साधो, पिछले कुछ साल से कुछ उल्टा चलन चल पड़ा है। जिन्हें जेल में होना चाहिए वह बाहर मेवा खा रहे हैं और जिन्हें उनके कामों के लिए सम्मानित करना चाहिए था वे जेल में डाल दिये जा रहे हैं या उनके ऊपर FIR दर्ज करा दी जा रही है। जिनके सामाजिक कार्यों से सरकार डर जा रही है और FIR या जेल नहीं करा पा रही उन्हें पुलिस भेज परेशान करवा रही है।
साधो, पतंजली वाले रामदेव, जिन्हें लोग बाबा रामदेव कहते हैं उन्होंने कहा कि एलोपैथी चिकित्सा की वजह से इस कोरोना महामारी में लोगों की मौत हो रही है। मैं यह नहीं कहूंगा कि यह मूर्खतापूर्ण बयान है। मेरे ऐसा कह देने से उनके लाखों प्रशंसकों को ठेस लग सकती है। पर साधो, एक छोटा सा सवाल उनके प्रशंसकों में क्यों नहीं उठता कि बाबा के चेले और खुद बाबा जब बीमार पड़ते हैं तो उसी एलोपैथी की शरण मे क्यों जाते हैं? वे अपने को बाबा कहते हैं। भगवा पहनते हैं। लोग उनके भगवा पहन लेने भर से ही उनका सम्मान करने लगते हैं। उनके लाखों प्रशंसक और फालोवर भी हैं। क्या बाबा रामदेव को नहीं पता कि इस पैंडेमिक में इस तरह के बयान दे देने से उनके फॉलोवर्स पर इसका क्या असर पड़ेगा?
दूसरी बात साधो, जरा सोचिए, इस महामारी में जिन्होंने सबसे ज्यादा अपनी जान को जोखिम में डाला वह थे एलोपैथी के डॉक्टर्स, नर्सेज, मेडिकल स्टाफ आदि। सरकार ने इन्हें कोरोना वॉरियर्स भी कहा। जगह जगह कोरोना वॉरियर्स को सम्मानित भी किया गया। इसके अलावा हमने देखा पिछले डेढ़ साल से जबसे कोरोना का फैलाव भारत में हुआ है, न जाने कितने डॉक्टर्स ने लोगों का इलाज करते हुए अपनी जान गंवाई। एलोपैथी न होती, एलोपैथ के डॉक्टर न होते तो इस महामारी में इस देश के लोगों का क्या होता? हमने लगातार देखा, सोशल मीडिया, मीडिया के माध्यम से देखा कि किस तरह से डॉक्टर सीमिति संसाधनों में भी अपने कार्य मे दिन रात लगे रहे और अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों को बचाते रहे। तो क्या बाबा रामदेव का बयान जो उन्होंने एलोपैथी चिकित्सा को लेकर दिया है इन कोरोना वॉरियर्स का अपमान नहीं है?
साधो, देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन बाबा के बयान से आहत हो गए और उन्हें माफी मांग लेने को कहा। मुझे खुशी हुई। इस बात से नहीं कि उन्होंने माफी मांग लेने को कहा, बल्कि इस बात से कि बड़े दिनों बाद यह पता चला कि देश में स्वास्थ्य मंत्री भी हैं। साधो, स्वास्थ्य मंत्री ने आहत मन से माफी मांगने को कहा और बाबा रामदेव ने माफी मांग भी ली और अपने शब्द वापस ले लिए। यह शब्द वापस ले लेने वाली चीज बड़ी मजेदार है। बड़े लोग शब्द वापस ले लेते हैं। पर कोई छोटा आम आदमी किसी नेता अफसर को कुछ गलत कह दे तो उसके लिए यह शब्द वापस ले लेने वाला फार्मूला काम न आता। उसे जेल या थप्पड़ या दोनों मिलता है। हाँ, तो बाबा ने माफी मांग ली और सब सही हो गया। इसके पहले भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ने गोडसे को महान कहा था जिससे प्रधानमंत्री आहत हो गए थे और प्रधानमंत्री ने कह दिया था- मैं साध्वी को मन से माफ नहीं कर पाऊंगा।
इस मामले में साध्वी ने भी माफी मांग की थी और सब ओके हो गया था। खैर क्या कहें, भारत में माफी मांग लेने की प्रथा पुरानी है।
साधो, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री आजकल चर्चा में रहते हैं। अपने कार्यों के लिए नहीं, अपने बयानों के लिए। अभी हाल ही में कहा था- अन्य जीवों की तरह कोरोना भी जीव है। उसे भी जीने का अधिकार है। मुझे नहीं पता कि यह बात उन्होंने गंभीरता में कही या हास्य के रूप में। पर जिस भी रूप में कही यह बड़ा गैरजिम्मेदाराना बयान था। उत्तराखंड में कोरोना से जिन लोगों अपनों को खोया है यह बयान उनकी मन स्थिति पर क्या प्रभाव डालेगा क्या इस बात की चिंता किसी को नहीं है? इस महामारी से न जाने कितने घर प्रतिदिन तबाह होते जा रहे हैं और जन प्रतिनिधियों की इस तरह की बातें फोड़े में सूल की तरह चुभती हैं। पर न कोई कार्यवाही न कोई माफी बस सब हास्य, मीम में निकल जा रहा।
साधो इसके अलावा न जाने कितनी अवैज्ञानिक बातें जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग फैलाते जा रहे हैं, कोई गौ मूत्र पीने की सलाह दे रहा, कोई गौ मूत्र पीकर दिखा रहा, कोई गोबर से नहाने की सलाह दे रहा। यह सब बातें न सिर्फ अवैज्ञानिक हैं बल्कि मूर्खतापूर्ण भी हैं। इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ये लोगों को संक्रमित करने के अलावा कोई काम की नहीं हैं। अभी हाल ही में के खबर वायरल हुई थी जिसमें कुछ महिलाएं चाय के रूप में गौ मूत्र का सेवन करती हुई बताई जा रही थीं। कायदे से पुलिस प्रशासन को इस तरह के लोगों पर FIR दर्ज करनी थी। पर कहीं कुछ न हुआ।
साधो इसके अलावा पिछले कुछ महीनों से जबसे सेकंड वेव ने तेजी पकड़ी थी ऐसे ऐसे लोगों पर FIR दर्ज हुए हैं जिनके बारे में जानकर, पढ़कर न सिर्फ गुस्सा आता है बल्कि सरकार और प्रशासन के रवैये पर खीज उत्पन्न होती है।
साधो, उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में कोई विक्की अग्रहरि थे। उनसे ऑक्सीजन के लिए तड़पते अस्पताल के बाहर पड़े लोग न देखे गए। उन्होंने अपने पास से पैसे इकट्ठे कर लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाना शुरू किया। खबर यह भी थी कि उन्होंने ऐसा करने के लिए अपने घर के कुछ सामान भी बेचे। पर इस कार्य के लिए उनपर महामारी अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया। क्या किसी को मदद पहुंचाना गुनाह है? गुनाह नहीं है। पर साधो जब आप यह उत्तर प्रदेश में कर रहे होते हैं तो गुनाह हो जाता है इसका उदाहरण ऊपर मैंने बताया।
साधो, आम आदमी पार्टी के विधायक दिलीप पांडेय के यहां क्राइम ब्रांच पहुंची। दिलीप पांडेय लगातार कोरोना में जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे। पुलिस यह जानने पहुंची कि वे मदद कैसे कर रहे हैं। साधो, क्या प्रशासन ने इतनी फुर्ती किसी केस में 'मदद मांगे गए व्यक्ति को मदद मिली कि नहीं' इस मामले में दिखाई है? कहीं ऐसी न्यूज़ मिली है? मुझे तो नहीं मिली। पर यह खबर अक्सर सुनने को मिल जाती है कि मदद पहुंचाने वाले के घर पुलिस का छापा।
साधो, ऐसी कई खबरें हैं। दिल्ली के युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवासन के यहां दिल्ली पुलिस पहुंची। पुलिस को शक था कि कोरोना में काम आने वाले उपकरण और ऑक्सीजन वगैरह की उन्होंने जमाखोरी कर रखी है। श्रीनिवासन भी कोरोना महामारी में लगातार लोगों के बीच जाकर सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों की मदद कर रहे थे। पुलिस ने जांच की और कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि श्रीनिवासन ने कोई जमाखोरी नहीं की थी।
साधो, इस कड़ी में बिहार के पप्पू यादव को कैसे भुलाया जा सकता है जो लगातार लोगों की मदद कर रहे थे। उन्हें एक कई साल पुराने मामले में गिरफ्तार किया गया। यह सब कब शुरू हुआ? बिहार सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी के द्वारा सांसद निधि से खरीदे गए एम्बुलेंस से मिट्टी की ढुलाई की खबर सामने आने के बाद। कहाँ तो कार्यवाही सांसद महोदय पर होनी थी और जवाबदेही उनकी तय होनी थी पर हुआ उल्टा। कई साल पहले के मामले में पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया गया।
साधो, यह न्यू इंडिया है। अगर आप सरकार के साथ हैं तो सात खून माफ है। सरकार से संबंधित नहीं है तो आपके द्वारा किया गया सराहनीय कार्य भी जेल भिजवा सकता है।
साधो, पतंजली वाले रामदेव, जिन्हें लोग बाबा रामदेव कहते हैं उन्होंने कहा कि एलोपैथी चिकित्सा की वजह से इस कोरोना महामारी में लोगों की मौत हो रही है। मैं यह नहीं कहूंगा कि यह मूर्खतापूर्ण बयान है। मेरे ऐसा कह देने से उनके लाखों प्रशंसकों को ठेस लग सकती है। पर साधो, एक छोटा सा सवाल उनके प्रशंसकों में क्यों नहीं उठता कि बाबा के चेले और खुद बाबा जब बीमार पड़ते हैं तो उसी एलोपैथी की शरण मे क्यों जाते हैं? वे अपने को बाबा कहते हैं। भगवा पहनते हैं। लोग उनके भगवा पहन लेने भर से ही उनका सम्मान करने लगते हैं। उनके लाखों प्रशंसक और फालोवर भी हैं। क्या बाबा रामदेव को नहीं पता कि इस पैंडेमिक में इस तरह के बयान दे देने से उनके फॉलोवर्स पर इसका क्या असर पड़ेगा?
दूसरी बात साधो, जरा सोचिए, इस महामारी में जिन्होंने सबसे ज्यादा अपनी जान को जोखिम में डाला वह थे एलोपैथी के डॉक्टर्स, नर्सेज, मेडिकल स्टाफ आदि। सरकार ने इन्हें कोरोना वॉरियर्स भी कहा। जगह जगह कोरोना वॉरियर्स को सम्मानित भी किया गया। इसके अलावा हमने देखा पिछले डेढ़ साल से जबसे कोरोना का फैलाव भारत में हुआ है, न जाने कितने डॉक्टर्स ने लोगों का इलाज करते हुए अपनी जान गंवाई। एलोपैथी न होती, एलोपैथ के डॉक्टर न होते तो इस महामारी में इस देश के लोगों का क्या होता? हमने लगातार देखा, सोशल मीडिया, मीडिया के माध्यम से देखा कि किस तरह से डॉक्टर सीमिति संसाधनों में भी अपने कार्य मे दिन रात लगे रहे और अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों को बचाते रहे। तो क्या बाबा रामदेव का बयान जो उन्होंने एलोपैथी चिकित्सा को लेकर दिया है इन कोरोना वॉरियर्स का अपमान नहीं है?
साधो, देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन बाबा के बयान से आहत हो गए और उन्हें माफी मांग लेने को कहा। मुझे खुशी हुई। इस बात से नहीं कि उन्होंने माफी मांग लेने को कहा, बल्कि इस बात से कि बड़े दिनों बाद यह पता चला कि देश में स्वास्थ्य मंत्री भी हैं। साधो, स्वास्थ्य मंत्री ने आहत मन से माफी मांगने को कहा और बाबा रामदेव ने माफी मांग भी ली और अपने शब्द वापस ले लिए। यह शब्द वापस ले लेने वाली चीज बड़ी मजेदार है। बड़े लोग शब्द वापस ले लेते हैं। पर कोई छोटा आम आदमी किसी नेता अफसर को कुछ गलत कह दे तो उसके लिए यह शब्द वापस ले लेने वाला फार्मूला काम न आता। उसे जेल या थप्पड़ या दोनों मिलता है। हाँ, तो बाबा ने माफी मांग ली और सब सही हो गया। इसके पहले भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ने गोडसे को महान कहा था जिससे प्रधानमंत्री आहत हो गए थे और प्रधानमंत्री ने कह दिया था- मैं साध्वी को मन से माफ नहीं कर पाऊंगा।
इस मामले में साध्वी ने भी माफी मांग की थी और सब ओके हो गया था। खैर क्या कहें, भारत में माफी मांग लेने की प्रथा पुरानी है।
साधो, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री आजकल चर्चा में रहते हैं। अपने कार्यों के लिए नहीं, अपने बयानों के लिए। अभी हाल ही में कहा था- अन्य जीवों की तरह कोरोना भी जीव है। उसे भी जीने का अधिकार है। मुझे नहीं पता कि यह बात उन्होंने गंभीरता में कही या हास्य के रूप में। पर जिस भी रूप में कही यह बड़ा गैरजिम्मेदाराना बयान था। उत्तराखंड में कोरोना से जिन लोगों अपनों को खोया है यह बयान उनकी मन स्थिति पर क्या प्रभाव डालेगा क्या इस बात की चिंता किसी को नहीं है? इस महामारी से न जाने कितने घर प्रतिदिन तबाह होते जा रहे हैं और जन प्रतिनिधियों की इस तरह की बातें फोड़े में सूल की तरह चुभती हैं। पर न कोई कार्यवाही न कोई माफी बस सब हास्य, मीम में निकल जा रहा।
साधो इसके अलावा न जाने कितनी अवैज्ञानिक बातें जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग फैलाते जा रहे हैं, कोई गौ मूत्र पीने की सलाह दे रहा, कोई गौ मूत्र पीकर दिखा रहा, कोई गोबर से नहाने की सलाह दे रहा। यह सब बातें न सिर्फ अवैज्ञानिक हैं बल्कि मूर्खतापूर्ण भी हैं। इनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ये लोगों को संक्रमित करने के अलावा कोई काम की नहीं हैं। अभी हाल ही में के खबर वायरल हुई थी जिसमें कुछ महिलाएं चाय के रूप में गौ मूत्र का सेवन करती हुई बताई जा रही थीं। कायदे से पुलिस प्रशासन को इस तरह के लोगों पर FIR दर्ज करनी थी। पर कहीं कुछ न हुआ।
साधो इसके अलावा पिछले कुछ महीनों से जबसे सेकंड वेव ने तेजी पकड़ी थी ऐसे ऐसे लोगों पर FIR दर्ज हुए हैं जिनके बारे में जानकर, पढ़कर न सिर्फ गुस्सा आता है बल्कि सरकार और प्रशासन के रवैये पर खीज उत्पन्न होती है।
साधो, उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में कोई विक्की अग्रहरि थे। उनसे ऑक्सीजन के लिए तड़पते अस्पताल के बाहर पड़े लोग न देखे गए। उन्होंने अपने पास से पैसे इकट्ठे कर लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध करवाना शुरू किया। खबर यह भी थी कि उन्होंने ऐसा करने के लिए अपने घर के कुछ सामान भी बेचे। पर इस कार्य के लिए उनपर महामारी अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया। क्या किसी को मदद पहुंचाना गुनाह है? गुनाह नहीं है। पर साधो जब आप यह उत्तर प्रदेश में कर रहे होते हैं तो गुनाह हो जाता है इसका उदाहरण ऊपर मैंने बताया।
साधो, आम आदमी पार्टी के विधायक दिलीप पांडेय के यहां क्राइम ब्रांच पहुंची। दिलीप पांडेय लगातार कोरोना में जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे। पुलिस यह जानने पहुंची कि वे मदद कैसे कर रहे हैं। साधो, क्या प्रशासन ने इतनी फुर्ती किसी केस में 'मदद मांगे गए व्यक्ति को मदद मिली कि नहीं' इस मामले में दिखाई है? कहीं ऐसी न्यूज़ मिली है? मुझे तो नहीं मिली। पर यह खबर अक्सर सुनने को मिल जाती है कि मदद पहुंचाने वाले के घर पुलिस का छापा।
साधो, ऐसी कई खबरें हैं। दिल्ली के युवा कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवासन के यहां दिल्ली पुलिस पहुंची। पुलिस को शक था कि कोरोना में काम आने वाले उपकरण और ऑक्सीजन वगैरह की उन्होंने जमाखोरी कर रखी है। श्रीनिवासन भी कोरोना महामारी में लगातार लोगों के बीच जाकर सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों की मदद कर रहे थे। पुलिस ने जांच की और कोर्ट में रिपोर्ट सौंपी। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि श्रीनिवासन ने कोई जमाखोरी नहीं की थी।
साधो, इस कड़ी में बिहार के पप्पू यादव को कैसे भुलाया जा सकता है जो लगातार लोगों की मदद कर रहे थे। उन्हें एक कई साल पुराने मामले में गिरफ्तार किया गया। यह सब कब शुरू हुआ? बिहार सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी के द्वारा सांसद निधि से खरीदे गए एम्बुलेंस से मिट्टी की ढुलाई की खबर सामने आने के बाद। कहाँ तो कार्यवाही सांसद महोदय पर होनी थी और जवाबदेही उनकी तय होनी थी पर हुआ उल्टा। कई साल पहले के मामले में पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया गया।
साधो, यह न्यू इंडिया है। अगर आप सरकार के साथ हैं तो सात खून माफ है। सरकार से संबंधित नहीं है तो आपके द्वारा किया गया सराहनीय कार्य भी जेल भिजवा सकता है।