ओला/उबर से मंदी: क्या व्हाट्सऐप ज्ञान से चल रही सरकार!

Written by संजय कुमार सिंह | Published on: September 11, 2019
पूर्व रक्षा मंत्री और अब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्माला सीतारमण आंख मूंद कर सरकारी लाइन पर चलने के लिए जानी जाती हैं। उम्र और अनुभव में काफी बड़े, ‘द हिन्दू’ के एन राम को पत्रकारीय नैतिकता का पाठ पढ़ाने से लेकर राफेल मामले में प्रधानमंत्री का बचाव करने जैस मुश्किल कामों में आगे रहती रही हैं। अब वित्त मंत्री हैं तो आर्थिक मंदी और इससे संबंधित खबरों का मुकाबला उन्हीं को करना है। ऐसे में आज उन्होंने व्हाट्सऐप्प पर चल रहे ज्ञान का सहारा लिया और काफी समय से मिल रही सूचना की पुष्टि कर दी।



केंद्रीय वित्त मंत्री की मानें तो आज के युवा नई कारें खरीदने के मुकाबले ओला/उबर पसंद करते हैं। नई कार के लिए ईएमआई का भुगतान करने से अधिक ओला और उबर की सेवा का उपयोग करना पसंद कर रहे हैं। इसका असर वाहन सेक्टर पर पड़ा है। उन्होंने कहा कि वाहन सेक्टर पर कई चीजों का असर पड़ा है। इनमें बीएस-6 को लागू करने का लक्ष्य, रजिस्ट्रेशन शुल्क का मुद्दा और युवा वर्ग की सोच शामिल है। युवा वर्ग वाहन खरीदने के लिए ईएमआई का भुगतान करने के चक्र में नहीं फंसना चाहता है और ओला या उबर या मेट्रो का उपयोग करने को तरजीह दे रहा है।

मंत्री जी ने ये नहीं बताया कि ओला / उबर के पास गाड़ियां कहां से आ रही हैं। कांग्रेस ने सीमारमण के बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि पूछा है कि वह बसों और ट्रकों की बिक्री में गिरावट को भी युवा वर्ग के व्यवहार में आए बदलाव से जोड़ती हैं। वित्त मंत्री की घोषणा से पहले भारतीय वाहन निर्माता कंपनियों के संगठन (सियाम) ने सोमवार को अगस्त महीने के बिक्री आँकड़े जारी किए थे। इसके अनुसार, बिक्री में 1997-98 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। अगस्त माह के दौरान वाहनों की कुल बिक्री पिछले साल के इसी माह की 23,82,436 की तुलना में 23.55 फीसदी घटकर 18,21,490 वाहन रह गई।

घरेलू बाजार में यात्री वाहनों की बिक्री तो 31.57 फीसदी घटकर दो लाख से भी कम 1,96,524 वाहन रह गई। देश की अग्रणी यात्री कार कंपनी मारुति सुजुकी की बिक्री अगस्त में 36.14 फीसदी कम रही। अगर यह मान लिया जाए कि मंत्री के कहे अनुसार वाकई युवा ओला उबर की सेवा ले रहे हैं और ईएमआई देने से बच रहे हैं तो ओला / उबर के लिए गाड़ियों की मांग होनी चाहिए और वह मांग कम नहीं होगी। क्योंकि मोबाइल ऐप्प आधारित यह धंधा वैसे ही नया है। 4 जून 2019 की आजतक की एक खबर के अनुसार ओला-उबर का ग्रोथ भी धीमा है।

यह सही है कि कुछ साल पहले जब यह सेवा शुरू हुई थी तो इसने एक अलग पहचान बनाई थी। इस कारण इनका तेजी से विकास हुआ पर यह ज्यादा नहीं चला। इसके कई कारण हैं पर तथ्य यह है कि बीते छह महीनों में ओला और उबर की विकास दर सुस्त पड़ गई है। दूसरी ओर, ग्राहकों की संतुष्टि का स्तर भी पहले जैसा नहीं है। ग्राहकों को पहले के मुकाबले ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इकनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले छह महीनों में ओला और उबर के डेली राइड्स में सिर्फ चार फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

पहले डेली राइड्स की संख्या 35 लाख थी जो अब करीब 36.5 लाख पर है। यह वृद्धि बहुत मामूली है और इसे कार की बिक्री में कमी का कारण बताना व्हाट्सऐप्प ज्ञान से ज्यादा नहीं है। ओला और उबर का धंधा मंदा होने एक और संकेत कमर्श‍ियल वाहनों के पंजीकरण से मिल रहा है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में 2017-18 में ओला और उबर इंडिया के लिए कार्य करने वाली 66 हजार 683 टूरिस्ट कैब रजिस्टर्ड हुई थी, लेकिन यह संख्या 2018-19 में घटकर 24 हजार 386 पर आ गई। मनीभास्कर डॉट कॉम की एक खबर के अनुसार मंत्री ने जीएसटी घटाने पर कोई वादा अभी तक नहीं किया है।

वाहन उद्योग जीएसटी की दर 28 फीसदी से घटाकर 18 फीसदी करने की मांग करता रहा है। मंगलवार को सीतारमण ने इस पर कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि अकेले मैं जीएसटी पर फैसला नहीं कर सकती हूं। हालांकि उन्होंने वाहन सेक्टर की मांग पर विचार करने का भरोसा दिलाया। चेन्नई में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले सौ दिन के फैसलों की जानकारी देते हुए सीतारणम ने कहा कि सरकार देश के ऑटोमोबाइल क्षेत्र की मंदी से वाकिफ है। इस उद्योग को फिर से पटरी पर लाने के लिए उसकी मांगों पर वह विचार करेगी। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय वाहन क्षेत्र के कुछ सुझावों पर पहले ही विचार कर चुकी है।

इकनोमिक टाइम्स की इस साल के जून की एक खबर के अनुसार ओला और उबर ने यात्रियों की संख्या नहीं बताई। कंपनी ने कारोबार में वृद्धि कम होने का कारण ड्राइवर के इनसेंटिव में कटौती बताया है। इसलिए वृद्धि की दर कम होती जा रही है। 2016 में यह 90% थी जो 2017 में 57% और 2018 में 20% रह गई है। इस साल अभी तक यह इससे भी कम है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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