मणिपुर में शनिवार को दूसरे चरण में भी बंपर वोटिंग हुई। मणिपुर विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में शनिवार को 6 जिलों के 22 निर्वाचन क्षेत्रों में 84.20 प्रतिशत मतदान हुआ। चुनाव अधिकारियों ने रविवार को अंतिम आंकड़ें जारी करते हुए बताया कि यहां देर शाम तक मतदान हुआ और शाम 4 बजे तक मतदान केंद्रों में प्रवेश करने वाले सभी मतदाताओं को वोट डालने की अनुमति दी गई। बताया कि सेनापति जिले में सबसे ज्यादा 86.55 प्रतिशत मतदान हुए जबकि जिरीबाम में सबसे कम 77.64 प्रतिशत मतदान हुआ। वहीं, थौबल जिले में 85.47 प्रतिशत, चंदेल में 83.10, तामेंगलांग में 82.43 और उखरुल में 81.90 प्रतिशत मतदान हुआ। खास है कि पहले चरण में 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 38 में करीब 88.63 प्रतिशत वोट पड़े थे।
दूसरे चरण की 22 सीटों पर 92 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे थे। चुनाव आयोग के मुताबिक इन सीटों पर 8,47,400 मतदाता हैं जिनमें 4,18,401 पुरुष, 4,28,968 महिलाएं और 31 ट्रांसजेंडर शामिल हैं। राज्य की सत्ताधारी भाजपा ने सभी 22 सीटों पर अपना उम्मीदवारों उतारा है जबकि कांग्रेस के 18, जनता दल-यूनाइटेड और नागा पीपुल्स फ्रंट के 10-10 उम्मीदवार, 11 नेशनल पीपुल्स पार्टी, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से 2-2, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया-अठावले के 3 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।
मणिपुर में कई छोटी पार्टियां भी चुनावी गणित में खुद को फिट करने के लिए ताल ठोक रहे हैं। इन्हीं में से लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास, कुकी पीपुल्स अलायंस (KPA) और कुकी नेशनल असेंबली (KPA) भी शामिल हैं। दूसरे चरण के लिए कुल 1,247 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। 92 उम्मीदवारों में से सीपीआई (काकचिंग एसी) की वाई रोमिता और बीजेपी (चंदेल एसी) की एसएस ओलिश ही महिला उम्मीदवार हैं।
अब 10 मार्च को गिनती होगी लेकिन सवाल है कि क्या मणिपुर के परिणाम से पूर्वोत्तर का राजनीतिक समीकरण कुछ बदलेगा। क्या भाजपा दोबारा सरकार बना पाएगी? से भी अहम यह सवाल यह है कि अगर मणिपुर में भाजपा नहीं जीतती है या उसकी सरकार नहीं बन पाती है तो क्या होगा? अगर ऐसा हुआ कि मणिपुर में भाजपा की सत्ता में सरकार चला रही भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी यानी एनपीपी भी साथ छोड़ देगी?
खास है कि लोकसभा के स्पीकर रहे दिवंगत पीए संगमा के बेटे कोनरेड संगमा मेघालय के मुख्यमंत्री हैं और भाजपा उनकी सरकार में शामिल है। दूसरी ओर, मणिपुर में संगमा की एनपीपी ने अपने 4 विधायकों का समर्थन भाजपा को दिया था। एनपीपी के अलावा मणिपुर पीपुल्स फ्रंट के 4 विधायकों का समर्थन भी भाजपा के साथ था। लेकिन भाजपा ने अपनी दोनों सहयोगी पार्टियों को छोड़ दिया और इस बार सभी 60 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी है।
मीडिया रिपोर्ट्स देंखे तो मणिपुर में भाजपा, कांग्रेस, एनपीपी व एमपीएफ के बीच चारकोणीय मुकाबला है, जिसमें त्रिशंकु विधानसभा बनने की प्रबल संभावना है। पिछली बार भी भाजपा 21 सीट जीत पाई थी और कांग्रेस को 28 सीटें मिली थीं। इस बार कांग्रेस की ओर से जयराम रमेश ने मणिपुर में डेरा डाला हुआ है और उन्होंने एनपीपी व जदयू के साथ मिलकर सरकार बनाने का संकेत दिया है।
अब विश्लेषकों की मानें तो संगमा की पार्टी एनपीपी का रूझान भाजपा के खिलाफ दिख रहा है। उन्होंने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा का विरोध किया है। एक नया घटनाक्रम यह हुआ है कि मणिपुर में दूसरे और आखिरी चरण के मतदान से ठीक पहले संगमा की मेघालय सरकार ने केंद्रीय एजेंसी सीबीआई को दी गई ‘जनरल कंसेंट’ वापस ले ली। इससे पहले कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों की 8 सरकारों ने सीबीआई से ‘जनरल कंसेंट’ वापस ली थी। मेघालय के इस कदम का चुनाव के बाद असर देखने को मिल सकता है।
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मणिपुर में कई छोटी पार्टियां भी चुनावी गणित में खुद को फिट करने के लिए ताल ठोक रहे हैं। इन्हीं में से लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास, कुकी पीपुल्स अलायंस (KPA) और कुकी नेशनल असेंबली (KPA) भी शामिल हैं। दूसरे चरण के लिए कुल 1,247 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। 92 उम्मीदवारों में से सीपीआई (काकचिंग एसी) की वाई रोमिता और बीजेपी (चंदेल एसी) की एसएस ओलिश ही महिला उम्मीदवार हैं।
अब 10 मार्च को गिनती होगी लेकिन सवाल है कि क्या मणिपुर के परिणाम से पूर्वोत्तर का राजनीतिक समीकरण कुछ बदलेगा। क्या भाजपा दोबारा सरकार बना पाएगी? से भी अहम यह सवाल यह है कि अगर मणिपुर में भाजपा नहीं जीतती है या उसकी सरकार नहीं बन पाती है तो क्या होगा? अगर ऐसा हुआ कि मणिपुर में भाजपा की सत्ता में सरकार चला रही भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी यानी एनपीपी भी साथ छोड़ देगी?
खास है कि लोकसभा के स्पीकर रहे दिवंगत पीए संगमा के बेटे कोनरेड संगमा मेघालय के मुख्यमंत्री हैं और भाजपा उनकी सरकार में शामिल है। दूसरी ओर, मणिपुर में संगमा की एनपीपी ने अपने 4 विधायकों का समर्थन भाजपा को दिया था। एनपीपी के अलावा मणिपुर पीपुल्स फ्रंट के 4 विधायकों का समर्थन भी भाजपा के साथ था। लेकिन भाजपा ने अपनी दोनों सहयोगी पार्टियों को छोड़ दिया और इस बार सभी 60 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ी है।
मीडिया रिपोर्ट्स देंखे तो मणिपुर में भाजपा, कांग्रेस, एनपीपी व एमपीएफ के बीच चारकोणीय मुकाबला है, जिसमें त्रिशंकु विधानसभा बनने की प्रबल संभावना है। पिछली बार भी भाजपा 21 सीट जीत पाई थी और कांग्रेस को 28 सीटें मिली थीं। इस बार कांग्रेस की ओर से जयराम रमेश ने मणिपुर में डेरा डाला हुआ है और उन्होंने एनपीपी व जदयू के साथ मिलकर सरकार बनाने का संकेत दिया है।
अब विश्लेषकों की मानें तो संगमा की पार्टी एनपीपी का रूझान भाजपा के खिलाफ दिख रहा है। उन्होंने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी अफस्पा का विरोध किया है। एक नया घटनाक्रम यह हुआ है कि मणिपुर में दूसरे और आखिरी चरण के मतदान से ठीक पहले संगमा की मेघालय सरकार ने केंद्रीय एजेंसी सीबीआई को दी गई ‘जनरल कंसेंट’ वापस ले ली। इससे पहले कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों की 8 सरकारों ने सीबीआई से ‘जनरल कंसेंट’ वापस ली थी। मेघालय के इस कदम का चुनाव के बाद असर देखने को मिल सकता है।
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