कोविड-19 के इलाज़ के लिए बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद निर्मित कोरोनिल नाम की दवाई लगातार विवादों के घेरे में है हालाँकि दावा यह किया जा रहा है कि इस दवाई को तमाम जरूरी मंत्रालय और WHO जैसे संगठनों से मान्यता प्राप्त हो चुकी है. पतंजलि ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की मौजूदगी में कोरोनिल टेबलेट के लिए आयुष मंत्रालय से प्रमाण पत्र मिलने और बाज़ार में लाने की घोषणा की जिसके बाद देश में एक नया विवाद शुरू हो गया. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने पतंजलि द्वारा किए गए इस कार्य की निंदा की है और देश के स्वास्थ्य मंत्री पर सवाल भी उठाए हैं कि ‘स्वास्थ्य मंत्री गलत तरीके से गढ़े हुए अवैज्ञानिक उत्पाद को देश के सामने कैसे बढ़ावा दे सकते हैं’. IMA ने यह भी कहा कि “स्वास्थ्य मंत्री जो ख़ुद एक डॉक्टर हैं उनकी मौजूदगी में लॉन्च की गई इस दवाई के लिए WHO प्रमाणन को लेकर बोला गया झूठ चौंकाने वाला है”.
क्या होती है नए दवाई की मान्यता प्रक्रिया?
पतंजली कंपनी ने 4 महीने में 85 लाख से अधिक दवाई के किट बेचे हैं जिससे कंपनी को 241 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा हुआ है. एक किट की कीमत 545 रुपये है. 23 जून 2020 के प्रेस वार्ता में बाबा रामदेव ने कोरोनिल आयुर्वेदिक दवाई की खोज की घोषणा की जिसमें कहा गया था कि इन गोलियां को लेने से कोरोना 7 दिन में ठीक हो सकता है. उस समय आयुष मंत्रालय द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया था कि हमें इसकी कोई जानकारी नहीं है. अब पतंजलि ने दावा किया है कि कोविड-19 के लिए कोरोनिल नामक दवाई कारगर है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन नें मान्यता भी दी है.
भारत में किसी भी दवाई को बाज़ार में लाने से पहले संबंधित व्यक्ति या संस्था को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, इसे ड्रग अप्रूवल प्रोसेस कहा जाता है. इसमें क्लिनिकल ट्रायल के लिए अर्जी देना, क्लिनिकल ट्रायल करना, मार्केट में दवाई को अधिकृत बनाना और मार्केटिंग जैसे पड़ाव आते हैं. भारत में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत और 1945 के तहत दवाई का उत्पादन बिक्री और वितरण किया जाता है. इस अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO) द्वारा औषधि उत्पादन, परीक्षण, औषधि के मानक देश में दवाई की गुणवत्ता और राज्य में दवाई नियंत्रण पर काम किया जाता है. भारत में दवाई मंजूरी मिलने से पहले Investigational New Drug Application(IND) को CDSCO के कार्यालय में जमा कराना पड़ता है. इसके बाद New Drug Division इस दवाई का परीक्षण करता है. इसके बाद IND कमेटी दवाई का परीक्षण और समीक्षा करती है और फ़िर इसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को भेजा जाता है. इनकी मंजूरी के बाद फिर क्लिनिकल ट्रायल के लिए भेजा जाता है. इस प्रक्रिया के बाद ही सीडीएससीओ (CDSCO) से फिर अर्जी करनी पड़ती है. यह अर्जी नई दवाई के पंजीकरण के लिए होती है. ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया इस दवाई की समीक्षा करते हैं. इस तरह से नई दवाई को सारी परीक्षा पास करने के बाद ही उसे लाइसेंस दिया जाता है. यह टेस्ट पास न होने पर DCGI दवाई को खारिज करता है. एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक दवाई के लिए एक जैसी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. नेशनल फार्मास्यूटिकल अथॉरिटी के अनुसार हर राज्य में स्टेट ड्रग कंट्रोलर होते हैं. नई दवाई के लिए इनकी मान्यता की मुहर लगने की भी जरूरत होती है.
बाबाओं का व्यापार साम्राज्य
बाबा रामदेव की अगुवाई वाला हरिद्वार स्थित पतंजलि ग्रुप इस वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ के टर्नओवर की उम्मीद कर रहा है. ग्रुप का लक्ष्य आने वाले सालों में देश की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी बनना है. योग गुरु बाबा रामदेव ने स्वयं यह बात कही है. गौरतलब है कि पतंजलि ने हाल ही में कर्ज में डूबी रुचि सोया का अधिग्रहण किया है. रामदेव ने कहा कि कंपनी मार्च 2020 में ख़त्म होने वाले चालू वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ का ज्वाइंट टर्नओवर प्राप्त करेगी, जिसमें करीब 12,000 करोड़ का योगदान पतंजलि ग्रुप की ओर से और 13,000 करोड़ का योगदान रुचि सोया (Ruchi Soya) की ओर से होगा.
रामदेव ने कहा, 'अगले पांच सालों में हम 50,000 करोड़ से एक लाख करोड़ का टर्नओवर प्राप्त करेंगे और एचयूएल को पछाड़कर देश की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी बनेंगे.’ रुचि सोया को एक कॉरपोरेट इन्सॉल्वेंसी रेजोल्यूशन में करीब 4,500 करोड़ में खरीदने वाली पतंजलि इसकी प्रोडक्ट लाइन के विस्तार के लिए भी देख रही है.
कुछ और अरबपति बाबाओं की अनुमानित सम्पति
निर्मल बाबा का सालाना टर्नओवर- 238 करोड़ रूपये
पॉल दिनाकरण का सालाना टर्नओवर-5000 करोड़ रूपये
श्री श्री रविशंकर की सम्पति- 500 करोड़ रूपये
माता अमृतानंदमयी की दौलत- करीब 400 करोड़ रूपये
आसाराम बापू का सालाना टर्नओवर- 500 करोड़ रूपये
बाबा राम रहीम की दौलत-300 करोड़ रूपये से अधिक
संत मोरारी बापू की सम्पति-300 करोड़ रूपये
बाबा जय गुरुदेव- 12000 करोड़ की विरासत
बाबा की आड़ में सम्पति बनाने का व्यापार नया नहीं है. धर्म को व्यवसाय की तरह उपयोग कर लोगों की धार्मिक भावना को आहत करना सामान्य सी बात हो गयी है. वर्तमान में धर्म, योग, स्वास्थ्य तक का व्यवसायीकरण कर मुनाफ़ा कमाने में बाबा रामदेव को महारथ हासिल है.
अंधविश्वास या वैज्ञानिक प्रक्रिया?
बाबा रामदेव का कोरोना वायरस पर दवाई की घोषणा मुनाफ़ाखोरी के लिए अंधविश्वास का सहारा लेने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है. यह कोई पहली बार नहीं जब बाबा रामदेव ने ऐसे अवैज्ञानिक आधार पर दावे किए हैं. बाबा रामदेव ने 15 साल पहले भी योग करने पर एड्स जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है ऐसे अपने वेबसाइट पर दावे किए थे. उसी श्रृंखला में जब सन 2018 में बाबा रामदेव के व्यापार वृद्धि में स्थिरता आई तो महत्वकांक्षी बाबा रामदेव ने अलग-अलग योजनाएं बनाईं. कोरोना का संकट जैसे अदानी अंबानी के लिए सौगात लेकर आया है वैसे ही केंद्र सरकार के चहेते रामदेव बाबा के लिए भी मुनाफ़ा कमाने का अवसर लाया है. इसीलिए कोरोना से भयभीत आम जनता की मजबूरी का फायदा उठाने के लिए कोरोना वायरस पर बेअसर दवाई लोगों के गले में उतारने के लिए रामदेव बाबा जमीन आसमान एक कर रहे हैं. बाबा रामदेव की मुनाफा कमाने की मंशा तो निंदनीय है ही लेकिन केंद्र सरकार की चुप्पी लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है.
अगर कोरोनावायरस असरदार है तो टीके पर 35 हजार करोड़ खर्च क्यों?
अगर पतंजलि की मानें तो कोरोना वायरस पर असरदार दवाई के तौर पर कोरोनिल दवाई को ग्रहण करनी चाहिए. तो इस पर आम लोगों का सवाल उठाना लाजमी है कि फिर टीके पर 35 हजार करोड़ की राशि खर्च क्यों की जा रही है? क्यों ना इस खर्चे में कटौती करके सभी को कोरोनिल दवाई ही बांटी जा रही है. कई बार संदेह के घेरे में रह चुकी पतंजलि की दवाइयों ने देश में वह विश्वसनीयता हासिल नहीं की है कि कोरोनिल को जनमानस के लिए शुरू किया जा सके. अब सवाल यह भी है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में बाजारीकरण का यह खेल क्या महज मुनाफ़ा कमाने से अधिक कुछ और है?
भारत के संविधान की आत्मा से छेड़छाड़
भारत के संविधान में अनुच्छेद 51(c) में कहा गया है कि वैज्ञानिक सोच को अपनाना और बढ़ावा देना यह हर नागरिक का कर्तव्य माना जाए. तो इस अनुच्छेद के अनुसार पतंजलि और बाबा रामदेव निर्मित कोरोनिल दवाई के द्वारा अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे रहे हैं और साथ ही में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए कि वह पतंजलि संस्थापक पर उचित कार्रवाई करें. 2014 के बाद से जैसे मोदी सरकार ने लोकतंत्र में कारगर हर संस्था पर अपना प्रभाव डालते हुए उसे तोड़ा-मरोड़ा है उसके चलते यह अपेक्षा करना सबसे बड़ी गलती होगी कि बाबा रामदेव पर कोई कार्रवाई होगी. ऐसी स्थिति में जनता की सजगता और संयमता ही बचाव है.
कोरोनिल दवाई को नजरअंदाज करना मोदी जी के चुनाव प्रचार का भुगतान तो नहीं!
सन 2014 में बीजेपी लोकसभा का चुनाव लड़ रही थी. उसमें अलग-अलग लोगों ने प्रचार किया. उन लोगों में बाबा रामदेव की भी गिनती होती है. बाबा रामदेव ने इससे पहले राजनीतिक दल खोलने की घोषणा की थी और वे सक्रिय राजनीति में आने पर विचार कर रहे थे, लेकिन जितनी सबल महत्वाकांक्षा उनकी व्यापार में है वैसी अलग राजनीतिक दल में नहीं दिखी. तब से वे बीजेपी और उसकी नीतियों का समर्थन कर रहे हैं. बीच-बीच में जब केंद्र सरकार आर्थिक मुद्दों पर जनता के निशाने पर होती है तब इन मुद्दों से भटकाने के लिए बाबा रामदेव मदद करने के लिए मैदान में कूदकर हिंदू मुस्लिम मुद्दों पर भावना भड़काने के लिए बयानबाजी करते हुए देखे जा सकते हैं. इस समर्थन के बदले केंद्र सरकार द्वारा उनको प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचाने का जिम्मा उठाया जाना अचरज की बात नहीं होगी. परिणामतः केंद्र सरकार बाबा रामदेव कि गलत नीतियों के ख़िलाफ़ ना खुद बोलती है ना कोई कार्रवाई करती है.
बाबा रामदेव ने त्याग के प्रतीक भगवा का व्यापारीकरण कर मुनाफ़े के बाजार में सन्यासियों की छवि को धूमिल किया है. जो भगवा बाबा रामदेव पहनते हैं वह भगवा त्याग और सन्यास का प्रतीक है. वैसे कायदे से देखा जाए तो बाबा रामदेव को बिना संपत्ति धारण किए हुए व्यवहारिक दुनिया से दूर भक्ति, प्रवचन और योग की दुनिया में जीवन व्यतीत करना चाहिए लेकिन सन्यासी का रूप धारण कर उसका इस्तेमाल कर पूंजी बटोरना यह लोगों की भावनाओं और उनके विश्वास के साथ खिलवाड़ है. महत्वाकांक्षी बाबा रामदेव को कोरोना वायरस की आड़ में स्वास्थ्य क्षेत्र में मुनाफ़ा कमाने का अवसर दिखाई दे रहा है जिसमें सरकारी सहयोग भी हासिल है. ऐसे माहौल में जनता की जागरूकता, सतर्कता और सजगता ही बचाव है.
क्या होती है नए दवाई की मान्यता प्रक्रिया?
पतंजली कंपनी ने 4 महीने में 85 लाख से अधिक दवाई के किट बेचे हैं जिससे कंपनी को 241 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा हुआ है. एक किट की कीमत 545 रुपये है. 23 जून 2020 के प्रेस वार्ता में बाबा रामदेव ने कोरोनिल आयुर्वेदिक दवाई की खोज की घोषणा की जिसमें कहा गया था कि इन गोलियां को लेने से कोरोना 7 दिन में ठीक हो सकता है. उस समय आयुष मंत्रालय द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया था कि हमें इसकी कोई जानकारी नहीं है. अब पतंजलि ने दावा किया है कि कोविड-19 के लिए कोरोनिल नामक दवाई कारगर है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन नें मान्यता भी दी है.
भारत में किसी भी दवाई को बाज़ार में लाने से पहले संबंधित व्यक्ति या संस्था को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, इसे ड्रग अप्रूवल प्रोसेस कहा जाता है. इसमें क्लिनिकल ट्रायल के लिए अर्जी देना, क्लिनिकल ट्रायल करना, मार्केट में दवाई को अधिकृत बनाना और मार्केटिंग जैसे पड़ाव आते हैं. भारत में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत और 1945 के तहत दवाई का उत्पादन बिक्री और वितरण किया जाता है. इस अधिनियम के अंतर्गत भारत सरकार की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO) द्वारा औषधि उत्पादन, परीक्षण, औषधि के मानक देश में दवाई की गुणवत्ता और राज्य में दवाई नियंत्रण पर काम किया जाता है. भारत में दवाई मंजूरी मिलने से पहले Investigational New Drug Application(IND) को CDSCO के कार्यालय में जमा कराना पड़ता है. इसके बाद New Drug Division इस दवाई का परीक्षण करता है. इसके बाद IND कमेटी दवाई का परीक्षण और समीक्षा करती है और फ़िर इसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को भेजा जाता है. इनकी मंजूरी के बाद फिर क्लिनिकल ट्रायल के लिए भेजा जाता है. इस प्रक्रिया के बाद ही सीडीएससीओ (CDSCO) से फिर अर्जी करनी पड़ती है. यह अर्जी नई दवाई के पंजीकरण के लिए होती है. ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया इस दवाई की समीक्षा करते हैं. इस तरह से नई दवाई को सारी परीक्षा पास करने के बाद ही उसे लाइसेंस दिया जाता है. यह टेस्ट पास न होने पर DCGI दवाई को खारिज करता है. एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक दवाई के लिए एक जैसी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. नेशनल फार्मास्यूटिकल अथॉरिटी के अनुसार हर राज्य में स्टेट ड्रग कंट्रोलर होते हैं. नई दवाई के लिए इनकी मान्यता की मुहर लगने की भी जरूरत होती है.
बाबाओं का व्यापार साम्राज्य
बाबा रामदेव की अगुवाई वाला हरिद्वार स्थित पतंजलि ग्रुप इस वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ के टर्नओवर की उम्मीद कर रहा है. ग्रुप का लक्ष्य आने वाले सालों में देश की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी बनना है. योग गुरु बाबा रामदेव ने स्वयं यह बात कही है. गौरतलब है कि पतंजलि ने हाल ही में कर्ज में डूबी रुचि सोया का अधिग्रहण किया है. रामदेव ने कहा कि कंपनी मार्च 2020 में ख़त्म होने वाले चालू वित्त वर्ष में 25,000 करोड़ का ज्वाइंट टर्नओवर प्राप्त करेगी, जिसमें करीब 12,000 करोड़ का योगदान पतंजलि ग्रुप की ओर से और 13,000 करोड़ का योगदान रुचि सोया (Ruchi Soya) की ओर से होगा.
रामदेव ने कहा, 'अगले पांच सालों में हम 50,000 करोड़ से एक लाख करोड़ का टर्नओवर प्राप्त करेंगे और एचयूएल को पछाड़कर देश की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी बनेंगे.’ रुचि सोया को एक कॉरपोरेट इन्सॉल्वेंसी रेजोल्यूशन में करीब 4,500 करोड़ में खरीदने वाली पतंजलि इसकी प्रोडक्ट लाइन के विस्तार के लिए भी देख रही है.
कुछ और अरबपति बाबाओं की अनुमानित सम्पति
निर्मल बाबा का सालाना टर्नओवर- 238 करोड़ रूपये
पॉल दिनाकरण का सालाना टर्नओवर-5000 करोड़ रूपये
श्री श्री रविशंकर की सम्पति- 500 करोड़ रूपये
माता अमृतानंदमयी की दौलत- करीब 400 करोड़ रूपये
आसाराम बापू का सालाना टर्नओवर- 500 करोड़ रूपये
बाबा राम रहीम की दौलत-300 करोड़ रूपये से अधिक
संत मोरारी बापू की सम्पति-300 करोड़ रूपये
बाबा जय गुरुदेव- 12000 करोड़ की विरासत
बाबा की आड़ में सम्पति बनाने का व्यापार नया नहीं है. धर्म को व्यवसाय की तरह उपयोग कर लोगों की धार्मिक भावना को आहत करना सामान्य सी बात हो गयी है. वर्तमान में धर्म, योग, स्वास्थ्य तक का व्यवसायीकरण कर मुनाफ़ा कमाने में बाबा रामदेव को महारथ हासिल है.
अंधविश्वास या वैज्ञानिक प्रक्रिया?
बाबा रामदेव का कोरोना वायरस पर दवाई की घोषणा मुनाफ़ाखोरी के लिए अंधविश्वास का सहारा लेने की सोची समझी रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है. यह कोई पहली बार नहीं जब बाबा रामदेव ने ऐसे अवैज्ञानिक आधार पर दावे किए हैं. बाबा रामदेव ने 15 साल पहले भी योग करने पर एड्स जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है ऐसे अपने वेबसाइट पर दावे किए थे. उसी श्रृंखला में जब सन 2018 में बाबा रामदेव के व्यापार वृद्धि में स्थिरता आई तो महत्वकांक्षी बाबा रामदेव ने अलग-अलग योजनाएं बनाईं. कोरोना का संकट जैसे अदानी अंबानी के लिए सौगात लेकर आया है वैसे ही केंद्र सरकार के चहेते रामदेव बाबा के लिए भी मुनाफ़ा कमाने का अवसर लाया है. इसीलिए कोरोना से भयभीत आम जनता की मजबूरी का फायदा उठाने के लिए कोरोना वायरस पर बेअसर दवाई लोगों के गले में उतारने के लिए रामदेव बाबा जमीन आसमान एक कर रहे हैं. बाबा रामदेव की मुनाफा कमाने की मंशा तो निंदनीय है ही लेकिन केंद्र सरकार की चुप्पी लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है.
अगर कोरोनावायरस असरदार है तो टीके पर 35 हजार करोड़ खर्च क्यों?
अगर पतंजलि की मानें तो कोरोना वायरस पर असरदार दवाई के तौर पर कोरोनिल दवाई को ग्रहण करनी चाहिए. तो इस पर आम लोगों का सवाल उठाना लाजमी है कि फिर टीके पर 35 हजार करोड़ की राशि खर्च क्यों की जा रही है? क्यों ना इस खर्चे में कटौती करके सभी को कोरोनिल दवाई ही बांटी जा रही है. कई बार संदेह के घेरे में रह चुकी पतंजलि की दवाइयों ने देश में वह विश्वसनीयता हासिल नहीं की है कि कोरोनिल को जनमानस के लिए शुरू किया जा सके. अब सवाल यह भी है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में बाजारीकरण का यह खेल क्या महज मुनाफ़ा कमाने से अधिक कुछ और है?
भारत के संविधान की आत्मा से छेड़छाड़
भारत के संविधान में अनुच्छेद 51(c) में कहा गया है कि वैज्ञानिक सोच को अपनाना और बढ़ावा देना यह हर नागरिक का कर्तव्य माना जाए. तो इस अनुच्छेद के अनुसार पतंजलि और बाबा रामदेव निर्मित कोरोनिल दवाई के द्वारा अवैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे रहे हैं और साथ ही में लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए कि वह पतंजलि संस्थापक पर उचित कार्रवाई करें. 2014 के बाद से जैसे मोदी सरकार ने लोकतंत्र में कारगर हर संस्था पर अपना प्रभाव डालते हुए उसे तोड़ा-मरोड़ा है उसके चलते यह अपेक्षा करना सबसे बड़ी गलती होगी कि बाबा रामदेव पर कोई कार्रवाई होगी. ऐसी स्थिति में जनता की सजगता और संयमता ही बचाव है.
कोरोनिल दवाई को नजरअंदाज करना मोदी जी के चुनाव प्रचार का भुगतान तो नहीं!
सन 2014 में बीजेपी लोकसभा का चुनाव लड़ रही थी. उसमें अलग-अलग लोगों ने प्रचार किया. उन लोगों में बाबा रामदेव की भी गिनती होती है. बाबा रामदेव ने इससे पहले राजनीतिक दल खोलने की घोषणा की थी और वे सक्रिय राजनीति में आने पर विचार कर रहे थे, लेकिन जितनी सबल महत्वाकांक्षा उनकी व्यापार में है वैसी अलग राजनीतिक दल में नहीं दिखी. तब से वे बीजेपी और उसकी नीतियों का समर्थन कर रहे हैं. बीच-बीच में जब केंद्र सरकार आर्थिक मुद्दों पर जनता के निशाने पर होती है तब इन मुद्दों से भटकाने के लिए बाबा रामदेव मदद करने के लिए मैदान में कूदकर हिंदू मुस्लिम मुद्दों पर भावना भड़काने के लिए बयानबाजी करते हुए देखे जा सकते हैं. इस समर्थन के बदले केंद्र सरकार द्वारा उनको प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचाने का जिम्मा उठाया जाना अचरज की बात नहीं होगी. परिणामतः केंद्र सरकार बाबा रामदेव कि गलत नीतियों के ख़िलाफ़ ना खुद बोलती है ना कोई कार्रवाई करती है.
बाबा रामदेव ने त्याग के प्रतीक भगवा का व्यापारीकरण कर मुनाफ़े के बाजार में सन्यासियों की छवि को धूमिल किया है. जो भगवा बाबा रामदेव पहनते हैं वह भगवा त्याग और सन्यास का प्रतीक है. वैसे कायदे से देखा जाए तो बाबा रामदेव को बिना संपत्ति धारण किए हुए व्यवहारिक दुनिया से दूर भक्ति, प्रवचन और योग की दुनिया में जीवन व्यतीत करना चाहिए लेकिन सन्यासी का रूप धारण कर उसका इस्तेमाल कर पूंजी बटोरना यह लोगों की भावनाओं और उनके विश्वास के साथ खिलवाड़ है. महत्वाकांक्षी बाबा रामदेव को कोरोना वायरस की आड़ में स्वास्थ्य क्षेत्र में मुनाफ़ा कमाने का अवसर दिखाई दे रहा है जिसमें सरकारी सहयोग भी हासिल है. ऐसे माहौल में जनता की जागरूकता, सतर्कता और सजगता ही बचाव है.