केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत जिले के आठ गांवों के आदिवासी लोगों को विस्थापित किया जाना है। इन गांवों में कूड़ान, गहदरा, रकसेहा, कोनी, मझौली, खमरी, बिल्हटा और कटारी शामिल है।
साभार : द मूकनायक
केन-बेतवा लिंक परियोजना से प्रभावित मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में आदिवासी ग्रामीणों ने गत सोमवार को जिला मुख्यालय पर सरकार व प्रशासन के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया। बड़ी संख्या में आदिवासियों ने न्यू कलेक्ट भवन तक एक विशाल रैली निकाली। ये आदिवासी अजयगढ़ चौराहा, बलदाऊ जी मंदिर और बड़ा बाजार से गुजरते हुए रैली निकाली। वे हाथों में तख्तियां लिए हुए थे। नारों के साथ ये ग्रामीण न्याय की गुहार लगाते हुए मुख्यालय पहुंचे। पीड़ितों का कहना है कि ज्ञापन देने और अधिकारियों से मिलने के बावजूद उनकी समस्याओं का हल नहीं हो पा रहा है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि परियोजना के चलते उन्हें अपने घरों और जमीन से विस्थापित किया जा रहा है, लेकिन पुनर्वास और मुआवजे में भारी अनियमितताएं हैं। आदिवासी समुदाय के बुजुर्गों और युवाओं का आरोप है कि मुआवजा तय करते समय उनकी जरूरतों और अधिकारों को अनदेखा किया गया है। 18 वर्ष से ऊपर के युवाओं को मुआवजा में शामिल नहीं किया जा रहा है।
पीड़ित ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन को आवेदन और ज्ञापन दिए हैं लेकिन उनकी समस्याओं पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया। आंदोलन में शामिल दयाराम ने द मूकनायक को बताया कि, “हम कलेक्टर से कई बार मिलने आए, लेकिन वह कभी उपलब्ध नहीं रहते। हमारी परेशानियों को अनसुना किया जा रहा है।”
ग्रामीणों ने दोपहर से लेकर शाम तक न्यू कलेक्ट भवन के बाहर प्रदर्शन किया। ठंड के बावजूद महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे प्रदर्शन स्थल पर रुके रहे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए।
प्रशासन से बातचीत की मांग पर अड़े
एसडीएम और तहसीलदार ने प्रदर्शनकारियों से ज्ञापन लेने और उनकी बात उच्च अधिकारियों को पहुंचाने का भरोसा दिया। लेकिन आदिवासी ग्रामीण कलेक्टर से सीधे मुलाकात करने की मांग पर अड़े रहे। उनका कहना था कि जब तक कलेक्टर उनसे बात नहीं करेंगे, वे वहां से नहीं हटेंगे।
लगातार विरोध-प्रदर्शन के बाद शाम करीब चार बजे कलेक्टर ने प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की और उनकी परेशानियों को सुना। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भी स्वीकार किया और मुआवजे व पुनर्वास से जुड़े मुद्दों पर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया।
ग्रामीणों की प्रमुख मांगों में उचित मुआवजा शामिल है जिसमें 18 वर्ष की आयु से ऊपर के युवाओं को भी मुआवजे में शामिल करने को कहा गया है। साथ ही पुनर्वास की व्यवस्था करने की मांग की गई जिसमें विस्थापित आदिवासियों के लिए आवास, रोजगार और अन्य सुविधाएं सुनिश्चित करना शामिल है। वहीं सरकार से सीधा संवाद करने की मांग की गई है जिसके चलते परियोजना के कारण विस्थापित हो रहे ग्रामीणों को समय-समय पर प्रशासन व सरकार से बातचीत का मौका देने की बात कही गई है।
प्रभावित गांव
केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत जिले के आठ गांवों के आदिवासी निवासियों को विस्थापित किया जाना है। इन गांवों में कूड़ान, गहदरा, रकसेहा, कोनी, मझौली, खमरी, बिल्हटा और कटारी शामिल है। यह परियोजना केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है। इसका उद्देश्य सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सिंचाई व जल उपलब्धता को बढ़ाना है। वहीं इस परियोजना को लेकर सबसे ज्यादा नुकसान इन आदिवासी परिवारों को उठाना पड़ रहा है।
लंबे समय से जारी है संघर्ष
इस परियोजना से प्रभावित आठ गांवों के आदिवासी कई सालों से प्रशासन व सरकार से अपनी मांगों को लेकर संपर्क कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी आवाज को बार-बार दबाया गया है। उन्होंने इस प्रदर्शन को अपने संघर्ष की अगली कड़ी बताया।
द मूकनायक से बातचीत में जयस जिलाध्यक्ष मुकेश गोंड ने बताया, अगर उनकी मांगे जल्द पूरी नहीं होतीं, तो वे और बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा, “हम अपने अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे। यह हमारी ज़मीन और हमारी पहचान का सवाल है।”
साभार : द मूकनायक
केन-बेतवा लिंक परियोजना से प्रभावित मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में आदिवासी ग्रामीणों ने गत सोमवार को जिला मुख्यालय पर सरकार व प्रशासन के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया। बड़ी संख्या में आदिवासियों ने न्यू कलेक्ट भवन तक एक विशाल रैली निकाली। ये आदिवासी अजयगढ़ चौराहा, बलदाऊ जी मंदिर और बड़ा बाजार से गुजरते हुए रैली निकाली। वे हाथों में तख्तियां लिए हुए थे। नारों के साथ ये ग्रामीण न्याय की गुहार लगाते हुए मुख्यालय पहुंचे। पीड़ितों का कहना है कि ज्ञापन देने और अधिकारियों से मिलने के बावजूद उनकी समस्याओं का हल नहीं हो पा रहा है।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि परियोजना के चलते उन्हें अपने घरों और जमीन से विस्थापित किया जा रहा है, लेकिन पुनर्वास और मुआवजे में भारी अनियमितताएं हैं। आदिवासी समुदाय के बुजुर्गों और युवाओं का आरोप है कि मुआवजा तय करते समय उनकी जरूरतों और अधिकारों को अनदेखा किया गया है। 18 वर्ष से ऊपर के युवाओं को मुआवजा में शामिल नहीं किया जा रहा है।
पीड़ित ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन को आवेदन और ज्ञापन दिए हैं लेकिन उनकी समस्याओं पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया। आंदोलन में शामिल दयाराम ने द मूकनायक को बताया कि, “हम कलेक्टर से कई बार मिलने आए, लेकिन वह कभी उपलब्ध नहीं रहते। हमारी परेशानियों को अनसुना किया जा रहा है।”
ग्रामीणों ने दोपहर से लेकर शाम तक न्यू कलेक्ट भवन के बाहर प्रदर्शन किया। ठंड के बावजूद महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे प्रदर्शन स्थल पर रुके रहे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने नारे लगाए।
प्रशासन से बातचीत की मांग पर अड़े
एसडीएम और तहसीलदार ने प्रदर्शनकारियों से ज्ञापन लेने और उनकी बात उच्च अधिकारियों को पहुंचाने का भरोसा दिया। लेकिन आदिवासी ग्रामीण कलेक्टर से सीधे मुलाकात करने की मांग पर अड़े रहे। उनका कहना था कि जब तक कलेक्टर उनसे बात नहीं करेंगे, वे वहां से नहीं हटेंगे।
लगातार विरोध-प्रदर्शन के बाद शाम करीब चार बजे कलेक्टर ने प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की और उनकी परेशानियों को सुना। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भी स्वीकार किया और मुआवजे व पुनर्वास से जुड़े मुद्दों पर उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया।
ग्रामीणों की प्रमुख मांगों में उचित मुआवजा शामिल है जिसमें 18 वर्ष की आयु से ऊपर के युवाओं को भी मुआवजे में शामिल करने को कहा गया है। साथ ही पुनर्वास की व्यवस्था करने की मांग की गई जिसमें विस्थापित आदिवासियों के लिए आवास, रोजगार और अन्य सुविधाएं सुनिश्चित करना शामिल है। वहीं सरकार से सीधा संवाद करने की मांग की गई है जिसके चलते परियोजना के कारण विस्थापित हो रहे ग्रामीणों को समय-समय पर प्रशासन व सरकार से बातचीत का मौका देने की बात कही गई है।
प्रभावित गांव
केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत जिले के आठ गांवों के आदिवासी निवासियों को विस्थापित किया जाना है। इन गांवों में कूड़ान, गहदरा, रकसेहा, कोनी, मझौली, खमरी, बिल्हटा और कटारी शामिल है। यह परियोजना केंद्र और राज्य सरकार के सहयोग से नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है। इसका उद्देश्य सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सिंचाई व जल उपलब्धता को बढ़ाना है। वहीं इस परियोजना को लेकर सबसे ज्यादा नुकसान इन आदिवासी परिवारों को उठाना पड़ रहा है।
लंबे समय से जारी है संघर्ष
इस परियोजना से प्रभावित आठ गांवों के आदिवासी कई सालों से प्रशासन व सरकार से अपनी मांगों को लेकर संपर्क कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनकी आवाज को बार-बार दबाया गया है। उन्होंने इस प्रदर्शन को अपने संघर्ष की अगली कड़ी बताया।
द मूकनायक से बातचीत में जयस जिलाध्यक्ष मुकेश गोंड ने बताया, अगर उनकी मांगे जल्द पूरी नहीं होतीं, तो वे और बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे। उन्होंने कहा, “हम अपने अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखेंगे। यह हमारी ज़मीन और हमारी पहचान का सवाल है।”