पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह "कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (CCG)" ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक बयान जारी किया है। महमूदाबाद को एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया। पूर्व सिविल सेवकों के इस समूह ने कहा, "शांति की अपील करना और नफरत के खिलाफ बोलना कोई अपराध नहीं है।"

पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह, कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (CCG) ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक बयान जारी किया है। प्रोफेसर महमूदाबाद को एक सोशल मीडिया पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया था और बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया।
देशभर के विभिन्न राज्यों से जुड़े लगभग 80 पूर्व सिविल सेवकों के समूह कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (CCG) ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के प्रति एकजुटता दिखाते हुए एक बयान जारी किया है। प्रोफेसर महमूदाबाद को 18 मई को एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए हरियाणा पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था और 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया। उनकी गिरफ्तारी की व्यापक रूप से निंदा की गई थी, जिसमें उनके छात्र, साथी प्रोफेसर और अन्य कई दिग्गजों ने खुलकर उनका समर्थन किया।
बुधवार, 28 मई को जारी किए गए बयान में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के प्रति एकजुटता व्यक्त की गई, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर पर की गई उनकी पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया था।
इस बयान में कहा गया, "हम प्रोफेसर महमूदाबाद पर लगाए गए गंभीर आपराधिक आरोपों और उनकी गिरफ्तारी से काफी दुखी हैं।" इन आरोपों को बयान में "बेहद आपत्तिजनक और निरर्थक" करार दिया गया।" बयान में यह भी कहा गया कि, "उनकी पोस्ट्स का मुख्य उद्देश्य था शांति के लिए मार्मिक और प्रभावशाली अपील करना।"
प्रोफेसर महमूदाबाद पर लगाए गए आरोपों को औपनिवेशिक काल के देशद्रोह कानून की याद दिलाने वाला बताते हुए इस बयान में कहा गया कि, "अगर भीड़ द्वारा की गई हत्याओं और बुलडोज़र कार्रवाई की घटनाओं के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करना या शांति और संयम की अपील करना अपराध माना जाए, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।"
पूरा बयान नीचे पढ़ा जा सकता है:
CCG का अली खान महमूदाबाद मामले पर सार्वजनिक बयान
हम पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह हैं जिन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों में विभिन्न पदों पर सेवा दी है। हमारा किसी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध या करीबी नहीं है; हमारी एकमात्र निष्ठा भारत के संविधान के प्रति है।
हम अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद पर लगाए गए गंभीर आपराधिक आरोपों और उनकी गिरफ्तारी से बेहद परेशान हैं। प्रोफेसर अली खान पर ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित उनके दो सोशल मीडिया पोस्ट के लिए आरोप लगाए गए हैं। उनके पोस्ट सोच-समझकर और संतुलित थे। इनमें उन्होंने भारतीय सेना के संयम की प्रशंसा की थी। उन्होंने उस समय जारी प्रेस ब्रीफिंग्स में भारतीय सशस्त्र बलों का प्रतिनिधित्व करने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी की “ऑप्टिक्स” के महत्व को भी बताया, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि यदि भीड़ द्वारा हत्याएं और घरों का बुलडोजर से तोड़ फोड़ जारी रहा तो ये दिखावा माना जाएगा।
उनका असली मकसद तो बड़े साफ और दिल से सिर्फ शांति की बात करना था। उन्होंने दोनों तरफ आम लोगों की मौतों को बहुत दुखद बताया और उन लोगों को कहा जो बिना कभी लड़ाई देखे लड़ाई को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर कुछ लोगों की उस “अंधी लड़ाई की प्यास” की भी कड़ी आलोचना की और कहा कि ऐसे लोग असली लड़ाई की गंभीरता को नहीं समझते और उन जवानों का सम्मान नहीं करते जिनकी जान सच में खतरे में होती है।
इन पोस्ट्स की वजह से प्रोफेसर अली पर भारत के नए कानून, भारतीय न्याय संहिता की कुछ सख्त धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। इनमें एक धारा 152 है, जो उन कार्यों पर कार्रवाई करती है जो भारत की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाते हैं। ये धारा पुराने देशद्रोह कानून जैसी लगती है, जो अब हटाया जा चुका है। उन पर और भी धाराओं के तहत आरोप हैं, जैसे 196(1)(b) जो ऐसे कार्यो के लिए है जो लोगों के बीच शांति और सौहार्द बिगाड़ते हैं; 197(1)(c) जो ऐसे बयान रोकने के लिए है जो झगड़ा कर सकते हैं; और 299 जो जान-बूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले कार्यों को अपराध मानती है।
हम प्रोफेसर अली खान पर लगे आपराधिक आरोपों को बेहद गलत और चौंकाने वाला मानते हैं। भीड़ द्वारा की गई हत्याओं और बुलडोज़र से घरों के तोड़ फोड़ के शिकार पीड़ितों के लिए न्याय मांगना या शांति और संयम की बात करना अपराध नहीं हो सकता। यह ध्यान देने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने के आदेश के बावजूद, खुले तौर पर हिंसा और भारतीय मुसलमानों के खिलाफ जातीय हिंसा करने वाली नफरत भरी भाषणों पर इतने गंभीर आरोप शायद ही लगाए गए हों। हाल ही में मध्य प्रदेश के मंत्री कुंवर विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकियों की बहन कहकर बदनाम किया, तब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देना पड़ा। हाई कोर्ट ने मंत्री के बयान को "कैंसर जैसा खतरनाक" बताया।
बहुत से छात्र और फैकल्टी मेंबर प्रोफेसर अली खान के साथ एकजुटता दिखाने के लिए आगे आए, जबकि अशोका यूनिवर्सिटी की प्रबंधन टीम इस अन्यायपूर्ण आपराधिक कार्रवाई को लेकर चुप्पी साधे रही। फैकल्टी के सदस्यों ने बारी-बारी से उन जगहों पर बैठना शुरू किया जहां प्रोफेसर को हिरासत में रखा गया था। हमें खासकर प्रोफेसर अली खान के छात्रों का एक बयान बहुत छू गया, जिसमें उन्होंने उन्हें एक दयालु और समझदार शिक्षक बताया जो अपने देश से प्यार करते हैं और अपने छात्रों को हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के मूल्यों का सम्मान करना सिखाते हैं।
गिरफ्तारी और पुलिस रिमांड के बाद हमें राहत मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान को अंतरिम जमानत दी। लेकिन, पूरे सम्मान के साथ, हमें बेंच के कुछ टिप्पणियों और जमानत की शर्तों से निराशा हुई। बेंच ने प्रोफेसर के सोशल मीडिया ट्वीट्स में “डॉग-व्हिसलिंग” जैसे अस्पष्ट शब्दों का जिक्र किया, उनके “शब्दों के चयन” की आलोचना की और उन पर “सस्ती लोकप्रियता” पाने का आरोप लगाया। बेंच ने प्रोफेसर का पासपोर्ट जमा करने का आदेश दिया और एक विशेष जांच टीम (SIT) नियुक्त की ताकि “पोस्ट्स में इस्तेमाल हुए शब्दों की जटिलताओं को पूरी तरह समझा जा सके और कुछ अभिव्यक्तियों की सही सराहना की जा सके।” हम समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे तीन पुलिस अधिकारी इतने सक्षम हो सकते हैं कि वे इतने सरल और सुंदर अंग्रेजी में लिखे गए पोस्ट के पीछे छिपे हुए अर्थ निकाल सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान का साथ देने वाले प्रोफेसरों और छात्रों को कड़ी चेतावनी दी और कहा, "हम जानते हैं इन्हें कैसे संभालना है।" जजों ने प्रोफेसर को भी कहा कि वह भारत और पाकिस्तान के झगड़े पर आगे कोई बात न करें। ऐसे समय में जब सोशल मीडिया पर नफरत और लड़ाई-झगड़े की बातें फैल रही हैं, एक राजनीतिक जानकार की शांति की बात को दबा देना बड़ा दुखद है। ध्यान देने वाली बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, जो लोग खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और नस्लीय सफाई की बात करते हैं, उन पर बहुत कम ही सख्त कानूनी कार्रवाई होती है।
हम फ्री स्पीच यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्र के अधिकार नजरअंदाज करने पर काफी परेशान हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इसे सपोर्ट किया है, जैसे अर्णब गोस्वामी बनाम भारत सरकार के केस में और हाल ही में इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात सरकार के मामले में। उस केस में जस्टिस ओका ने कहा था कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में अगर कोई व्यक्ति या समूह कोई राय रखता है, तो इसका जवाब दूसरा कोई अपनी राय रख कर दे सकता है। भले ही बहुत लोग उस बात से असहमत हों, फिर भी उसकी इज्जत करनी चाहिए और उसे बचाना चाहिए। उस फैसले में खासकर उन जजों को कहा गया था, जो खुद किसी बात को पसंद नहीं करते, उन्हें भी संविधान के आर्टिकल 19(1) के तहत लोगों के फ्री स्पीच के अधिकारों की पूरी रक्षा करनी होती है।
अगर गलत तरीके से कानून का इस्तेमाल करके फ्री स्पीच को दबाया जाता है, तो इसका समाज पर बहुत बुरा असर पड़ता है। युवा पत्रकार सौरव दास ने बताया कि पुलिस और कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान के साथ जो किया, वो एक ऐसा उदाहरण है जिससे समझ आता है कि कैसे एक ऐसा देश बन जाता है जहां लोग सोचने-समझने से दूर हो जाते हैं। वहां सब बस वही दोहराते हैं जो कहा जाए और जो नई या आगे बढ़ने वाली बात होती है, उसे दबा दिया जाता है ताकि बस वही लोग बोलें जो पुराने और आम सोच के हों। ऐसे में समाज धीरे-धीरे खत्म होने लगता है क्योंकि वहां सोचने-समझने की आज़ादी खत्म हो जाती है, और ये सब कोर्ट की मर्जी से होता रहता है।
सत्यमेव जयते
कंस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (79 हस्ताक्षरकर्ताओ की सूची नीचे दी गई है)
1. अनीता अग्निहोत्री, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की पूर्व सचिव
2. चंद्रशेखर बालाकृष्णन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कोयला विभाग के पूर्व सचिव
3. शरद बेहर, IAS (सेवानिवृत्त) -मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
4. ऑरोबिंदो बेहरा, IAS (सेवानिवृत्त) -ओडिशा सरकार के राजस्व बोर्ड के पूर्व सदस्य
5. मधु भदुरी, IFS (सेवानिवृत्त) - पुर्तगाल के पूर्व राजदूत
6. के.वी. भागीरथ, IFS (सेवानिवृत्त) - मॉरीशस में इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के पूर्व महासचिव
7. नूतन गुहा बिस्वास, IAS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली सरकार के पुलिस शिकायत प्राधिकरण के पूर्व सदस्य
8. रवि बुढ़िराजा, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष
9. आर. चंद्रमोहन, IAS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली सरकार के परिवहन और शहरी विकास के पूर्व प्रमुख सचिव
10. राचेल चटर्जी, IAS (सेवानिवृत्त) - आंध्र प्रदेश सरकार की कृषि विभाग की पूर्व विशेष मुख्य सचिव
11. पूर्णिमा चौहान, IAS (सेवानिवृत्त) - हिमाचल प्रदेश सरकार की प्रशासनिक सुधार, युवा सेवाएं, खेल और मत्स्य विभाग की पूर्व सचिव
12. गुरजीत सिंह चीमा, IAS (सेवानिवृत्त) - पंजाब सरकार के वित्तीय आयुक्त (राजस्व)
13. एफ.टी.आर. कोलासो, IPS (सेवानिवृत्त) - कर्नाटक सरकार एवं जम्मू-कश्मीर सरकार के पूर्व पुलिस महानिदेशक
14. अन्ना दानी, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र सरकार की अतिरिक्त मुख्य सचिव
15. पी.आर. दासगुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष
16. एम.जी. देवासहयम, IAS (सेवानिवृत्त) - हरियाणा सरकार के पूर्व सचिव
17. किरण ढींगरा, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की पूर्व सचिव
18. सुशील दुबे, IFS (सेवानिवृत्त) - स्वीडन के पूर्व राजदूत
19. के.पी. फेबियन, IFS (सेवानिवृत्त) - इटली के पूर्व राजदूत
20. प्रभु घाटे, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पर्यटन विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक
21. एच.एस. गुजऱाल, IFoS (सेवानिवृत्त) - पंजाब सरकार के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक
22. मीना गुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पर्यावरण एवं वनों विभाग की पूर्व सचिव
23. रवि वीरा गुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व उप-गवर्नर
24. रशीदा हुसैन, IRS (सेवानिवृत्त) - नेशनल अकादमी ऑफ कस्टम्स, एक्साइज एवं नारकोटिक्स की पूर्व महानिदेशक
25. सिराज हुसैन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कृषि विभाग के पूर्व सचिव
26. कमल जसवाल, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव
27. नैनी जेयसेलन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार की अंतर-राज्य परिषद की पूर्व सचिव
28. नजीब जंग, IAS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल
29. विनोद सी. खन्ना, IFS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव
30. गीता कृपालनी, IRS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सेटलमेंट कमीशन की पूर्व सदस्य
31. बृजेश कुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव
32. ईश कुमार, IPS (सेवानिवृत्त) - तेलंगाना सरकार के पूर्व डीजीपी (सतर्कता एवं प्रवर्तन) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व विशेष रैपोर्टियर
33. सुधीर कुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के पूर्व सदस्य
34. सुबोध लाल, IPoS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के संचार मंत्रालय के पूर्व उप महानिदेशक
35. संदीप मदन, IAS (सेवानिवृत्त) - हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व सचिव
36. पी.एम.एस. मलिक, IFS (सेवानिवृत्त) - म्यांमार के पूर्व राजदूत और भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के विशेष सचिव
37. हर्ष मंदर, IAS (सेवानिवृत्त) - मध्य प्रदेश सरकार
38. शिवशंकर मेनन, IFS (सेवानिवृत्त) - पूर्व विदेश सचिव और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
39. सत्य नारायण मोहंती, IAS (सेवानिवृत्त) - राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व महासचिव
40. सुधांशु मोहंती, IDAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में पूर्व वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेवाएं)
41. रुचिरा मुखर्जी, IP&TAFS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के दूरसंचार आयोग में पूर्व वित्तीय सलाहकार
42. अनुप मुखर्जी, IAS (सेवानिवृत्त) - बिहार सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
43. देब मुखर्जी, IFS (सेवानिवृत्त) - बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त एवं नेपाल में पूर्व राजदूत
44. जयश्री मुखर्जी, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र सरकार की पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव
45. शिवशंकर मुखर्जी, IFS (सेवानिवृत्त) - यूनाइटेड किंगडम (UK) में भारत के पूर्व उच्चायुक्त
46. गौतम मुखोपाध्याय, IFS (सेवानिवृत्त) - म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत
47. शोभा नाम्बिसन, IAS (सेवानिवृत्त) - कर्नाटक सरकार की पूर्व प्रधान सचिव (योजना)
48. पी. जॉय उम्मेन, IAS (सेवानिवृत्त) - छत्तीसगढ़ सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
49. मैक्सवेल परेरा, IPS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली के पूर्व संयुक्त पुलिस आयुक्त
50. आलोक पर्टी, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के पूर्व सचिव
51. जी.के. पिल्लई, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पूर्व गृह सचिव
52. आर. पूर्णलिंगम, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के पूर्व सचिव
53. राजेश प्रसाद, IFS (सेवानिवृत्त) - नीदरलैंड्स में भारत के पूर्व राजदूत
54. आर.एम. प्रेमकुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
55. टी.आर. रघुनंदन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव
56. एन.के. रघुपति, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व अध्यक्ष
57. वी.पी. राजा, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग के पूर्व अध्यक्ष
58. एम. रमेशकुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र प्रशासनिक अधिकरण के पूर्व सदस्य
59. मधुकुमार रेड्डी ए., IRTS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के रेलवे बोर्ड के पूर्व प्रधान कार्यकारी निदेशक
60. विजया लता रेड्डी, IFS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार की पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
61. जूलियो रिबेरो, IPS (सेवानिवृत्त) - पंजाब सरकार के पूर्व पुलिस महानिदेशक
62. अरुणा रॉय, IAS (से इस्तीफा)
63. मनबेंद्र एन. रॉय, IAS (सेवानिवृत्त) - पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव
64. ए.के. सामंता, IPS (सेवानिवृत्त) - पश्चिम बंगाल सरकार के खुफिया विभाग के पूर्व पुलिस महानिदेशक
65. दीपक सनन, IAS (सेवानिवृत्त) - हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री के लिए प्रशासनिक सुधार के पूर्व प्रमुख सलाहकार
66. जी.वी. वेणुगोपाल शर्मा, IAS (सेवानिवृत्त) - ओडिशा सरकार के राजस्व बोर्ड के पूर्व सदस्य
67. अर्धेन्दु सेन, IAS (सेवानिवृत्त) - पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
68. अभिजीत सेनगुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पूर्व सचिव
69. आफताब सेठ, IFS (सेवानिवृत्त) - जापान में भारत के पूर्व राजदूत
70. अशोक कुमार शर्मा, IFS (सेवानिवृत्त) - फिनलैंड और एस्टोनिया में भारत के पूर्व राजदूत
71. मुक्तेश्वर सिंह, IAS (सेवानिवृत्त) - मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य
72. राजू शर्मा, IAS (सेवानिवृत्त) - उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व बोर्ड के पूर्व सदस्य
73. सत्यवीर सिंह, IRS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के आयकर विभाग के पूर्व मुख्य आयुक्त
74. तारा अजय सिंह, IAS (सेवानिवृत्त) - कर्नाटक सरकार की पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव
75. ए.के. श्रीवास्तव, IAS (सेवानिवृत्त) - मध्य प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण के पूर्व प्रशासनिक सदस्य
76. प्रकृति श्रीवास्तव, IFoS (सेवानिवृत्त) - केरल सरकार की Rebuild Kerala विकास परियोजना की विशेष अधिकारी एवं पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक
77. अनुप ठाकुर, IAS (सेवानिवृत्त) - राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पूर्व सदस्य
78. पी.एस.एस. थॉमस, IAS (सेवानिवृत्त) - राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व महासचिव
79. रुडी वारजरी, IFS (सेवानिवृत्त) - कोलंबिया, इक्वाडोर और कोस्टा रिका में भारत के पूर्व राजदूत
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पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह, कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (CCG) ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक बयान जारी किया है। प्रोफेसर महमूदाबाद को एक सोशल मीडिया पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया था और बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया।
देशभर के विभिन्न राज्यों से जुड़े लगभग 80 पूर्व सिविल सेवकों के समूह कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (CCG) ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के प्रति एकजुटता दिखाते हुए एक बयान जारी किया है। प्रोफेसर महमूदाबाद को 18 मई को एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए हरियाणा पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था और 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया। उनकी गिरफ्तारी की व्यापक रूप से निंदा की गई थी, जिसमें उनके छात्र, साथी प्रोफेसर और अन्य कई दिग्गजों ने खुलकर उनका समर्थन किया।
बुधवार, 28 मई को जारी किए गए बयान में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के प्रति एकजुटता व्यक्त की गई, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर पर की गई उनकी पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया था।
इस बयान में कहा गया, "हम प्रोफेसर महमूदाबाद पर लगाए गए गंभीर आपराधिक आरोपों और उनकी गिरफ्तारी से काफी दुखी हैं।" इन आरोपों को बयान में "बेहद आपत्तिजनक और निरर्थक" करार दिया गया।" बयान में यह भी कहा गया कि, "उनकी पोस्ट्स का मुख्य उद्देश्य था शांति के लिए मार्मिक और प्रभावशाली अपील करना।"
प्रोफेसर महमूदाबाद पर लगाए गए आरोपों को औपनिवेशिक काल के देशद्रोह कानून की याद दिलाने वाला बताते हुए इस बयान में कहा गया कि, "अगर भीड़ द्वारा की गई हत्याओं और बुलडोज़र कार्रवाई की घटनाओं के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करना या शांति और संयम की अपील करना अपराध माना जाए, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।"
पूरा बयान नीचे पढ़ा जा सकता है:
CCG का अली खान महमूदाबाद मामले पर सार्वजनिक बयान
हम पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह हैं जिन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों में विभिन्न पदों पर सेवा दी है। हमारा किसी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध या करीबी नहीं है; हमारी एकमात्र निष्ठा भारत के संविधान के प्रति है।
हम अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद पर लगाए गए गंभीर आपराधिक आरोपों और उनकी गिरफ्तारी से बेहद परेशान हैं। प्रोफेसर अली खान पर ऑपरेशन सिंदूर से संबंधित उनके दो सोशल मीडिया पोस्ट के लिए आरोप लगाए गए हैं। उनके पोस्ट सोच-समझकर और संतुलित थे। इनमें उन्होंने भारतीय सेना के संयम की प्रशंसा की थी। उन्होंने उस समय जारी प्रेस ब्रीफिंग्स में भारतीय सशस्त्र बलों का प्रतिनिधित्व करने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी की “ऑप्टिक्स” के महत्व को भी बताया, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि यदि भीड़ द्वारा हत्याएं और घरों का बुलडोजर से तोड़ फोड़ जारी रहा तो ये दिखावा माना जाएगा।
उनका असली मकसद तो बड़े साफ और दिल से सिर्फ शांति की बात करना था। उन्होंने दोनों तरफ आम लोगों की मौतों को बहुत दुखद बताया और उन लोगों को कहा जो बिना कभी लड़ाई देखे लड़ाई को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर कुछ लोगों की उस “अंधी लड़ाई की प्यास” की भी कड़ी आलोचना की और कहा कि ऐसे लोग असली लड़ाई की गंभीरता को नहीं समझते और उन जवानों का सम्मान नहीं करते जिनकी जान सच में खतरे में होती है।
इन पोस्ट्स की वजह से प्रोफेसर अली पर भारत के नए कानून, भारतीय न्याय संहिता की कुछ सख्त धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। इनमें एक धारा 152 है, जो उन कार्यों पर कार्रवाई करती है जो भारत की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाते हैं। ये धारा पुराने देशद्रोह कानून जैसी लगती है, जो अब हटाया जा चुका है। उन पर और भी धाराओं के तहत आरोप हैं, जैसे 196(1)(b) जो ऐसे कार्यो के लिए है जो लोगों के बीच शांति और सौहार्द बिगाड़ते हैं; 197(1)(c) जो ऐसे बयान रोकने के लिए है जो झगड़ा कर सकते हैं; और 299 जो जान-बूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले कार्यों को अपराध मानती है।
हम प्रोफेसर अली खान पर लगे आपराधिक आरोपों को बेहद गलत और चौंकाने वाला मानते हैं। भीड़ द्वारा की गई हत्याओं और बुलडोज़र से घरों के तोड़ फोड़ के शिकार पीड़ितों के लिए न्याय मांगना या शांति और संयम की बात करना अपराध नहीं हो सकता। यह ध्यान देने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट के स्वतः संज्ञान लेने के आदेश के बावजूद, खुले तौर पर हिंसा और भारतीय मुसलमानों के खिलाफ जातीय हिंसा करने वाली नफरत भरी भाषणों पर इतने गंभीर आरोप शायद ही लगाए गए हों। हाल ही में मध्य प्रदेश के मंत्री कुंवर विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकियों की बहन कहकर बदनाम किया, तब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देना पड़ा। हाई कोर्ट ने मंत्री के बयान को "कैंसर जैसा खतरनाक" बताया।
बहुत से छात्र और फैकल्टी मेंबर प्रोफेसर अली खान के साथ एकजुटता दिखाने के लिए आगे आए, जबकि अशोका यूनिवर्सिटी की प्रबंधन टीम इस अन्यायपूर्ण आपराधिक कार्रवाई को लेकर चुप्पी साधे रही। फैकल्टी के सदस्यों ने बारी-बारी से उन जगहों पर बैठना शुरू किया जहां प्रोफेसर को हिरासत में रखा गया था। हमें खासकर प्रोफेसर अली खान के छात्रों का एक बयान बहुत छू गया, जिसमें उन्होंने उन्हें एक दयालु और समझदार शिक्षक बताया जो अपने देश से प्यार करते हैं और अपने छात्रों को हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के मूल्यों का सम्मान करना सिखाते हैं।
गिरफ्तारी और पुलिस रिमांड के बाद हमें राहत मिली जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान को अंतरिम जमानत दी। लेकिन, पूरे सम्मान के साथ, हमें बेंच के कुछ टिप्पणियों और जमानत की शर्तों से निराशा हुई। बेंच ने प्रोफेसर के सोशल मीडिया ट्वीट्स में “डॉग-व्हिसलिंग” जैसे अस्पष्ट शब्दों का जिक्र किया, उनके “शब्दों के चयन” की आलोचना की और उन पर “सस्ती लोकप्रियता” पाने का आरोप लगाया। बेंच ने प्रोफेसर का पासपोर्ट जमा करने का आदेश दिया और एक विशेष जांच टीम (SIT) नियुक्त की ताकि “पोस्ट्स में इस्तेमाल हुए शब्दों की जटिलताओं को पूरी तरह समझा जा सके और कुछ अभिव्यक्तियों की सही सराहना की जा सके।” हम समझ नहीं पा रहे हैं कि कैसे तीन पुलिस अधिकारी इतने सक्षम हो सकते हैं कि वे इतने सरल और सुंदर अंग्रेजी में लिखे गए पोस्ट के पीछे छिपे हुए अर्थ निकाल सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान का साथ देने वाले प्रोफेसरों और छात्रों को कड़ी चेतावनी दी और कहा, "हम जानते हैं इन्हें कैसे संभालना है।" जजों ने प्रोफेसर को भी कहा कि वह भारत और पाकिस्तान के झगड़े पर आगे कोई बात न करें। ऐसे समय में जब सोशल मीडिया पर नफरत और लड़ाई-झगड़े की बातें फैल रही हैं, एक राजनीतिक जानकार की शांति की बात को दबा देना बड़ा दुखद है। ध्यान देने वाली बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, जो लोग खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और नस्लीय सफाई की बात करते हैं, उन पर बहुत कम ही सख्त कानूनी कार्रवाई होती है।
हम फ्री स्पीच यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्र के अधिकार नजरअंदाज करने पर काफी परेशान हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इसे सपोर्ट किया है, जैसे अर्णब गोस्वामी बनाम भारत सरकार के केस में और हाल ही में इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात सरकार के मामले में। उस केस में जस्टिस ओका ने कहा था कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में अगर कोई व्यक्ति या समूह कोई राय रखता है, तो इसका जवाब दूसरा कोई अपनी राय रख कर दे सकता है। भले ही बहुत लोग उस बात से असहमत हों, फिर भी उसकी इज्जत करनी चाहिए और उसे बचाना चाहिए। उस फैसले में खासकर उन जजों को कहा गया था, जो खुद किसी बात को पसंद नहीं करते, उन्हें भी संविधान के आर्टिकल 19(1) के तहत लोगों के फ्री स्पीच के अधिकारों की पूरी रक्षा करनी होती है।
अगर गलत तरीके से कानून का इस्तेमाल करके फ्री स्पीच को दबाया जाता है, तो इसका समाज पर बहुत बुरा असर पड़ता है। युवा पत्रकार सौरव दास ने बताया कि पुलिस और कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान के साथ जो किया, वो एक ऐसा उदाहरण है जिससे समझ आता है कि कैसे एक ऐसा देश बन जाता है जहां लोग सोचने-समझने से दूर हो जाते हैं। वहां सब बस वही दोहराते हैं जो कहा जाए और जो नई या आगे बढ़ने वाली बात होती है, उसे दबा दिया जाता है ताकि बस वही लोग बोलें जो पुराने और आम सोच के हों। ऐसे में समाज धीरे-धीरे खत्म होने लगता है क्योंकि वहां सोचने-समझने की आज़ादी खत्म हो जाती है, और ये सब कोर्ट की मर्जी से होता रहता है।
सत्यमेव जयते
कंस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (79 हस्ताक्षरकर्ताओ की सूची नीचे दी गई है)
1. अनीता अग्निहोत्री, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की पूर्व सचिव
2. चंद्रशेखर बालाकृष्णन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कोयला विभाग के पूर्व सचिव
3. शरद बेहर, IAS (सेवानिवृत्त) -मध्य प्रदेश सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
4. ऑरोबिंदो बेहरा, IAS (सेवानिवृत्त) -ओडिशा सरकार के राजस्व बोर्ड के पूर्व सदस्य
5. मधु भदुरी, IFS (सेवानिवृत्त) - पुर्तगाल के पूर्व राजदूत
6. के.वी. भागीरथ, IFS (सेवानिवृत्त) - मॉरीशस में इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन के पूर्व महासचिव
7. नूतन गुहा बिस्वास, IAS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली सरकार के पुलिस शिकायत प्राधिकरण के पूर्व सदस्य
8. रवि बुढ़िराजा, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष
9. आर. चंद्रमोहन, IAS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली सरकार के परिवहन और शहरी विकास के पूर्व प्रमुख सचिव
10. राचेल चटर्जी, IAS (सेवानिवृत्त) - आंध्र प्रदेश सरकार की कृषि विभाग की पूर्व विशेष मुख्य सचिव
11. पूर्णिमा चौहान, IAS (सेवानिवृत्त) - हिमाचल प्रदेश सरकार की प्रशासनिक सुधार, युवा सेवाएं, खेल और मत्स्य विभाग की पूर्व सचिव
12. गुरजीत सिंह चीमा, IAS (सेवानिवृत्त) - पंजाब सरकार के वित्तीय आयुक्त (राजस्व)
13. एफ.टी.आर. कोलासो, IPS (सेवानिवृत्त) - कर्नाटक सरकार एवं जम्मू-कश्मीर सरकार के पूर्व पुलिस महानिदेशक
14. अन्ना दानी, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र सरकार की अतिरिक्त मुख्य सचिव
15. पी.आर. दासगुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष
16. एम.जी. देवासहयम, IAS (सेवानिवृत्त) - हरियाणा सरकार के पूर्व सचिव
17. किरण ढींगरा, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की पूर्व सचिव
18. सुशील दुबे, IFS (सेवानिवृत्त) - स्वीडन के पूर्व राजदूत
19. के.पी. फेबियन, IFS (सेवानिवृत्त) - इटली के पूर्व राजदूत
20. प्रभु घाटे, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पर्यटन विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक
21. एच.एस. गुजऱाल, IFoS (सेवानिवृत्त) - पंजाब सरकार के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक
22. मीना गुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पर्यावरण एवं वनों विभाग की पूर्व सचिव
23. रवि वीरा गुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व उप-गवर्नर
24. रशीदा हुसैन, IRS (सेवानिवृत्त) - नेशनल अकादमी ऑफ कस्टम्स, एक्साइज एवं नारकोटिक्स की पूर्व महानिदेशक
25. सिराज हुसैन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कृषि विभाग के पूर्व सचिव
26. कमल जसवाल, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव
27. नैनी जेयसेलन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार की अंतर-राज्य परिषद की पूर्व सचिव
28. नजीब जंग, IAS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल
29. विनोद सी. खन्ना, IFS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव
30. गीता कृपालनी, IRS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सेटलमेंट कमीशन की पूर्व सदस्य
31. बृजेश कुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव
32. ईश कुमार, IPS (सेवानिवृत्त) - तेलंगाना सरकार के पूर्व डीजीपी (सतर्कता एवं प्रवर्तन) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व विशेष रैपोर्टियर
33. सुधीर कुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के पूर्व सदस्य
34. सुबोध लाल, IPoS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के संचार मंत्रालय के पूर्व उप महानिदेशक
35. संदीप मदन, IAS (सेवानिवृत्त) - हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व सचिव
36. पी.एम.एस. मलिक, IFS (सेवानिवृत्त) - म्यांमार के पूर्व राजदूत और भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के विशेष सचिव
37. हर्ष मंदर, IAS (सेवानिवृत्त) - मध्य प्रदेश सरकार
38. शिवशंकर मेनन, IFS (सेवानिवृत्त) - पूर्व विदेश सचिव और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
39. सत्य नारायण मोहंती, IAS (सेवानिवृत्त) - राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व महासचिव
40. सुधांशु मोहंती, IDAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में पूर्व वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेवाएं)
41. रुचिरा मुखर्जी, IP&TAFS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के दूरसंचार आयोग में पूर्व वित्तीय सलाहकार
42. अनुप मुखर्जी, IAS (सेवानिवृत्त) - बिहार सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
43. देब मुखर्जी, IFS (सेवानिवृत्त) - बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त एवं नेपाल में पूर्व राजदूत
44. जयश्री मुखर्जी, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र सरकार की पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव
45. शिवशंकर मुखर्जी, IFS (सेवानिवृत्त) - यूनाइटेड किंगडम (UK) में भारत के पूर्व उच्चायुक्त
46. गौतम मुखोपाध्याय, IFS (सेवानिवृत्त) - म्यांमार में भारत के पूर्व राजदूत
47. शोभा नाम्बिसन, IAS (सेवानिवृत्त) - कर्नाटक सरकार की पूर्व प्रधान सचिव (योजना)
48. पी. जॉय उम्मेन, IAS (सेवानिवृत्त) - छत्तीसगढ़ सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
49. मैक्सवेल परेरा, IPS (सेवानिवृत्त) - दिल्ली के पूर्व संयुक्त पुलिस आयुक्त
50. आलोक पर्टी, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के पूर्व सचिव
51. जी.के. पिल्लई, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पूर्व गृह सचिव
52. आर. पूर्णलिंगम, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के पूर्व सचिव
53. राजेश प्रसाद, IFS (सेवानिवृत्त) - नीदरलैंड्स में भारत के पूर्व राजदूत
54. आर.एम. प्रेमकुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
55. टी.आर. रघुनंदन, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव
56. एन.के. रघुपति, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व अध्यक्ष
57. वी.पी. राजा, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग के पूर्व अध्यक्ष
58. एम. रमेशकुमार, IAS (सेवानिवृत्त) - महाराष्ट्र प्रशासनिक अधिकरण के पूर्व सदस्य
59. मधुकुमार रेड्डी ए., IRTS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के रेलवे बोर्ड के पूर्व प्रधान कार्यकारी निदेशक
60. विजया लता रेड्डी, IFS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार की पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
61. जूलियो रिबेरो, IPS (सेवानिवृत्त) - पंजाब सरकार के पूर्व पुलिस महानिदेशक
62. अरुणा रॉय, IAS (से इस्तीफा)
63. मनबेंद्र एन. रॉय, IAS (सेवानिवृत्त) - पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव
64. ए.के. सामंता, IPS (सेवानिवृत्त) - पश्चिम बंगाल सरकार के खुफिया विभाग के पूर्व पुलिस महानिदेशक
65. दीपक सनन, IAS (सेवानिवृत्त) - हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री के लिए प्रशासनिक सुधार के पूर्व प्रमुख सलाहकार
66. जी.वी. वेणुगोपाल शर्मा, IAS (सेवानिवृत्त) - ओडिशा सरकार के राजस्व बोर्ड के पूर्व सदस्य
67. अर्धेन्दु सेन, IAS (सेवानिवृत्त) - पश्चिम बंगाल सरकार के पूर्व मुख्य सचिव
68. अभिजीत सेनगुप्ता, IAS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पूर्व सचिव
69. आफताब सेठ, IFS (सेवानिवृत्त) - जापान में भारत के पूर्व राजदूत
70. अशोक कुमार शर्मा, IFS (सेवानिवृत्त) - फिनलैंड और एस्टोनिया में भारत के पूर्व राजदूत
71. मुक्तेश्वर सिंह, IAS (सेवानिवृत्त) - मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य
72. राजू शर्मा, IAS (सेवानिवृत्त) - उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व बोर्ड के पूर्व सदस्य
73. सत्यवीर सिंह, IRS (सेवानिवृत्त) - भारत सरकार के आयकर विभाग के पूर्व मुख्य आयुक्त
74. तारा अजय सिंह, IAS (सेवानिवृत्त) - कर्नाटक सरकार की पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव
75. ए.के. श्रीवास्तव, IAS (सेवानिवृत्त) - मध्य प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण के पूर्व प्रशासनिक सदस्य
76. प्रकृति श्रीवास्तव, IFoS (सेवानिवृत्त) - केरल सरकार की Rebuild Kerala विकास परियोजना की विशेष अधिकारी एवं पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक
77. अनुप ठाकुर, IAS (सेवानिवृत्त) - राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के पूर्व सदस्य
78. पी.एस.एस. थॉमस, IAS (सेवानिवृत्त) - राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व महासचिव
79. रुडी वारजरी, IFS (सेवानिवृत्त) - कोलंबिया, इक्वाडोर और कोस्टा रिका में भारत के पूर्व राजदूत
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