पहलगाम आतंकी हमले से संबंधित व्हाट्सऐप संदेश साझा करने के आरोप में गिरफ्तार एक सरकारी कॉलेज की गेस्ट फैकल्टी को जमानत देते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले किसी वीडियो को केवल फॉरवर्ड करने के आधार पर किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता।

फोटो साभार : न्यूज क्लिक
धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले वीडियो को फॉरवर्ड करने का यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल के लिए जेल में रखा जाए। यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान की।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने डिंडोरी के सरकारी मॉडल कॉलेज की गेस्ट फैकल्टी डॉ. नशीम बानो को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। उन्हें कथित तौर पर पहलगाम आतंकवादी हमले से संबंधित व्हाट्सऐप मैसेज और एक वीडियो साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह ने 13 जून को दिए अपने आदेश में कहा, "प्रथम दृष्टया यह कहा जा सकता है कि कॉलेज में गेस्ट फैकल्टी के पद पर कार्यरत एक शिक्षित व्यक्ति के रूप में, व्हाट्सऐप संदेशों को फॉरवर्ड करते समय उनसे अधिक जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है। लेकिन केवल किसी मैसेज या वीडियो को फॉरवर्ड करने के आधार पर—जो किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है—किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता।"
गौरतलब है कि डॉ. बानो को 28 अप्रैल को डिंडोरी पुलिस थाने में दीपेंद्र जोगी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 196, 299 और 353(2) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
शिकायत में आरोप लगाया गया है कि प्रोफेसर ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप में ऐसी पोस्ट साझा की थीं, जिनका उद्देश्य कथित रूप से एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना था। साथ ही उन्होंने ‘नया रावण’ शीर्षक वाला एक वीडियो भी प्रसारित किया था।
डॉ. बानो की ओर से पेश वकील ईशान दत्त और वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने अदालत में तर्क दिया कि वह एक शिक्षित महिला हैं और उनका उद्देश्य किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं था।
वहीं, सरकारी वकील रवींद्र शुक्ला ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए दावा किया कि आवेदिका ने जानबूझकर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने की मंशा से व्हाट्सऐप पर संदेश और वीडियो साझा किए थे।
हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि प्रोफेसर के खिलाफ पूर्व में कोई अन्य आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। न्यायमूर्ति सिंह ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और केस डायरी की समीक्षा के बाद, उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जमानत देना उचित माना।
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धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले वीडियो को फॉरवर्ड करने का यह अर्थ नहीं निकाला जा सकता कि किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल के लिए जेल में रखा जाए। यह टिप्पणी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान की।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने डिंडोरी के सरकारी मॉडल कॉलेज की गेस्ट फैकल्टी डॉ. नशीम बानो को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। उन्हें कथित तौर पर पहलगाम आतंकवादी हमले से संबंधित व्हाट्सऐप मैसेज और एक वीडियो साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह ने 13 जून को दिए अपने आदेश में कहा, "प्रथम दृष्टया यह कहा जा सकता है कि कॉलेज में गेस्ट फैकल्टी के पद पर कार्यरत एक शिक्षित व्यक्ति के रूप में, व्हाट्सऐप संदेशों को फॉरवर्ड करते समय उनसे अधिक जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है। लेकिन केवल किसी मैसेज या वीडियो को फॉरवर्ड करने के आधार पर—जो किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है—किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता।"
गौरतलब है कि डॉ. बानो को 28 अप्रैल को डिंडोरी पुलिस थाने में दीपेंद्र जोगी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएस), 2023 की धारा 196, 299 और 353(2) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
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डॉ. बानो की ओर से पेश वकील ईशान दत्त और वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने अदालत में तर्क दिया कि वह एक शिक्षित महिला हैं और उनका उद्देश्य किसी भी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं था।
वहीं, सरकारी वकील रवींद्र शुक्ला ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए दावा किया कि आवेदिका ने जानबूझकर एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत करने की मंशा से व्हाट्सऐप पर संदेश और वीडियो साझा किए थे।
हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि प्रोफेसर के खिलाफ पूर्व में कोई अन्य आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। न्यायमूर्ति सिंह ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और केस डायरी की समीक्षा के बाद, उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जमानत देना उचित माना।
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