स्पष्टीकरण से मुस्लिम समुदाय के भीतर का डर कम नहीं हुआ है। वे इस कदम को अपने सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों की बर्बादी के तौर पर देखते हैं।
आठ उर्दू मीडियम स्कूलों को हिंदी मीडियम स्कूल में बदलने के फैसले ने राजस्थान के अजमेर में स्थानीय मुस्लिम समाज में भारी विरोध शुरू हो गया है। लोग इस फैसले को अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा मानते हैं, क्योंकि ये विद्यालय ऐतिहासिक रूप से समुदाय की पहचान रहे हैं।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के अजमेर में दरगाह इलाके जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थित सरकारी प्राथमिक उर्दू स्कूल बड़बाव और सरकारी बालिका उच्च प्राथमिक उर्दू स्कूल अंदरकोट सहित प्रभावित विद्यालय में लगभग 300 छात्र पढ़ाई करते हैं और दोनों ही स्कूल 1941 से अल्पसंख्यक समुदाय को उर्दू में शिक्षा देते रहे हैं।
इस बदलाव ने लड़कियों की शिक्षा के भविष्य को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं। प्रभावित स्कूलों में से एक स्कूल जो सिर्फ लड़कियों के लिए है उसको सह-शिक्षा वाले हिंदी मीडियम स्कूल में मिला दिया गया है। स्थानीय लोगों को चिंता है कि माता-पिता अपनी बेटियों को इस सह-शिक्षा वाले माहौल में भेजने में संकोच कर सकते हैं, जिससे इलाके में लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसर कम हो सकते हैं।
कांग्रेस पार्टी के अल्पसंख्यक विंग के राज्य महासचिव एसएम अकबर ने कहा, "अंदरकोट क्षेत्र पूरी तरह से अल्पसंख्यक आबादी वाला है, और लड़कियों के स्कूल को सह-शिक्षा स्कूल में विलय करने से कई परिवार अपनी बेटियों की शिक्षा जारी रखने से पीछे हटेंगे।" उन्होंने इस विलय को रद्द करने की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।
यह निर्णय भाजपा के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार द्वारा दिसंबर 2024 में पुलिस विभाग में उर्दू और फारसी शब्दों की जगह हिंदी शब्दावली के इस्तेमाल के निर्देश के बाद आया है। समाज के नेताओं का कहना है कि इस कदम से उर्दू के संरक्षण को खतरा है और छात्रों को अपनी मातृभाषा में अधिक सहजता से सीखने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
स्थानीय लोगों में नाराजगी
हाल ही में एक धरना प्रदर्शन में एक अभिभावक ने कहा, "उर्दू हमारी पहचान का अभिन्न हिस्सा है। इसे हमारे स्कूलों से हटाकर सरकार हमारे इतिहास और पहचान को मिटा रही है।"
स्थानीय नेता मोहम्मद रजी ने इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे समाज के अपनी पसंदीदा भाषा में शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा, "यह केवल भाषा को लेकर नहीं है बल्कि यह शैक्षिक समानता को लेकर भी है।" एक अन्य प्रदर्शनकारी यास्मीन जहान ने राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर पर राज्य में सांस्कृतिक विविधता को कमजोर करने के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया।
समाज के लोगों ने जिला कलेक्टर और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को एक ज्ञापन सौंप कर इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों पर ध्यान खींचने के लिए सामूहिक रैलियों सहित बड़े विरोध प्रदर्शनों की योजना की भी घोषणा की है।
उर्दू मीडियम के स्कूल अजमेर के इतिहास में गहराई से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने आठ दशकों से समुदाय की सेवा की है। हालांकि, इन संस्थानों को उर्दू पाठ्यपुस्तकों और योग्य शिक्षकों की कमी सहित लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
स्कूल शिक्षक असलम खान ने सरकार के रूख पर सवाल उठाते हुए सुझाव दिया कि उर्दू और हिंदी दोनों ही शिक्षा के माध्यम के रूप में एक साथ रह सकते हैं। उन्होंने कहा, "यह मुद्दा शिक्षा में सुधार को लेकर नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक भाषा को दरकिनार करने को लेकर है।"
शिक्षा सुधार के प्रयास
जिला कलेक्टर ने समाज की चिंताओं को स्वीकार करते हुए, गुणवत्ता और पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से व्यापक शैक्षिक सुधारों के हिस्से के रूप में इस निर्णय का बचाव किया। अधिकारी ने कहा, "हमारा ध्यान सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने पर है, चाहे वे किसी भी भाषा के हों।"
हालांकि, इस स्पष्टीकरण से मुस्लिम समुदाय के भीतर का डर कम नहीं हुआ है। वे इस कदम को अपने सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों की बर्बादी के तौर पर देखते हैं।
जैसे-जैसे विरोध प्रदर्शन जोर पकड़ते जा रहे हैं, यह मुद्दा भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के बीच भाषाई अधिकारों के लिए चल रहे संघर्ष को दर्शाता है, साथ ही देश भर में उर्दू बोलने वालों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी दर्शाता है, जहां इस भाषा का गहरा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है।
आठ उर्दू मीडियम स्कूलों को हिंदी मीडियम स्कूल में बदलने के फैसले ने राजस्थान के अजमेर में स्थानीय मुस्लिम समाज में भारी विरोध शुरू हो गया है। लोग इस फैसले को अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा मानते हैं, क्योंकि ये विद्यालय ऐतिहासिक रूप से समुदाय की पहचान रहे हैं।
द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के अजमेर में दरगाह इलाके जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थित सरकारी प्राथमिक उर्दू स्कूल बड़बाव और सरकारी बालिका उच्च प्राथमिक उर्दू स्कूल अंदरकोट सहित प्रभावित विद्यालय में लगभग 300 छात्र पढ़ाई करते हैं और दोनों ही स्कूल 1941 से अल्पसंख्यक समुदाय को उर्दू में शिक्षा देते रहे हैं।
इस बदलाव ने लड़कियों की शिक्षा के भविष्य को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं। प्रभावित स्कूलों में से एक स्कूल जो सिर्फ लड़कियों के लिए है उसको सह-शिक्षा वाले हिंदी मीडियम स्कूल में मिला दिया गया है। स्थानीय लोगों को चिंता है कि माता-पिता अपनी बेटियों को इस सह-शिक्षा वाले माहौल में भेजने में संकोच कर सकते हैं, जिससे इलाके में लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसर कम हो सकते हैं।
कांग्रेस पार्टी के अल्पसंख्यक विंग के राज्य महासचिव एसएम अकबर ने कहा, "अंदरकोट क्षेत्र पूरी तरह से अल्पसंख्यक आबादी वाला है, और लड़कियों के स्कूल को सह-शिक्षा स्कूल में विलय करने से कई परिवार अपनी बेटियों की शिक्षा जारी रखने से पीछे हटेंगे।" उन्होंने इस विलय को रद्द करने की मांग करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है।
यह निर्णय भाजपा के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार द्वारा दिसंबर 2024 में पुलिस विभाग में उर्दू और फारसी शब्दों की जगह हिंदी शब्दावली के इस्तेमाल के निर्देश के बाद आया है। समाज के नेताओं का कहना है कि इस कदम से उर्दू के संरक्षण को खतरा है और छात्रों को अपनी मातृभाषा में अधिक सहजता से सीखने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
स्थानीय लोगों में नाराजगी
हाल ही में एक धरना प्रदर्शन में एक अभिभावक ने कहा, "उर्दू हमारी पहचान का अभिन्न हिस्सा है। इसे हमारे स्कूलों से हटाकर सरकार हमारे इतिहास और पहचान को मिटा रही है।"
स्थानीय नेता मोहम्मद रजी ने इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे समाज के अपनी पसंदीदा भाषा में शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा, "यह केवल भाषा को लेकर नहीं है बल्कि यह शैक्षिक समानता को लेकर भी है।" एक अन्य प्रदर्शनकारी यास्मीन जहान ने राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर पर राज्य में सांस्कृतिक विविधता को कमजोर करने के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया।
समाज के लोगों ने जिला कलेक्टर और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को एक ज्ञापन सौंप कर इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। कार्यकर्ताओं ने अपनी मांगों पर ध्यान खींचने के लिए सामूहिक रैलियों सहित बड़े विरोध प्रदर्शनों की योजना की भी घोषणा की है।
उर्दू मीडियम के स्कूल अजमेर के इतिहास में गहराई से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने आठ दशकों से समुदाय की सेवा की है। हालांकि, इन संस्थानों को उर्दू पाठ्यपुस्तकों और योग्य शिक्षकों की कमी सहित लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
स्कूल शिक्षक असलम खान ने सरकार के रूख पर सवाल उठाते हुए सुझाव दिया कि उर्दू और हिंदी दोनों ही शिक्षा के माध्यम के रूप में एक साथ रह सकते हैं। उन्होंने कहा, "यह मुद्दा शिक्षा में सुधार को लेकर नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक भाषा को दरकिनार करने को लेकर है।"
शिक्षा सुधार के प्रयास
जिला कलेक्टर ने समाज की चिंताओं को स्वीकार करते हुए, गुणवत्ता और पहुंच बढ़ाने के उद्देश्य से व्यापक शैक्षिक सुधारों के हिस्से के रूप में इस निर्णय का बचाव किया। अधिकारी ने कहा, "हमारा ध्यान सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने पर है, चाहे वे किसी भी भाषा के हों।"
हालांकि, इस स्पष्टीकरण से मुस्लिम समुदाय के भीतर का डर कम नहीं हुआ है। वे इस कदम को अपने सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों की बर्बादी के तौर पर देखते हैं।
जैसे-जैसे विरोध प्रदर्शन जोर पकड़ते जा रहे हैं, यह मुद्दा भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के बीच भाषाई अधिकारों के लिए चल रहे संघर्ष को दर्शाता है, साथ ही देश भर में उर्दू बोलने वालों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी दर्शाता है, जहां इस भाषा का गहरा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है।