सरसों का तेल बनाम कारपोरेट खेल: नई फसल आने के बावजूद घटने के बजाय बढ़ गए दाम

Written by Navnish Kumar | Published on: June 2, 2021
मेरठ। जब नई फसल बाजार में आती है तो उत्पादों के दाम में गिरावट आ जाती है। चाहे वह गेहूं हो, चावल हो या फिर सरसों। इस बार उल्टा हुआ है। सरसों का दाम नई फसल आने के बाद और तेजी से बढ़ गया। इसका सीधा प्रभाव आम उपभोक्ता पर पड़ा है, जिसे महंगे दाम पर सरसों का तेल खरीदना पड़ रहा है। यही नहीं, बंपर उत्पादन और मांग में कमी के बावजूद, रेट बढ़ने ने विशेषज्ञों को भी हैरत में डाल दिया हैं। सवाल क्या इसके पीछे कारपोरेट का खेल है?



दरअसल, एक महीना पहले सरसों का थोक भाव 5500-6000 रुपये प्रति क्विंटल था। जबकि मार्च में 4200 से 4500 रूपये कुंतल का ही रेट था। इसके बाद नई फसल पककर तैयार हुई और कटाई होने के बाद बाजार में पहुंच गई। उम्मीद थी कि अब सरसों का दाम गिरेगा, लेकिन यह और बढ़ गया। अब सरसों का दाम 7000-7500 रुपये प्रति क्विंटल से भी ज्यादा हो गया है। स्पेलर संचालक करण सिंह का कहना है कि समझ में नहीं आया कि नई फसल आने पर भी दाम कैसे ज्यादा हो गए। उन्हें तो इसका काफी नुकसान है, क्योंकि दाम महंगा होने से बिक्री प्रभावित होती है।

यही नहीं, अप्रैल माह में काली सरसों का तेल 140 रुपये प्रति किलो तक बिका था, जो अब 180 रुपये प्रति किलो हो गया है। पीली सरसों का तेल 200 रुपये किलो के पार तक पहुंच गया है। इससे उपभोक्ता परेशान हैं और तेल खरीदना महंगा पड़ रहा है। दरअसल सब्जी बनाने के लिए सरसों का तेल अधिकांश घरों में इस्तेमाल होता है, मगर इस पर महंगाई की मार पड़ गई और तड़का महंगा हो गया। सरकार को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए, ताकि आम उपभोक्ता को राहत मिल सके। 

जानकारों का कहना है कि सरसों के दाम बढ़ने की वजह ये है कि इस समय सरसों के तेल के दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं। बाज़ार में एक लीटर तेल के दाम 175-180 रुपए तक पहुंच गए हैं, वहीं शुद्ध कच्ची घानी सरसों का तेल तो दो सौ रुपए किलो से भी ज्यादा तक बिक रहा है।

भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के विभाग के मुताबिक़ भी अप्रैल 2020 में भारत में एक किलो सरसों तेल की औसत क़ीमत 117.95 रुपए थी जबकि नवंबर 2020 में यही दाम 132.66 रुपए प्रति किलो था। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के मुताबिक़ मई 2021 में भारत में सरसों के तेल की औसत क़ीमत 163.5 रुपए प्रति किलो थी।

सरसों से तेल निकालने का कोल्हू चलाने वाले आकिब 70 रुपए किलो सरसों खरीद रहे हैं और 200 रुपए किलो तेल बेच रहे हैं. वो कहते हैं, हमने ना कभी इस भाव पर सरसों खरीदी है और न ही इतना महँगा तेल बेचा है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले एक साल में खाद्य तेलों के दामों में 55 फ़ीसदी तक की बढ़ोत्तरी हुई है। बाज़ार पर नज़र रखने वाले विश्लेषकों के मुताबिक़ दामों में इस बढ़ोत्तरी के कारण सिर्फ़ घरेलू नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार का भी क़ीमतों पर असर हो रहा है। खास है कि सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4400 रुपए प्रति क्विंटल है।

कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा सरसों के तेल के दामों के बढ़ने को स्वागत योग्य संकेत मानते हैं। वो कहते हैं कृषि क्षेत्र के लिए अच्छी बात है। देवेंद्र शर्मा मानते हैं कि भारत में खाद्य तेलों के दाम बढ़ने के पीछे कहीं न कहीं भारत सरकार का मलेशिया से पाम ऑयल के आयात पर सख़्त होना भी है। दूसरा, सरकार ने मस्टर्ड ऑयल की ब्लेंडिंग को प्रतिबंधित कर दिया। यानी सरसों के तेल में किसी और तेल की मिलावट को रोक दिया गया जिससे भी सरसों के तेल के दाम बढ़े।

देवेंद्र शर्मा का कहना है कि इसे तेल के उत्पादकों को भारी फ़ायदा हुआ है, भारत में सरसों तेल का सबसे बड़ा उत्पादक अडानी समूह है जिसके तेल फ़ॉर्च्युन नाम से बिकते हैं। द सेंट्रल ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (सीओओआईटी) के मुताबिक़ भारत में इस साल सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। भारत में रबी मौसम के दौरान 89.5 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ जो पिछले साल के मुक़ाबले 19.33 फ़ीसदी अधिक है। 2019-20 में भारत में 75 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ था. लेकिन ये बंपर उत्पादन भी भारत की ज़रूरतों को पूरा करने में नाकाफी है।

कृषि विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सुधीर पंवार कहते हैं, भारत में सरसों का उत्पादन भी भरपूर हुआ है और बाजार में कहीं न कहीं डिमांड भी बहुत अधिक नहीं है, ऐसे में सरसों के तेल के दामों में वृद्धि के कारण कृत्रिम भी हो सकते हैं। प्रोफ़ेसर पंवार कहते हैं कि भारत में खाद्य तेलों की महंगाई वैश्विक बाज़ार, भारत सरकार की आयात नीति व खाद्य तेलों के बड़े आयातकों के निर्णयों का ही परिणाम है।

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