मनुस्मृति जलाने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार बीएचयू छात्र जेल में बंद, अधिवक्ताओं ने झूठे आरोपों को हटाने की मांग की

Written by sabrang india | Published on: December 30, 2024
अधिवक्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने वाराणसी के पुलिस आयुक्त से मुलाकात कर बीएचयू से गिरफ्तार छात्रों पर दर्ज फर्जी आरोप को हटाने की मांग की है। अधिवक्ताओं ने छात्रों पर लगाई गई मनगढ़ंत, गंभीर और गैर जमानती धाराओं को हटाने तथा मामले की जांच डीसीपी स्तर के अधिकारी से कराने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की।



अधिवक्ताओं के एक समूह ने 29 दिसंबर को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से गिरफ्तार छात्रों के खिलाफ दर्ज किए गए मनगढ़ंत आरोपों को वापस लेने की मांग को लेकर वाराणसी में पुलिस आयुक्त से मुलाकात की। अधिवक्ताओं ने छात्रों पर गलत तरीके से लगाए गए गंभीर और गैर-जमानती धाराओं को हटाने का आग्रह किया। उन्होंने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) स्तर के अधिकारी द्वारा मामले की जांच करने और झूठे आरोप लगाने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की भी मांग की। यह ध्यान रखना जरूरी है कि स्टोरी लिखे जाने के समय गिरफ्तार छात्र जेल में बंद थे।

छात्रों की गिरफ्तारियां 26 दिसंबर 2024 की एक घटना के बाद हुई जब बीएचयू के मार्क्सवादी छात्र संगठन भगत सिंह छात्र मोर्चा (बीएसएम) से जुड़े तीन महिलाओं सहित 13 छात्रों को वाराणसी के लंका पुलिस स्टेशन ने हिरासत में लिया था। इसके बाद उन्हें वाराणसी जिला न्यायालय ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। ये गिरफ्तारियां 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस पर आयोजित एक चर्चा के बाद हुई, जो डॉ बीआर अंबेडकर द्वारा 1927 में मनुस्मृति को जलाने की ऐतिहासिक घटना की याद में मनाया जाता है। विश्वविद्यालय के कला संकाय में आयोजित इस चर्चा को विश्वविद्यालय के अधिकारियों और सुरक्षा कर्मचारियों ने बाधित कर दिया, जिससे छात्रों और सुरक्षा गार्डों के बीच झड़प हो गई। हिरासत में लिए गए लोगों में नौ छात्र और चार पूर्व छात्र हैं, जो फिलहाल जिला जेल, चौकाघाट में बंद हैं। जैसे ही उन्हें जेल में स्थानांतरित किया गया, छात्रों ने राज्य के दमन के प्रति प्रतिरोध व्यक्त करते हुए "मनुस्मृति मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद, जय भीम" और "छात्रों के खिलाफ हिंसा बंद करो" जैसे नारे लगाए। जेल में बंद छात्रों से आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने भी पूछताछ की।

प्रतिनिधिमंडल ने हिरासत में लिए गए छात्रों के साथ दुर्व्यवहार के मुद्दे पर वाराणसी के जिला जेल के अधीक्षक से भी मुलाकात की। उन्होंने 10 प्रमुख मांगों वाला एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें शामिल हैं:


1. छात्रों से मिलने के लिए आने वाले लोगों को अनुमति देने के लिए प्रति व्यक्ति 200 रुपये की रिश्वत मांगने वाले साथ ही रिश्वत न देने पर शारीरिक नुकसान पहुंचाने की धमकी देने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।


2. छात्रों को जेल मैनुअल के अनुसार सुविधाएं दी जाएं।


3. छात्रों को अलग बैरक में रखकर पढ़ाई के लिए अनुकूल माहौल सुनिश्चित किया जाए।


4. घायल या अस्वस्थ छात्रों के लिए उचित जांच सहित इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।


5. छात्रों के साथ कठोर अपराधियों जैसा व्यवहार न किया जाए।


प्रतिनिधिमंडल में एडवोकेट प्रेमप्रकाश सिंह यादव, एडवोकेट रामदुलार प्रजापति, एडवोकेट राजेश कुमार यादव, एडवोकेट सुशील कुमार, एडवोकेट कमलेश यादव, एडवोकेट सत्यप्रकाश, एडवोकेट वीरबली सिंह यादव, एडवोकेट अवधेश, एडवोकेट अजीत सिंह यादव, एडवोकेट श्रीदत्त और एडवोकेट राकेश शामिल थे।

घटना की पृष्ठभूमि

25 दिसंबर, 2024 को भगत सिंह छात्र मोर्चा (बीएसएम) ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में मनुस्मृति दहन दिवस मनाने के लिए एक परिचर्चा का आयोजन किया था, जो 1927 के ऐतिहासिक दिन की याद में मनाया जाता है। इसी दिन डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने जातिगत भेदभाव के विरोध में मनुस्मृति को जलाया था। विश्वविद्यालय के कला संकाय में आयोजित इस कार्यक्रम को बीएचयू के प्रॉक्टोरियल बोर्ड के गार्डों ने बाधित कर दिया, जिन्होंने कथित तौर पर प्रतिभागियों के साथ दुर्व्यवहार किया। उन्हें जबरन प्रॉक्टोरियल बोर्ड के कार्यालय में ले जाया गया जहां उन्हें शाम करीब 7:30 बजे तक बंद कर दिया गया।

अगले दिन 26 दिसंबर को बीएसएम के 13 सदस्यों के खिलाफ गंभीर अपराधों का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की गई। तीन महिलाओं सहित इन लोगों को बाद में लंका पुलिस स्टेशन ने गिरफ्तार कर लिया और वाराणसी जिला न्यायालय ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। रिपोर्ट के अनुसार उपद्रव के दौरान छात्रों पर शारीरिक हमला किया गया, उनके कपड़े फाड़े गए और उनके चश्मे तोड़ दिए गए। दखल देने का प्रयास करने वाले छात्रों को भी धक्का दिया गया, पीटा गया और हिरासत में लिया गया। आरोप है कि प्रॉक्टोरियल बोर्ड और पुलिस ने छात्रों को धमकी दी कि उनके भविष्य को बर्बाद कर दिया जाएगा।


गिरफ्तार छात्रों को कानूनी सलाह के बिना लंका पुलिस स्टेशन में रात भर रखा गया। कथित तौर पर, हिरासत में रहते हुए उन्हें पीटा गया जिससे उन्हें चोटें आईं। ये छात्र अब जिला जेल, चौकाघाट में बंद हैं।


भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 के विभिन्न प्रावधानों के तहत छात्रों के खिलाफ एफआईआर (संख्या 523/2024) दर्ज की गई। इनमें शामिल हैं:

धारा 132: किसी लोक सेवक को ड्यूटी करने से रोकने के लिए हमला करना या आपराधिक कार्रवाई करना।

धारा 121(2): किसी लोक सेवक को गंभीर चोट पहुंचाना।

धारा 196(1): धर्म, जाति या भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना।

धारा 299: जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के जरिए धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना।

धारा 190: समूह द्वारा किए गए अपराध के लिए गैरकानूनी सभा।

धारा 191(2): दंगा।

धारा 115(2): स्वेच्छा से चोट पहुंचाना।

धारा 110: गैर इरादतन हत्या करने का प्रयास।

बीएचयू के सुरक्षा अधिकारी ओमप्रकाश तिवारी और सहायक सुरक्षा अधिकारी हसन अब्बास जैदी की शिकायत पर दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि 25 दिसंबर को शाम 5:30 बजे, 20-25 बीएसएम सदस्यों का एक समूह आर्ट्स फैकल्टी स्क्वायर के पास इकट्ठा हुआ जो कथित तौर पर मनुस्मृति दहन दिवस के उपलक्ष्य में मनुस्मृति की प्रतियां जलाने की योजना बना रहा था। शिकायतकर्ता, प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सदस्यों और सुरक्षा कर्मियों के साथ उन्हें शांत करने के लिए समूह के पास गए। हालांकि, छात्रों ने कथित तौर पर सुरक्षा दल के साथ दुर्व्यवहार किया, धक्का दिया और हमला किया।

इस एफआईआर में दावा किया गया है कि दो महिला सुरक्षाकर्मी शिप्रा मिश्रा और शिखा मिश्रा को इस विवाद के दौरान गंभीर चोटें आईं और वे बेहोश हो गईं, जिसके बाद उन्हें बीएचयू ट्रॉमा सेंटर में इलाज कराना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि छात्रों की हरकतों से सार्वजनिक सौहार्द बिगड़ा।

एफआईआर में जिन 13 लोगों की पहचान की गई है, उनमें मुकेश कुमार, संदीप जायसवाल, अमर शर्मा, अरविंद पाल, अनुपम कुमार, लक्ष्मण कुमार, अविनाश, अरविंद, शुभम कुमार, आदर्श, इप्सिता अग्रवाल, सिद्धि तिवारी और कात्यायनी बी रेड्डी शामिल हैं। इन पर लगे आरोपों में अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है।

डिटेल रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है।

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