नई दिल्ली। विश्वविद्यालयों में 200 प्वाइंट रोस्टर के बदले विभागवार 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर पूरे देश में आंदोलन शुरू हो गए हैं। विपक्षी दलों के नेताओं के साथा ही अब केंद्र में सत्तासीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री व अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल ने अपनी ही सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।
बीते 31 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई दिल्ली में हुई एनडीए की बैठक में उन्होंने इस मामले को उठाया। उन्होंने कहा कि रोस्टर सिस्टम को लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) वर्ग के लोगों में आक्रोश है। इस मामले को सुलझाने के लिए सरकार हस्तक्षेप करे।
बताते चलें कि पिछले साल जुलाई महीने में मानसून सत्र के पहले एनडीए की बैठक में भी अनुप्रिया पटेल ने यह सवाल उठाया था। हालांकि तब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर किया था। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज कर दिए जाने के बाद एक बार फिर से इस मामले ने तूल पकड़ लिया है।
अनुप्रिया पटेल ने कहा कि पिछले दिनों मीडिया में खबर आई थी कि देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी वर्ग के प्रोफेसर की संख्या महज 39 (3.47 प्रतिशत), एसटी वर्ग के प्रोफेसर की संख्या महज 8 (0.7 प्रतिशत) और ओबीसी प्रोफेसर की संख्या शून्य है। जबकि सामान्य वर्ग के प्रोफेसर की संख्या 1125 में से 1071 (95.2 प्रतिशत) है।
इसी तरह इन विश्वविद्यालयों में एससी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 130 (4.96 प्रतिशत), एसटी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 34 (1.30 प्रतिशत) और ओबीसी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या शून्य है। जबकि सामान्य वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 2620 में 2434 (92.90 प्रतिशत) है। यदि उच्च शिक्षण संस्थानों में रोस्टर सिस्टम के जरिए प्रोफेसर की भर्ती होगी तो आरक्षित वर्ग के प्रोफेसर की संख्या आने वाले समय में और अधिक घट जाएगी।
साभार- फॉरवर्ड प्रेस
बीते 31 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई दिल्ली में हुई एनडीए की बैठक में उन्होंने इस मामले को उठाया। उन्होंने कहा कि रोस्टर सिस्टम को लेकर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) वर्ग के लोगों में आक्रोश है। इस मामले को सुलझाने के लिए सरकार हस्तक्षेप करे।
बताते चलें कि पिछले साल जुलाई महीने में मानसून सत्र के पहले एनडीए की बैठक में भी अनुप्रिया पटेल ने यह सवाल उठाया था। हालांकि तब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर किया था। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज कर दिए जाने के बाद एक बार फिर से इस मामले ने तूल पकड़ लिया है।
अनुप्रिया पटेल ने कहा कि पिछले दिनों मीडिया में खबर आई थी कि देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी वर्ग के प्रोफेसर की संख्या महज 39 (3.47 प्रतिशत), एसटी वर्ग के प्रोफेसर की संख्या महज 8 (0.7 प्रतिशत) और ओबीसी प्रोफेसर की संख्या शून्य है। जबकि सामान्य वर्ग के प्रोफेसर की संख्या 1125 में से 1071 (95.2 प्रतिशत) है।
इसी तरह इन विश्वविद्यालयों में एससी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 130 (4.96 प्रतिशत), एसटी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 34 (1.30 प्रतिशत) और ओबीसी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या शून्य है। जबकि सामान्य वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 2620 में 2434 (92.90 प्रतिशत) है। यदि उच्च शिक्षण संस्थानों में रोस्टर सिस्टम के जरिए प्रोफेसर की भर्ती होगी तो आरक्षित वर्ग के प्रोफेसर की संख्या आने वाले समय में और अधिक घट जाएगी।
साभार- फॉरवर्ड प्रेस