"महंगाई बढ़ने का सीधा-सीधा मतलब आपके कमाए पैसों का मूल्य कम होना है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 7% है, तो आपके कमाए 100 रुपए का मूल्य 93 रुपए होगा। हालांकि ऐसे कई फैक्टर हैं जो किसी इकोनॉमी में कीमतों या महंगाई को बढ़ा सकते हैं। आमतौर पर महंगाई प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ने, प्रोडक्ट और सर्विसेज की डिमांड में तेजी या सप्लाई में कमी के कारण होती है। लेकिन भारत में महंगाई के कारणों की बात करें तो डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर होकर 83 के स्तर के पार पहुंच गया है। डॉलर महंगा होने से भारत का आयात और महंगा होता जा रहा है और इससे घरेलू बाजार में चीजों के दाम भी बढ़ रहे हैं। वहीं कोविड के बाद से सप्लाई चेन अभी तक पूरी तरह से पटरी पर नहीं आई है, जिसने महंगाई को बढ़ाया है। इसके अलावा रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध के कारण भी क्रूड ऑयल और खाने-पीने के सामानों के दाम बढ़े हैं।"
खाने पीने की चीजों के साथ हर घर में रोजाना उपयोग होने वाले सामान जैसे दूध, शक्कर, टमाटर और प्याज जैसी चीजों के दामों में भरी बढ़ोत्तरी दर्ज की गईं हैं। देखें तो एक साल में ही दूध-घी-सब्जियों के साथ दाल चावल, चीनी और आटे से लेकर मसाले और तेलों तक के दामों में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। 2023 में तुअर की दाल 110 रुपए से बढ़कर 154 रुपए किलो पर पहुंच गई। राजमा 160 रुपए किलो बिक रहा है। टमाटर प्याज के बाद लहसुन के दाम आसमां छू रहे हैं। लहसुन 400 रुपए किलो बिक रहा है तो सर्दी में अदरक 200 रुपए किलो पर जा पहुंचा है। सौंफ-जीरा आदि के दाम कई गुना तक बढ़ गए हैं। जीरे का रेट 700 रुपए किलो को पार कर गया है तो इस साल चावल 37 रुपए से बढ़कर 43 रुपए प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है। इतना भर ही नहीं सरकार के लाख दावों और लोगों को फ्री राशन तथा कंट्रोल रेट पर दाल चावल प्याज आदि बेचने जैसे तमाम जतन के बावजूद, महंगाई पर काबू नहीं पाया जा सका। सबसे बड़े ताज्जुब की बात यह है कि किसानों को भी इस रेट बढ़ोत्तरी का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है और उन पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। यानी सरकार में बिचौलिए हावी है, इसी से थककर, चुनावी साल में अब सरकार ने कारोबारियों पर शिकंजा कसना शुरू किया है और स्टॉक जांचने के साथ-साथ निगरानी भी बढ़ाई है।
काबू में नहीं आई महंगाई तो चावल व्यापारियों की कसी नकेल
महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने व्यापारियों से चावल व धान के स्टॉक की जानकारी देने को कहा है। इस आदेश के चलते सभी व्यापारियों व मिलर्स को टूटे चावल, गैर-बासमती सफेद चावल, उबला चावल, बासमती चावल, धान की स्टॉक की ताजा स्थिति सात दिन के भीतर घोषित करनी होगी। साफ है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बाद खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम नहीं हो रही हैं। डाउन टू अर्थ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, उपभोक्ता मामलों के विभाग के प्राइस मॉनीटरिंग सेल के मुताबिक दो फरवरी 2024 को चावल का औसत खुदरा मूल्य 43.96 रुपए प्रति किलोग्राम था, जो पिछले साल यानी 2 फरवरी 2023 में 38.63 रुपए प्रति किग्रा था। चूंकि कुछ माह बाद ही आम चुनाव होने हैं, इसलिए सरकार ने चावल की कीमतों पर काबू पाने के लिए व्यापारियों की नकेल कसनी शुरू कर दी है।
एक ओर सरकार जहां चावल की खुदरा कीमतों पर काबू पाना चाहती है, वहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 80 करोड़ गरीबों को राशन भी देना है। हालांकि दो फरवरी 2024 को सरकार ने दावा किया कि खरीफ विपणन सीजन 2023-24 (खरीफ फसल) के दौरान 600 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान की खरीद पूरी हो चुकी है, जबकि केंद्रीय पूल में लगभग वार्षिक आवश्यकता के मुकाबले 525 एलएमटी से अधिक चावल है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली सहित सभी कल्याणकारी योजनाओं के तहत 400 लाख टन चावल की सालाना आवश्यकता होती है।
व्यापारियों की नकेल कसने से सरकार के दोनों मकसद हल हो सकते हैं। केंद्र सकार ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में व्यापारी चाहे थोक हो या खुदरा, प्रोसेसर हो या मिलर्स के स्टॉक पर नजर रखने का निर्णय लिया है। इसके चलते उन्हें हर शुक्रवार को खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के पोर्टल पर स्टॉक की ताजा स्थिति अपडेट करनी होगी।
इसके अलावा खाद्य वस्तुओं की महंगाई को रोकने के लिए सरकार ने आम उपभोक्ताओं के लिए 'भारत चावल' की खुदरा बिक्री शुरू करने का निर्णय लिया है। पहले चरण में तीन एजेंसियों नैफेड, एनसीसीएफ और केंद्रीय भंडार के माध्यम से 'भारत चावल' ब्रांड के अंतर्गत खुदरा बिक्री के लिए 5 लाख मीट्रिक टन चावल आवंटित किया गया है। भारत चावल की बिक्री का खुदरा मूल्य 29 रु. प्रति किग्रा. होगा, जिसे 5 किलोग्राम और 10 किलोग्राम के बैग में बेचा जाएगा। भारत चावल शुरुआत में खरीद के लिए मोबाइल वैनों और तीन केन्द्रीय सहकारी एजेंसियों की दुकानों से खरीदने के लिए उपलब्ध होगा, और यह बहुत जल्द ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सहित अन्य खुदरा श्रृंखलाओं के माध्यम से भी उपलब्ध होगा।
सरकार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में स्वीकार किया गया है कि इस खरीफ में अच्छी फसल, भारतीय खाद्य निगम के पास चावल का पर्याप्त स्टॉक व निर्यात पर विभिन्न नियमों के बावजूद चावल की घरेलू कीमतें बढ़ रही हैं। पिछले वर्ष के मुकाबले खुदरा कीमतों में 14.51 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। चावल की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार की ओर से पहले ही कई कदम उठाए जा चुके हैं। सरकार की ओर से बताया गया कि एफसीआई के पास अच्छी गुणवत्ता वाले चावल का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है, जिसे व्यापारियों व थोक विक्रेताओं को ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत 29 रुपये किलो के आरक्षित मूल्य पर दिया जा रहा है। खुले बाजार में चावल की बिक्री बढ़ाने के लिए, सरकार ने चावल का आरक्षित मूल्य 3100 रुपए क्विंटल से कम करके 2900 रुपये क्विंटल कर दिया और चावल की न्यूनतम और अधिकतम मात्रा को क्रमशः 1 मीट्रिक टन और 2000 मीट्रिक टन तक संशोधित किया गया। 31 जनवरी 2024 तक 1.66 लाख मीट्रिक टन चावल खुले बाजार में बेचा जा चुका है, जो ओएमएसएस (डी) के तहत किसी भी वर्ष में चावल की सबसे अधिक बिक्री है।
टूटे हुए चावल की निर्यात नीति को एक फरवरी 2017 से "मुक्त" से "निषिद्ध" में संशोधित किया गया है। 9 सितंबर, 2022 को गैर-बासमती चावल के संबंध में, जो कुल चावल निर्यात का लगभग 25 प्रतिशत है, 20प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया है। इसके बाद गैर-बासमती सफेद चावल की निर्यात नीति को 20 जुलाई 2023 से संशोधित कर 'निषिद्ध' कर दिया गया। उबले चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया गया है जो 31 मार्च, 2024 तक लागू रहेगा। हालांकि इन सभी उपायों के बावजूद घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में वृद्धि की गति पर अंकुश नहीं लग पाया है।
गेहूं पर भी नजर
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग कीमतों को नियंत्रित करने और गेहूं के स्टॉक की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है। खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार 28 जून 2023 से साप्ताहिक ई-नीलामी के माध्यम से गेहूं को बाजार में उतार रही है। सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (घरेलू) के तहत एफएक्यू के लिए 2150 रुपये क्विंटल और यूआरएस के लिए 2125 रुपये क्विंटल के आरक्षित मूल्य पर उतारने के लिए कुल 101.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं आवंटित किया है। 31 जनवरी 2024 तक ओएमएसएस (डी) के तहत 75.26 एलएमटी गेहूं बेचा जा चुका है। अब साप्ताहिक नीलामियों में ओएमएसएस के तहत पेश किए जाने वाले गेहूं की मात्रा को 5 एलएमटी तक बढ़ाने और उत्पादन की कुल मात्रा को 400 मीट्रिक टन तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है।
तेल की भी निगरानी
भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर भी बारीकी से नजर रख रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले। सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए कई उपाय किए हैं। कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल शुल्क 2.5 प्रतिशत से घटाकर शून्य कर दिया गया। इसके अलावा, इन तेलों पर कृषि-उपकर 20 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया। इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया गया है। रिफाइंड सोयाबीन तेल, रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड पाम तेल पर मूल शुल्क घटाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है। इस ड्यूटी को 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दिया गया है।
दुनिया में कम हो रही महंगाई
यहां खास बात यह है कि दुनिया में खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आ रही है। दो फरवरी 2024 को संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक गेहूं-मक्के के साथ-साथ मांस की कीमतों में आई गिरावट के चलते वैश्विक खाद्य मूल्य सूचकांक (फूड प्राइस इंडेक्स) में जनवरी 2024 के दौरान भी गिरावट दर्ज की गई। जबकि भारत में तमाम जद्दोजहद के बावजूद जहां महंगाई पर काबू नहीं हो पा रहा है वहीं उत्पादकों यानी किसानों को भी इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। सारी व्यवस्था पर बिचौलिए हावी है। किसान पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है और वह आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है।
भाजपा के राज में किसानों पर कर्ज 60% बढ़ा, 30 किसान रोज़ आत्महत्या करने को मजबूर: राहुल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमलावर है। राहुल गांधी ने बुधवार को किसानों की आत्महत्या को लेकर पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। देशबंधु की एक रिपोर्ट के अनुसार, राहुल गांधी ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा कर सत्ता में आई भाजपा के राज में आज 30 किसान रोज़ आत्महत्या करने को मजबूर हैं। कहा जब देश के किसानों पर कर्ज़ 2014 के मुक़ाबले 60% अधिक है तब मोदी सरकार ने 10 सालों में उद्योगपतियों का ₹7.5 लाख करोड़ कर्ज़ माफ कर दिया है। यही नहीं, फसल बीमा योजना में किसानों के हिस्से के ₹2700 करोड़ रोकने वाली निजी इंश्योरेंस कम्पनियां खुद ₹40,000 करोड़ मुनाफा कमा कर बैठी हैं।
कहा महंगी खाद, महंगे बीज, महंगी सिंचाई, महंगी बिजली के कारण आसमान छूती कृषि लागत के बीच किसान MSP तक के लिए संघर्ष कर रहा है। बिना उचित MSP के किसान को प्रति क्विंटल गेंहू पर ₹200 और धान पर ₹680 का नुकसान हो रहा है। कहा कांग्रेस का लक्ष्य कृषि लागत को घटा कर किसानों को फसल की सही कीमत दिलाना है, क्योंकि किसानों की समृद्धि का रास्ता उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता है और यही उनके साथ वास्तविक न्याय। कहा हमारी सरकार ‘किसानों की सरकार’ होगी, कुछ ‘सरकारी उद्योगपतियों’ की नहीं।
Related:
खाने पीने की चीजों के साथ हर घर में रोजाना उपयोग होने वाले सामान जैसे दूध, शक्कर, टमाटर और प्याज जैसी चीजों के दामों में भरी बढ़ोत्तरी दर्ज की गईं हैं। देखें तो एक साल में ही दूध-घी-सब्जियों के साथ दाल चावल, चीनी और आटे से लेकर मसाले और तेलों तक के दामों में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। 2023 में तुअर की दाल 110 रुपए से बढ़कर 154 रुपए किलो पर पहुंच गई। राजमा 160 रुपए किलो बिक रहा है। टमाटर प्याज के बाद लहसुन के दाम आसमां छू रहे हैं। लहसुन 400 रुपए किलो बिक रहा है तो सर्दी में अदरक 200 रुपए किलो पर जा पहुंचा है। सौंफ-जीरा आदि के दाम कई गुना तक बढ़ गए हैं। जीरे का रेट 700 रुपए किलो को पार कर गया है तो इस साल चावल 37 रुपए से बढ़कर 43 रुपए प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया है। इतना भर ही नहीं सरकार के लाख दावों और लोगों को फ्री राशन तथा कंट्रोल रेट पर दाल चावल प्याज आदि बेचने जैसे तमाम जतन के बावजूद, महंगाई पर काबू नहीं पाया जा सका। सबसे बड़े ताज्जुब की बात यह है कि किसानों को भी इस रेट बढ़ोत्तरी का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है और उन पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। यानी सरकार में बिचौलिए हावी है, इसी से थककर, चुनावी साल में अब सरकार ने कारोबारियों पर शिकंजा कसना शुरू किया है और स्टॉक जांचने के साथ-साथ निगरानी भी बढ़ाई है।
काबू में नहीं आई महंगाई तो चावल व्यापारियों की कसी नकेल
महंगाई पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने व्यापारियों से चावल व धान के स्टॉक की जानकारी देने को कहा है। इस आदेश के चलते सभी व्यापारियों व मिलर्स को टूटे चावल, गैर-बासमती सफेद चावल, उबला चावल, बासमती चावल, धान की स्टॉक की ताजा स्थिति सात दिन के भीतर घोषित करनी होगी। साफ है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बाद खाद्य वस्तुओं की कीमतें कम नहीं हो रही हैं। डाउन टू अर्थ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, उपभोक्ता मामलों के विभाग के प्राइस मॉनीटरिंग सेल के मुताबिक दो फरवरी 2024 को चावल का औसत खुदरा मूल्य 43.96 रुपए प्रति किलोग्राम था, जो पिछले साल यानी 2 फरवरी 2023 में 38.63 रुपए प्रति किग्रा था। चूंकि कुछ माह बाद ही आम चुनाव होने हैं, इसलिए सरकार ने चावल की कीमतों पर काबू पाने के लिए व्यापारियों की नकेल कसनी शुरू कर दी है।
एक ओर सरकार जहां चावल की खुदरा कीमतों पर काबू पाना चाहती है, वहीं सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 80 करोड़ गरीबों को राशन भी देना है। हालांकि दो फरवरी 2024 को सरकार ने दावा किया कि खरीफ विपणन सीजन 2023-24 (खरीफ फसल) के दौरान 600 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान की खरीद पूरी हो चुकी है, जबकि केंद्रीय पूल में लगभग वार्षिक आवश्यकता के मुकाबले 525 एलएमटी से अधिक चावल है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली सहित सभी कल्याणकारी योजनाओं के तहत 400 लाख टन चावल की सालाना आवश्यकता होती है।
व्यापारियों की नकेल कसने से सरकार के दोनों मकसद हल हो सकते हैं। केंद्र सकार ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में व्यापारी चाहे थोक हो या खुदरा, प्रोसेसर हो या मिलर्स के स्टॉक पर नजर रखने का निर्णय लिया है। इसके चलते उन्हें हर शुक्रवार को खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के पोर्टल पर स्टॉक की ताजा स्थिति अपडेट करनी होगी।
इसके अलावा खाद्य वस्तुओं की महंगाई को रोकने के लिए सरकार ने आम उपभोक्ताओं के लिए 'भारत चावल' की खुदरा बिक्री शुरू करने का निर्णय लिया है। पहले चरण में तीन एजेंसियों नैफेड, एनसीसीएफ और केंद्रीय भंडार के माध्यम से 'भारत चावल' ब्रांड के अंतर्गत खुदरा बिक्री के लिए 5 लाख मीट्रिक टन चावल आवंटित किया गया है। भारत चावल की बिक्री का खुदरा मूल्य 29 रु. प्रति किग्रा. होगा, जिसे 5 किलोग्राम और 10 किलोग्राम के बैग में बेचा जाएगा। भारत चावल शुरुआत में खरीद के लिए मोबाइल वैनों और तीन केन्द्रीय सहकारी एजेंसियों की दुकानों से खरीदने के लिए उपलब्ध होगा, और यह बहुत जल्द ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सहित अन्य खुदरा श्रृंखलाओं के माध्यम से भी उपलब्ध होगा।
सरकार द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में स्वीकार किया गया है कि इस खरीफ में अच्छी फसल, भारतीय खाद्य निगम के पास चावल का पर्याप्त स्टॉक व निर्यात पर विभिन्न नियमों के बावजूद चावल की घरेलू कीमतें बढ़ रही हैं। पिछले वर्ष के मुकाबले खुदरा कीमतों में 14.51 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। चावल की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार की ओर से पहले ही कई कदम उठाए जा चुके हैं। सरकार की ओर से बताया गया कि एफसीआई के पास अच्छी गुणवत्ता वाले चावल का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है, जिसे व्यापारियों व थोक विक्रेताओं को ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत 29 रुपये किलो के आरक्षित मूल्य पर दिया जा रहा है। खुले बाजार में चावल की बिक्री बढ़ाने के लिए, सरकार ने चावल का आरक्षित मूल्य 3100 रुपए क्विंटल से कम करके 2900 रुपये क्विंटल कर दिया और चावल की न्यूनतम और अधिकतम मात्रा को क्रमशः 1 मीट्रिक टन और 2000 मीट्रिक टन तक संशोधित किया गया। 31 जनवरी 2024 तक 1.66 लाख मीट्रिक टन चावल खुले बाजार में बेचा जा चुका है, जो ओएमएसएस (डी) के तहत किसी भी वर्ष में चावल की सबसे अधिक बिक्री है।
टूटे हुए चावल की निर्यात नीति को एक फरवरी 2017 से "मुक्त" से "निषिद्ध" में संशोधित किया गया है। 9 सितंबर, 2022 को गैर-बासमती चावल के संबंध में, जो कुल चावल निर्यात का लगभग 25 प्रतिशत है, 20प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया है। इसके बाद गैर-बासमती सफेद चावल की निर्यात नीति को 20 जुलाई 2023 से संशोधित कर 'निषिद्ध' कर दिया गया। उबले चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया गया है जो 31 मार्च, 2024 तक लागू रहेगा। हालांकि इन सभी उपायों के बावजूद घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में वृद्धि की गति पर अंकुश नहीं लग पाया है।
गेहूं पर भी नजर
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग कीमतों को नियंत्रित करने और गेहूं के स्टॉक की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है। खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार 28 जून 2023 से साप्ताहिक ई-नीलामी के माध्यम से गेहूं को बाजार में उतार रही है। सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (घरेलू) के तहत एफएक्यू के लिए 2150 रुपये क्विंटल और यूआरएस के लिए 2125 रुपये क्विंटल के आरक्षित मूल्य पर उतारने के लिए कुल 101.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं आवंटित किया है। 31 जनवरी 2024 तक ओएमएसएस (डी) के तहत 75.26 एलएमटी गेहूं बेचा जा चुका है। अब साप्ताहिक नीलामियों में ओएमएसएस के तहत पेश किए जाने वाले गेहूं की मात्रा को 5 एलएमटी तक बढ़ाने और उत्पादन की कुल मात्रा को 400 मीट्रिक टन तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है।
तेल की भी निगरानी
भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर भी बारीकी से नजर रख रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले। सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए कई उपाय किए हैं। कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल शुल्क 2.5 प्रतिशत से घटाकर शून्य कर दिया गया। इसके अलावा, इन तेलों पर कृषि-उपकर 20 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया। इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया गया है। रिफाइंड सोयाबीन तेल, रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड पाम तेल पर मूल शुल्क घटाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है। इस ड्यूटी को 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दिया गया है।
दुनिया में कम हो रही महंगाई
यहां खास बात यह है कि दुनिया में खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आ रही है। दो फरवरी 2024 को संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक गेहूं-मक्के के साथ-साथ मांस की कीमतों में आई गिरावट के चलते वैश्विक खाद्य मूल्य सूचकांक (फूड प्राइस इंडेक्स) में जनवरी 2024 के दौरान भी गिरावट दर्ज की गई। जबकि भारत में तमाम जद्दोजहद के बावजूद जहां महंगाई पर काबू नहीं हो पा रहा है वहीं उत्पादकों यानी किसानों को भी इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। सारी व्यवस्था पर बिचौलिए हावी है। किसान पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है और वह आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है।
भाजपा के राज में किसानों पर कर्ज 60% बढ़ा, 30 किसान रोज़ आत्महत्या करने को मजबूर: राहुल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमलावर है। राहुल गांधी ने बुधवार को किसानों की आत्महत्या को लेकर पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा। देशबंधु की एक रिपोर्ट के अनुसार, राहुल गांधी ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा कर सत्ता में आई भाजपा के राज में आज 30 किसान रोज़ आत्महत्या करने को मजबूर हैं। कहा जब देश के किसानों पर कर्ज़ 2014 के मुक़ाबले 60% अधिक है तब मोदी सरकार ने 10 सालों में उद्योगपतियों का ₹7.5 लाख करोड़ कर्ज़ माफ कर दिया है। यही नहीं, फसल बीमा योजना में किसानों के हिस्से के ₹2700 करोड़ रोकने वाली निजी इंश्योरेंस कम्पनियां खुद ₹40,000 करोड़ मुनाफा कमा कर बैठी हैं।
कहा महंगी खाद, महंगे बीज, महंगी सिंचाई, महंगी बिजली के कारण आसमान छूती कृषि लागत के बीच किसान MSP तक के लिए संघर्ष कर रहा है। बिना उचित MSP के किसान को प्रति क्विंटल गेंहू पर ₹200 और धान पर ₹680 का नुकसान हो रहा है। कहा कांग्रेस का लक्ष्य कृषि लागत को घटा कर किसानों को फसल की सही कीमत दिलाना है, क्योंकि किसानों की समृद्धि का रास्ता उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता है और यही उनके साथ वास्तविक न्याय। कहा हमारी सरकार ‘किसानों की सरकार’ होगी, कुछ ‘सरकारी उद्योगपतियों’ की नहीं।
Related: