"भारत सरकार की महत्वपूर्ण रोजगार योजना मनरेगा के तहत अकुशल मैनुअल श्रमिकों के लिए औसत मजदूरी दर 2018-19 से ही काफी सुस्त गति से बढ़ रही है। 2018-19 में औसत मजदूरी दर ₹ 207 थी, जो 2023-24 में बढ़ कर ₹ 259 तक हो गई है। यह इस अवधि में केवल 4.5 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बढ़ती महंगाई के बीच बुनियादी जरुरतों को पूरा करने में ये मज़दूरी दर अपर्याप्त रही है। बीते 5 वर्षों में देखा जाये तो ग्रामीण मुद्रास्फीति को कवर करने में वर्तमान मज़दूरी दर पूरी तरह से अक्षम रही है।"
यही कारण है कि बढ़ती महंगाई के बीच मनरेगा मज़दूरों के हालात खस्ताहाल हो गए हैं। बढ़ती महंगाई के मुकाबले मज़दूरी में मामूली इजाफे से पेट भरना भी मुश्किल हो गया है। जी हां, मनरेगा की मजदूरी दर में 8.71 प्रतिशत की सबसे तेज वृद्धि 2020-21 में की गई थी, जब महामारी के दौरान मज़दूर अपने गृहनगर की ओर पलायन कर रहे थे। 2022-23 में वृद्धि की गई लेकिन वो सिर्फ 1.55 प्रतिशत थी। भारत सरकार की महत्वपूर्ण रोजगार योजना मनरेगा के तहत अकुशल मैनुअल श्रमिकों के लिए औसत मजदूरी दर 2018-19 से ही काफी सुस्त गति से बढ़ रही है। 2018-19 में औसत मजदूरी दर ₹ 207 थी, जो 2023-24 में बढ़ कर ₹ 259 तक हो गई है। यह इस अवधि में केवल 4.5 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बढ़ती महंगाई के बीच बुनियादी जरुरतों को पूरा करने में ये मज़दूरी दर अपर्याप्त रही है। बीते 5 वर्षों में देखा जाये तो ग्रामीण मुद्रास्फीति को कवर करने में वर्तमान मज़दूरी दर पूरी तरह से अक्षम रही है।
केंद्र की इस रोजगार सृजन योजना का उद्देश्य अकुशल मैनुअल मजदूरों/प्रत्येक ग्रामीण घर को 100 दिन की गारंटी रोजगार प्रदान करना है। लेकिन 2009 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा मजदूरी से न्यूनतम मजदूरी को हटा दिया, जिसकी वजह से मनरेगा के तहत मज़दूरी बढ़ने की दर धीमा हो गई है। हालांकि केंद्र हर साल मनरेगा पर एक बड़ी राशि खर्च करती रही है। 2023-24 में छह सबसे महत्वपूर्ण ‘कोर योजनाओं’ के लिए संशोधित राशि ₹ 1.08 लाख करोड़ आवंटित की गई, जिसमें 79 प्रतिशत फंड मनरेगा को आवंटित किया गया।
द हिंदू बिजनेसलाइन और मजदूर यूनिटी की रिपोर्ट्स के अनुसार, आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में हरियाणा, केरल और कर्नाटक ने भारत में अकुशल श्रम के लिए उच्चतम मजदूरी प्रदान की जो क्रमशः ₹ 357, ₹ 333, और ₹ 316 हैं। वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं जो योजना के तहत बहुत कम मजदूरी देते हैं। 2021-22 में प्रतापराव जाधव की अध्यक्षता में ग्रामीण विकास और पंचायती राज द्वारा स्थायी समिति का भी कहना है कि ”राज्यों के बीच मजदूरी दरों में उतार-चढ़ाव चिंतनीय और अनुचित है। इसलिए असमानता को समाप्त करने के लिए एक समान मजदूरी दर की सिफारिश की जाती है।”
हालांकि मज़दूर किसान शक्ति संघ से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और संस्थापक सदस्य निखिल डे कहते हैं “राज्यों में मजदूरी का मानकीकरण एक अच्छा विचार नहीं हो सकता है। क्योंकि लोगों के जीवन, जरूरतों और आकांक्षाओं के मानक स्थान- स्थान पर भिन्न होते हैं। इसलिए सरकार को स्थानीय संदर्भ और आवश्यकताओं के अनुसार मजदूरी प्रदान करने पर विचार करना चाहिए।” आंकड़े भी बता रहें कि मनरेगा में रोजगार की मांगों की संख्या में गिरावट का संकेत मिल रहे हैं। मनरेगा के तहत रोजगार की मांग 2021-22 में 8.05 करोड़ से घटकर 2023-24 में 6.20 करोड़ हो गई है।
डे बताते हैं “ मनरेगा के तहत रोजगार की मांग में कमी के कई कारण हैं। पहला कारण तो यही है कि लोगों को लगातार काम का नहीं मिलना। इसके अलावा मनरेगा में कई और भी समस्याएं हैं, जैसे कि मजदूरी मिलने में देरी। नतीजतन लोग अन्य विकल्पों की तरफ चले जातें हैं। अब तो इसमें मज़दूरी प्राप्त करने की प्रक्रिया में कई तरह की तकनीकी चीजें जोड़ दी गई हैं ,जो मज़दूरों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।“ मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में मनरेगा मजदूरी समय पर न मिलने की शिकायत है।
केंद्र सरकार समय से जारी नहीं कर रही राज्यों का बजट!
ग्रामीण मजदूरों को गरीबी से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभाने वाली 'मनरेगा' यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के मध्य प्रदेश में हाल बेहाल है। मध्य प्रदेश आदि राज्यों के मजदूरों को पिछले कई महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। अपने मेहनताने यानी मेहनत की मजदूरी के लिए मजदूर दर-दर भटकने को मजबूर हो रहे हैं। यह योजना केंद्र सरकार के फंड से चलने वाली है, लिहाजा विभाग को केंद्र से पैसा आने का इंतजार है। प्रदेश मे 2 लाख से ज्यादा मनरेगा मजदूरों को पिछले दो महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। मजदूर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। एक तो मजदूरी की और अब मजदूरी के पैसे के लिए पंचायत से लेकर जनपद के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे मजदूरी मिल जानी चाहिए : प्रियंका गांधी
मध्य प्रदेश के मजदूरों को पिछले कई महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। पिछले माह NDTV ने अपनी खबर में इस मुद्दे को उठाते हुए बताया था कि प्रदेश में 2 लाख से ज्यादा मनरेगा मजदूरों को पिछले दो महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। ऐसे में मजदूर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। एक तो मजदूरी की और अब मजदूरी के पैसे के लिए पंचायत से लेकर जनपद के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। NDTV की इस खबर को कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी किया शेयर है।
NDTV की खबर को शेयर करते हुए प्रियंका गांधी ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे मजदूरी मिल जानी चाहिए। “अमृतकाल” में यह मुहावरा मजदूरों के लिए मजाक बनके रह गया है? प्रियंका ने आगे लिखा है कि खबरों के मुताबिक, 1 फरवरी तक राज्यों का 16,000 करोड़ का मनरेगा भुगतान बकाया है। मजदूरों के सामने बच्चे पालने का संकट है लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रधानमंत्री जी ने पहले मनरेगा को कांग्रेस की “असफलता का स्मारक” बताया, उसे बंद करने की कोशिश की। लेकिन जब जमीनी सच्चाई से रूबरू हुए तो इसे बंद नहीं कर पाए मगर लगातार बजट घटाया। इस बार भी मामूली बढ़ोतरी करके वाहवाही लूटने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सच्चाई ये है कि बजट में आवंटित राशि 2023-24 के संशोधित बजट के बराबर ही है। जानकारों का कहना है कि बकाया व अन्य खर्चे चुकाने के बाद जो राशि बचेगी, उसमें महज 25 दिनों का रोजगार दिया जा सकेगा जबकि मनरेगा योजना 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देती है।
कई अन्य राज्यों में भी दिक्कत
महंगाई दर के मुकाबले कम मजदूरी बढ़ोत्तरी की बात एक बारी न भी करें तो समय पर भुगतान भी कम बड़ी समस्या नहीं है। मध्य प्रदेश के साथ ही कई अन्य राज्यों में भी समय से भुगतान न हो पाने की समस्या आम है। जिसका बड़ा कारण केंद्र द्वारा राज्यों को समय से भुगतान न करना ही है। पिछले दिनों पश्चिमी बंगाल की ममता सरकार ने मनरेगा भुगतान को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन करना पड़ा था। कई अन्य राज्यों में भी केंद्र द्वारा समय से पैसा जारी न करने की बात गाहे बगाहे देखने सुनने को मिलती रहती है। प्रियंका गांधी ने लिखा कि कांग्रेस सरकार मनरेगा लाई थी ताकि आम ग्रामीणों, गरीबों, मजदूरों के हाथ में पैसा आए और उनका घर चले। बीजेपी सरकार मनरेगा को कमजोर करके देश के मजदूरों के साथ अन्याय कर रही है।
आधार से पेमेंट के केंद्र सरकार के फैसले ने छीना 1.70 करोड़ मजूदरों से रोजगार?
आधार से पेमेंट के केंद्र सरकार के फैसले ने 1.70 करोड़ मजूदरों से रोजगार छीन लिया है। जी हां, हाल ही में मनरेगा में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। पहले मजदूरी का भुगतान मजदूर के किसी भी बैंक खाते में कर दिया जाता था। जिससे की मनरेगा की मजदूरी बहुत से लोगों को प्राप्त नहीं हो पाती थी इसलिए इस गड़बड़ी से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2024 से नया नियम लागू कर दिया है जो कि आधार बेस्ड है। अब मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान उनके आधार से लिंक खाते में किया जाएगा। इसलिए आधार कार्ड से बैंक खाते को लिंक करवाना बहुत जरूरी है। क्योंकि मजदूरी के भुगतान के लिए आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम अनिवार्य कर दिया गया है।
खास है कि पहले मनरेगा की दिहाड़ी हाथों हाथ दी जाती थी। किंतु 11 जनवरी 2024 से मजदूरी में होने वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए जो नया आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम लागू किया गया है उससे बहुत से मजदूरों को समस्या का सामना करना पड़ा। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम के तहत 25 करोड़ लोगों ने इसके लिए रजिस्टर किया है और करीब 14.32 करोड़ लोग कार्य कर रहे हैं। परंतु बहुत से मजदूरों का आधार उनके बैंक खाते से लिंक नही है इसीलिए यह नियम आलोचना का पात्र बना हुआ है। लगभग 1.70 करोड़ लोग आधार पेमेंट सिस्टम लागू होने के बाद बेरोजगार है। क्योंकि उनका बैंक में खाता नही खुला है। हालांकि केंद्रीय मंत्रालय ने कहा है कि यदि कोई तकनीकी दिक्कत आएगी तो मजदूरों को छूट दी जाएगी। कुछ मजदूरों ने इस नए बदलाव की आलोचना कि है। उनका कहना है कि इससे उनका अधिकार छीन लिया गया है। यदि इस तरह नरेगा में काम करने वाले मज़दूरों को रोजगार उपलब्ध नही करवाया जाएगा तो ग्रामीण क्षेत्रो में सरकार के खिलाफ रोष पैदा होगा।
क्या है आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम?
आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम में आधार कार्ड से लिंक बैंक खाते में मजदूरी का भुगतान किया जाता है। मनरेगा कि मजदूरी के भुगतान हेतु पहले आधार कार्ड के विवरण को जॉब कार्ड से जोड़ा जाता है। इसके पश्चात आधार कार्ड को बैंक खाते खाते से जोड़ा जाता है। परंतु ज्यादातर श्रमिकों का बैंक खाता नहीं है जिसकी वजह से मजदूरी का भुगतान उनके खाते में नही किया जाएगा। इससे उनके लिए समस्या उत्पन्न हो जाएगी। राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम ऐप की मदद से मजदूरों की उपस्थिति को दर्ज किया जाएगा।
क्या है मनरेगा योजना?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) अगस्त 2005 में भारतीय संसद से पारित हुआ। 2 फरवरी 2006 को यह योजना लागू की गई। ग्रामीणों को उनके जीवन स्तर को सुधाराने के लिए कानूनी रूप से कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिया जाता है। इस योजना से देश के कई लाख ग्रामीणों को गरीबी से बाहर निकाला जा चुका है। मध्य प्रदेश मे कुल 1 करोड़ 7 लाख 46 हज़ार 359 एक्टिव मज़दूर हैं। एमपी मे एक दिन की मजदूरी के एवज़ मे 221 रुपये दिये जाते हैं। कोरोना काल मे मनरेगा स्कीम लोगों के लिए रोजगार का सहारा बनी थी। मनरेगा में 60% मजदूरी और 40% सामग्री का काम लिया जाता है।
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यही कारण है कि बढ़ती महंगाई के बीच मनरेगा मज़दूरों के हालात खस्ताहाल हो गए हैं। बढ़ती महंगाई के मुकाबले मज़दूरी में मामूली इजाफे से पेट भरना भी मुश्किल हो गया है। जी हां, मनरेगा की मजदूरी दर में 8.71 प्रतिशत की सबसे तेज वृद्धि 2020-21 में की गई थी, जब महामारी के दौरान मज़दूर अपने गृहनगर की ओर पलायन कर रहे थे। 2022-23 में वृद्धि की गई लेकिन वो सिर्फ 1.55 प्रतिशत थी। भारत सरकार की महत्वपूर्ण रोजगार योजना मनरेगा के तहत अकुशल मैनुअल श्रमिकों के लिए औसत मजदूरी दर 2018-19 से ही काफी सुस्त गति से बढ़ रही है। 2018-19 में औसत मजदूरी दर ₹ 207 थी, जो 2023-24 में बढ़ कर ₹ 259 तक हो गई है। यह इस अवधि में केवल 4.5 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बढ़ती महंगाई के बीच बुनियादी जरुरतों को पूरा करने में ये मज़दूरी दर अपर्याप्त रही है। बीते 5 वर्षों में देखा जाये तो ग्रामीण मुद्रास्फीति को कवर करने में वर्तमान मज़दूरी दर पूरी तरह से अक्षम रही है।
केंद्र की इस रोजगार सृजन योजना का उद्देश्य अकुशल मैनुअल मजदूरों/प्रत्येक ग्रामीण घर को 100 दिन की गारंटी रोजगार प्रदान करना है। लेकिन 2009 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा मजदूरी से न्यूनतम मजदूरी को हटा दिया, जिसकी वजह से मनरेगा के तहत मज़दूरी बढ़ने की दर धीमा हो गई है। हालांकि केंद्र हर साल मनरेगा पर एक बड़ी राशि खर्च करती रही है। 2023-24 में छह सबसे महत्वपूर्ण ‘कोर योजनाओं’ के लिए संशोधित राशि ₹ 1.08 लाख करोड़ आवंटित की गई, जिसमें 79 प्रतिशत फंड मनरेगा को आवंटित किया गया।
द हिंदू बिजनेसलाइन और मजदूर यूनिटी की रिपोर्ट्स के अनुसार, आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 में हरियाणा, केरल और कर्नाटक ने भारत में अकुशल श्रम के लिए उच्चतम मजदूरी प्रदान की जो क्रमशः ₹ 357, ₹ 333, और ₹ 316 हैं। वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं जो योजना के तहत बहुत कम मजदूरी देते हैं। 2021-22 में प्रतापराव जाधव की अध्यक्षता में ग्रामीण विकास और पंचायती राज द्वारा स्थायी समिति का भी कहना है कि ”राज्यों के बीच मजदूरी दरों में उतार-चढ़ाव चिंतनीय और अनुचित है। इसलिए असमानता को समाप्त करने के लिए एक समान मजदूरी दर की सिफारिश की जाती है।”
हालांकि मज़दूर किसान शक्ति संघ से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और संस्थापक सदस्य निखिल डे कहते हैं “राज्यों में मजदूरी का मानकीकरण एक अच्छा विचार नहीं हो सकता है। क्योंकि लोगों के जीवन, जरूरतों और आकांक्षाओं के मानक स्थान- स्थान पर भिन्न होते हैं। इसलिए सरकार को स्थानीय संदर्भ और आवश्यकताओं के अनुसार मजदूरी प्रदान करने पर विचार करना चाहिए।” आंकड़े भी बता रहें कि मनरेगा में रोजगार की मांगों की संख्या में गिरावट का संकेत मिल रहे हैं। मनरेगा के तहत रोजगार की मांग 2021-22 में 8.05 करोड़ से घटकर 2023-24 में 6.20 करोड़ हो गई है।
डे बताते हैं “ मनरेगा के तहत रोजगार की मांग में कमी के कई कारण हैं। पहला कारण तो यही है कि लोगों को लगातार काम का नहीं मिलना। इसके अलावा मनरेगा में कई और भी समस्याएं हैं, जैसे कि मजदूरी मिलने में देरी। नतीजतन लोग अन्य विकल्पों की तरफ चले जातें हैं। अब तो इसमें मज़दूरी प्राप्त करने की प्रक्रिया में कई तरह की तकनीकी चीजें जोड़ दी गई हैं ,जो मज़दूरों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।“ मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में मनरेगा मजदूरी समय पर न मिलने की शिकायत है।
केंद्र सरकार समय से जारी नहीं कर रही राज्यों का बजट!
ग्रामीण मजदूरों को गरीबी से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभाने वाली 'मनरेगा' यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के मध्य प्रदेश में हाल बेहाल है। मध्य प्रदेश आदि राज्यों के मजदूरों को पिछले कई महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। अपने मेहनताने यानी मेहनत की मजदूरी के लिए मजदूर दर-दर भटकने को मजबूर हो रहे हैं। यह योजना केंद्र सरकार के फंड से चलने वाली है, लिहाजा विभाग को केंद्र से पैसा आने का इंतजार है। प्रदेश मे 2 लाख से ज्यादा मनरेगा मजदूरों को पिछले दो महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। मजदूर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। एक तो मजदूरी की और अब मजदूरी के पैसे के लिए पंचायत से लेकर जनपद के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे मजदूरी मिल जानी चाहिए : प्रियंका गांधी
मध्य प्रदेश के मजदूरों को पिछले कई महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। पिछले माह NDTV ने अपनी खबर में इस मुद्दे को उठाते हुए बताया था कि प्रदेश में 2 लाख से ज्यादा मनरेगा मजदूरों को पिछले दो महीने से मजदूरी का पैसा नहीं मिला है। ऐसे में मजदूर अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं। एक तो मजदूरी की और अब मजदूरी के पैसे के लिए पंचायत से लेकर जनपद के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। NDTV की इस खबर को कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी किया शेयर है।
NDTV की खबर को शेयर करते हुए प्रियंका गांधी ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे मजदूरी मिल जानी चाहिए। “अमृतकाल” में यह मुहावरा मजदूरों के लिए मजाक बनके रह गया है? प्रियंका ने आगे लिखा है कि खबरों के मुताबिक, 1 फरवरी तक राज्यों का 16,000 करोड़ का मनरेगा भुगतान बकाया है। मजदूरों के सामने बच्चे पालने का संकट है लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
प्रधानमंत्री जी ने पहले मनरेगा को कांग्रेस की “असफलता का स्मारक” बताया, उसे बंद करने की कोशिश की। लेकिन जब जमीनी सच्चाई से रूबरू हुए तो इसे बंद नहीं कर पाए मगर लगातार बजट घटाया। इस बार भी मामूली बढ़ोतरी करके वाहवाही लूटने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सच्चाई ये है कि बजट में आवंटित राशि 2023-24 के संशोधित बजट के बराबर ही है। जानकारों का कहना है कि बकाया व अन्य खर्चे चुकाने के बाद जो राशि बचेगी, उसमें महज 25 दिनों का रोजगार दिया जा सकेगा जबकि मनरेगा योजना 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देती है।
कई अन्य राज्यों में भी दिक्कत
महंगाई दर के मुकाबले कम मजदूरी बढ़ोत्तरी की बात एक बारी न भी करें तो समय पर भुगतान भी कम बड़ी समस्या नहीं है। मध्य प्रदेश के साथ ही कई अन्य राज्यों में भी समय से भुगतान न हो पाने की समस्या आम है। जिसका बड़ा कारण केंद्र द्वारा राज्यों को समय से भुगतान न करना ही है। पिछले दिनों पश्चिमी बंगाल की ममता सरकार ने मनरेगा भुगतान को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन करना पड़ा था। कई अन्य राज्यों में भी केंद्र द्वारा समय से पैसा जारी न करने की बात गाहे बगाहे देखने सुनने को मिलती रहती है। प्रियंका गांधी ने लिखा कि कांग्रेस सरकार मनरेगा लाई थी ताकि आम ग्रामीणों, गरीबों, मजदूरों के हाथ में पैसा आए और उनका घर चले। बीजेपी सरकार मनरेगा को कमजोर करके देश के मजदूरों के साथ अन्याय कर रही है।
आधार से पेमेंट के केंद्र सरकार के फैसले ने छीना 1.70 करोड़ मजूदरों से रोजगार?
आधार से पेमेंट के केंद्र सरकार के फैसले ने 1.70 करोड़ मजूदरों से रोजगार छीन लिया है। जी हां, हाल ही में मनरेगा में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। पहले मजदूरी का भुगतान मजदूर के किसी भी बैंक खाते में कर दिया जाता था। जिससे की मनरेगा की मजदूरी बहुत से लोगों को प्राप्त नहीं हो पाती थी इसलिए इस गड़बड़ी से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2024 से नया नियम लागू कर दिया है जो कि आधार बेस्ड है। अब मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान उनके आधार से लिंक खाते में किया जाएगा। इसलिए आधार कार्ड से बैंक खाते को लिंक करवाना बहुत जरूरी है। क्योंकि मजदूरी के भुगतान के लिए आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम अनिवार्य कर दिया गया है।
खास है कि पहले मनरेगा की दिहाड़ी हाथों हाथ दी जाती थी। किंतु 11 जनवरी 2024 से मजदूरी में होने वाली गड़बड़ी को रोकने के लिए जो नया आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम लागू किया गया है उससे बहुत से मजदूरों को समस्या का सामना करना पड़ा। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम के तहत 25 करोड़ लोगों ने इसके लिए रजिस्टर किया है और करीब 14.32 करोड़ लोग कार्य कर रहे हैं। परंतु बहुत से मजदूरों का आधार उनके बैंक खाते से लिंक नही है इसीलिए यह नियम आलोचना का पात्र बना हुआ है। लगभग 1.70 करोड़ लोग आधार पेमेंट सिस्टम लागू होने के बाद बेरोजगार है। क्योंकि उनका बैंक में खाता नही खुला है। हालांकि केंद्रीय मंत्रालय ने कहा है कि यदि कोई तकनीकी दिक्कत आएगी तो मजदूरों को छूट दी जाएगी। कुछ मजदूरों ने इस नए बदलाव की आलोचना कि है। उनका कहना है कि इससे उनका अधिकार छीन लिया गया है। यदि इस तरह नरेगा में काम करने वाले मज़दूरों को रोजगार उपलब्ध नही करवाया जाएगा तो ग्रामीण क्षेत्रो में सरकार के खिलाफ रोष पैदा होगा।
क्या है आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम?
आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम में आधार कार्ड से लिंक बैंक खाते में मजदूरी का भुगतान किया जाता है। मनरेगा कि मजदूरी के भुगतान हेतु पहले आधार कार्ड के विवरण को जॉब कार्ड से जोड़ा जाता है। इसके पश्चात आधार कार्ड को बैंक खाते खाते से जोड़ा जाता है। परंतु ज्यादातर श्रमिकों का बैंक खाता नहीं है जिसकी वजह से मजदूरी का भुगतान उनके खाते में नही किया जाएगा। इससे उनके लिए समस्या उत्पन्न हो जाएगी। राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम ऐप की मदद से मजदूरों की उपस्थिति को दर्ज किया जाएगा।
क्या है मनरेगा योजना?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) अगस्त 2005 में भारतीय संसद से पारित हुआ। 2 फरवरी 2006 को यह योजना लागू की गई। ग्रामीणों को उनके जीवन स्तर को सुधाराने के लिए कानूनी रूप से कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिया जाता है। इस योजना से देश के कई लाख ग्रामीणों को गरीबी से बाहर निकाला जा चुका है। मध्य प्रदेश मे कुल 1 करोड़ 7 लाख 46 हज़ार 359 एक्टिव मज़दूर हैं। एमपी मे एक दिन की मजदूरी के एवज़ मे 221 रुपये दिये जाते हैं। कोरोना काल मे मनरेगा स्कीम लोगों के लिए रोजगार का सहारा बनी थी। मनरेगा में 60% मजदूरी और 40% सामग्री का काम लिया जाता है।
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