"पिछले माह हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के किसान सही कीमत न मिलने और लागत भी पूरी न होने से टमाटरों को सड़कों पर फेंक रहे थे। 19 मई 2023 को नासिक की कृषि मंडी में टमाटर को लेकर किसानों में खासी नाराजगी देखने को मिली थी। तब मंडी में टमाटर की बोली एक रुपये किलो लगी थी। जिसके विरोध में किसानों ने अपना सारा टमाटर सड़क पर फेंककर विरोध दर्ज कराया था। लेकिन आज टमाटर 100 पार हो चला है तो गेहूं, चावल, दाल, नमक आदि रोजमर्रा के खाद्य पदार्थों के दाम भी आसमां पर जा पहुंचे हैं।"
‘मिनिस्ट्री ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स’, ‘फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन्स प्राइस मॉनिटरिंग’ द्वारा जारी आंकड़े देखें तो पिछले पांच वर्षों में गेहूं के दाम में 36.2 प्रतिशत, चावल के दाम में 32.2 प्रतिशत, दाल की कीमत में 84.8 प्रतिशत, दूध के दाम में 34.9 प्रतिशत, नमक के दाम में 44.6 प्रतिशत, चीनी के दाम में 12.5 प्रतिशत और चाय पत्ती के दाम में 31.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये वे वस्तुएं हैं, जिनके बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती है और जो रोजमर्रा के इस्तेमाल की हैं। वहीं, सब्जियों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं। टमाटर 100 रुपया किलो मिल रहा है। प्याज का दाम 25.9 प्रतिशत बढ़ गया। आलू के दाम में भी करीब 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
यह सब तब है जब, इस दौरान लोगों की आमदनी और खरीद क्षमता में बुरी तरह गिरावट दर्ज की जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2016 से 2021 के बीच में भारत के सबसे गरीब लोगों की आमदनी (खरीद क्षमता) में 50 प्रतिशत की गिरावट आई। उनकी किसी भी चीज को खरीदने की क्षमता 50 प्रतिशत कम हो गई और स्पष्ट तरीके से कहें तो उनके पास यदि कोई समान खरीदने के लिए पहले 100 रुपया था, तो वह घटकर 50 रुपया हो गया। इसी तरह 20 से 40 प्रतिशत लोगों की आमदनी 30 प्रतिशत हो गई। इसका साफ अर्थ है कि यदि उनकी आय 100 रुपये थी, तो वह घटकर 70 रुपये हो गई। 60 प्रतिशत लोगों की असल आमदनी गिरी है।
2014-15 और 2021-22 के बीच की कृषि क्षेत्र में वास्तविक मजदूरी की वृद्धि दर प्रति वर्ष 1 प्रतिशत से कम थी। दरअसल कृषि क्षेत्र की वास्तविक मजदूरी वृद्धि दर 0.9%, गैर-कृषि क्षेत्र की 0.3% और निर्माण क्षेत्र की (-0.02%) थी। निर्माण क्षेत्र में तो मजदूरी वृद्धि दर ऋणात्मक हो गयी। यानि मजदूरी बढ़ने की बजाय घट गयी।
पांच प्रमुख राज्यों (हरियाणा, केरल, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु) में 2014-15 और 2021-22 के बीच वास्तविक मजदूरी में वृद्धि के बजाय गिरावट आयी है। कुल मिलाकर, तथ्य यह है कि देश में वास्तविक मजदूरी आज भी उतनी ही है जितनी 2014-15 में थी। श्रम ब्यूरो के आंकड़े अनौपचारिक क्षेत्र में वास्तविक मजदूरी के ठहराव की ओर इशारा करते हैं।
एक तरफ 60 प्रतिशत नीचे के लोगों की आय (क्रय क्षमता) गिरी है, वहीं दूसरी तरफ बुनियादी वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। आम आदमी की जिंदगी के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखने वाला व्यक्ति इस बात का अंदाज लगा सकता है कि इस कमरतोड़ मंहगाई का उन पर क्या असर पड़ेगा।
पिछले माह किसानों को सड़कों पर फेंकना पड़ा था टमाटर, आज हुआ 100 के पार
इसी साल के अप्रैल-मई में हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के किसान टमाटर की सही कीमत न मिलने पर उन्हें सड़कों पर फेंक रहे थे। 19 मई 2023 को नासिक की कृषि उपज मंडी में टमाटर किसानों में खासी नाराजगी देखने को मिली थी। तब मंडी में टमाटर की बोली एक रुपये किलो लगी थी। जिसके विरोध में किसानों ने अपना सारा टमाटर सड़क पर फेंककर विरोध दर्ज कराया था।
ऐसा ही अप्रैल 2023 में हरियाणा के चरखी दादरी क्षेत्र में देखने को मिला। दरअसल, जब किसान टमाटर लेकर मंडी में बेचने के लिए पहुंचे तो उनके माल की बोली 3 से 4 रुपये प्रति किलो लगी। इतने कम दाम सुनकर किसान भड़क गये और ट्रांसपोर्ट का भाड़ा भी न निकलता देख, उन्होंने सड़कों पर ही टमाटर फेंक दिया था।
बात करें तो चीन के बाद भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक देश है। वर्तमान में कुल वैश्विक टमाटर उत्पादन में भारत का 11% हिस्सा है। स्टेटिस्टा की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल तकरीबन 20 मिलियन मीट्रिक टन टमाटर का उत्पादन होता है। आंकड़े देखें तो 2018 में 19.76 मिलियन मीट्रिक टन, 2019 में 19.01 मिलियन मीट्रिक टन, 2020 में 20.55 मिलियन मीट्रिक टन, 2021 में 21.18 मिलियन मीट्रिक टन और 2022 में 20.34 मिलियन मीट्रिक टन का टमाटर पैदा हुआ। यही नहीं, हम दुनिया में टमाटर के तीसरे सबसे बड़े निर्यातक देश हैं। पहले दो देशों में इटली और तुर्किये शामिल हैं।
सब्जियों को स्टोर और प्रोसेस करने की व्यवस्था नहीं
केंद्र सरकार टमाटर की कीमतों में उछाल को अस्थायी और मौसम जनित बता रही है। केंद्र के अनुसार, भयंकर गर्मी और उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बिपरजॉय तूफान के कारण भारी बारिश से टमाटर की फसल को भारी नुकसान हुआ। टमाटर ही नहीं मंडियों में अन्य हरी सब्जियों की कीमतों में भी उछाल देखा जा रहा है। लेकिन सवाल यही है कि प्राकृतिक आपदाएं आती रहेंगी तो उपाय क्या है?। दरअसल, देश में किसी भी सब्जी को प्रोसेस करके अगले मौसम तक संभाल कर रखने वाला इंतजाम फिलहाल किसी राज्य में मजबूत नहीं है। भारत में आज भी कृषि उत्पादों का सिर्फ 10% हिस्सा ही प्रोसेस करके सुरक्षित रखने की व्यवस्था उपलब्ध है। देश में फलों का सिर्फ 4.5% और सब्जियों का केवल 2.70%, मछली व समुद्री चीजों का 8%, दूध को 35% और 6% पोलट्री का हिस्सा ही प्रोसेस करके मुश्किल समय के लिए सुरक्षित रखने का इंतजाम देश में हो पाया है। ये देश के लिए एक बड़ी चुनौती है। इन्हीं सब वजहों से सब्जियों के दाम बढ़े हैं।
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‘मिनिस्ट्री ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स’, ‘फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन्स प्राइस मॉनिटरिंग’ द्वारा जारी आंकड़े देखें तो पिछले पांच वर्षों में गेहूं के दाम में 36.2 प्रतिशत, चावल के दाम में 32.2 प्रतिशत, दाल की कीमत में 84.8 प्रतिशत, दूध के दाम में 34.9 प्रतिशत, नमक के दाम में 44.6 प्रतिशत, चीनी के दाम में 12.5 प्रतिशत और चाय पत्ती के दाम में 31.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये वे वस्तुएं हैं, जिनके बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती है और जो रोजमर्रा के इस्तेमाल की हैं। वहीं, सब्जियों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं। टमाटर 100 रुपया किलो मिल रहा है। प्याज का दाम 25.9 प्रतिशत बढ़ गया। आलू के दाम में भी करीब 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
यह सब तब है जब, इस दौरान लोगों की आमदनी और खरीद क्षमता में बुरी तरह गिरावट दर्ज की जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2016 से 2021 के बीच में भारत के सबसे गरीब लोगों की आमदनी (खरीद क्षमता) में 50 प्रतिशत की गिरावट आई। उनकी किसी भी चीज को खरीदने की क्षमता 50 प्रतिशत कम हो गई और स्पष्ट तरीके से कहें तो उनके पास यदि कोई समान खरीदने के लिए पहले 100 रुपया था, तो वह घटकर 50 रुपया हो गया। इसी तरह 20 से 40 प्रतिशत लोगों की आमदनी 30 प्रतिशत हो गई। इसका साफ अर्थ है कि यदि उनकी आय 100 रुपये थी, तो वह घटकर 70 रुपये हो गई। 60 प्रतिशत लोगों की असल आमदनी गिरी है।
2014-15 और 2021-22 के बीच की कृषि क्षेत्र में वास्तविक मजदूरी की वृद्धि दर प्रति वर्ष 1 प्रतिशत से कम थी। दरअसल कृषि क्षेत्र की वास्तविक मजदूरी वृद्धि दर 0.9%, गैर-कृषि क्षेत्र की 0.3% और निर्माण क्षेत्र की (-0.02%) थी। निर्माण क्षेत्र में तो मजदूरी वृद्धि दर ऋणात्मक हो गयी। यानि मजदूरी बढ़ने की बजाय घट गयी।
पांच प्रमुख राज्यों (हरियाणा, केरल, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु) में 2014-15 और 2021-22 के बीच वास्तविक मजदूरी में वृद्धि के बजाय गिरावट आयी है। कुल मिलाकर, तथ्य यह है कि देश में वास्तविक मजदूरी आज भी उतनी ही है जितनी 2014-15 में थी। श्रम ब्यूरो के आंकड़े अनौपचारिक क्षेत्र में वास्तविक मजदूरी के ठहराव की ओर इशारा करते हैं।
एक तरफ 60 प्रतिशत नीचे के लोगों की आय (क्रय क्षमता) गिरी है, वहीं दूसरी तरफ बुनियादी वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। आम आदमी की जिंदगी के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखने वाला व्यक्ति इस बात का अंदाज लगा सकता है कि इस कमरतोड़ मंहगाई का उन पर क्या असर पड़ेगा।
पिछले माह किसानों को सड़कों पर फेंकना पड़ा था टमाटर, आज हुआ 100 के पार
इसी साल के अप्रैल-मई में हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के किसान टमाटर की सही कीमत न मिलने पर उन्हें सड़कों पर फेंक रहे थे। 19 मई 2023 को नासिक की कृषि उपज मंडी में टमाटर किसानों में खासी नाराजगी देखने को मिली थी। तब मंडी में टमाटर की बोली एक रुपये किलो लगी थी। जिसके विरोध में किसानों ने अपना सारा टमाटर सड़क पर फेंककर विरोध दर्ज कराया था।
ऐसा ही अप्रैल 2023 में हरियाणा के चरखी दादरी क्षेत्र में देखने को मिला। दरअसल, जब किसान टमाटर लेकर मंडी में बेचने के लिए पहुंचे तो उनके माल की बोली 3 से 4 रुपये प्रति किलो लगी। इतने कम दाम सुनकर किसान भड़क गये और ट्रांसपोर्ट का भाड़ा भी न निकलता देख, उन्होंने सड़कों पर ही टमाटर फेंक दिया था।
बात करें तो चीन के बाद भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टमाटर उत्पादक देश है। वर्तमान में कुल वैश्विक टमाटर उत्पादन में भारत का 11% हिस्सा है। स्टेटिस्टा की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल तकरीबन 20 मिलियन मीट्रिक टन टमाटर का उत्पादन होता है। आंकड़े देखें तो 2018 में 19.76 मिलियन मीट्रिक टन, 2019 में 19.01 मिलियन मीट्रिक टन, 2020 में 20.55 मिलियन मीट्रिक टन, 2021 में 21.18 मिलियन मीट्रिक टन और 2022 में 20.34 मिलियन मीट्रिक टन का टमाटर पैदा हुआ। यही नहीं, हम दुनिया में टमाटर के तीसरे सबसे बड़े निर्यातक देश हैं। पहले दो देशों में इटली और तुर्किये शामिल हैं।
सब्जियों को स्टोर और प्रोसेस करने की व्यवस्था नहीं
केंद्र सरकार टमाटर की कीमतों में उछाल को अस्थायी और मौसम जनित बता रही है। केंद्र के अनुसार, भयंकर गर्मी और उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बिपरजॉय तूफान के कारण भारी बारिश से टमाटर की फसल को भारी नुकसान हुआ। टमाटर ही नहीं मंडियों में अन्य हरी सब्जियों की कीमतों में भी उछाल देखा जा रहा है। लेकिन सवाल यही है कि प्राकृतिक आपदाएं आती रहेंगी तो उपाय क्या है?। दरअसल, देश में किसी भी सब्जी को प्रोसेस करके अगले मौसम तक संभाल कर रखने वाला इंतजाम फिलहाल किसी राज्य में मजबूत नहीं है। भारत में आज भी कृषि उत्पादों का सिर्फ 10% हिस्सा ही प्रोसेस करके सुरक्षित रखने की व्यवस्था उपलब्ध है। देश में फलों का सिर्फ 4.5% और सब्जियों का केवल 2.70%, मछली व समुद्री चीजों का 8%, दूध को 35% और 6% पोलट्री का हिस्सा ही प्रोसेस करके मुश्किल समय के लिए सुरक्षित रखने का इंतजाम देश में हो पाया है। ये देश के लिए एक बड़ी चुनौती है। इन्हीं सब वजहों से सब्जियों के दाम बढ़े हैं।
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