नोटबन्दी और जीएसटीः दो ऐसे निर्णय जिसने एक प्रगतिशील अर्थव्यवस्था की गति को दिए बड़े झटके

Written by Girish Malviya | Published on: September 5, 2018
इतिहास में नोटबन्दी ओर जीएसटी ऐसे दो निर्णय गिने जाएंगे जिसने एक प्रगतिशील अर्थव्यवस्था की गति को एकाएक बाधित कर दिया.



कल जो रिपोर्ट इंडियन एक्सप्रेस में छपी है उसमे एक आरटीआई के हवाले से यह साफ किया गया है कि देश के सूक्ष्म और लघु उद्योगों को नोटबंदी और बाद में जीएसटी लागू होने से तगड़ा झटका लगा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि बहुत छोटे और लघु उद्योगों का लोन डिफॉल्ट मार्जिन मार्च 2017 के 8249 करोड़ रुपए के मुकाबले फीसदी है.

यानी देश के छोटे उद्योगो की आर्थिक हालत इन दोनों निर्णयों से बहुत बिगड़ गयी हैं, आरटीआई से यह भी पता चला है कि सूक्ष्म और लघु उद्योगों का एनपीए 82382 करोड़ रुपए से बढ़कर मार्च 2018 तक 98500 करोड़ रुपए हो गया है.

उदाहरण के तौर पर आरबीआई ने माना कि रत्न और आभूषण से जुड़े उद्योग में नोटबंदी के बाद कैश की कमी की वजह से कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कई मजदूरों को वेतन तक नहीं मिला छोटे ज़िलों में ग्रोथ रेट घटी है, जबकि पहले वहां ग्रोथ रेट काफी अच्छी थी.

कल क्विंट ने भी नोटबन्दी पर आरबीआई की रिपोर्ट का एनेलिसिस करते हुए तीन महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखे.

1. कैश पर लोगों का भरोसा पहले से ज्यादा बढ़ा

नोटबन्दी के बाद 2017-18 में घरों में रखा कैश का लेवल पिछले पांच साल के औसत से दोगुने से ज्यादा है. इसके ठीक उलट, लोग जितना पैसा बैंक में रखते थे अब उसकी आधी रकम ही सेविंग्स अकाउंट में रखने लगे हैं.

2. देश की मैन्यूफेक्चरिंग सेक्टर पर नोटबंदी की मार अभी तक खत्म नहीं हुई है

रिजर्व बैंक से सलाना रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रॉस वैल्यू एडिशन ग्रोथ में इंडस्ट्री का हिस्सा 2015-16 में 33 परसेंट का था जो 2017-18 में घटकर 20 परसेंट रह गया. मतलब यह कि इकॉनोमी की रफ्तार में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान नोटबंदी के बाद काफी कम हो गया.

3. बैंकों से कर्ज लेने वालो की संख्या में भारी कमी आयी है

नोटबंदी के कुछ महीने बाद क्रेडिट ग्रोथ मार्च 2017 में यह ऐतिहासिक लो लेवेल पर पहुंच गई थी. तब से रिकवरी तो हुई है लेकिन मामूली ही. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के हिसाब से इंडस्ट्री को देने वाले लोन की रफ्तार में बढ़ोतरी की रफ्तार 2018 में भी 1 परसेंट से कम हैं.

इसके बाद सरकार द्वारा फैलाए गए एक ओर सबसे बड़े दुष्प्रचार की पोल खोली गयी है कि नोटबन्दी के बाद टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी हुई हैं.

दरअसल यूपीए 2 के शासन में टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी उसी रफ्तार से हो रही थी जिस रफ्तार से देश का जीडीपी बढ़ रहा था मोदी सरकार के पहले दो साल में इसमें भारी गिरावट हुई. अब पिछले दो साल से यह बदलने लगा है लेकिन एक व्यापक परिपेक्ष्य में हम टैक्स कलेक्शन की रफ्तार को देखेंगे तो हमे कोई खास बढ़ोतरी नही दिखाई देगी.

यानी ओवरऑल यह अनुमान लगाया जा सकता है कि मोदी सरकार के शासन काल में टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी की दर औसतन वही रहेगी जिस रफ्तार से देश की जीडीपी बढ़ी है मतलब टैक्स कलेक्शन के नाम पर भी लोगो को भरमाया जा रहा है.

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