उत्तर प्रदेश के बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से किए गए सर्वे की रिपोर्ट गुरुवार (25 जनवरी) को डिस्ट्रिक कोर्ट में खोली गयी। इसे जारी होने के बाद मीडिया एक तरह से हाइप क्रिएट करने की कोशिशों में जुटा है।
सबरंग इंडिया से बात करते हुए मुफ्ती बनारस बातिन साब ने कहा कि हमारे वकील सर्वे रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं। समय आने पर कोर्ट में जवाब दाखिल किया जाएगा। सर्वे की रिपोर्ट जारी होने के बाद पहले जुम्मे को ज्ञानवापी से आईं अफरा तफरी की खबरों को लेकर उन्होंने कहा कि यहां हर बार की तरह नियमित तौर पर नमाज अदा की गई थी लेकिन सर्वे रिपोर्ट को लेकर मीडिया के पचासों लोग वहां पहुंच गए व मस्जिद से निकलने वाले लोगों को जबरन रोककर प्रतिक्रिया जानने लगे। इस दौरान उन्होंने ऐसा सीन क्रिएट कर दिया जैसे कि कोई झगड़ा हुआ हो। लेकिन सभी नमाजी उनसे बात न करने की बात कहकर उनसे रास्ता छोड़ने की बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्ट को ही फैसले की तरह प्रस्तुत कर रहा है जो कि पत्रकारिता के उसूलों और मानकों के हिसाब से भी गलत है।
बातिन साब ने आगे कहा कि हमारी तरफ से प्रतिक्रिया जैसा कुछ नहीं है, यह सिर्फ एएसआई की रिपोर्ट जारी हुई है, हमारे वकील इसका अध्ययन कर रहे हैं जबकि हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन मीडिया के सामने प्रेस कांफ्रेंस कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे है। जुमे की नमाज को लेकर उन्होंने कहा कि मीडिया के लोगों ने ही हमारे साथ धक्का मुक्की की और यदि पुलिस प्रशासन मौजूद न होता तो वे हमें गिरा ही देते।
उन्होंने IBRAHIMI MEDIA नामक यूट्यूब चैनल को भी इंटरव्यू दिया है जिसमें जुम्मे के दिन हुई धक्कामुक्की को लेकर विस्तार से बताया है। उनका यह इंटरव्यू आप नीचे देख सकते हैं।
आपत्ति के लिए छह फरवरी तक का मौका
बनारस के डिस्ट्रिक जज डॉ.अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट में किसी तरह की आपत्ति होने पर दोनों पक्ष छह फरवरी 2024 तक इसे कोर्ट में दर्ज करा सकता है। पिछले साल 18 दिसंबर 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने डिस्ट्रिक कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में सर्वे रिपोर्ट सौंपी थी। ज्ञानवापी मस्जिद में मई 2022 में कमिश्नर सर्वे हुआ था। पिछले साल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से सर्वे किया गया। हिंदू पक्ष ने कोर्ट से सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति जताई थी। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने भी सर्वे रिपोर्ट की सत्यापित प्रतिलिपि की डिमांड की थी। इस मामले में 24 जनवरी 2024 को वाराणसी डिस्ट्रिक कोर्ट में सुनवाई हुई तो जिला जज ने सभी पक्षों को सर्वे रिपोर्ट की हार्ड कॉपी देने का फैसला सुनाया।
न्यूजक्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने बनारस से डिस्ट्रिक कोर्ट में याचिका दायर करते हुए जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश से आग्रह किया था कि ASI सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर अमन-चैन बिगड़ सकता है। डिस्ट्रिक कोर्ट ने 25 जनवरी 2024 को हिन्दू और मुस्लिम पक्षों को ASI सर्वे रिपोर्ट की सत्य प्रतिलिपि देने का आदेश दिया, लेकिन किसी पक्ष से इस आशय का हलफनामा नहीं लिया कि वो उस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करेंगे।
डिस्ट्रिक कोर्ट से जैसे ही सर्वे रिपोर्ट की प्रतिलिपि मिली, ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील विष्णु शंकर जैन ने तत्काल प्रेस कांफ्रेस बुलाई और दावा किया कि ASI ने इस बात की पुष्टि की है कि भव्य हिंदू मंदिर तोड़कर उसके ढांचे पर ज्ञानवापी मस्जिद निर्माण किया गया है। ASI ने मस्जिद परिसर से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां, खंडित धार्मिक चिह्न, सजावटी ईंटें, दैवीय युगल, चौखट-दरवाजे के टुकड़े, घड़े, हाथी, घोड़े, कमल के फूल के अवशेष जुटाए हैं। इन्हें छह नवंबर 2023 को जिलाधिकारी की सुपुर्दगी में दिया था।
जैन ने यह भी कहा, "ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर ASI की सर्वे रिपोर्ट से पता चला है कि 17 वीं शताब्दी में पहले से मौजूद संरचना को नष्ट कर दिया गया था। इसके कुछ हिस्से को संशोधित करते हुए उसका दोबारा उपयोग किया गया था। वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वहां मौजूदा ढांचे के निर्माण से पहले एक बड़ा हिन्दू मंदिर मौजूद था। ASI ने यह भी कहा है कि मौजूदा ढांचे की पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद हिन्दू मंदिर का शेष हिस्सा है। ASI सर्वे रिपोर्ट आने के बाद अयोध्या के राम मंदिर की तरह ज्ञानवापी का साल 1669 से चल रहा पुराना विवाद हमेशा के लिए खत्म हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही अयोध्या में राम जन्मभूमि के पक्ष में आदेश पारित किया था। अयोध्या की तरह ही ज्ञानवापी का सर्वे किया है और उसकी रिपोर्ट हिन्दुओं के पक्ष में है। मुस्लिम समुदाय को इस मस्जिद पर अपनी दावेदारी छोड़ देनी चाहिए। ASI ने इतने सबूत जुटा लिए हैं कि कोर्ट का फैसला भी हमारे पक्ष में ही आएगा।"
क्या कहता है मुस्लिम पक्ष
ASI की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद 26 जनवरी 2024 को अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता अख़लाक़ अहमद का एक बड़ा बयान सामने आया है। वह कहते हैं, "ASI की सर्वे रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है, जिससे ज्ञानवापी में मंदिर का ढांचा साबित हो रहा हो। रिपोर्ट में जिन चिह्नों के मिलने का दावा किया गया है उन्हें मस्जिद के मलबे से निकाले जाने की बात कही गई है। इससे यह तस्दीक नहीं होती कि मस्जिद पहले मंदिर था। ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में एक बिल्डिंग थी जिसे छत्ताद्वार कहा जाता है। उसमें हमारे पांच किरायेदार थे और वो सभी मूर्तियां बनाने का काम करते थे। वो मूर्तियों का मलबा पीछे की तरफ फेंक दिया करते थे। ASI ने जिन मूर्तियों के मिलने का दावा किया है वो सभी खंडित हैं। ASI ने जो मूर्तियां जुटाई हैं उसका ब्योरा रिपोर्ट में विस्तार से दिया गया है। मूर्तियों के साइज लंबाई, चौड़ाई और गहराई भी बताई गई है।"
एडवोकेट अख़लाक़ अहमद यह भी कहते हैं, "विश्वनाथ मंदिर के आसपास बहुत से दुकानदार भी मूर्तियां बेचा करते थे। पहले मस्जिद परिसर को नहीं घेरा गया था। संभव है कि खंडित मूर्तियां वहीं फेंकी जाती रही हों। मस्जिद के मलबे में ऐसी कोई मूर्ति नहीं मिली है जिसे कहा जाए कि ये भगवान शिव की मूर्ति है। सबसे बड़ी बात यह है कि मूर्तियां मस्जिद के अंदर नहीं मिली हैं। मस्जिद के उत्तर तरफ एक कमरा है। संभव है कि मूर्तियां उधर मिली होंगी। मस्जिद की बैरिकेडिंग साल 1993 में कराई गई। उससे पहले पूरा मस्जिद परिसर खुला था। मस्जिद में विभिन्न धर्मों के लोग आते-जाते थे। हमारे किरायेदार ही खंडित मूर्तियों के मलबा फेंकते थे। वही टुकड़े मिले होंगे। जहां तक भित्तिचित्रों की बात है तो मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में उसे मस्जिद पर उकेरा गया था। अकबर ने दीन-ए-इलाही नामक नया धर्म (पंथ) चलाया था, जिसकी कोई शर्त नहीं थी। एक तरह का वह सोशल आर्डर था, जिसमें तमाम धर्मों की अच्छी चीजों को लेकर नया पंथ शुरू किया गया था।"
"दीन-ए-इलाही को शुरू करने के पीछे अकबर की मंशा यह थी कि सभी जातियों और धार्मिक संप्रदायों में सद्भाव पैदा हो ताकि उसके साम्राज्य में स्थिरता आए। हर व्यक्ति राजा और धर्म के प्रति एक ही नजरिया रखे। दरअसल वह खुद को सांप्रदायिक सद्भाव रखने वाले राष्ट्रीय सम्राट के रूप में प्रतिष्ठित कराना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि प्रजा उन्हें अपना अच्छा प्रतिनिधि माने और कोई विद्रोही रवैया न अपनाए। अकबर चाहते थे कि समाज में कोई धार्मिक बितंडा खड़ा न हो और सभी धर्मों में एकता और समन्वय स्थापित हो ताकि बेहतर समाज का निर्माण हो सके। दीन-ए-इलाही (तौहीद-ए-इलाही) को अपनाने के लिए अकबर ने कभी किसी को मजबूर नहीं किया।"
मंदिर के स्ट्रक्चर होने और ऊपर से गुंबद बने होने के सवाल पर एडवोकेट अख़लाक़ अहमद कहते हैं, "ASI की सर्वे रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं लिखा है। बड़े मीनार हमेशा दो पार्ट में होते हैं। एक पार्ट में मीनार होगा तो गिर जाएगा। ASI की जिस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कुछ लोग जनता को गुमराह करने में जुटे हैं। ASI ने अगर गलत रिपोर्ट दी होगी तो हम उसपर आपत्ति दाखिल करेंगे। ASI के निदेशक ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि वो खुदाई नहीं कराएंगे, लेकिन उन्होंने खुलेआम प्रतिबंधित औजार का इस्तेमाल किया। मस्जिद के पीछे जो मलबा पड़ा था उसकी उन्होंने साफ-सफाई भी कराई। इससे फायदा यह हुआ कि पश्चिम तरफ हमारी जो मजारें थीं वो अब दिखने लगी हैं। दक्षिणी तहखाने से कुछ मिट्टी निकालकर कुछ पता करने के लिए खुदाई किया था। वहां कुछ नहीं मिला तो उन्होंने मिट्टी छोड़ दी। ASI सर्वे की रिपोर्ट के अध्ययन के बाद हम अगले कुछ दिनों में आपत्ति दाखिल करेंगे। अराधना स्थल कानून पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले तक सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट भी जाएंगे।"
कोर्ट के फ़ैसलों पर भी सवाल
न्यूजक्लिक की रिपोर्ट में आगे कहा गया है, बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद करीब 355 साल पुराना है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि साल 1669 में ज्ञानवापी मंदिर को ध्वस्त किया गया और मंदिर के पिलर व ढांचे पर मस्जिद बनाई गई। इस मामले में पिछले 33 सालों से कोर्ट केस चल रहा है। ज्ञानवापी को लेकर पहला मुकदमा साल 1991 में लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ मामले में दाखिल हुआ था। बाद में राखी सिंह, सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास और लक्ष्मी देवी ने बनारस के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में 17 अगस्त 2021 को वाद दाखिल किया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शृंगार गौरी की पूजा अर्चना की मांग की गई थी। बाद में कोर्ट ने मूल वाद के साथ समूचे मस्जिद परिसर के एडवोकेट कमिश्नर सर्वे कराने का आदेश पारित कर दिया।
इसी दौरान दावा किया गया कि मस्जिद के वजूखाने में मुस्लिम पक्ष जिसे फव्वारा बता रहा है, वही आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग है। हिंदू पक्ष की मांग पर कोर्ट ने वजूखाने को सील करने का आदेश दिया। बाद में मामला जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश्वर की अदालत में आया। सुनवाई के दौरान बनारस के डिस्ट्रिक कोर्ट ने ASI से ज्ञानवापी का साइंटिफिक सर्वे कराने का आदेश पारित किया। 25 जनवरी 2024 को हिन्दू पक्ष ने ASI सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने के साथ ही मस्जिद पर अपनी मजबूत दावेदारी ठोंक दी।
दिसंबर 2023 में ज्ञानवापी मस्जिद को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के बाद ही यह सवाल उठने लगा है कि क्या अब पूजा स्थल कानून बेअसर हो गया है? हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को ख़ारिज करते हुए डेढ़ महीने पहले फ़ैसला दिया था कि उपासना स्थल क़ानून के आधार पर हिंदू पक्ष की याचिकाएं ख़ारिज नहीं की जा सकतीं। कोर्ट का कहना था कि ये दावा कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर के ऊपर बनाई गई थी। हिंदुओं को इसके नवीनीकरण, मंदिर निर्माण और यहां पूजा करने का अधिकार देना, उपासना स्थल क़ानून 1991 में वर्जित नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट कोर्ट ने यह भी कहा था, "ज्ञानवापी परिसर का चरित्र हिन्दू धार्मिक हो सकता है अथवा मुस्लिम धार्मिक। एक ही साथ दोनों चरित्र नहीं चल सकते।"
बाबरी मस्जिद-आयोध्या मंदिर आंदोलन के समय पास किए गए उपासना स्थल क़ानून 1991 को भविष्य में और किसी मंदिर-मस्जिद विवाद को रोकने के लिए लाया गया था। फिर भी यह कानून काशी और मथुरा के विवाद को रोक पाने में नाकाम रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश की कई क़ानूनी विशेषज्ञों ने आलोचना की और उनका मानना था कि उपासना स्थल क़ानून के तहत इस मामले को ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए था। साल 1991 में बने उपासना स्थल क़ानून के मुताबिक, "किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदला नहीं जा सकता। इस बाबत कोई मुक़दमा दायर नहीं किया जा सकता।
अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी अदालतों में लगातार अपील कर रही है कि आज़ादी के समय ज्ञानवापी मस्जिद एक मस्जिद थी, इसके धार्मिक चरित्र को बदला नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2022 में ज्ञानवापी मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए ASI सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि उपासना स्थल क़ानून किसी पूजा स्थल के असली धार्मिक चरित्र का पता लगाने से नहीं रोकता। हिन्दू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी के मामले में पूजा स्थल कानून लागू नहीं होता है। एक बार जो मंदिर होता है वो हमेशा मंदिर ही रहता है। वो कहीं गुम नहीं हो सकता। उसे ध्वस्त नहीं किया जा सकता।"
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बातिन साब ने आगे कहा कि हमारी तरफ से प्रतिक्रिया जैसा कुछ नहीं है, यह सिर्फ एएसआई की रिपोर्ट जारी हुई है, हमारे वकील इसका अध्ययन कर रहे हैं जबकि हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन मीडिया के सामने प्रेस कांफ्रेंस कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे है। जुमे की नमाज को लेकर उन्होंने कहा कि मीडिया के लोगों ने ही हमारे साथ धक्का मुक्की की और यदि पुलिस प्रशासन मौजूद न होता तो वे हमें गिरा ही देते।
उन्होंने IBRAHIMI MEDIA नामक यूट्यूब चैनल को भी इंटरव्यू दिया है जिसमें जुम्मे के दिन हुई धक्कामुक्की को लेकर विस्तार से बताया है। उनका यह इंटरव्यू आप नीचे देख सकते हैं।
आपत्ति के लिए छह फरवरी तक का मौका
बनारस के डिस्ट्रिक जज डॉ.अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा कि सर्वे रिपोर्ट में किसी तरह की आपत्ति होने पर दोनों पक्ष छह फरवरी 2024 तक इसे कोर्ट में दर्ज करा सकता है। पिछले साल 18 दिसंबर 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने डिस्ट्रिक कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में सर्वे रिपोर्ट सौंपी थी। ज्ञानवापी मस्जिद में मई 2022 में कमिश्नर सर्वे हुआ था। पिछले साल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की ओर से सर्वे किया गया। हिंदू पक्ष ने कोर्ट से सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति जताई थी। हालांकि मुस्लिम पक्ष ने भी सर्वे रिपोर्ट की सत्यापित प्रतिलिपि की डिमांड की थी। इस मामले में 24 जनवरी 2024 को वाराणसी डिस्ट्रिक कोर्ट में सुनवाई हुई तो जिला जज ने सभी पक्षों को सर्वे रिपोर्ट की हार्ड कॉपी देने का फैसला सुनाया।
न्यूजक्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने बनारस से डिस्ट्रिक कोर्ट में याचिका दायर करते हुए जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश से आग्रह किया था कि ASI सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर अमन-चैन बिगड़ सकता है। डिस्ट्रिक कोर्ट ने 25 जनवरी 2024 को हिन्दू और मुस्लिम पक्षों को ASI सर्वे रिपोर्ट की सत्य प्रतिलिपि देने का आदेश दिया, लेकिन किसी पक्ष से इस आशय का हलफनामा नहीं लिया कि वो उस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करेंगे।
डिस्ट्रिक कोर्ट से जैसे ही सर्वे रिपोर्ट की प्रतिलिपि मिली, ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील विष्णु शंकर जैन ने तत्काल प्रेस कांफ्रेस बुलाई और दावा किया कि ASI ने इस बात की पुष्टि की है कि भव्य हिंदू मंदिर तोड़कर उसके ढांचे पर ज्ञानवापी मस्जिद निर्माण किया गया है। ASI ने मस्जिद परिसर से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां, खंडित धार्मिक चिह्न, सजावटी ईंटें, दैवीय युगल, चौखट-दरवाजे के टुकड़े, घड़े, हाथी, घोड़े, कमल के फूल के अवशेष जुटाए हैं। इन्हें छह नवंबर 2023 को जिलाधिकारी की सुपुर्दगी में दिया था।
जैन ने यह भी कहा, "ज्ञानवापी मस्जिद परिसर पर ASI की सर्वे रिपोर्ट से पता चला है कि 17 वीं शताब्दी में पहले से मौजूद संरचना को नष्ट कर दिया गया था। इसके कुछ हिस्से को संशोधित करते हुए उसका दोबारा उपयोग किया गया था। वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वहां मौजूदा ढांचे के निर्माण से पहले एक बड़ा हिन्दू मंदिर मौजूद था। ASI ने यह भी कहा है कि मौजूदा ढांचे की पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद हिन्दू मंदिर का शेष हिस्सा है। ASI सर्वे रिपोर्ट आने के बाद अयोध्या के राम मंदिर की तरह ज्ञानवापी का साल 1669 से चल रहा पुराना विवाद हमेशा के लिए खत्म हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे रिपोर्ट के आधार पर ही अयोध्या में राम जन्मभूमि के पक्ष में आदेश पारित किया था। अयोध्या की तरह ही ज्ञानवापी का सर्वे किया है और उसकी रिपोर्ट हिन्दुओं के पक्ष में है। मुस्लिम समुदाय को इस मस्जिद पर अपनी दावेदारी छोड़ देनी चाहिए। ASI ने इतने सबूत जुटा लिए हैं कि कोर्ट का फैसला भी हमारे पक्ष में ही आएगा।"
क्या कहता है मुस्लिम पक्ष
ASI की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद 26 जनवरी 2024 को अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता अख़लाक़ अहमद का एक बड़ा बयान सामने आया है। वह कहते हैं, "ASI की सर्वे रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है, जिससे ज्ञानवापी में मंदिर का ढांचा साबित हो रहा हो। रिपोर्ट में जिन चिह्नों के मिलने का दावा किया गया है उन्हें मस्जिद के मलबे से निकाले जाने की बात कही गई है। इससे यह तस्दीक नहीं होती कि मस्जिद पहले मंदिर था। ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में एक बिल्डिंग थी जिसे छत्ताद्वार कहा जाता है। उसमें हमारे पांच किरायेदार थे और वो सभी मूर्तियां बनाने का काम करते थे। वो मूर्तियों का मलबा पीछे की तरफ फेंक दिया करते थे। ASI ने जिन मूर्तियों के मिलने का दावा किया है वो सभी खंडित हैं। ASI ने जो मूर्तियां जुटाई हैं उसका ब्योरा रिपोर्ट में विस्तार से दिया गया है। मूर्तियों के साइज लंबाई, चौड़ाई और गहराई भी बताई गई है।"
एडवोकेट अख़लाक़ अहमद यह भी कहते हैं, "विश्वनाथ मंदिर के आसपास बहुत से दुकानदार भी मूर्तियां बेचा करते थे। पहले मस्जिद परिसर को नहीं घेरा गया था। संभव है कि खंडित मूर्तियां वहीं फेंकी जाती रही हों। मस्जिद के मलबे में ऐसी कोई मूर्ति नहीं मिली है जिसे कहा जाए कि ये भगवान शिव की मूर्ति है। सबसे बड़ी बात यह है कि मूर्तियां मस्जिद के अंदर नहीं मिली हैं। मस्जिद के उत्तर तरफ एक कमरा है। संभव है कि मूर्तियां उधर मिली होंगी। मस्जिद की बैरिकेडिंग साल 1993 में कराई गई। उससे पहले पूरा मस्जिद परिसर खुला था। मस्जिद में विभिन्न धर्मों के लोग आते-जाते थे। हमारे किरायेदार ही खंडित मूर्तियों के मलबा फेंकते थे। वही टुकड़े मिले होंगे। जहां तक भित्तिचित्रों की बात है तो मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में उसे मस्जिद पर उकेरा गया था। अकबर ने दीन-ए-इलाही नामक नया धर्म (पंथ) चलाया था, जिसकी कोई शर्त नहीं थी। एक तरह का वह सोशल आर्डर था, जिसमें तमाम धर्मों की अच्छी चीजों को लेकर नया पंथ शुरू किया गया था।"
"दीन-ए-इलाही को शुरू करने के पीछे अकबर की मंशा यह थी कि सभी जातियों और धार्मिक संप्रदायों में सद्भाव पैदा हो ताकि उसके साम्राज्य में स्थिरता आए। हर व्यक्ति राजा और धर्म के प्रति एक ही नजरिया रखे। दरअसल वह खुद को सांप्रदायिक सद्भाव रखने वाले राष्ट्रीय सम्राट के रूप में प्रतिष्ठित कराना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि प्रजा उन्हें अपना अच्छा प्रतिनिधि माने और कोई विद्रोही रवैया न अपनाए। अकबर चाहते थे कि समाज में कोई धार्मिक बितंडा खड़ा न हो और सभी धर्मों में एकता और समन्वय स्थापित हो ताकि बेहतर समाज का निर्माण हो सके। दीन-ए-इलाही (तौहीद-ए-इलाही) को अपनाने के लिए अकबर ने कभी किसी को मजबूर नहीं किया।"
मंदिर के स्ट्रक्चर होने और ऊपर से गुंबद बने होने के सवाल पर एडवोकेट अख़लाक़ अहमद कहते हैं, "ASI की सर्वे रिपोर्ट में ऐसा कुछ नहीं लिखा है। बड़े मीनार हमेशा दो पार्ट में होते हैं। एक पार्ट में मीनार होगा तो गिर जाएगा। ASI की जिस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कुछ लोग जनता को गुमराह करने में जुटे हैं। ASI ने अगर गलत रिपोर्ट दी होगी तो हम उसपर आपत्ति दाखिल करेंगे। ASI के निदेशक ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि वो खुदाई नहीं कराएंगे, लेकिन उन्होंने खुलेआम प्रतिबंधित औजार का इस्तेमाल किया। मस्जिद के पीछे जो मलबा पड़ा था उसकी उन्होंने साफ-सफाई भी कराई। इससे फायदा यह हुआ कि पश्चिम तरफ हमारी जो मजारें थीं वो अब दिखने लगी हैं। दक्षिणी तहखाने से कुछ मिट्टी निकालकर कुछ पता करने के लिए खुदाई किया था। वहां कुछ नहीं मिला तो उन्होंने मिट्टी छोड़ दी। ASI सर्वे की रिपोर्ट के अध्ययन के बाद हम अगले कुछ दिनों में आपत्ति दाखिल करेंगे। अराधना स्थल कानून पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले तक सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट भी जाएंगे।"
कोर्ट के फ़ैसलों पर भी सवाल
न्यूजक्लिक की रिपोर्ट में आगे कहा गया है, बनारस स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद करीब 355 साल पुराना है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि साल 1669 में ज्ञानवापी मंदिर को ध्वस्त किया गया और मंदिर के पिलर व ढांचे पर मस्जिद बनाई गई। इस मामले में पिछले 33 सालों से कोर्ट केस चल रहा है। ज्ञानवापी को लेकर पहला मुकदमा साल 1991 में लॉर्ड विश्वेश्वरनाथ मामले में दाखिल हुआ था। बाद में राखी सिंह, सीता साहू, रेखा पाठक, मंजू व्यास और लक्ष्मी देवी ने बनारस के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में 17 अगस्त 2021 को वाद दाखिल किया, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शृंगार गौरी की पूजा अर्चना की मांग की गई थी। बाद में कोर्ट ने मूल वाद के साथ समूचे मस्जिद परिसर के एडवोकेट कमिश्नर सर्वे कराने का आदेश पारित कर दिया।
इसी दौरान दावा किया गया कि मस्जिद के वजूखाने में मुस्लिम पक्ष जिसे फव्वारा बता रहा है, वही आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग है। हिंदू पक्ष की मांग पर कोर्ट ने वजूखाने को सील करने का आदेश दिया। बाद में मामला जिला जज डॉ अजय कृष्ण विश्वेश्वर की अदालत में आया। सुनवाई के दौरान बनारस के डिस्ट्रिक कोर्ट ने ASI से ज्ञानवापी का साइंटिफिक सर्वे कराने का आदेश पारित किया। 25 जनवरी 2024 को हिन्दू पक्ष ने ASI सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने के साथ ही मस्जिद पर अपनी मजबूत दावेदारी ठोंक दी।
दिसंबर 2023 में ज्ञानवापी मस्जिद को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के बाद ही यह सवाल उठने लगा है कि क्या अब पूजा स्थल कानून बेअसर हो गया है? हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को ख़ारिज करते हुए डेढ़ महीने पहले फ़ैसला दिया था कि उपासना स्थल क़ानून के आधार पर हिंदू पक्ष की याचिकाएं ख़ारिज नहीं की जा सकतीं। कोर्ट का कहना था कि ये दावा कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर के ऊपर बनाई गई थी। हिंदुओं को इसके नवीनीकरण, मंदिर निर्माण और यहां पूजा करने का अधिकार देना, उपासना स्थल क़ानून 1991 में वर्जित नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट कोर्ट ने यह भी कहा था, "ज्ञानवापी परिसर का चरित्र हिन्दू धार्मिक हो सकता है अथवा मुस्लिम धार्मिक। एक ही साथ दोनों चरित्र नहीं चल सकते।"
बाबरी मस्जिद-आयोध्या मंदिर आंदोलन के समय पास किए गए उपासना स्थल क़ानून 1991 को भविष्य में और किसी मंदिर-मस्जिद विवाद को रोकने के लिए लाया गया था। फिर भी यह कानून काशी और मथुरा के विवाद को रोक पाने में नाकाम रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश की कई क़ानूनी विशेषज्ञों ने आलोचना की और उनका मानना था कि उपासना स्थल क़ानून के तहत इस मामले को ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए था। साल 1991 में बने उपासना स्थल क़ानून के मुताबिक, "किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदला नहीं जा सकता। इस बाबत कोई मुक़दमा दायर नहीं किया जा सकता।
अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी अदालतों में लगातार अपील कर रही है कि आज़ादी के समय ज्ञानवापी मस्जिद एक मस्जिद थी, इसके धार्मिक चरित्र को बदला नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2022 में ज्ञानवापी मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए ASI सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि उपासना स्थल क़ानून किसी पूजा स्थल के असली धार्मिक चरित्र का पता लगाने से नहीं रोकता। हिन्दू पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी के मामले में पूजा स्थल कानून लागू नहीं होता है। एक बार जो मंदिर होता है वो हमेशा मंदिर ही रहता है। वो कहीं गुम नहीं हो सकता। उसे ध्वस्त नहीं किया जा सकता।"
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