स्पेशल रिपोर्ट: बनारस में ‘ज्ञानवापी’ के बाद नवाब टोंक की ‘छोटी मस्जिद’ को लेकर क्यों बढ़ रहा विवाद?

Written by विजय विनीत | Published on: December 11, 2024
यह मामला चर्चा में तब आया जब 29 नवंबर 2024 को मुस्लिम समुदाय के कुछ अधिक लोग नमाज अदा करने के लिए छोटी मस्जिद पहुंचे। इसके बाद यह मस्जिद विवादों का केंद्र बन गई। मामला इसलिए भी गंभीर हो गया, क्योंकि यह क्षेत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है।



बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बाद अब यूपी कॉलेज से सटी नवाब टोंक की छोटी मस्जिद एक नए विवाद का केंद्र बन गई है। यूपी कॉलेज का मुख्य गेट पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है। छात्रों और आने-जाने वालों से कड़ी पूछताछ की जा रही है, और बिना परिचय पत्र के किसी को भीतर जाने की इजाजत नहीं दी जा रही। गेट से अंदर घुसते ही डाकघर और थोड़ा आगे इंडियन बैंक है। गेट के बगल से एक रास्ता छोटी मस्जिद और गंगेश्वर महादेव मंदिर की ओर जाता है।

यह मामला चर्चा में तब आया जब 29 नवंबर 2024 को मुस्लिम समुदाय के कुछ अधिक लोग नमाज अदा करने के लिए छोटी मस्जिद पहुंचे। इसके बाद यह मस्जिद विवादों का केंद्र बन गई। मामला इसलिए भी गंभीर हो गया, क्योंकि यह क्षेत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है।

इस विवाद की जड़ें 25 नवंबर 2024 को हुए यूपी कॉलेज के 115वें स्थापना समारोह से जुड़ी हैं। इस समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की कि यूपी कॉलेज को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाएगा। साथ ही, उन्होंने कहा कि इस कॉलेज से जुड़े सभी पुराने विवादों और मामलों की जांच कराई जाएगी। इसके अगले ही दिन, 26 नवंबर को एक पुराना नोटिस मुस्लिम समुदाय के बीच वायरल हुआ, जिसमें यूपी कॉलेज की जमीन को वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताया गया था।

विवाद कैसे बढ़ा?

नोटिस के वायरल होने के बाद छोटी मस्जिद में नमाज अदा करने वालों की संख्या बढ़ने लगी। इसके जवाब में यूपी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. डीके सिंह ने मीडिया को बुलाकर कर वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह कॉलेज की संपत्ति है और इसे अवैध रूप से बनाया गया है। उनका दावा था कि यह जमीन एक ट्रस्ट की है, जिसे न खरीदा जा सकता है और न बेचा जा सकता है।

03 दिसंबर 2024 को मामला तब और गंभीर हो गया जब यूपी कॉलेज के कई वर्तमान और पूर्व छात्र, कुछ वकील और हिंदू संगठनों के लोग भगवा झंडे के साथ कॉलेज के मेन गेट के अंदर में घुस आए। उन्होंने नारेबाजी की और छोटी मस्जिद की ओर बढ़ने की कोशिश की। पुलिस ने उन्हें मस्जिद से 50 मीटर पहले ही रोक लिया। प्रदर्शनकारियों ने इसके बाद मस्जिद के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दिया।

इस दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई। छात्रों ने बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश की और कुछ पुलिस की जीप पर चढ़ गए। पुलिस ने लाठीचार्ज कर प्रदर्शनकारियों को खदेड़ा। इस झड़प में कॉलेज छात्र संघ अध्यक्ष सुधीर सिंह समेत सात लोगों को शांति भंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया। हालांकि, शाम को उन्हें चेतावनी देकर रिहा कर दिया गया।

मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी मस्जिद में नमाज पढ़ने से रोक दिया गया। तीन दिसंबर से यूपी कॉलेज पुलिस छावनी में तब्दील है। भारी पुलिस बल तैनात है और कड़ी सुरक्षा के कारण मस्जिद में नमाज अदा नहीं की जा रही है। हिंदू संगठनों और छात्रों ने मांग की है कि मस्जिद को कॉलेज परिसर से हटाया जाए। उनका कहना है कि जब भी मस्जिद में नमाज अदा की जाएगी, वे हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।

तनावपूर्ण माहौल के चलते कॉलेज के बाहर की दुकानें कई दिनों तक बंद रहीं। इलाके में अभी भी भारी पुलिस बल मौजूद है। स्थिति तनावपूर्ण है और इस विवाद का समाधान अभी दूर दिखाई दे रहा है।



मुस्लिम पक्ष का दावा

मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यूपी कॉलेज की जमीन ऐतिहासिक रूप से नवाब टोंक की संपत्ति रही है। मस्जिद परिसर में मौजूद कचनार शाह की मजार और एक अनुपयोगी कुआं इस दावे को मजबूत करने के लिए उदाहरण स्वरूप पेश किए जाते हैं। मस्जिद के भीतर की संरचना को भी प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। वहां दो तरफ टीन शेड लगे हुए हैं, जहां 600 से अधिक लोग बैठ सकते हैं। मस्जिद का सोलर पैनल, वजूखाना, स्नानघर और शौचालय जैसी व्यवस्थाएं यह दर्शाती हैं कि यह जगह नियमित धार्मिक गतिविधियों के लिए उपयोग में लाई जाती रही है।

मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मस्जिद नवाब टोंक के समय से चली आ रही है और यहां लंबे समय से नमाज अदा की जाती रही है। मुनव्वर अली और मनउर रहमान जैसे स्थानीय लोगों का दावा है कि मस्जिद के बिजली कनेक्शन और अन्य व्यवस्थाएं आपसी सहमति से की गई थीं। उनका कहना है कि मस्जिद प्रशासन के पास पूर्व में बिजली आपूर्ति से जुड़े दस्तावेज भी मौजूद हैं, जो उनके अधिकारों को प्रमाणित करते हैं।

मुस्लिम समुदाय के लोग छोटी मस्जिद को केवल एक इबादतगाह नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर मानते हैं। अंजुमन अशरफिया नाम की एक संस्था रमजान के दौरान मस्जिद और समुदाय की सेवा करती है। संस्था के अध्यक्ष अशफाक अली का कहना है कि यह मस्जिद इतिहास का एक अमूल्य हिस्सा है। रमजान के महीने में संस्था द्वारा सात घरों में इफ्तार का सामान भेजा जाता है, चाहे वह व्यक्ति जान-पहचान का हो या अनजान। यह मस्जिद सिर्फ धार्मिक कार्यों का केंद्र नहीं, बल्कि सामुदायिक सेवा का प्रतीक भी है।



दूसरी ओर, हिंदू संगठनों और छात्रों का दावा है कि मस्जिद कॉलेज परिसर में अवैध रूप से बनाई गई है और इसे तत्काल हटाया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि कॉलेज की जमीन एक न्यास के अंतर्गत आती है, जिसे खरीदा या बेचा नहीं जा सकता। हिंदूवादी संगठनों ने यह भी कहा है कि यदि मस्जिद में नमाज अदा की जाती है, तो वे हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। 03 दिसंबर 2024 को मस्जिद के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ और नारेबाजी के बाद से तनाव और बढ़ गया। पुलिस बल की मौजूदगी ने स्थिति को नियंत्रण में रखा है, लेकिन यह अस्थायी समाधान ही नजर आ रहा है।

नवाब टोंक की मस्जिद का इतिहास

नवाब टोंक की छोटी मस्जिद का इतिहास खुद में कई कहानियां समेटे हुए है। यह मस्जिद बनारस के नरायनपुर मौजा में स्थित है, जहां यूपी कॉलेज भी है। इस इलाके का इतिहास खंगालते हुए सबरंग इंडिया ने 1883-84 का एक पुराना नक्शा खोज निकाला, जिसमें मस्जिद का उल्लेख स्पष्ट रूप से मिलता है। इसके साथ ही खतौनी और खसरे के दस्तावेज भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह मस्जिद पहले से ही मौजूद थी। मस्जिद की जमीन का उल्लेख खसरा-खतौनी में फसली 1414 में ख्वाजा ओकास अलवर के नाम पर दर्ज है।



बताया जाता है कि आजादी से पहले ख्वाजा ओकास अलवर की एक रियासत थी। यह मस्जिद उस समय की गवाह है जब अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के दौरान ऐसे स्थलों का निर्माण स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किया गया था। बनारस के दैनिक अखबार “अमर उजाला” ने 6 दिसंबर 2009 को नवाब टोंक की मस्जिद के ऐतिहासिक पहलुओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट के मुताबिक, 1888 में राजस्थान की टोंक रियासत के नवाब मोहम्मद अली खां ने इस मस्जिद का निर्माण कराया था। यह मस्जिद अंग्रेजों के खिलाफ उनके संघर्ष की प्रतीक मानी जाती है।

नवाब मोहम्मद अली खां को अंग्रेजों द्वारा राजस्थान से बनारस लाकर गिलट बाजार के कैदखाने में दस साल तक कैद में रखा गया था। रिहाई के बाद उन्हें बनारस में जमीन दी गई, जहां उन्होंने इस छोटी मस्जिद का निर्माण कराया। नवाब टोंक मस्जिद के साथ यह छोटी मस्जिद भी उनके संघर्ष की जीवंत मिसाल है।

रिपोर्ट बताती है कि जर्जर हालत के बावजूद मस्जिद में इबादत का सिलसिला कभी नहीं रुका। रोजाना यहां 150-200 लोग नमाज अदा करते हैं, जबकि जुमे के दिन यह संख्या 500 तक पहुंच जाती है। मस्जिद परिसर में मरम्मत और संरक्षण को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे यह जगह समय के साथ कमजोर होती जा रही है। 



क्या कहती है मसाजिद कमेटी?

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने इस पूरे विवाद पर अपना पक्ष रखा है। यासीन का कहना है कि यूपी कॉलेज को विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने का प्रस्ताव स्वागत योग्य है, लेकिन इसके साथ ही धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद खड़ा करना अनुचित है। उन्होंने स्पष्ट किया कि 2008 में यूपी कॉलेज प्रशासन ने विधिवत अनुमति देकर मस्जिद की ओर जाने वाले रास्ते पर पत्थर बिछाने की सहमति दी थी। इस सहमति-पत्र के आधार पर मस्जिद जाने वाले रास्ते को दुरुस्त किया गया था।



यासीन ने कहा कि मस्जिद का पहले कभी कोई विवाद नहीं था और न ही अब है। जो कुछ मीडिया में दिखाया और बताया जा रहा है, वह गलत और मनगढ़ंत है। उन्होंने यह भी बताया कि 3 दिसंबर 2024 को मस्जिद को लेकर उठे विवाद के बाद सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारुकी को पत्र लिखकर 2018 की नोटिस की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी मांगी गई। उसी दिन बोर्ड से मेल के जरिए जवाब प्राप्त हुआ, जिसमें यह बताया गया कि 2018 की नोटिस को 18 जनवरी 2021 को निरस्त कर दिया गया था और वर्तमान में इसका कोई प्रभाव नहीं है।



सुन्नी वक्फ बोर्ड ने यह भी स्पष्ट किया कि नरायनपुर मौजा में स्थित ख्वाजा ओकास की संपत्ति को लेकर कोई विवाद नहीं है। यासीन के अनुसार, मुसलमानों को सिर्फ अपने धर्मस्थल से मतलब है और उनकी प्राथमिकता इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि भोजूबीर से लेकर सदर तहसील और यूपी कॉलेज क्षेत्र में कोई अन्य मस्जिद नहीं है, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा कर सकें। यही कारण है कि आसपास के लोग इस मस्जिद में नमाज पढ़ने आते हैं।

यासीन ने जोर देकर कहा कि नवाब टोंक की मस्जिद को लेकर विवाद खड़ा करना 1991 के धर्मस्थल (प्लेस ऑफ वर्शिप) कानून का उल्लंघन है। यह कानून स्पष्ट करता है कि धार्मिक स्थलों की स्थिति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपील की कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को शांतिपूर्वक नमाज पढ़ने दिया जाए और धर्मस्थल कानून का पालन किया जाए।



यासीन का कहना है कि यह मस्जिद न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी रखती है। इस मस्जिद को लेकर विवाद खड़ा करने से बनारस का प्रबुद्ध समुदाय चिंतित है। उन्होंने सुझाव दिया कि कॉलेज प्रशासन और वक्फ बोर्ड के बीच किसी भी तरह के भ्रम को जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए, ताकि शैक्षणिक और धार्मिक गतिविधियां बिना किसी रुकावट के जारी रह सकें।

यासीन ने यह भी कहा कि यह विवाद समय रहते सुलझा लिया जाना चाहिए ताकि न केवल संस्थान और समुदाय के बीच सौहार्द बना रहे, बल्कि बनारस की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गरिमा भी बनी रहे। इस मस्जिद को लेकर फैलाई जा रही भ्रांतियां सिर्फ तनाव को बढ़ावा दे रही हैं, जिसे रोकने के लिए दोनों पक्षों को आपसी समझदारी के साथ काम करना होगा।

कैसे उठा विवाद का जलजला

नवाब टोंक की छोटी मस्जिद का विवाद अचानक उस वक्त सुर्खियों में आया जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी कॉलेज के 115वें स्थापना समारोह में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा देने का ऐलान किया। साथ ही यह संकेत दिया गया कि पुराने मामलों की जांच कराई जाएगी। यह घोषणा कई विवादों की चिंगारी बन गई। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री के इस बयान से ध्यान भटकाने के लिए छोटी मस्जिद का मुद्दा उछाला गया।

दरअसल, यूपी कॉलेज प्रबंधन पहले से ही गुटीय विवादों में फंसा हुआ है। विवाद केवल छोटी मस्जिद तक सीमित नहीं है। मस्जिद से आगे एक प्राचीन गंगेश्वर महादेव मंदिर है, जिसका ट्रस्टी सिसोदिया परिवार है। इस परिवार ने भी यूपी कालेज को मंदिर की कुछ जमीन शर्तों के आधार पर लीज के रूप में बतौर दान दी थी। शर्तों का पालन नहीं किए जाने पर सिसौदिया परिवार ने अपनी जमीन वापस लेने के लिए हाईकोर्ट मे मुकदमा दाखिल कर रखा है।



सिसौदिया परिवार के लोगों का कहना है कि विवाद की जड़ में यूपी कालेज का वह गेट है जो नगर निगम की सरकारी जमीन पर बनाया गया है। इसी गेट से मस्जिद और मंदिर दोनों जगहों के लिए आने-जाने का सार्वजनिक रास्ता है। यह बंदोबस्ती रास्ता है, जिस पर यूपी कालेज प्रशासन का कोई अधिकार नहीं है।

अवैध है यूपी कालेज का गेट

गंगेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य ट्रस्टी और अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिसोदिया का दावा है कि यूपी कॉलेज का मुख्य गेट नगर निगम की जमीन पर अवैध तरीके से बनाया गया है। उन्होंने बताया कि नरायनपुर मौजे में गंगेश्वर महादेव मंदिर ट्रस्ट के पास दस बीघा आठ बिस्वा सात धुर जमीन की रजिस्ट्री है। 1946 में इस जमीन का कुछ हिस्सा यूपी कॉलेज को दिया गया था। उस समय शर्त थी कि कॉलेज प्रबंधन मंदिर ट्रस्ट की जरूरतों को पूरा करने में सहयोग करेगा।

लेकिन सिसोदिया परिवार का आरोप है कि कॉलेज प्रबंधन ने उनकी जरूरतों को अनदेखा करते हुए उन्हें बार-बार परेशान किया। महेंद्र प्रताप सिसोदिया ने सदर तहसील से मिले अभिलेख और आईजीआरएस के जवाब दिखाते हुए कहा कि मुख्य गेट का निर्माण अवैध है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब गेट का निर्माण हो रहा था, तब उन्होंने सार्वजनिक रास्ते को घेरने का विरोध किया, लेकिन उनके साथ मारपीट की गई।

सिसोदिया परिवार ने यह भी बताया कि कॉलेज प्रबंधन ने गंगेश्वर महादेव मंदिर ट्रस्ट के हर काम में बाधा पैदा की। पानी और सीवर टैक्स देने के बावजूद मंदिर परिसर में सरकारी नल और सीवर की व्यवस्था नहीं बनने दी गई। परिवार का दावा है कि कॉलेज परिसर की काफी जमीन उनकी है, जो 99 साल की लीज पर दी गई थी। शर्तों का उल्लंघन करने के कारण ट्रस्ट ने लीज रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया है, जो फिलहाल विचाराधीन है।



प्रशासन और पुलिस का पक्ष

इस विवाद के बीच वाराणसी के एडीएम सिटी आलोक वर्मा ने कहा कि वक्फ बोर्ड ने कॉलेज प्रशासन को एक पत्र दिया था, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि उनकी कोई संपत्ति कॉलेज परिसर में नहीं है। उन्होंने कहा कि मस्जिद किसकी जमीन पर बनी है, इसकी जांच की जा रही है और जरूरत पड़ने पर भूखंड की पैमाइश कराई जाएगी।

उधर, कैंट एसीपी विदुश सक्सेना ने बताया कि शिवपुर थाने की पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें ज्ञानवापी विवाद के पक्षकार मुख्तार अहमद और गिलट बाजार निवासी सगे भाई अफरोज खान, आदिल खान और फिरोज खान शामिल हैं। पुलिस ने कहा कि माहौल शांत करने के लिए कड़ी निगरानी रखी जा रही है और किसी ने भी गैरजिम्मेदाराना बयान दिया या अफवाह फैलाई, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।


फिलहाल, यूपी कॉलेज के परिसर और आसपास का इलाका भारी पुलिस बल की मौजूदगी में शांत है। प्रशासन का कहना है कि जब तक विवाद पूरी तरह शांत नहीं हो जाता, पुलिस की तैनाती जारी रहेगी। अराजकता फैलाने वालों पर कड़ी नजर रखी जा रही है, और अफवाह फैलाने वालों पर भी सख्त एक्शन लिया जाएगा।

मस्जिद के गेट पर जड़े दो ताले

11 दिसंबर 2024 की शाम उस समय छोटी मस्जिद का मामला एक बार फिर गरमा गया जब मस्जिद के मेन गेट पर एक और ताला जड़ दिया गया। दिलचस्प बात यह है मस्जिद पर पुलिस फोर्स का पहरा है। नबाब टोंक की छोटी मस्जिद की देख-रेख करने वाली कमेटी द्वारा पहले ही ताला लगाया गया था, और अब गेट पर दूसरा ताला किसने लगाया, इस पर प्रशासन और कॉलेज प्रशासन दोनों ही चुप्पी साधे हुए हैं।

यह मस्जिद उदय प्रताप कॉलेज के परिसर से सटी है, जहां पहले से ही मस्जिद के गेट पर ताला था। बुधवार को मस्जिद के मुख्य गेट पर एक और ताला लगा मिला, जिससे मुस्लिम समुदाय ने कड़ी आपत्ति जताई है। मस्जिद में नमाज अदा करने की इच्छा रखने वाले स्थानीय मुस्लिमों ने इसे अपनी धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट बताया है।



इस विवाद के चलते असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के पदाधिकारी वाराणसी पहुंचे और मंडलायुक्त मोहित अग्रवाल से मुलाकात की। उन्होंने कमिश्नर को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें मांग की गई कि मस्जिद पर लगाए गए ताले को तुरंत हटाया जाए और मुस्लिम समुदाय को नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए। साथ ही, उन्होंने मस्जिद और नमाजियों की सुरक्षा की भी मांग की।

मस्जिद पर लगाए गए ताले को लेकर कॉलेज प्रशासन और स्थानीय प्रशासन ने कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है। कॉलेज के प्राचार्य डीके सिंह ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि दूसरा ताला पुलिस ने लगवाया है। हालांकि, पुलिस विभाग की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए मस्जिद के पूरब और दक्षिणी गेट पर भारी संख्या में पुलिस और पीएसी के जवान तैनात किए गए हैं। यह कदम संभावित विवाद और किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए उठाया गया है।

 

घटनाक्रम: एक नजर में 

25 नवंबर: यूपी कॉलेज के 115वें स्थापना दिवस समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिरकत की। उन्होंने घोषणा की कि यूपी और बिहार के छात्रों के लिए इस कॉलेज को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाएगा। साथ ही कहा कि सरकार कॉलेज को मान्यता दिलाएगी।

26 नवंबर: मुस्लिम समुदाय के बीच 2018 की वक्फ बोर्ड की एक पुरानी नोटिस वायरल हुई। इस नोटिस में यूपी कॉलेज को वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताया गया था। कॉलेज प्रशासन ने उसी दिन वक्फ बोर्ड को जवाब देते हुए कहा कि यदि उनके पास कोई वैध दस्तावेज है, तो उसे प्रस्तुत करें।

29 नवंबर: मस्जिद में आम तौर पर 20-25 लोग जुमे की नमाज के लिए आते थे, लेकिन इस दिन लगभग 500 नमाजी कॉलेज कैंपस में इकट्ठा हुए और नमाज अदा की।

2 दिसंबर: कॉलेज के छात्रों ने इस नोटिस के विरोध में प्रदर्शन किया और वक्फ बोर्ड का पुतला फूंका।

3 दिसंबर: छात्रों ने मस्जिद से 50 मीटर दूर हनुमान चालीसा का पाठ किया। इसके बाद पुलिस और छात्रों के बीच झड़प हो गई। पुलिस ने छात्र संघ अध्यक्ष समेत 7 छात्रों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, देर शाम उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। इसी दिन मुस्लिम पक्ष को कॉलेज परिसर में नमाज अदा करने से रोक दिया गया।

4 दिसंबर: कॉलेज प्रशासन ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। वक्फ बोर्ड ने जवाब में बताया कि कॉलेज परिसर की जमीन पर उनका कोई दावा नहीं है।

5 दिसंबर: छात्रों के विरोध के चलते मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद में नमाज अदा नहीं की।

6 दिसंबर: सुरक्षा बढ़ा दी गई और बिना चेकिंग के किसी भी छात्र को कैंपस में दाखिल होने से रोक दिया गया।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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