यूपी में बीजेपी और सरकार के भीतर संभावित फेरबदल की खबरों के बीच ट्विटर पर समर्थकों ने बीजेपी से अपनी रणनीति बदलने की मांग की। लोगों ने लिखा कि अगर पार्टी समय रहते अपनी रणनीति नहीं बदलती है तो उसे यूपी के 2022 विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ सकता है। इसी सब से यूपी सरकार में संभावित फेरबदल की खबरों के बीच सोशल मीडिया पर बीजेपी समर्थकों ने पार्टी को हिंदुत्व के एजेंडे पर वापस लौटने की नसीहत देना शुरू कर दिया है। ट्विटर पर बीजेपी समर्थक अब पार्टी नेतृत्व से यह अपील करते दिख रहे हैं कि बीजेपी को यूपी के लिए जाग जाना चाहिए। इन समर्थकों में कई ऐसे हैं, जिनका कहना है कि अगर भारतीय जनता पार्टी समय रहते अपनी रणनीति नहीं बदलती है तो उसे यूपी के 2022 विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ सकता है। ट्विटर पर ऐसी ही मांगों के साथ #WakeUPbjp हैशटैग ट्रेंड कर रहा है।
यूपी में नई सियासी संभावनाओं के साथ बीजेपी समर्थक लिख रहे हैं कि बीजेपी को हिंदुत्व के मुद्दे पर सरकार में लाया गया था। अगर 303 सांसदों वाली बीजेपी अपने इस मुद्दे को भूल जाएगी तो इससे उसे 2022 में यूपी और 2024 में केंद्र के चुनावों में नुकसान होगा। ये ट्रेंड ऐसे वक्त में चल रहा है, जबकि यूपी में पंचायत चुनाव की हार देख चुकी बीजेपी अब अपनी सरकार और संगठन में बदलाव की तैयारी कर रही है। बीजेपी को नसीहत देते हुए एक समर्थक ने लिखा, हिंदू बीजेपी के धुर प्रशंसक रहे हैं। यूपी के चुनाव से पहले बीजेपी को हिंदुओं के लिए कुछ करना होगा, तभी योगी जी चुनाव जीत पाएंगे। बीजेपी को देर होने से पहले जागना होगा।
एक अन्य शख्स ने लिखा, प्रिय नरेंद्र मोदी जी, हिंदुओं के हित में कुछ करना शुरू करिए, हम 2024 में आपको फिर से चाहते हैं। एक यूजर ने लिखा, बीजेपी तब शांत है जब सभी लोग चिंतित हैं। ये लोग पहले ही कई राज्यों के चुनाव हार चुके हैं। अगर ये अब नहीं जागे तो यूपी और 2024 का चुनाव निकट है। ये लोग लेफ्ट के मुकाबले सोशल मीडिया का युद्ध हार चुके हैं। #WakeUPBJP इससे पहले कि देर हो जाए। यही नहीं प्रतापगढ़ भाजपा के पूर्व विधायक बृजेश मिश्र सौरभ ने फेसबुक पर सूबे के मुखिया योगी के स्थान पर, पूर्व आइएएस अधिकारी अरविंद शर्मा को बेहतर विकल्प बताकर खलबली मचा दी है।
भाजपा ही नहीं, आरएसएस (संघ) भी उत्तर प्रदेश को लेकर चिंतित है। 8 माह बाद राज्य में चुनाव हैं जिसके पहले पार्टी व संघ दोनों को इमेज की चिंता सता रही है। कोरोना वायरस के प्रबंधन की कमियों की वजह से सरकार की इमेज बिगड़ी है। राज्य और केंद्र सरकार दोनों की यह साझा चिंता है। गंगा में बहती लाशों ने सरकार की इमेज पर स्थायी धब्बा लगाया है। तभी चुनाव को लेकर भाजपा और संघ दोनों चिंता में हैं। बताया जा रहा है कि संघ की मंशा गुजरात की तरह उत्तर प्रदेश में भाजपा की स्थायी सरकार बनाने की है।
3 दिन पहले दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेताओं और संघ पदाधिकारियों की बैठक में उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले इमेज बदलने और राज्य सरकार के सिस्टम को ठीक करने के बारे में चर्चा हुई। राज्य सरकार में फेरबदल पर भी विचार हुआ। तय हुआ कि सरकार के कुछ मंत्रियों को हटाकर उनकी जगह नए मंत्री बनाए जाएं। यह चर्चा व मंथन अपनी जगह है पर असल बात यह है कि इस चर्चा में उत्तर प्रदेश का कोई नेता शामिल नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश की सारी रणनीति उत्तर प्रदेश से बाहर के नेताओं ने बनाई।
बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश के भाजपा संगठन मंत्री सुनील बंसल और आरएसएस के सहकार्यावह दत्तात्रेय होसाबले शामिल हुए। कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश के बनारस सीट से सांसद हैं। अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे हैं। जेपी नड्डा अध्यक्ष हैं और राज्य के प्रभारी भी रह चुके हैं। सुनील बंसल प्रदेश संगठन महामंत्री हैं और होसबोले आरएसएस के नंबर-दो के पदाधिकारी हैं ही। लेकिन असल में नरेंद्र मोदी और अमित शाह गुजरात के हैं, जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश के और सुनील बंसल राजस्थान के हैं। दत्तात्रेय होसाबले कर्नाटक के हैं। इस तरह उत्तर प्रदेश की रणनीति पर मंथन करने वालों में कोई भी उत्तर प्रदेश का नहीं है। सोचें, उस बैठक में कैसी रणनीति बनी होगी, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नहीं बुलाया गया और न प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को शामिल किया गया। प्रदेश के प्रभारी राधामोहन सिंह भी नहीं बुलाया गया। खबर आई कि सरकार व पार्टी में सामंजस्य बढ़ाने पर बात की गई हैं।
हालांकि इससे पहले यह मैसेज चारों तरफ फैल गया कि केंद्र सरकार और पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार जीत हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है पर मौजूदा मुख्यमंत्री को किनारे करके। अचानक सरकार में फेरबदल की अटकलें तेज हो गईं, पीएम मोदी के साथ काम कर चुके पूर्व आईएएस अधिकारी एके शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा भी जोरो पर चल रही हैं। साथ ही यह मैसेज भी है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री पर नकेल कस रहा है।
संघ लीडरशिप का मानना है कि किसी भी हाल में यूपी में बीजेपी की सरकार दोबारा आनी चाहिए और उसके लिए छवि सुधारने के साथ सिस्टम को बेहतर करने के लिए तुरंत सक्रियता दिखानी चाहिए। फिलहाल बीजेपी और संघ का यूनिटी इंडेक्स 100% है और संघ यूपी चुनाव को 2024 आम चुनावों का सेमीफाइनल मान रहा है।
कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह से यूपी में अव्यवस्था सामने आई है, उससे यूपी सरकार के साथ मोदी की छवि भी खराब हुई है। मीटिंग में तय किया गया कि एक अभियान चलाकर मोदी और योगी की छवि को सुधारा जाएगा। इस काम में पार्टी के साथ संघ भी सहयोग करेगा।
यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कोरोना के कारण बदले हालात में पार्टी अगर सीधे चुनाव में उतरती है तो उसे नुकसान की संभावना भी है। दरअसल, बीते डेढ़ महीने में कोरोना मैनेजमेंट के नाम पर सरकार की गलतियों के चलते सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी। इनमें सरकार के मंत्रियों के साथ कई माननीय भी शामिल रहे।
इसी से जो जनता मोदी और योगी पर आंख बंद कर भरोसा कर रही थी। वह अब उनसे सवाल कर रही है। कई विधायकों और मंत्रियों ने अव्यवस्था को लेकर पत्र लिखा। चूंकि अब उन्हें भी क्षेत्र में जाना है तो स्वाभाविक है कि उन्हें चिंता होगी। संघ यह बेहतर तरीके से जानता है कि बदले हालात में मोदी और योगी की हिंदुत्व की छवि भी सत्ता में वापसी का बड़ा कारण नहीं बन पाएगी। यही वजह है कि बैठक में तय किया गया है कि मोदी और योगी की छवि को सुधारने के लिए यूपी से ही अभियान चलाया जाए। राष्ट्रवाद की भावना को उभारा जाए और उकसावे व बयानबाजी से दूर रहें भाजपा नेता। उधर, लोगों का कहना है कि व्यवस्था सुधारिए, छवि ख़ुद-ब-खुद सुधर जाएगी।
पीटीआई-भाषा की ख़बर है कि उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमितों को उपचार मिलने में समस्याओं से आम जनता के साथ भाजपा नेताओं में भी खासा रोष है और उन्होंने इसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि अगले वर्ष विधानसभा चुनाव में लोगों की नाराजगी सत्तारूढ़ दल के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।
प्रदेश के हरदोई से भाजपा विधायक श्याम प्रकाश कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने में प्रशासन की कोशिशों से संतुष्ट नहीं हैं। bs कहते हैं कि आम लोगों की बात तो दूर, अति महत्वपूर्ण यानी वीआईपी समझे जाने वाले लोगों के लिए भी व्यवस्था नहीं हो पाई। हरदोई की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित गोपामऊ विधानसभा से श्याम प्रकाश 2017 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 87,693 मतों से निर्वाचित हुए।
श्याम प्रकाश अकेले जनप्रतिनिधि नहीं हैं जिन्होंने संक्रमण प्रबंधन को लेकर सरकार के प्रयासों पर इस तरह की टिप्पणी की है। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने अपर मुख्य सचिव (चिकित्सा व स्वास्थ्य) तथा प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) को पत्र लिखकर चिंता व्यक्त की थी। पाठक ने अपने पत्र में लिखा था, 'अत्यंत कष्ट के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि वर्तमान समय में लखनऊ जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं का अत्यंत चिंताजनक हाल है। विगत एक सप्ताह से हमारे पास पूरे लखनऊ जनपद से सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनको हम समुचित इलाज नहीं दे पा रहे हैं।'
केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने भी मुख्यमंत्री और सरकार के प्रमुख लोगों को पत्र लिखकर अव्यवस्था की ओर इशारा किया था। बलिया के विधायक सुरेंद्र सिंह भी कोरोना प्रबंधन को लेकर सरकार के खिलाफ असंतोष जता चुके हैं। फिरोजाबाद के जसराना से भाजपा विधायक राम गोपाल लोधी की पत्नी को उपचार के लिए आठ घंटे इंतजार करना पड़ा। वह आगरा में बेड के लिए भटकीं तो विधायक ने सरकारी तंत्र के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली। यही नहीं, कई विधायकों ने सार्वजनिक तौर पर असंतोष व्यक्त किया है तो कार्यकर्ताओं के बीच भी व्यापक स्तर पर नाराजगी है। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद मोर्चा संभाला है और वह राज्य के जिलों का दौरा करके गांवों तक व्यवस्था की समीक्षा कर रहे हैं।
खास है कि उप्र राज्य में आधिकारिक रूप से अब तक सरकार के 3 मंत्री व 5 विधायकों समेत 18,978 संक्रमित अपनी जान गंवा चुके हैं और साढ़े 16 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। दूसरी ओर किसान आंदोलन आदि के चलते राज्य में पंचायत चुनाव में भाजपा को दावों के विपरीत मुंह की खानी पड़ी। कार्यकर्ताओं के अनुसार, पंचायत चुनाव में 70 फीसद से ज्यादा मतदान प्रतिशत रहने के बावजूद भाजपा को इतना बड़ा झटका लगा तो विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत कम होने पर स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि कोविड-19 की दूसरी लहर में जिन घरों से लोगों की जान गई हैं उनको और उनके आसपास के लोगों के मन से यह बात कौन दूर सकता है कि उनके घर-परिवार का 'भविष्य' सरकार की अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया। 2022 चुनाव में भाजपा को इसका 'भुगतान' करना पड़ेगा।
यूपी में नई सियासी संभावनाओं के साथ बीजेपी समर्थक लिख रहे हैं कि बीजेपी को हिंदुत्व के मुद्दे पर सरकार में लाया गया था। अगर 303 सांसदों वाली बीजेपी अपने इस मुद्दे को भूल जाएगी तो इससे उसे 2022 में यूपी और 2024 में केंद्र के चुनावों में नुकसान होगा। ये ट्रेंड ऐसे वक्त में चल रहा है, जबकि यूपी में पंचायत चुनाव की हार देख चुकी बीजेपी अब अपनी सरकार और संगठन में बदलाव की तैयारी कर रही है। बीजेपी को नसीहत देते हुए एक समर्थक ने लिखा, हिंदू बीजेपी के धुर प्रशंसक रहे हैं। यूपी के चुनाव से पहले बीजेपी को हिंदुओं के लिए कुछ करना होगा, तभी योगी जी चुनाव जीत पाएंगे। बीजेपी को देर होने से पहले जागना होगा।
एक अन्य शख्स ने लिखा, प्रिय नरेंद्र मोदी जी, हिंदुओं के हित में कुछ करना शुरू करिए, हम 2024 में आपको फिर से चाहते हैं। एक यूजर ने लिखा, बीजेपी तब शांत है जब सभी लोग चिंतित हैं। ये लोग पहले ही कई राज्यों के चुनाव हार चुके हैं। अगर ये अब नहीं जागे तो यूपी और 2024 का चुनाव निकट है। ये लोग लेफ्ट के मुकाबले सोशल मीडिया का युद्ध हार चुके हैं। #WakeUPBJP इससे पहले कि देर हो जाए। यही नहीं प्रतापगढ़ भाजपा के पूर्व विधायक बृजेश मिश्र सौरभ ने फेसबुक पर सूबे के मुखिया योगी के स्थान पर, पूर्व आइएएस अधिकारी अरविंद शर्मा को बेहतर विकल्प बताकर खलबली मचा दी है।
भाजपा ही नहीं, आरएसएस (संघ) भी उत्तर प्रदेश को लेकर चिंतित है। 8 माह बाद राज्य में चुनाव हैं जिसके पहले पार्टी व संघ दोनों को इमेज की चिंता सता रही है। कोरोना वायरस के प्रबंधन की कमियों की वजह से सरकार की इमेज बिगड़ी है। राज्य और केंद्र सरकार दोनों की यह साझा चिंता है। गंगा में बहती लाशों ने सरकार की इमेज पर स्थायी धब्बा लगाया है। तभी चुनाव को लेकर भाजपा और संघ दोनों चिंता में हैं। बताया जा रहा है कि संघ की मंशा गुजरात की तरह उत्तर प्रदेश में भाजपा की स्थायी सरकार बनाने की है।
3 दिन पहले दिल्ली में भाजपा के शीर्ष नेताओं और संघ पदाधिकारियों की बैठक में उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले इमेज बदलने और राज्य सरकार के सिस्टम को ठीक करने के बारे में चर्चा हुई। राज्य सरकार में फेरबदल पर भी विचार हुआ। तय हुआ कि सरकार के कुछ मंत्रियों को हटाकर उनकी जगह नए मंत्री बनाए जाएं। यह चर्चा व मंथन अपनी जगह है पर असल बात यह है कि इस चर्चा में उत्तर प्रदेश का कोई नेता शामिल नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश की सारी रणनीति उत्तर प्रदेश से बाहर के नेताओं ने बनाई।
बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश के भाजपा संगठन मंत्री सुनील बंसल और आरएसएस के सहकार्यावह दत्तात्रेय होसाबले शामिल हुए। कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश के बनारस सीट से सांसद हैं। अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी रहे हैं। जेपी नड्डा अध्यक्ष हैं और राज्य के प्रभारी भी रह चुके हैं। सुनील बंसल प्रदेश संगठन महामंत्री हैं और होसबोले आरएसएस के नंबर-दो के पदाधिकारी हैं ही। लेकिन असल में नरेंद्र मोदी और अमित शाह गुजरात के हैं, जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश के और सुनील बंसल राजस्थान के हैं। दत्तात्रेय होसाबले कर्नाटक के हैं। इस तरह उत्तर प्रदेश की रणनीति पर मंथन करने वालों में कोई भी उत्तर प्रदेश का नहीं है। सोचें, उस बैठक में कैसी रणनीति बनी होगी, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नहीं बुलाया गया और न प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को शामिल किया गया। प्रदेश के प्रभारी राधामोहन सिंह भी नहीं बुलाया गया। खबर आई कि सरकार व पार्टी में सामंजस्य बढ़ाने पर बात की गई हैं।
हालांकि इससे पहले यह मैसेज चारों तरफ फैल गया कि केंद्र सरकार और पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार जीत हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है पर मौजूदा मुख्यमंत्री को किनारे करके। अचानक सरकार में फेरबदल की अटकलें तेज हो गईं, पीएम मोदी के साथ काम कर चुके पूर्व आईएएस अधिकारी एके शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा भी जोरो पर चल रही हैं। साथ ही यह मैसेज भी है कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री पर नकेल कस रहा है।
संघ लीडरशिप का मानना है कि किसी भी हाल में यूपी में बीजेपी की सरकार दोबारा आनी चाहिए और उसके लिए छवि सुधारने के साथ सिस्टम को बेहतर करने के लिए तुरंत सक्रियता दिखानी चाहिए। फिलहाल बीजेपी और संघ का यूनिटी इंडेक्स 100% है और संघ यूपी चुनाव को 2024 आम चुनावों का सेमीफाइनल मान रहा है।
कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह से यूपी में अव्यवस्था सामने आई है, उससे यूपी सरकार के साथ मोदी की छवि भी खराब हुई है। मीटिंग में तय किया गया कि एक अभियान चलाकर मोदी और योगी की छवि को सुधारा जाएगा। इस काम में पार्टी के साथ संघ भी सहयोग करेगा।
यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कोरोना के कारण बदले हालात में पार्टी अगर सीधे चुनाव में उतरती है तो उसे नुकसान की संभावना भी है। दरअसल, बीते डेढ़ महीने में कोरोना मैनेजमेंट के नाम पर सरकार की गलतियों के चलते सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी। इनमें सरकार के मंत्रियों के साथ कई माननीय भी शामिल रहे।
इसी से जो जनता मोदी और योगी पर आंख बंद कर भरोसा कर रही थी। वह अब उनसे सवाल कर रही है। कई विधायकों और मंत्रियों ने अव्यवस्था को लेकर पत्र लिखा। चूंकि अब उन्हें भी क्षेत्र में जाना है तो स्वाभाविक है कि उन्हें चिंता होगी। संघ यह बेहतर तरीके से जानता है कि बदले हालात में मोदी और योगी की हिंदुत्व की छवि भी सत्ता में वापसी का बड़ा कारण नहीं बन पाएगी। यही वजह है कि बैठक में तय किया गया है कि मोदी और योगी की छवि को सुधारने के लिए यूपी से ही अभियान चलाया जाए। राष्ट्रवाद की भावना को उभारा जाए और उकसावे व बयानबाजी से दूर रहें भाजपा नेता। उधर, लोगों का कहना है कि व्यवस्था सुधारिए, छवि ख़ुद-ब-खुद सुधर जाएगी।
पीटीआई-भाषा की ख़बर है कि उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमितों को उपचार मिलने में समस्याओं से आम जनता के साथ भाजपा नेताओं में भी खासा रोष है और उन्होंने इसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि अगले वर्ष विधानसभा चुनाव में लोगों की नाराजगी सत्तारूढ़ दल के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।
प्रदेश के हरदोई से भाजपा विधायक श्याम प्रकाश कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने में प्रशासन की कोशिशों से संतुष्ट नहीं हैं। bs कहते हैं कि आम लोगों की बात तो दूर, अति महत्वपूर्ण यानी वीआईपी समझे जाने वाले लोगों के लिए भी व्यवस्था नहीं हो पाई। हरदोई की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित गोपामऊ विधानसभा से श्याम प्रकाश 2017 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 87,693 मतों से निर्वाचित हुए।
श्याम प्रकाश अकेले जनप्रतिनिधि नहीं हैं जिन्होंने संक्रमण प्रबंधन को लेकर सरकार के प्रयासों पर इस तरह की टिप्पणी की है। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में उत्तर प्रदेश के कानून मंत्री ब्रजेश पाठक ने अपर मुख्य सचिव (चिकित्सा व स्वास्थ्य) तथा प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) को पत्र लिखकर चिंता व्यक्त की थी। पाठक ने अपने पत्र में लिखा था, 'अत्यंत कष्ट के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि वर्तमान समय में लखनऊ जनपद में स्वास्थ्य सेवाओं का अत्यंत चिंताजनक हाल है। विगत एक सप्ताह से हमारे पास पूरे लखनऊ जनपद से सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनको हम समुचित इलाज नहीं दे पा रहे हैं।'
केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने भी मुख्यमंत्री और सरकार के प्रमुख लोगों को पत्र लिखकर अव्यवस्था की ओर इशारा किया था। बलिया के विधायक सुरेंद्र सिंह भी कोरोना प्रबंधन को लेकर सरकार के खिलाफ असंतोष जता चुके हैं। फिरोजाबाद के जसराना से भाजपा विधायक राम गोपाल लोधी की पत्नी को उपचार के लिए आठ घंटे इंतजार करना पड़ा। वह आगरा में बेड के लिए भटकीं तो विधायक ने सरकारी तंत्र के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली। यही नहीं, कई विधायकों ने सार्वजनिक तौर पर असंतोष व्यक्त किया है तो कार्यकर्ताओं के बीच भी व्यापक स्तर पर नाराजगी है। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद मोर्चा संभाला है और वह राज्य के जिलों का दौरा करके गांवों तक व्यवस्था की समीक्षा कर रहे हैं।
खास है कि उप्र राज्य में आधिकारिक रूप से अब तक सरकार के 3 मंत्री व 5 विधायकों समेत 18,978 संक्रमित अपनी जान गंवा चुके हैं और साढ़े 16 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। दूसरी ओर किसान आंदोलन आदि के चलते राज्य में पंचायत चुनाव में भाजपा को दावों के विपरीत मुंह की खानी पड़ी। कार्यकर्ताओं के अनुसार, पंचायत चुनाव में 70 फीसद से ज्यादा मतदान प्रतिशत रहने के बावजूद भाजपा को इतना बड़ा झटका लगा तो विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत कम होने पर स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि कोविड-19 की दूसरी लहर में जिन घरों से लोगों की जान गई हैं उनको और उनके आसपास के लोगों के मन से यह बात कौन दूर सकता है कि उनके घर-परिवार का 'भविष्य' सरकार की अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया। 2022 चुनाव में भाजपा को इसका 'भुगतान' करना पड़ेगा।