दलित समाज के लोगों को अब तक नहीं मिली दफनाने की जगह, पुडुचेरी-विल्लुपुरम हाईवे पर अर्थी रखकर किया प्रदर्शन

Written by sabrang india | Published on: November 14, 2024
अपनी मांग को लेकर मृतकों के परिजनों और स्थानीय लोगों ने कोलियानूर चौराहे पर प्रदर्शन किया।


प्रतीकात्मक तस्वीर; साभार : एक्सप्रेस

तमिलनाडु के विल्लुपुरम में अपने समुदाय के एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक के शव को अर्थी पर रखकर पननकुप्पम पुधुर के अनुसूचित जाति के लोगों ने मंगलवार शाम पुडुचेरी-विल्लुपुरम हाईवे के सामने प्रदर्शन किया और जिला प्रशासन से उन्हें दफनाने की जगह देने की मांग की। मृतकों के परिजनों और स्थानीय लोगों ने कोलियानूर चौराहे पर जाम लगा दिया, जिससे करीब एक घंटे तक यातायात बाधित रहा।

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो दशकों में उन्हें दफनाने की जगह नहीं दी गई और उन्होंने लंबे समय तक शवों को दफनाने के लिए इलाके में नारायण नदी के तट का इस्तेमाल किया। हालांकि, हाल ही में खुदाई के दौरान इस जगह से जहरीला धुआं निकलने लगा है, ऐसा लोगों का आरोप है। इसलिए, उन्होंने जिला प्रशासन से इलाके में दफनाने की एक अन्य जगह की व्यवस्था करने की गुहार लगाई, लेकिन उन्हें नहीं मिला।

इससे निराश होकर उन्होंने जिला प्रशासन से कार्रवाई की मांग करते हुए हाईवे जाम कर दिया और डी. करुणानिधि (68) की अर्थी लेकर प्रदर्शन करने लगे। वलवनूर थाने के पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और प्रदर्शनकारियों से बातचीत की और उन्हें कार्रवाई का आश्वासन दिया जिसके बाद प्रदर्शन खत्म कर दिया गया।

बता दें कि देश भर दलितों के साथ भेदभाव की इस तरह की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। कहीं उन्हें हैंड पाइप से पानी लेने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ता है तो कहीं दलित बच्चों को खाने के लिए स्कूलों में अलग व्यवस्था करनी पड़ती है।

द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ सप्ताह पहले राजसमंद जिले के भीम थाना क्षेत्र में जातिगत भेदभाव की एक गंभीर घटना सामने आई, जहां एक अनुसूचित जाति (एससी) के सालवी परिवार को अंतिम संस्कार करने के दौरान ऊंची जाति के लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। कुशलपुरा ग्राम पंचयत के देव डूंगरी गांव में मृतक घिसा राम के परिवार द्वारा अंतिम संस्कार के लिए प्रशासन द्वारा आवंटित श्मशान भूमि पर रस्मों की तैयारी के दौरान यह विवाद हुआ। स्थानीय रावत समुदाय ने अनुसूचित जाति समुदाय को इस भूमि पर शव दफनाने से रोकने की कोशिश की, जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो गई। मामला इतना बढ़ गया कि दोनों पक्षों के बीच पथराव हुआ। पुलिस की दखल, सख्ती और समझाईश के बाद जाब्ते की मौजूदगी में शव को दफनाया गया।

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के बीड ज़िले के पालवन में रहने वाले दलित परिवारों को अंत्योष्टि के लिए जगह नहीं मिली है। पिछले कुछ सालों से लगातार ये सवाल उन्हें सालता है कि अगर घर के किसी सदस्य की मौत हो गई तो शव की अंत्येष्टि कहां करेंगे।

एक घटना 13 मई, 2024 को पालवन में हुई थी. तब गांव की सरपंच रहीं मालनबाई साबले के शव का अंतिम संस्कार रोक दिया गया।

घटना के बारे में मालनबाई के पोते माउली साबले ने बीबीसी से कहा, "उस दिन गांव में वोटिंग चल रही थी और मेरी दादी का देहांत हो गया। हम उनके शव को अपने श्मशान घाट ले गए लेकिन जब हम वहां पहुंचे, तो माउली म्हस्के, भरत म्हस्के और रुक्मिणी म्हस्के ने हमें रोक दिया। हमारी जाति का ज़िक्र करते हुए कहा कि क्या आपको शव जलाने के लिए यही जगह मिली। यहां पर हमारे घर हैं।"

पालवन गांव के सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 'हरिजन लोगों' के उपयोग के लिए श्मशान घाट के लिए एक जगह आवंटित की गई है, लेकिन मालनबाई साबले का अंतिम संस्कार पंजीकृत स्थान होने के बाद भी रोक दिया गया था।

महाराष्ट्र के हज़ारों गांवों में सार्वजनिक श्मशान नहीं हैं।

कुछ गांव ऐसे भी हैं, जहां दलित समुदाय के परिवारों को श्मशान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है।

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