वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में स्थित व्यास जी तहखाने में पूजा अर्चना पर रोक लगाने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका पर हाई कोर्ट में आज दोनों पक्षों की दलीलों पर सुनवाई की गई। तकरीबन 1 घंटे से ऊपर हाईकोर्ट में चली सुनवाई के दौरान बहस देखने को मिली, न्यायलय अगली सुनवाई 15 फरवरी को करेगा।
वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास जी के तहखाने में पूजा अर्चना शुरू किए जाने के मामले में जिला जज के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई मुस्लिम पक्ष की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई सोमवार 12 फरवरी 2024 को भी पूरी नहीं हो सकी। हाईकोर्ट में आज एक घंटे बीस मिनट तक हुई मामले में सुनवाई हुई।
सोमवार की सुनवाई में ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने पक्ष रखा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिंदू पक्ष और यूपी सरकार को आज अपनी दलीलें पेश करने का मौका नहीं मिला। मामले में अब 15 फरवरी को फिर से सुनवाई होगी। हालांकि आज सुनवाई के बावजूद व्यास तहखाने में पूजा अर्चना जारी रहेगी।
अब 15 फरवरी को सुबह 10 बजे से फ्रेश केस के तौर पर सुनवाई होगी। 15 फरवरी को होने वाली सुनवाई में यूपी सरकार, हिंदू पक्ष और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट अपनी दलीलें पेश करेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि 15 फरवरी को मामले की सुनवाई पूरी हो जाएगी। सुनवाई पूरी होने पर अदालत ने अगर उसी दिन फैसला नहीं सुनाया तो जजमेंट रिजर्व हो सकता है।
मस्जिद कमेटी के वकील ने दीं ये दलीलें
इंडिया टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मस्जिद कमेटी के वकील सय्यद फरमान नक़वी ने आज कोर्ट में बहस की। सुनवाई के दौरान फरमान नकवी ने 17 जनवरी के डीएम को रिसीवर नियुक्त करने के आदेश पर सवाल उठाए। नक़वी ने आरोप लगाया कि वादी के प्रभाव में आकर आदेश पारित किया गया है। उन्होंने कहा कि वादी ने जो कुछ भी कहा उसे अंतिम सत्य या ईश्वरीय सत्य मान लिया गया है। 30 साल बाद व्यास जी के तहखाने पर हक जताने वाला शख्स कौन है, इसका लिखित कोई बयान नहीं है।
बाबरी मस्जिद मामला भी रखा कोर्ट के सामने
इतना ही नहीं आज की सुनवाई में नकवी ने बाबरी मस्जिद मामले को भी हाईकोर्ट के समक्ष रखा। उन्होंने कहा कि बाबरी मामले में निर्मोही अखाड़े के एक व्यक्ति ने अधिकार मांगा था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जमीनी जांच के बाद अर्जी को ख़ारिज कर दिया था। यहां पर 31 साल बाद वे अपना हक मांगने आते हैं और निचली अदालत ने उनके आवेदन को मंजूर भी कर लिया। हाईकोर्ट में मस्जिद कमेटी के वकील पुनीत गुप्ता और फरमान नक़वी ने आज बहस की। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 15 फरवरी की तारीख तय की है।
पिछली सुनवाई में क्या दलीलें दी गईं?
पिछले बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट में दोनों पक्षों के बीच करीब डेढ़ घंटे तक बहस चली जिसके बाद न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने दोनों पक्षों को अपना-अपना दावा साबित करने को कहा था। इस दौरान ज्ञानवापी तहखाने में मिले पूजा के अधिकार को जहां मंदिर पक्ष ने सही बताया था, वहीं मुस्लिम पक्ष ने मंदिर पक्ष और यूपी सरकार के बीच साठगांठ होने का आरोप लगाया था। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि तहखाने का प्रयोग सिर्फ स्टोर रूम के बतौर हो रहा था, लेकिन हिन्दू पक्ष का दावा है कि वहां साल 1993 से पहले तक रोजाना पूजा होती थी।
इसके बाद ज्ञानवापी स्थित व्यास जी के तहखाने में पूजा की अनुमति पर रोक लगवाने के लिए मस्जिद कमेटी की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची, जिसपर आज सुनवाई हुई। आज मस्ज़िद की इंतजामिया कमेटी के वकील ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच में ये सुनवाई हो रही है।
बता दें कि बनारस के ज्ञानवापी परिसर के व्यास के तहखाने में हिन्दू पक्ष को पूजा का अधिकार मिलने के बाद दूसरे जुमे की नमाज को लेकर शुक्रवार 9 फरवरी को पुलिस अलर्ट मोड में रही। पिछली बार की अपेक्षा इस बार शुक्रवार को ना तो मुस्लिम बहुल इलाकों में दुकाने बंद थी और न ही कहीं विरोध के तीखे स्वर सुनाई पड़े। कहीं नारेबाजी भी नहीं हुई। नमाजियों की ज्यादा संख्या होने के बावजूद उन्हें नहीं लौटाया गया। ड्रोन कैमरे से निगरानी की जाती रही।
एक विवादित स्थान
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 1669 में मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा निर्मित विशाल तीन गुंबद वाली ज्ञानवापी मस्जिद, 1780 में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित सोने से मढ़े काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में सदियों से खड़ी है। हालाँकि, मस्जिद अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद का विषय बन गई है। हिंदुओं का कहना है कि एक प्राचीन आदि विश्वेश्वर (शिव) मंदिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था और मस्जिद के नीचे स्थित है। वे इसे वापस चाहते हैं। मुसलमान अपनी प्रार्थना स्थल को बरकरार रखना चाहते हैं। कब्जे का उनका दावा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 है, जो किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा कि वह स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था।
यह विवाद 1991 में अदालत में चला गया था। यह जुलाई 2023 में और तेज हो गया जब एक स्थानीय अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह "एक हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर बनाया गया था" हफ्तों बाद, एएसआई ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि मस्जिद के निर्माण से पहले एक हिंदू मंदिर मौजूद था। 31 जनवरी को, स्थानीय अदालत ने जिला प्रशासन को ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा, राग, भोग (देवता की पूजा करना, भोजन चढ़ाना और स्नान कराना) करने का आदेश दिया।
न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने अपने रिटायरमेंट के दिन दिया था फैसला
जिस दिन (31 जनवरी, 2024) न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने यह फैसला सुनाया वह उनके रिटायरमेंट का दिन था। जिला मजिस्ट्रेट एस. राजलिंगम ने न्यायाधीश ए.के. विश्वेश द्वारा दिए गए अदालती आदेश पर त्वरित कार्रवाई की। कोर्ट के आदेश के बाद जिला मजिस्ट्रेट एस. राजलिंगम उसी दिन मस्जिद के अंदर गए, निर्देश दिया कि लोहे की बाड़ और बैरिकेड हटा दिए जाएं और उस स्थान पर मूर्तियां रख दी जाएं। पूजा एक पुजारी द्वारा की गई थी, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा चुना गया था।
अचानक हुए घटनाक्रम से नाराज मुसलमानों ने पूजा रोकने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हिंदुओं से कहा गया है कि जब तक मामला न्यायाधीन है तब तक पुजारी केवल तहखाने में ही पूजा कर सकते हैं।
इतिहास से भी पुराना है बनारस- मार्क ट्वेन
वाराणसी के बारे में लिखते हुए, अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने एक बार कहा था, "बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपरा से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी पुराना है, और उन सभी को मिलाकर भी दोगुना पुराना दिखता है।" 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में शहर में प्रचार करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वास्तव में ट्वेन को उद्धृत किया था। मार्क ट्वेन 1896 में बनारस आए थे। जनवरी से अप्रैल के बीच उन्होंने देश के कई शहरों में भ्रमण किया। बनारस को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा। लेकिन आज इस शहर की आबोहवा दूषित हो चली है।
पृष्ठभूमि
वाराणसी के ज्ञानवापी मामले की सुनवाई कर रहे जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने अपने रिटायरमेंट के दिन ही ज्ञानवापी मामले में फैसला सुनाया था। 2016 में ज्ञानवापी के बेसमेंट में पूजा के अधिकार को लेकर जिला जज की अदालत में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर 30 जनवरी को जिला न्यायाधीश डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में इस मामले में दोनों पक्षों की बहस पूरी हो गई थी। 31 जनवरी को जिला न्यायाधीश डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने हिंदू पक्ष को व्यास जी के तहखाने में पूजा करने का अधिकार दिया था।
वकील मदन मोहन यादव द्वारा प्रस्तुत दक्षिणपंथी हिंदुओं की पार्टी ने पीटीआई-भाषा से बात करते हुए इसकी पुष्टि की और कहा कि जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने शैलेन्द्र पाठक नामक व्यक्ति को तहखाने में पूजा करने का अधिकार दिया है। उन्होंने बताया कि प्रशासन सात दिनों के अंदर पूजा संपन्न कराने की व्यवस्था करेगा। पूजा कराने का काम काशी विश्वनाथ ट्रस्ट करेगा।
इससे पहले न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश ने एएसआई सर्वे रिपोर्ट जारी की थी। इस मामले को लेकर सबरंग इंडिया ने मुफ्ती बनारस बातिन साब से बात की थी। उन्होंने कहा था कि हमारे वकील सर्वे रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं। समय आने पर कोर्ट में जवाब दाखिल किया जायेगा। सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद पहले शुक्रवार को ज्ञानवापी से आई अव्यवस्था की खबर पर उन्होंने कहा कि हर बार की तरह इस बार भी यहां नियमित रूप से नमाज पढ़ी गई लेकिन सर्वे रिपोर्ट को लेकर और मस्जिद से मीडिया के पचास लोग वहां पहुंच गए। उन्होंने बाहर निकल रहे लोगों को जबरन रोका और उनकी प्रतिक्रिया जानने लगे। इस दौरान उन्होंने ऐसा नजारा खड़ा कर दिया मानो कोई लड़ाई हो गई हो। लेकिन सभी नमाजी उनसे बात न करने को कह रहे थे और रास्ता छोड़ने को कह रहे थे। उन्होंने कहा कि मीडिया रिपोर्ट को ही फैसले के तौर पर पेश कर रहा है, जो पत्रकारिता के सिद्धांतों और मानकों के हिसाब से गलत है।
बनारस के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा था कि अगर सर्वे रिपोर्ट में कोई आपत्ति है तो दोनों पक्ष 6 फरवरी 2024 तक इसे कोर्ट में दाखिल कर सकते हैं। पिछले साल 18 दिसंबर 2023 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सीलबंद लिफाफे में सर्वे रिपोर्ट जिला न्यायालय में जमा कर दी थी। मई 2022 में ज्ञानवापी मस्जिद में कमिश्नर सर्वे कराया गया था। पिछले साल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की ओर से सर्वे कराया गया था। हिंदू पक्ष ने कोर्ट से सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की थी, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने सर्वे रिपोर्ट की प्रमाणित कॉपी की भी मांग की थी। 24 जनवरी 2024 को जब इस मामले की सुनवाई वाराणसी जिला न्यायालय में हुई तो जिला जज ने सभी पक्षों को सर्वे रिपोर्ट की हार्ड कॉपी देने का फैसला सुनाया।
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सोमवार की सुनवाई में ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने पक्ष रखा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिंदू पक्ष और यूपी सरकार को आज अपनी दलीलें पेश करने का मौका नहीं मिला। मामले में अब 15 फरवरी को फिर से सुनवाई होगी। हालांकि आज सुनवाई के बावजूद व्यास तहखाने में पूजा अर्चना जारी रहेगी।
अब 15 फरवरी को सुबह 10 बजे से फ्रेश केस के तौर पर सुनवाई होगी। 15 फरवरी को होने वाली सुनवाई में यूपी सरकार, हिंदू पक्ष और काशी विश्वनाथ ट्रस्ट अपनी दलीलें पेश करेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि 15 फरवरी को मामले की सुनवाई पूरी हो जाएगी। सुनवाई पूरी होने पर अदालत ने अगर उसी दिन फैसला नहीं सुनाया तो जजमेंट रिजर्व हो सकता है।
मस्जिद कमेटी के वकील ने दीं ये दलीलें
इंडिया टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मस्जिद कमेटी के वकील सय्यद फरमान नक़वी ने आज कोर्ट में बहस की। सुनवाई के दौरान फरमान नकवी ने 17 जनवरी के डीएम को रिसीवर नियुक्त करने के आदेश पर सवाल उठाए। नक़वी ने आरोप लगाया कि वादी के प्रभाव में आकर आदेश पारित किया गया है। उन्होंने कहा कि वादी ने जो कुछ भी कहा उसे अंतिम सत्य या ईश्वरीय सत्य मान लिया गया है। 30 साल बाद व्यास जी के तहखाने पर हक जताने वाला शख्स कौन है, इसका लिखित कोई बयान नहीं है।
बाबरी मस्जिद मामला भी रखा कोर्ट के सामने
इतना ही नहीं आज की सुनवाई में नकवी ने बाबरी मस्जिद मामले को भी हाईकोर्ट के समक्ष रखा। उन्होंने कहा कि बाबरी मामले में निर्मोही अखाड़े के एक व्यक्ति ने अधिकार मांगा था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जमीनी जांच के बाद अर्जी को ख़ारिज कर दिया था। यहां पर 31 साल बाद वे अपना हक मांगने आते हैं और निचली अदालत ने उनके आवेदन को मंजूर भी कर लिया। हाईकोर्ट में मस्जिद कमेटी के वकील पुनीत गुप्ता और फरमान नक़वी ने आज बहस की। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 15 फरवरी की तारीख तय की है।
पिछली सुनवाई में क्या दलीलें दी गईं?
पिछले बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट में दोनों पक्षों के बीच करीब डेढ़ घंटे तक बहस चली जिसके बाद न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने दोनों पक्षों को अपना-अपना दावा साबित करने को कहा था। इस दौरान ज्ञानवापी तहखाने में मिले पूजा के अधिकार को जहां मंदिर पक्ष ने सही बताया था, वहीं मुस्लिम पक्ष ने मंदिर पक्ष और यूपी सरकार के बीच साठगांठ होने का आरोप लगाया था। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि तहखाने का प्रयोग सिर्फ स्टोर रूम के बतौर हो रहा था, लेकिन हिन्दू पक्ष का दावा है कि वहां साल 1993 से पहले तक रोजाना पूजा होती थी।
इसके बाद ज्ञानवापी स्थित व्यास जी के तहखाने में पूजा की अनुमति पर रोक लगवाने के लिए मस्जिद कमेटी की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची, जिसपर आज सुनवाई हुई। आज मस्ज़िद की इंतजामिया कमेटी के वकील ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच में ये सुनवाई हो रही है।
बता दें कि बनारस के ज्ञानवापी परिसर के व्यास के तहखाने में हिन्दू पक्ष को पूजा का अधिकार मिलने के बाद दूसरे जुमे की नमाज को लेकर शुक्रवार 9 फरवरी को पुलिस अलर्ट मोड में रही। पिछली बार की अपेक्षा इस बार शुक्रवार को ना तो मुस्लिम बहुल इलाकों में दुकाने बंद थी और न ही कहीं विरोध के तीखे स्वर सुनाई पड़े। कहीं नारेबाजी भी नहीं हुई। नमाजियों की ज्यादा संख्या होने के बावजूद उन्हें नहीं लौटाया गया। ड्रोन कैमरे से निगरानी की जाती रही।
एक विवादित स्थान
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 1669 में मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा निर्मित विशाल तीन गुंबद वाली ज्ञानवापी मस्जिद, 1780 में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित सोने से मढ़े काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में सदियों से खड़ी है। हालाँकि, मस्जिद अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद का विषय बन गई है। हिंदुओं का कहना है कि एक प्राचीन आदि विश्वेश्वर (शिव) मंदिर को औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था और मस्जिद के नीचे स्थित है। वे इसे वापस चाहते हैं। मुसलमान अपनी प्रार्थना स्थल को बरकरार रखना चाहते हैं। कब्जे का उनका दावा पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 है, जो किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा कि वह स्वतंत्रता दिवस, 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था।
यह विवाद 1991 में अदालत में चला गया था। यह जुलाई 2023 में और तेज हो गया जब एक स्थानीय अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह "एक हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर बनाया गया था" हफ्तों बाद, एएसआई ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि मस्जिद के निर्माण से पहले एक हिंदू मंदिर मौजूद था। 31 जनवरी को, स्थानीय अदालत ने जिला प्रशासन को ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा, राग, भोग (देवता की पूजा करना, भोजन चढ़ाना और स्नान कराना) करने का आदेश दिया।
न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने अपने रिटायरमेंट के दिन दिया था फैसला
जिस दिन (31 जनवरी, 2024) न्यायाधीश ए.के. विश्वेश ने यह फैसला सुनाया वह उनके रिटायरमेंट का दिन था। जिला मजिस्ट्रेट एस. राजलिंगम ने न्यायाधीश ए.के. विश्वेश द्वारा दिए गए अदालती आदेश पर त्वरित कार्रवाई की। कोर्ट के आदेश के बाद जिला मजिस्ट्रेट एस. राजलिंगम उसी दिन मस्जिद के अंदर गए, निर्देश दिया कि लोहे की बाड़ और बैरिकेड हटा दिए जाएं और उस स्थान पर मूर्तियां रख दी जाएं। पूजा एक पुजारी द्वारा की गई थी, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा चुना गया था।
अचानक हुए घटनाक्रम से नाराज मुसलमानों ने पूजा रोकने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हिंदुओं से कहा गया है कि जब तक मामला न्यायाधीन है तब तक पुजारी केवल तहखाने में ही पूजा कर सकते हैं।
इतिहास से भी पुराना है बनारस- मार्क ट्वेन
वाराणसी के बारे में लिखते हुए, अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने एक बार कहा था, "बनारस इतिहास से भी पुराना है, परंपरा से भी पुराना है, किंवदंतियों से भी पुराना है, और उन सभी को मिलाकर भी दोगुना पुराना दिखता है।" 2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव में शहर में प्रचार करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वास्तव में ट्वेन को उद्धृत किया था। मार्क ट्वेन 1896 में बनारस आए थे। जनवरी से अप्रैल के बीच उन्होंने देश के कई शहरों में भ्रमण किया। बनारस को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा। लेकिन आज इस शहर की आबोहवा दूषित हो चली है।
पृष्ठभूमि
वाराणसी के ज्ञानवापी मामले की सुनवाई कर रहे जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने अपने रिटायरमेंट के दिन ही ज्ञानवापी मामले में फैसला सुनाया था। 2016 में ज्ञानवापी के बेसमेंट में पूजा के अधिकार को लेकर जिला जज की अदालत में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर 30 जनवरी को जिला न्यायाधीश डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में इस मामले में दोनों पक्षों की बहस पूरी हो गई थी। 31 जनवरी को जिला न्यायाधीश डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने हिंदू पक्ष को व्यास जी के तहखाने में पूजा करने का अधिकार दिया था।
वकील मदन मोहन यादव द्वारा प्रस्तुत दक्षिणपंथी हिंदुओं की पार्टी ने पीटीआई-भाषा से बात करते हुए इसकी पुष्टि की और कहा कि जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने शैलेन्द्र पाठक नामक व्यक्ति को तहखाने में पूजा करने का अधिकार दिया है। उन्होंने बताया कि प्रशासन सात दिनों के अंदर पूजा संपन्न कराने की व्यवस्था करेगा। पूजा कराने का काम काशी विश्वनाथ ट्रस्ट करेगा।
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