कोरोना की दूसरी लहर में गंगा नदी में कितनी लाशें फेंकी गईं? सरकार को नहीं है कोई जानकारी

Written by Navnish Kumar | Published on: February 8, 2022
सवाल यह है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा नदी के किनारे जो लाशें दफनाई गई थीं या फिर नदी में फेंक दी गई थीं, उनकी कितनी संख्या थी? जब यह सवाल राज्यसभा में सरकार से पूछा गया तो सरकार ने कहा कि उसके पास कोई जानकारी नहीं है।



कोरोना महमारी की दूसरी लहर ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। लाखों लोगों की जान चली गई थी। दूसरी लहर के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से जो तस्वीरें सामने आई थीं वह आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं। खास तौर पर उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे से जो तस्वीरें सामने आई थीं उसे आज भी कोई भूला नहीं है। कहा जाता है कि जो लोग अंतिम संस्कार नहीं कर पाए उन्होंने लाशों को गंगा नदी के किनारे रेत में दफना दिया या गंगा में प्रवाहित कर दिया था।

सवाल यह है कि गंगा नदी के किनारे जो लाशें दफनाई गई थीं या फिर नदी में फेंक दी गई थीं, उनकी कितनी संख्या थी? जब यह सवाल राज्यसभा में सरकार से पूछा गया कि उन लाशों की कितनी संख्या थी, तो सरकार ने कहा कि उसके पास कोई जानकारी नहीं है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, राज्यसभा में जल शक्ति राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने एक लिखित उत्तर में कहा कि कोरोना से संबंधित जिन शवों को गंगा नदी में फेंके जाने का अनुमान है, उनकी संख्या के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है।

यही नहीं, अगर देखा जाए तो कोरोना लॉकडाउन में कितने लोगों ने पलायन किया। या फिर लॉकडाउन के दौरान कितने लोग घर पहुंचने के लिए पैदल चलने को मजबूर हुए और उनमें से कितनों ने रास्ते में दम तोड़ दिया, का भी कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। कोरोना महामारी में भारत में कुल कितने लोगों की जान गई, के आंकड़ों को लेकर भी तमाम तरह के सवाल हवाओं में तैर रहे हैं। केंद्रीय श्रम मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार ने कहा था कि उनके मंत्रालय के पास लॉकडाउन के दौरान घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों की मौत संबंधी कोई डाटा नहीं है, इसलिए उनके मुआवजे के सवाल का भी जवाब नहीं दिया जा सकता।

इसके साथ ही किसान आंदोलन में भी कितने किसान शहीद हुए, का भी कोई आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। संसद के शीतकालीन सत्र में इसे लेकर हंगामा भी हुआ। केंद्र सरकार ने सदन में कहा था कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर साल भर से चल रहे आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई है, इसका कोई आंकड़ा उनके पास नहीं है। इसलिए किसी भी तरह की वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रश्न ही नहीं उठता।

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