रहे हैं।

चंदौली सीट पर बीजेपी तभी से मजबूत है जब आनंदरत्न मौर्य लगातार तीन बार सांसद बने। मौर्य जाति के वोटर इस बार कई खेमों में बंट गए हैं। यहां बाबू सिंह कुशवाहा का फैक्टर भी असर दिखा रहा है, जिससे सपा के वीरेंद्र सिंह को लाभ मिल सकता है। बीजेपी की मुश्किल यह है कि इस बार राजपूत और मौर्य समुदाय के अधिसंख्य वोटर उनके साथ नहीं हैं। सपा के वीरेंद्र सिंह के साथ यादव, मुस्लिम और राजपूतों के अलावा पिछड़ी जातियों के कोर वोटर मजबूती के साथ खड़े हैं। चंदौली में संविधान फैक्टर के चलते दलितों का एक बड़ा खेमा भी सपा के साथ दिख रहा है। ऐसे में डा.महेंद्रनाथ पांडेय की चुनौतियां आसान नहीं हैं।

बलिया में बीजेपी बुरी तरह से घिर गई है। साल 2019 के चुनाव में बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त सिर्फ 15 हजार 519 वोटों से चुनाव जीत पाए थे। बीजेपी ने अबकी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर को मैदान में उतारा है। उनके मुकाबले समाजवादी पार्टी ने सनातन पांडेय और बसपा ने ललन सिंह यादव को टिकट दिया है। यहां नीरज शेखर की स्थिति बहुत मजबूत नहीं है। इन्हें सपा के सनातन पांडेय की तगड़ी चुनौती मिल रही है। इस सीट पर कांटे का मुकाबला है। बीजेपी प्रत्याशी को पिछड़ते देख पार्टी ने सपा के कद्दावर नेता नारद राय को अपने खेमें में खड़ा कर दिया है। लोग इस बात से अवाक हैं कि खांटी समाजवादी नेता का अचानक भगवाकरण कैसे हो गया?

महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव और सलेमपुर लोकसभा सीटों पर बीजेपी को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। सलेमपुर सीट पर बीजेपी को समाजवादी पार्टी की तगड़ी चुनौती मिल रही है। इन सीटों पर वोटरों में जातीय आधार पर गोलबंदी दिख रही है। पूर्वांचल में जिन 13 सीटों पर पहली जून को मतदान होने जा रहा है उसमें ज्यादातर सीटों पर बीजेपी को इस बार कड़ी चुनौती मिल रही है। प्रत्याशी वोटरों के मन की थाह नहीं लगा पा रहे हैं। लोग यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि लोकसभा के इस चुनाव में आखिर मुद्दा क्या है?
 
हर सीट पर कड़ी चुनौती
  
पूर्वांचल की जिन 14 सीटों पर 25 मई को चुनाव हो चुका है, उसमें आधा दर्जन सीटों पर बीजेपी की हार साफ-साफ दिख रही है। सुल्तानपुर में आठ बार की सांसद व भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी मुश्किल में हैं। इस सीट पर चुनाव हो चुका है और लड़ाई फंसी हुई मानी जा रही है। सपा प्रत्याशी के एमवाई (मुस्लिम व यादव) फैक्टर में कुछ क्षत्रिय मतदाताओं का साथ मिलने से लड़ाई कांटे की हो गई है। कैसरगंज और डुमरियागंज में इंडिया गठबंधन ने ब्राह्मण प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश की है। इन सीटों पर ब्राह्मण वोटर सपा के साथ गोलबंद दिखे।

डुमरियागंज में आजाद समाज पार्टी से चौधरी अमर सिंह के मैदान में होने से कुर्मी समाज का एक हिस्सा उनके साथ लामबंद नजर आया। संतकबीरनगर में भी जातीय समीकरण का बोलबाला रहा। आजमगढ़ और जौनपुर में तो एमवाई समीकरण ने खूब काम किया। बाबू सिंह कुशवाहा बसपा में रहते हुए अतिपिछड़ों के कद्दावर नेता रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी ने अपने पुराने सांसद श्याम सिंह यादव पर ही भरोसा जताया है। अगर बीएसपी उम्मीदवार कमजोर पड़ते हैं तो समाजवादी पार्टी को फायदा होना तय है। जौनपुर में दलितों के वोट भी सपा को मिले हैं। इससे सपा की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही है।

भदोही में सवर्ण और बिंद मतदाता भाजपा के पाले में रहे, तो टीएमसी प्रत्याशी ने ब्राह्मण मतों का बड़ा हिस्सा हासिल करने में कामयाबी पाई। इस सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिला। टीएमसी कितना असर दिखा पाएगी, फिलहाल कुछ भी कह पाना कठिन है। प्रतापगढ़ में भी मुद्दों से ज्यादा जातीय समीकरण हावी रहे। यहां सपा मजबूती से चुनाव लड़ती दिखी। यहां राजा भैया फैक्टर ने भी समाजवादी पार्टी को काफी मजबूती दी है।

पूर्वांचल की लालगंज सीट सुरक्षित सीट है। बीजेपी ने सांसद नीलम सोनकर को मैदान में उतारा है। बसपा ने यहां से डॉक्टर इंदू चौधरी को मैदान में उतारा है। सपा ने पुराने समाजवादी दरोगा सरोज पर भरोसा जताया है। लालगंज सीट पर सर्वाधिक वोटर मुस्लिम हैं और हार-जीत का फैसला भी यही करते हैं। ढाई लाख मुस्लिम और दो लाख यादव वोटर जिस तरफ रुख करेगा, जीत उसी की होगी। सपा ने तीन बार सांसद रहे तूफानी सरोज की 26 साल की बेटी प्रिया सरोज को मैदान में उतारा है। मछलीशहर सीट पर मतदान हो चुका है और बीजेपी यहां भी कड़े मुकाबले में फंसी हुई है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं चुनाव विश्लेषक राजीव मौर्य कहते हैं, "लोकसभा चुनाव में अबकी सीधे तौर पर मुद्दे नहीं दिख रहे हैं, लेकिन वो गायब नहीं हुए हैं। पूर्वाचल में सबसे बड़ा मुद्दा संविधान बचाने को लेकर है। दलित वोटरों के बीच यह बात अंदर तक पहुंच गई है कि बाबा साहेब के संविधान पर खतरा मंडरा रहा है। बसपा मुखिया मायावती बीजेपी से मिल गई हैं और बीजेपी सत्ता में आ गई तो संविधान नहीं बच सकेगा। पूर्वांचल में एक और मुद्दा कोविड वैक्सीन का भी है। इस वैक्सीन को लगवाने वाले लोग डरे हुए हैं। इसके कई निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।"

"पूर्वांचल की कई सीटों पर वोटर इस बार बदलाव के मूड में नजर आ रहे हैं। मजहब, आरक्षण, बेरोजगारी और महंगाई सरीखे मुद्दों की चर्चा तो है, पर हर तरफ जाति के समीकरण हावी दिख रहे हैं। कांग्रेस का गरीबों को एक लाख रुपये और दस किलो राशन देने का वादा इंडिया गठबंधन को मजबूत कर रहा है। इन मुद्दों ने बीजेपी को यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि उसकी राह इस बार बहुत आसान नहीं है।"

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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