"देश की शान" छोटे किसान की कमर तोड़ रहा बढ़ता कर्ज, आय बढ़ाने का दावा साबित हुआ नया "जुमला"

Written by Navnish Kumar | Published on: September 16, 2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी "छोटा किसान- देश की शान" व "2022 तक किसान की आय दोगुना करने" के अपने वादे को गाहे बगाहे अघाते न थकते हों लेकिन हकीकत एकदम उलट व चिंता में डालने वाली है। न सिर्फ तेजी से बढ़ता कर्ज़ किसान की कमर तोड़ रहा है बल्कि सरकार की नीतियां पूरी तरह से किसान विरोधी और "लूट' साबित हो रही है। संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत सरकार के रूख पर चिंता जाहिर की है। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार की नीतियों ने किसानों के लिए वे सारे रास्ते बंद कर दिए हैं, जिनसे वे खाद्यान्न की कीमतें कम रखकर उपभोक्ताओं को राहत दे सकते थे। भारत में कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसानों के प्रदर्शन के बीच आई संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत एक ऐसा अजीब देश है, जिसकी सरकार बाकी देशों की तरह अपने किसानों को प्रोत्साहित करने की बजाय उन्हें दंडित कर रही है। नतीजा 2013 के मुकाबले 6 साल में (2018 तक के आंकड़ों में) प्रत्येक किसान (परिवार) पर कर्ज़ 57% बढ़ गया है।



डाउन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 23 सितंबर को होने वाले विश्व खाद्य सम्मेलन से पहले संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों, खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने ‘ए मल्टी बिलियन डॉलर ऑपर्च्यूनिटी’ नाम की रिपोर्ट जारी की। इसमें खेती में सुधार के लिए पूरी दुनिया में एक सहयोगी तंत्र विकसित करने की मांग की गई है। रिपोर्ट ने इन आयामों के आधार पर किसानों के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों और उनके प्रभावों का विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारें कृषि सुधार के नाम पर सालाना 540 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च करती हैं। इनमें से आधे से ज्यादा राशि मूल्य कम करने के नाम पर इस्तेमाल की जाती है, जिसका पर्यावरण पर गहरा नकारात्मक असर पड़ता है। हालांकि कृषि में सुधार का तरीका दुनिया के देशों में अलग-अलग तरह का है। मगर जहां विकसित देश अपने किसानों को वैश्विक स्पर्धा में भाग लेने के लिए उन्हें उपज का बेहतर मूल्य पाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वहीं, विकासशील व उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश भी अपने किसानों को कई तरह से सहयोग करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 20 सालों से भारत में कृषि की नीतियां इस तरह की रही हैं, जिससे खाद्य पदार्थों के दाम न बढ़ाकर उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके। इसका खामियाजा किसानों को सजा के तौर पर झेलना पड़ता है।

रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि किस तरह दुनिया के दूसरे मध्यम आय वाले देशों ने अपने किसानों को सहयोग देकर उनकी मदद की है। यह और बात है कि इसके लिए उन्होंने अलग-अलग उपाय अपनाए। जबकि भारत, घाना व अर्जेंटीना के रास्ते पर चलकर किसानों पर टैक्स लगाने और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में भरोसा करता रहा है। वह इस नीति पर इसलिए चल रहा है ताकि खाद्य पदार्थों की महंगाई न बढ़े और वे आम जनता की पहुंच से बाहर न जाएं। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के अनुसार, भारतीय किसानों के लिए ‘उत्पादक समर्थन आकलन’ 5.7% नकारात्मक है जिसके चलते 2019 में किसानों को 23 अरब डाॅलर का नुकसान हुआ है। यही नहीं, किसानों पर कर्ज़ बढ़कर 17 लाख करोड़ पर पहुंच गया है। 
 
वित्त राज्यमंत्री भागवत किशनराव कराड ने संसद में बताया कि नाबार्ड के आंकड़ों के मुताबिक देश के किसानों पर इस समय 16.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और किसानों की कर्जमाफी को लेकर फिलहाल सरकार की कोई योजना भी नहीं है।

लेकिन केंद्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कई योजनाओं का संचालन कर रही है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी कई मौकों पर कह चुके हैं कि सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरे तन-मन से काम कर रही है। सरकार ने संसद में किसानों के कर्ज से जुड़ा पूरा डाटा पेश किया जिसमें सभी राज्यों के किसानों पर कर्ज का लेखा-जोखा मौजूद है। इस दस्तावेज के मुताबिक सबसे ज्यादा कर्ज में डूबे किसान वाले राज्यों में तमिलनाडु सबसे ऊपर है। तमिलनाडु के किसानों पर 1.89 लाख करोड़ का कर्ज है।

राज्यवार कर्जदार किसानों की संख्या और उन पर कर्ज (करोड़ में)

इन 5 राज्यों के किसानों पर सबसे ज्यादा कर्ज
> तमिलनाडु- 189623.56 करोड़ का कर्ज
> आंध्र प्रदेश- 169322.96 करोड़ का कर्ज
> उत्तर प्रदेश- 155743.87 करोड़ का कर्ज
> महाराष्ट्र- 153658.32 करोड़ का कर्ज
> कर्नाटक- 143365.63 करोड़ का कर्ज

इन 5 राज्यों में सबसे अधिक खाता धारकों पर कर्ज
> तमिलनाडु- 1,64,45,864 खाते
> उत्तर प्रदेश- 1,43,53,475 खाते
> आंध्र प्रदेश- 1,20,08,351 खाते
> कर्नाटक- 1,08,99,165 खाते
> महाराष्ट्र- 1,04,93,252 खाते

इन 5 प्रदेशों के किसानों पर सबसे कम कर्ज
> दमन और दीव- 40 करोड़ का कर्ज
> लक्षद्वीप- 60 करोड़ का कर्ज
> सिक्किम- 175 करोड़ का कर्ज
> लद्दाख- 275 करोड़ का कर्ज
> मिजोरम- 554 करोड़ का कर्ज

इन 5 राज्यों में सबसे कम खाताधारकों पर कर्ज
> दमन और दीव- 1,857 अकाउंट
> लक्षद्वीप- 17,873 अकाउंट
> सिक्किम- 21,208 अकाउंट
> लद्दाख- 25,781 अकाउंट
> दिल्ली- 32,902 अकाउंट

औसत बकाया ऋण के मामले में कुल 28 राज्यों में आंध्र प्रदेश पर सबसे अधिक औसत 2.45 लाख रुपये का ऋण बकाया था। कर्ज में डूबे किसान परिवारों के मामले में भी यह राज्य शीर्ष (93.2%) पर था। आंध्र प्रदेश के बाद कर्ज में डूबे किसान परिवारों के मामले में तेलंगाना (91.7%) और केरल (69.9%) का स्थान है। कम से कम 11 राज्यों में कृषि परिवारों का बकाया ऋण राष्ट्रीय औसत 74,121 रुपये से अधिक है। इनमें से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, केरल, राजस्थान और तमिलनाडु के पास 1 लाख रुपये से अधिक की ऋण राशि थी। खास है कि हाल में पंजाब सरकार ने किसानों के 590 करोड़ रुपये की कर्जमाफी का ऐलान किया है। ये कर्जमाफी मजदूरों और भूमिहीन कृषक समुदाय के लिए कृषि कर्ज माफी योजना के तहत करने की घोषणा की गई है। बता दें कि पंजाब में इस योजना के तहत अब तक 5.64 लाख किसानों का 4,624 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया जा चुका है। 

कर्ज के बोझ में दबे हैं देश के आधे से ज्यादा किसान, प्रत्येक पर औसतन 74,121 रुपये का लोन
देश व राज्यों से इतर किसानवार कर्ज़ की बात करें तो राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा 10 सितंबर को जारी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में देश में 50% से अधिक किसान परिवार कर्ज में डूबे थे, जिन पर औसतन 74,121 रुपये का कर्ज था। सर्वे के अनुसार, बकाया लोन में से केवल 69.6% कर्ज बैंकों, सहकारी समितियों व सरकारी एजेंसियों जैसे संस्थागत स्रोतों से लिए गए थे, जबकि 20.5 प्रतिशत ऋण पेशेवर साहूकारों से लिया गया था। सर्वे के मुताबिक कुल लिए गए कर्ज में से केवल 57.5 फीसदी कर्ज ही कृषि उद्देश्यों के लिए लिया गया था। NSO ने 2019 में ग्रामीण क्षेत्रों में घरों की जमीन और पशुधन होल्डिंग्स और कृषि परिवारों की स्थिति जानने के लिए यह सर्वे किया था। सर्वे में कहा गया है कि 2018-19 के दौरान हरेक कृषि परिवार की औसत मासिक आय 10,218 रुपये थी। इसमें मजदूरी से 4,063 रुपये, फसल उत्पादन से 3,798 रुपये, पशुपालन से 1,582 रुपये, गैर कृषि व्यवसाय से 641 रुपये और पट्टे की जमीन से 134 रुपये आय थी। यानी खाली खेती (फसल उत्पादन) से किसान की महज 3,798 रुपये की आय है जबकि 2013 में खेती से किसान की आय 3,081 रुपये थी।

देश में कृषि परिवारों की कुल संख्या 9.3 करोड़ थी, जिसमें ओबीसी 45.8 %, एससी 15.9% एसटी 14.2% व अन्य 24.1% थे। इनमें 7.93 करोड़ कृषि परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। सर्वे के अनुसार 83.5% ग्रामीण परिवारों के पास 1 हेक्टेयर से भी कम खेती की जमीन है। मात्र 0.2% परिवार ऐसे हैं जिन पर 10 हेक्टेयर से अधिक जमीन है। रिपोर्ट में पाया गया कि ग्रामीण भारत में 17.8% परिवार (21.2 प्रतिशत कृषक परिवार, 13.5 प्रतिशत गैर-कृषक परिवार) केवल संस्थागत ऋण एजेंसियों से कर्ज लेते थे। इसके अलावा ग्रामीण भारत में करीब 10.2% परिवारों ने गैर-संस्थागत एजेंसिंयों से कर्ज लिया जबकि शहरी भारत में यह संख्या 4.9% परिवार थी। वहीं ग्रामीण भारत में 7% परिवार ऐसे थे जिन्होंने संस्थागत कर्ज और गैर-संस्थागत दोनों तरह से कर्ज लिया था जबकि शहरी क्षेत्र में ऐसे परिवार 3% थे। एक अन्य रिपोर्ट में एनएसओ ने कहा कि 30 जून, 2018 की स्थिति के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में कर्ज लेने वाले परिवार 35% थे (40.3% कृषक परिवार, 28.2 प्रतिशत गैर-कृषि परिवार)। जबकि शहरी क्षेत्र में यह 22.4% (27.5% स्व-रोजगार से जुड़े परिवार, 20.6% अन्य परिवार) थे।

2013 के मुकाबले प्रति किसान परिवार 57% बढ़ गया है कर्ज़
रिपोर्ट के मुताबिक 6 साल पहले 2013 में पेश किए गए सर्वे की तुलना में कर्ज में डूबे परिवारों की संख्या में मामूली कमी आई है और यह 51.9% से थोड़ा कम होकर 50.2% हो गया है। लेकिन, प्रति किसान परिवार ऋण की औसत राशि में 57% की भारी वृद्धि दर्ज हुई है। 6 साल पहले 2013 में औसत कर्ज 47,000 रुपये था जो अब 2019 में 74,121 रुपये है।

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