आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर 15 अगस्त को बनारस में BHU परिसर के बाहर शीर गोवर्धन दलित बस्ती में ऐपवा के तत्वधान में मेहनतकश कामगार महिलाओ की बैठक हुई जिसमें उनके भविष्य और वर्तमान को लेकर बात हुई कि आजादी के बाद से अभी तक उनकी दशा और दिशा में क्या फर्क आया है।
बैठक में मौजूद दलित महिलाओँ ने कहा कि हम किस बात की आजादी मनाएं जबकि हमारे पास दैनिक जरूरतें पूरा करने के संसाधन भी नहीं हैं। यहां जो महिलाएं साक्षर थीं उन्होंने हस्ताक्षर अभियान में हिस्सा लिया और असहमति की आवाज के दमन के खिलाफ प्रतिबद्धता जताई व जो महिलाएं साक्षर नहीं थीं उन्होंने अपने हाथ खड़े कर समर्थन दिया।
इस बैठक में सामाजिक कार्यकर्ता मुनीजा रफीक खान ने कहा कि आज वो लोग जेल में हैं जिन्होंने कभी भी ज़ुल्म का साथ नहीं दिया हमेसा सच के लिए लड़े और मजलूमों मेहनतकश समाज के लिए आवाज उठाई। लेकिन, सरकारों को ये नागवार लगा इस वजह से आज तीस्ता सेतलवाड़, रूपेश कुमार, संजीव भट्ट, श्री कुमार, जैसे सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमा लाद कर जेल में डाल दिया है ताकि डरकर हमारी आवाज़ खामोश हो जाए पर हम डरेंगे नहीं और मजबूती से सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ़ आवाज उठाते रहेंगे।
ऐपवा की राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री हमेशा अपने मन की बात करते हैं हमारे मन की बात कब करेंगे? इसलिए हम महिलाओं के मन की बात का एक प्रोग्राम 17 अगस्त को वाराणसी जिला मुख्यालय पर ऐपवा के प्रयास से महिलाओं के सम्मान सुरक्षा और रोजगार के लिए मन की बात का कार्यक्रम रखा गया है और साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए उनके समर्थन में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया।
फजलुर्रहमान अंसारी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत सरकार आजादी के 75वें साल को अमृत महोत्सव के तौर पर मना रही है। हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है। राष्ट्रभक्ति की नई समझ विकसित की जा रही है। इन दिनों जहां देखो वहीं सिर्फ तिरंगे की ही बात हो रही है। हालांकि बीते सालों में दो ऐसे मौके भी आए जब तिरंगे के मायने को सही तरह से प्रदर्शित किया गया। पहला मौका सीएए-एनआरसी को लेकर हुए लंबे आंदोलन में आया जब बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोगों ने हाथों में तिरंगा थामा, वहीं दूसरा मौका साल भरे चले किसान आंदोलन में आया जब किसानों ने तिरंगे को हाथों में लेकर मोदी सरकार से बेरोकटोक सवाल किए और अपने अधिकारों की मांग की।
ये अच्छी बात है कि भारत एकसाथ मिलकर आजादी के 75वें साल का जश्न मना रहा है। लेकिन क्या देश के लोग आजादी की साझी परंपरा का भी जश्न मना रहे हैं। क्या तिरंगे में निहित आइडिया ऑफ इंडिया की जो बात है, उसे लोग समझ रहे हैं या सरकार क्या इस दिशा में लोगों के बीच जागरूकता ला पा रही है। 75वें साल में सिर्फ घरों पर तिरंगा लगाने से देशभक्ति नहीं प्रदर्शित होगी, इसके लिए जरूरी है कि तिरंगे में छिपे संदेश को साझा किया जाए।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया था। सभा में डॉ. एस राधाकृष्णन ने तिरंगे के तीनों रंगों के बारे में बताया था। इन रंगों में, ‘भगवा या केसरिया रंग वैराग्य के त्याग को दर्शाता है, केंद्र में सफेद रंग, हमारे आचरण का मार्गदर्शन करने के लिए सत्य का मार्ग है और हरा मिट्टी व पौधे के जीवन से हमारे संबंध को दर्शाता है… अशोक चक्र धर्म का पहिया है और शांतिपूर्ण परिवर्तन की गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करता है।’ आजादी के 75वें साल में भारत के हर व्यक्ति को इस संदेश को समझाने की जरूरत है। सिर्फ तिरंगा फहराने से उसके असल मतलब को नहीं समझा जा सकता।
यह जरूरी है कि अमृत महोत्सव मनाते हुए हम पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए आने वाले भविष्य को बेहतर करने की दिशा में काम करें। एक ऐसा मुल्क बनकर उभरे जहां किसी भी तरह का विवाद न हो, सांप्रदायिक तौर पर नफरत की जगह न हो, सम्प्रदायिक एकता जब हम सीख दुनिया के सामने पेश करते हैं, तो उससे पहले ये जरूरी है कि देश के भीतर रहने वाले सभी जाति, धर्म समाज के लोग मिलकर रहें क्योंकि एक साथ आगे बढ़ने में ही किसी भी मुल्क की बेहतरी है। वरना अगर कौम थोड़ी भी गफलत में रहेगी तो हमारी आजादी खतरे में पड़ जाएगी।
आजादी को पाने का संघर्ष जितना शानदार था उसे कायम रखने में हम उतने ही नाकाम हो रहे हैं। छोटी-छोटी घटनाओं और प्रयासों से हमारी आजादी पर हमले किये जा रहे हैं और देश की बड़ी आबादी मौजूदा खतरे को समझ नहीं पा रही है, क्योंकि उसे तरह तरह की गैरजरूरी बहसों और मुद्दों में उलझा दिया गया है। इसके पीछे एक बड़ी साज़िश अंजाम ले रही है जो कई मौकों पर उभर कर सामने आ जाती है, ये बेहद खतरनाक है।
देश के लिए, नागरिकों के लिए और हमारी मेहनत से अर्जित की गई बहुमूल्य आजादी के लिये 75वें स्वतंत्रता दिवस पर हम किस चीज का जश्न मनाएं? घटते नागरिक बोध का, संवैधानिक संस्थाओं के ढहने का, छिनती आजादी का, बढ़ती नफरत का या क्रूर होती लोकतांत्रिक सत्ता का इसलिए इस साल आजादी को फिर से कायम करने के लिए नागरिक बोध पैदा करने की जरूरत है। छोटे-छोटे प्रयासों से इसे हासिल करना ही होगा। यही देश के लिए असल आजादी का जश्न होगा।
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इस बैठक में सामाजिक कार्यकर्ता मुनीजा रफीक खान ने कहा कि आज वो लोग जेल में हैं जिन्होंने कभी भी ज़ुल्म का साथ नहीं दिया हमेसा सच के लिए लड़े और मजलूमों मेहनतकश समाज के लिए आवाज उठाई। लेकिन, सरकारों को ये नागवार लगा इस वजह से आज तीस्ता सेतलवाड़, रूपेश कुमार, संजीव भट्ट, श्री कुमार, जैसे सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमा लाद कर जेल में डाल दिया है ताकि डरकर हमारी आवाज़ खामोश हो जाए पर हम डरेंगे नहीं और मजबूती से सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ़ आवाज उठाते रहेंगे।
ऐपवा की राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री हमेशा अपने मन की बात करते हैं हमारे मन की बात कब करेंगे? इसलिए हम महिलाओं के मन की बात का एक प्रोग्राम 17 अगस्त को वाराणसी जिला मुख्यालय पर ऐपवा के प्रयास से महिलाओं के सम्मान सुरक्षा और रोजगार के लिए मन की बात का कार्यक्रम रखा गया है और साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए उनके समर्थन में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया।
फजलुर्रहमान अंसारी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत सरकार आजादी के 75वें साल को अमृत महोत्सव के तौर पर मना रही है। हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है। राष्ट्रभक्ति की नई समझ विकसित की जा रही है। इन दिनों जहां देखो वहीं सिर्फ तिरंगे की ही बात हो रही है। हालांकि बीते सालों में दो ऐसे मौके भी आए जब तिरंगे के मायने को सही तरह से प्रदर्शित किया गया। पहला मौका सीएए-एनआरसी को लेकर हुए लंबे आंदोलन में आया जब बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोगों ने हाथों में तिरंगा थामा, वहीं दूसरा मौका साल भरे चले किसान आंदोलन में आया जब किसानों ने तिरंगे को हाथों में लेकर मोदी सरकार से बेरोकटोक सवाल किए और अपने अधिकारों की मांग की।
ये अच्छी बात है कि भारत एकसाथ मिलकर आजादी के 75वें साल का जश्न मना रहा है। लेकिन क्या देश के लोग आजादी की साझी परंपरा का भी जश्न मना रहे हैं। क्या तिरंगे में निहित आइडिया ऑफ इंडिया की जो बात है, उसे लोग समझ रहे हैं या सरकार क्या इस दिशा में लोगों के बीच जागरूकता ला पा रही है। 75वें साल में सिर्फ घरों पर तिरंगा लगाने से देशभक्ति नहीं प्रदर्शित होगी, इसके लिए जरूरी है कि तिरंगे में छिपे संदेश को साझा किया जाए।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया था। सभा में डॉ. एस राधाकृष्णन ने तिरंगे के तीनों रंगों के बारे में बताया था। इन रंगों में, ‘भगवा या केसरिया रंग वैराग्य के त्याग को दर्शाता है, केंद्र में सफेद रंग, हमारे आचरण का मार्गदर्शन करने के लिए सत्य का मार्ग है और हरा मिट्टी व पौधे के जीवन से हमारे संबंध को दर्शाता है… अशोक चक्र धर्म का पहिया है और शांतिपूर्ण परिवर्तन की गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करता है।’ आजादी के 75वें साल में भारत के हर व्यक्ति को इस संदेश को समझाने की जरूरत है। सिर्फ तिरंगा फहराने से उसके असल मतलब को नहीं समझा जा सकता।
यह जरूरी है कि अमृत महोत्सव मनाते हुए हम पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए आने वाले भविष्य को बेहतर करने की दिशा में काम करें। एक ऐसा मुल्क बनकर उभरे जहां किसी भी तरह का विवाद न हो, सांप्रदायिक तौर पर नफरत की जगह न हो, सम्प्रदायिक एकता जब हम सीख दुनिया के सामने पेश करते हैं, तो उससे पहले ये जरूरी है कि देश के भीतर रहने वाले सभी जाति, धर्म समाज के लोग मिलकर रहें क्योंकि एक साथ आगे बढ़ने में ही किसी भी मुल्क की बेहतरी है। वरना अगर कौम थोड़ी भी गफलत में रहेगी तो हमारी आजादी खतरे में पड़ जाएगी।
आजादी को पाने का संघर्ष जितना शानदार था उसे कायम रखने में हम उतने ही नाकाम हो रहे हैं। छोटी-छोटी घटनाओं और प्रयासों से हमारी आजादी पर हमले किये जा रहे हैं और देश की बड़ी आबादी मौजूदा खतरे को समझ नहीं पा रही है, क्योंकि उसे तरह तरह की गैरजरूरी बहसों और मुद्दों में उलझा दिया गया है। इसके पीछे एक बड़ी साज़िश अंजाम ले रही है जो कई मौकों पर उभर कर सामने आ जाती है, ये बेहद खतरनाक है।
देश के लिए, नागरिकों के लिए और हमारी मेहनत से अर्जित की गई बहुमूल्य आजादी के लिये 75वें स्वतंत्रता दिवस पर हम किस चीज का जश्न मनाएं? घटते नागरिक बोध का, संवैधानिक संस्थाओं के ढहने का, छिनती आजादी का, बढ़ती नफरत का या क्रूर होती लोकतांत्रिक सत्ता का इसलिए इस साल आजादी को फिर से कायम करने के लिए नागरिक बोध पैदा करने की जरूरत है। छोटे-छोटे प्रयासों से इसे हासिल करना ही होगा। यही देश के लिए असल आजादी का जश्न होगा।
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